डॉ० प्रभुनाथ सिंह के ईयाद में

June 11, 2020
धरोहर
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   लेखक : मनोज भावुक

जन्मतिथि – 2 मई 1940  /  पुण्यतिथि – 30 मार्च 2009

भोजपुरी आंदोलन के अगुआ डॉ० प्रभुनाथ सिंह के जन्मदिन ह 2 मई। 30 मार्च 2009 के दिल्ली से छपरा जात में गोंडा का लगे वैशाली एक्सप्रेस में हृदयाघात से उहाँ के मौत हो गइल। ओकरा एके दिन पहिले हमार उहाँ से बातचीत भइल रहे।

–  ना, अभी हमरा इहां हमार टी वी नइखे आवत.—-ह हो सोचते रह गइनी……अच्छा, गांव से लौट के आवत बानी त हमार टी वी के आफिस आएम। मतंग सिंह से बहुत पहिले के भेंट ह—– ह,  तहरो से भेंट भइला बहुत दिन हो गइल …. खुश रहs ।

…. तब हमरा का मालूम रहे कि प्रभुनाथ चाचा से फेर कबो भेंट ना होई आ इ हमनी के अंतिम बातचीत ह।

डॉ० प्रभुनाथ सिंह से हमार पहिला मुलाकात सन 1998 में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के एकमा अधिवेशन में भइल रहे। तब हम भोजपुरी में नियमित रुप से लिखे-पढे लागल रहीं आ भोजपुरी के लगभग हर महत्वपूर्ण कार्यक्रम में सक्रियतापूर्वक भाग लेबे लागल रहीं। कवि सम्मेलन में जब हम आपन गीत सुनइले रहीं       ( बबुआ भइल अब सेयान कि गोदिये नू छोट हो गइल/ माई के अंचरा पुरान अंचरवे में खोट हो गइल ) त मंच पर आके उहां के हमार पीठ ठोकनी। हांलाकि ओकरा बादो कवनो खास बातचीत ना रहे। ह, उहां के दू चार बार हमरा के आचार्य पाण्डेय कपिल जी ( हमरा साहित्यिक गुरु ) किहां देखले रही आ एह से उहां के इ समझत रहीं कि हम कपिल जी के रिश्तेदार हईं।

सन 2000 में विश्व भोजपुरी सम्मेलन में हमरा सक्रिय भागीदारी के बाद उहां से विशेष स्नेह मिले लागल आ जब नौकरी के सिलसिला में हम दिल्ली से मुंबई चल गइनी तब त पत्राचार  भी शुरु हो गइल। आज भी हमरा पास उहां के हिंदी, अंग्रेजी आ भोजपुरी में लिखल दर्जनों चिठ्ठी थाती के रुप में संभाल के रखल बा जवना में भोजपुरी आंदोलन के दशा-दिशा आ ओह मे युवा के भूमिका आ भोजपुरी खातिर गहरी चिंता व्यक्त कइल गइल बा। मुंबई से एह चिठ्ठी -चिठ्ठियांव आ फोन पर बात चीत के दौरान ही उहां के जननी कि हम उहां के करीबी मित्र प्रो० राजगृह सिंह के भगिना हईं। तब उहां के  कन्फ्यूजन दूर भइल आ फेर त नानी के कजिया में उहां के हमरा खातिर रिश्ता लेके भी पहुंच गइनी।

प्रभुनाथ चाचा से जुडल कई गो रोचक आ सारगर्भित  संस्मरण बा। उहां के मजाके मजाक में बहुत बड सिख दे जात रहीं।

