शुभ हो, मंगलमय हो नयका साल 

January 1, 2021
संपादकीय
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संपादक- मनोज भावुक
साल 2020… मनुष्य के औकात बतवलस। चिरई-चूरूंग, कुक्कुर-बिलार अँगना-दुअरा फुदुकत-कुदुकत रहल आ मानुष मुँह प जाबी (मास्क) लगवले घर में दुबुकल। आदमी सामाजिक प्राणी ह बाकिर ओकरे सामाजिक दूरी बना के रहे के पड़ल, पड़sता आ आगे देखीं, कब ले ?…
अभियो अमिताभ बच्चन फोनवा प बोलते बाड़े – ” नमस्कार, हमारा देश और पूरा विश्व आज कोविड-19 की चुनौती का सामना कर रहा है। कोविड-19 अभी खत्म नहीं हुआ है, ऐसे में हमारा फर्ज है कि हम सतर्क रहें। इसलिए जब तक दवाई नहीं, तब तक कोई ढिलाई नहीं। ”
बच्चन साहेब के पहिले एगो जनाना बोलत रहे। ओकर बोलिया तनी मीठ लागत रहे। ई मर्दवा त पगला देले बाड़े। आदमी अपना काम में अझुरा के भुलाइयो जाता तले कवनो फोन अइला पर इनकर जबरिया कॉलर ट्यून कोरोना के ईयाद ताज़ा करा देता।
बाप रे बाप। ई कोरोना केतना लोग के नौकरी खइलस। केतना लोग के जिनगी। तबो नइखे अघात। तबो नइखे जात। कादो वैक्सीन खाई तबे जाई।
वैक्सीन के लेके तरह-तरह के कोशिश आ दावा त होते बा बाकिर अभी बहुत कुछ साफ़ नइखे… भारत में कोरोना वायरस वैक्सीन के परीक्षण अंतिम चरण में पहुंच चुकल बा आ वैक्सीन के उत्पादनो तेज़ी से हो रहल बा बाकिर ई आम आदमी तक आ ओकरा पॉकेट के पहुँच तक कब पहुंची, ई कहल अभी जल्दीबाजी होई। सरकार के कहनाम बा कि टीकाकरण एक महीना में शुरू हो सकsता। सीरम इंस्टीट्यूट कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ मिलके ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वैक्सीन के उत्पादन कर रहल बा। ई टीका 70 से 90 प्रतिशत तक प्रभावी बतावल जाता।
खैर, हर बुरा समय के एगो सीमा होला। इहो जाई। जइबे करी।.. आ जब ई इतिहास हो जाई त पीछे पलट के हमनी के एह महामारी के देखब जा त बहुत कुछ लउकी।
लउकी उ काफिला जवना में मरद-मेहरारू लइका-बच्चा के गोदी टंगले पैदले बम्बई से बिहार चल देले रहे। मास्क लगाके पूड़ी बाँटत लोग के फोटो त फेसबुक हर साल देखाई। लाश प भइल सियासत भी सिहरन पैदा करत रही। कादो, बुरा दौर के बाद आदमी जागेला आ ओकरा में मानवता लौटेला पर इहो ओतने साँच बा कि आदमी से हेहर-थेथर दोसर कवनो प्राणी नइखे। श्मशान घाट पर संवेदनशील भइल इन्सान घाट से बहरी निकलते संवेदनहीन होके तोर-मोर करत देखल गइल बाड़न।
खैर, साल 2020 जाता। 2021 आवsता। हमरा नइखे लागत कि कैलेण्डर बदलला से कुछ बदली भा बदलेला बाकिर हँ, दुख, परेशानी, दुर्घटना, ठेस, ठोकर, महामारी आदमी के या त मार देला या त माँज देला, तरास देला। तप के आदमी अउरो चमकेला, निखरेला आ ओकर जिनगी सोना बन जाला। अगर दुख बड़लो बा त दुखी भइला से कुछ होई ना। हम त इहे कहेब कि –
दुखो में ढूंढ लs ना राह भावुक सुख से जीये के
दरद जब राग बन जाला त जिनिगी गीत लागेला
नया साल में बेहतर के उम्मीद कइल जाय. अपना गीत के एगो टुकड़ा से बात ख़तम करत बानी –
अखिल विश्व में सभे रहे खुशहाल
शुभ हो, मंगलमय हो नयका साल
भईया के मुँह से फूटे संगीत
भउजी के कंगना से खनके ताल
आवे रे आवे अइसन मधुमास
मरे कोरोना, टूटे ओकर साँस
जाये रे जाये कोरोना काल
शुभ हो, मंगलमय हो नयका साल

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