एगो संस्मरण के जिक्र त हम अपना गजल-संग्रह ” तस्वीर जिंदगी के” में भी कइले बानी–

फगुआ के दिने रात के बारह बजे हमरा दाँया नाक से ब्लीडिंग शुरू भइल त रुके के नामे ना लेत रहे। हमार इंडस्ट्रीयल मित्र सुनील राय (क्वालिटी कंट्रोल इंजिनियर) आ राजेश कुमार उर्फ दीपू (फैशन डिजाइनर) हमरा के लाद-लूद के कॉलरा हास्पीटल में डाल दीहल लोग। दू दिन में डाक्टर 15 हजार रुपिया चूस गइल बाकिर कुछ लाभ ना मिलल। बाद में डॉ० प्रभुनाथ सिंह जी हमरा के उमेश भइया का साथे डॉ० राम मनोहर लोहिया अस्पताल भेज देनी। कुछ ना रहे। नाक के झिल्ली सूख के नखोरा गइल रहे।

अस्पताल से तालकटोरा वाला रेजिडेन्स पर वापस अइनीं तऽ डॉ० प्रभुनाथ सिंह जी पूछनीं- “ का हो उमेश, का कहलऽ सऽ डाक्टर ? “ उमेश भइया मजाक कइलन – “ कहलऽ सऽ कि नाक के हड्डी टेढ़ हो गइल बा। “ एह पर डॉ० प्रभुनाथ सिंह जी कहनीं कि… ए भावुक देखऽ … नाक के हड्डी टेढ़ हो जाय, कवनो बात नइखे, …नाक से खून बहे, कवनो बात नइखे, …इहाँ तक कि नाक टूट जाय कवनो बात नइखे। बाकिर नाक कटे के ना चाहीं। इहे भोजपुरिया स्वभाव हऽ।

प्रभुनाथ चाचा हर भोजपुरिआ में इहे तेवर आ जोश भरे के कोशिश करीं। हम बराबर उहां के संपर्क में रहनी, अफ्रिका आ लंदन प्रवास के दौरान भी। हमार टीवी में अइला के बाद हमार व्यस्तता कुछ बेसिये बढ गइल। हम दिल्लिये में रह के दिल्ली के मित्र लोग से ना मिल पाईं। फोने के आसरा रहे। बहुत दिन के बाद चाचा से बात भइल रहे कि …….

डॉ० प्रभुनाथ सिंह के निधन से भोजपुरी समाज के अपूरणीय क्षति भइल बा। प्रभुनाथ बाबू अध्यापक का रूप में, राजनेता का रुप में आ भोजपुरी आन्दोलन के एगो कर्मठ कार्यकर्ता का रूप में सभका खातिर एगो आदर्श छोड  गइल बानी। लंगट सिंह महाविद्यालय मुजफ्फरपुर का अर्थशास्त्र विभाग में व्याख्याता का पद से आपन कर्मशील जिनिगी शुरु करे वाला प्रभुनाथ बाबू तरैया विधानसभा सीट से दू हालि विधायक चुनइलीं आ बाद में डॉ० जगन्नाथ मिश्रा के मंत्रीमण्डल में वित्त राज्य मंत्री के पद पर रहलीं।

डॉ० प्रभुनाथ सिंह के जनम 2 मई 1940 के सारण जिला के मुबारकपुर गांव मे भइल रहे। गांव उहां के रचनन में रचल-बसल बा। अर्थशास्त्र आ प्रबंध शास्त्र के अलावा भोजपुरी में भी इहां के कई गो किताब लिखले बानी- हमार गीत (निबन्ध संग्रह), गाँधी जी के बकरी (संस्मरण), हमार गांव हमार घर (ललित निबन्ध के संग्रह) आ पड़ाव (कहानी संग्रह )।

अइसे त डॉ० प्रभुनाथ सिंह जी बहुआयामी प्रतिभा के धनी रहल बानी लेकिन उहां के मुख्य पहचान भोजपुरी आंदोलन के प्रणेता के रूप में ही रहल बा। भोजपुरी के उचित हक खातिर उहां के उम्र भर लडत रह गइनी। भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में ले आइल उहां के सपना रहे जवन उहां के जिनगी में पूरा ना हो सकल। एह सपना के पूरा कइल ही उहां के प्रति सच्ची श्रद्धांजली होई।

वर्ष 2008 में इग्नू में भोजपुरी कोर्स इंट्रोड्यूस होत रहे। सब विशेषज्ञ लोग आइल रहे।  हमरो बोलाहट रहे। इग्नू कैंपस में उहां से भोजपुरी के कई गो ज्वलंत मुद्दा पर बातचीत भइल रहे।  प्रस्तुत बा बातचीत के खास अंश –

सवाल  डॉ० साहब भोजपुरी के सरकारी मान्यता के का स्थिति बा आ आठवीं अनुसूची में एकरा शामिल होखे में काहे विलम्ब हो रहल बा?

जबाब  “डुमरी कतेक दूर अब निअराइल बा” स्थिति ई बा कि आज हो जाये काल्ह हो जाये.. सरकार के एक तरह से निर्णय हो चुकल बा… अब एकरा के संसद में ला के एकरा से संबंघित कानून जवन बा, ओकरा के बनावे के बात बा.. आ हमरा बुझाता कि अगिला चुनाव के पहिले ई भी काम सरकार कर दी…

सवाल  अगर भोजपुरी आठवीं अनुसूची में शामिल हो गईल, त एकरा से आम आदमी के का लाभ होई?

जबाब  आम आदमी के लाभ ई मिली कि जब सरकार एकरा के मान्यता दे दी त एकरा में बहुत बङा हित भोजपुरी भाषा-भाषी लोग के छिपल बा जइसे कि राज्यसेवा आयोग के भोजपुरी एगो विषय हो जाई। फेर नौकरी अउर रोटी के सवाल से भोजपुरी जुङ जाई… त भोजपुरी भाषा-भाषी लोग के चेहरा पर भी एगो मुस्कान आ जाई…आ ..जे लोग भोजपुरी भाषा से जुङल बा, भोजपुरी पढता-लिखता….एगो अच्छा भविष्य ऊ लोग के हो जाई।

सवाल  हिन्दी के विद्वान लोग ई कहेला कि भोजपुरी के विकास से हिन्दी के अहित होई, नुकसान होई ऊ लोग खातिर राउर का कहनाम बा?

जबाब  ई जे प्रश्न लोग उठावेला…. हमरा ई बात समझ में ना आवे……. काहे कि वस्तु स्थिति ई बा कि प्रायः जे भोजपुरी के साहित्यकार बाङे, ऊ लोग कवनो ना कवनो रूप में हिन्दी के भी साहित्यकार रहल बाङें, चाहें बाङें… अइसन बहुत कम आदमी होइहें जे केवल भोजपुरी के साहित्यकार बाङें, लेकिन हिन्दी के साहित्यकार नइखन… प्रायः लोग अइसन बा कि ऊ हिन्दी के साहित्यकार के रूप में ऊँचाई पा चुकल बा… ओकरा बाद से भोजपुरी के साहित्यकार के रूप में ऊँचाई मिलल बा….लेकिन आज तक हमरा एगो अइसन उदाहरण नइखे मिलल कि हिन्दी में लिखला से ओह लोग के भोजपुरी गङबङाइल होखे .. आ भोजपुरी में लिखला से ऊ लोग के हिन्दी गङबङाइल होखे… एक तरह से ई आपन आपन एगो सोच हो सकेला… हमरा नइखे बुझात कि एह  सोच में कवनो तरह के दम बा… दोसर बात हम ई संबंध में ई कहे के चाहत बानी कि हिन्दी हमार राष्ट्र भाषा ह .. भोजपुरी हमनी के मातृभाषा ह… अउर जवना घङी ई समझ में आ जाई कि भोजपुरी के विकास से हिन्दी के क्षति होई.. त ओह दिन हमनी के भोजपुरी में लिखल बंद कर देब.. जेतना मान-सम्मान के प्रश्न बा ऊ जेतना भोजपुरी भाषा-भाषी लोग के हिन्दी के प्रति बा, ओतना हिन्दी वाला लोग के नइखे… राष्ट्रभाषा खातिर हमनी के कवनो कुर्वानी कर सकेलीं।

सवाल  डॉ० साहेब रउआ पिछला पचीस-तीस बरिस से भोजपुरी आंदोलन से जुङल रहल बानी, लोग त इहां तक कहेला कि रउरा लगला बिना भोजपुरी के कवनो अधिवेशन, कवनो कांफ्रेंस, कवनो जग, कवनो अनुष्ठान सफल ना होला त कइसन रहल सफर पिछला पचीस-तीस बरिस के…

जबाब  जहां तक भोजपुरी आंदोलन के एगो दिशा देवे के सवाल बा…कांफ्रेंस करके, ओकर सम्मेलन करके साहित्यकार लोग के जुटान करके हमरा बराबर एकर सुखद अनुभव रहल बा… पहिला ए मामला में कि, जे भी साहित्यकार लोग के अधिवेशन में बोलाबल गइल .. हम समझतानी कि भोजपुरी साहित्य में एगो अलग तरह के साहित्यकार बाङें कि सब लोग अपना खेबा-खर्चा से पहुँचेला, अपना खेबा-खर्चा से जाला… आज ले केहू टी.ए. डी.ए. के मांग ना करेला … दोसर विशेषता ई बा कि जे लोग भी एह में रचना कइले बा, उ आपन खेत-बधार बेंच के रचना के छापल …….ओकर बाजार त ओतना नइखे, लेकिन एह सम्मेलन में जाके ओकरा के बाँट के….ओकरा प्रचार-प्रसार में जवन इ लोग आपन जीवन के आहुति देले बा,  उ एगो चिरस्मरणीय भोजपुरी साहित्य के इतिहास में एगो अलग अध्याय बा…. तीसर बात ई बा कि जहां तक लोग के सवाल बा रउआ दुआरी केतना छु्अतानी, एकरा पर आधारित बा… लेकिन आज तक हमरा पइसा के कमी ना भइल, लेकिन समय के कमी जरूर बुझाइल….रउआ अगर सच्चा दिल से, सच्चा भाव से भोजपुरी साहित्य-संस्कृति के विकास खातिर आगे बढ़त बानी… त भोजपुरी भाषा-भाषी क्षेत्र के लोग रउआ से दू डेग आगे बा।

सवाल  आज रउआ इहां इग्नू कैंपस में आइल बानी। इग्नू में भोजपुरी के आधार पाठ्यक्रम बन रहल बा। इग्नू में अब भोजपुरी के पढ़ाई शुरू होखे जा रहल बा.. रउआ बताईं भोजपुरी अउर कवना-कवना विश्वविद्यालय में पढावल जाता.. अउर कब से एकर पढाई शुरू भइल.. रउआ त विश्व में भोजपुरी के पहिला व्याख्याता रहल बानी.. त एकरा बारे में तनी विस्तार से बताई…

जबाब  ई एगो ऐतिहासिक क्षण बा.. कि इग्नु भोजपुरी के पाठ्यक्रम के शुरू करे जा रहल बा…दोसर विश्वविद्यालय अउर इग्नू में अंतर बा… हम धन्यवाद देब भोजपुरी भाषा-भाषी लोग आ साहित्यकार लोग के ओर से इग्नू विश्वविद्यालय के कुलपति आ विशेषकर शत्रुध्न प्रसाद जी के, जे एकर अगुवाई कर रहल बानी,…. अउर विश्वधालय में भोजपुरी के पढ़ाई आ इग्नू में भोजपुरी के पढ़ाई में जमीन असमान के फर्क बा. इग्नू भोजपुरी के पढ़ाई शुरू कर रहल बा त एकर मतलब बा कि पठन -पाठन के ममिला में भोजपुरी अंतरराष्ट्रीय क्षितिज़ पर स्थापित हो रहल  बा… विश्वविद्यालय में जहां तक भोजपुरी के पढाई के सवाल बा त सबसे पहिले 1968 में स्नातक स्तर तक बिहार विश्वविद्यालय में भोजपुरी के पढाई प्रारंभ भइल। ओकरा बाद कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में एम. ए. स्तर पर भोजपुरी के पढाई शुरू भइल। बिहार के प्राय: सब विश्वविद्यालय में भोजपुरी एगो स्वतंत्र पत्र के रूप में पढावल जाला। स्वतंत्र पत्र के रूप में ना त कवनो विशेष पत्र के रुप में ……त हमरा बुझाता कि पूर्वांचल के जेतना विश्वविद्यालय बा उ सब में एकर पढाई प्रारंभ हो चुकल बा  लेकिन बिहारे एगो अइसन प्रदेश बा जहां कि भोजपुरी एगो स्वतंत्र पत्र के रूप में B.A, I.A से लेके M.A तक पढावल जाता.. एकर भविष्य बडा उज्ज्वल लागता। अब जे लोग एकरा के एगो बोली मानत रहे, ओह सब लोग के जबाब मिल चुकल बा कि भोजपुरी आज उ नइखे जे 50-51 में रहे। भोजपुरी आज एगो साहित्य के दर्जा ले चुकल बा, एकर पठन-पाठन शुरु हो चुकल बा त अब लोग के कवनो तरह के शंका ना होखे के चाहीं। अब भोजपुरी साहित्य के ….. चाहे देश के कवनो साहित्य होखे चाहे विश्व के कवनो साहित्य होखे ओकरा सामने सम्मान के साथ रखल जा सकेला।

सवाल  रउरा भोजपुरी सिनेमा में गीतो लिखले बानी। आज जे भोजपुरी फिल्म बनता ओकरा बारे में का कहनाम बा?

जबाब  कवनो भी सिनेमा के ….चाहे उ हिंदी होखे, भोजपुरी होखे या अंग्रेजी …ओकर आपन एगो बाजार होला आ बाज़ार के इ मतलब ह कि उपभोक्ता जवन मांग करेला ओकरे आपूर्ति कइल जाला। आज से 15-20 साल पहिले जे उपभोक्ता के मन अउर मिजाज रहे, समय के साथ अउर वैश्वीकरण के साथ ओकरा में बदलाव आ गइल बा। ओकर असर त सिनेमा पर होखबे करी, चाहे उ हिंदी के सिनेमा होखे चाहे भोजपुरी के। एकरा के रोकल त कठिन बा। चूंकि जवन देखे वाला पसंद करी, उहे सिनेमा बनाई काहे कि ओकर इ रोज़गार बा। उ कवनो गांधी जी अउर महत्मा बुद्ध नइखे जे समाज आ देश के सेवा खातिर उ सिनेमा बनावता। ओकर व्यवसायिक जवन उदेश्य बा उ त मूल बा …..आ एकरा बाद ओकर साहित्यिक-सांस्कृतिक जवन उदेश्य बा ओकर भी भरसक पालन होखे के चाहीं। तब अइसन स्थिति में हमार इ सुझाव बा कि कुछ बाजार खातिर भी सिनेमा बने त कुछ कलात्मक आ ऊंचाई वाला सिनेमा भी।

सवाल  अब त भोजपुरी के चैनल भी आ गइल। राउर प्रतिक्रिया ?

जबाब  एहू में दूनू के बढिया समन्वय होखे, व्यवसायिकता के भी आ स्वस्थ सांस्कृतिक जवन पक्ष बा ओकर भी। हमरा जहां तक बुझाता कि आम दर्शक अच्छा स्वाद के बाडन। कुछे दर्शक अइसन बाडन जेकर स्वाद बिगडल बा। … आ जइसन रउरा परोसब लोग उहे खाई। जब अच्छा चीज रउरा परोसब त लोग अच्छे खाई। खराब चीज रउरा परोसल शुरु करब त कवनो उपाय नइखे, लोग खराबे खाई। लेकिन भोजपुरी में जवन भी रउरा परोसब लोग खाई काहे कि एह में जवन स्वाद बा, संप्रेषण के जवन ताकत ब, उ अउर कहीं नइखे। एह से भोजपुरी चैनल के भविष्य उज्ज्वल बा। हमार शुभकामना।

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