भोजपुरी जंक्शन के एक साल भइल पूरा

February 15, 2021
संपादकीय
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संपादक- मनोज भावुक

भोजपुरी जंक्शन (हम भोजपुरिआ) के प्रकाशन के एक साल पूरा हो गइल।

ई चौबीसवां अंक ह, जवना में चौदह अंक ‘’ हम भोजपुरिआ ‘’ के नाम से निकलल आ ओकरा बाद एह पाक्षिक पत्रिका के नाम हो गइल- ‘’ भोजपुरी जंक्शन ’’। भोजपुरी जंक्शन के ई दसवां अंक ह।

एह पत्रिका के शुरुआत ‘’ महात्मा गाँधी विशेषांक ’’ से भइल अउर ई चौबीसवां अंक भी  गांधियेजी के समर्पित बा। बीचो में एगो अंक गाँधी जी पर निकलल रहे। एह तरह से चौबीस अंक में से तीन गो अंक त गांधियेजी पर बा। बाकी 21 गो अंक में बसंत विशेषांक, फगुआ विशेषांक, चइता विशेषांक, भगवान राम पर दू गो विशेषांक, कोरोना पर तीन गो विशेषांक, चीन के विरुद्ध मुहीम पर विशेषांक, वीर कुँवर सिंह विशेषांक, देशभक्ति विशेषांक, सिनेमा विशेषांक, दशहरा विशेषांक, गिरमिटिया विशेषांक, दियरी-बाती अउर छठ विशेषांक, डॉ. राजेंद्र प्रसाद विशेषांक अउर सम-सामयिक घटनन से लबरेज कई गो सामान्यो अंक बा। एह सब अंक में किसान, जवान आ विज्ञान सबकर जिक्र बा। भोजपुरी के गौरव जइसन स्तम्भ में धारावाहिक रूप में भोजपुरी के दिवंगत साहित्य सेवी के बात होता, ताकि नया पीढ़ी ई जान सके कि भोजपुरी में केतना-केतना काम भइल बा। केतना लोग अपना जिनगी के होम कइले बा। नयका सिनेमा के साथे पुरनको सिनेमा के बात होता ताकि नया पीढ़ी ई जान सके कि भोजपुरी सिनेमा के इतिहास केतना गौरवशाली रहल बा।

हम शुरुवे में ई वादा कइले रहनी कि ई पत्रिका समय के राग के साथे अपना गौरवशाली परंपरा के लेके चली। करेंट अफेयर्स के साथे अपना जड़ से जुडल रही। एह से देश-विदेश में जवन होता, ओकरा साथे-साथ भोजपुरी साहित्य, सिनेमा आ लोक में जवन काम हो चुकल बा, ओहू सब के समेटे-सहेजे-जोगावे आ नया पीढ़ी से रुबरु करावे के काम ई पत्रिका कर रहल बिया।

राउर पाती स्तम्भ के बहाने जवन रउरा सब के स्नेह-सुझाव आ प्रोत्साहन मिलेला, ऊ ऊर्जा से भर देला अउर काम कइला के एगो अलगे संतोष-सुख मिलेला।

कोरोना संकट अउर तमाम प्रतिकूल परिस्थिति के बावजूद हमनी के हमेशा ई कोशिश रहल कि गुणवत्ता बनल रहो। कुछ नया, अनोखा आ संग्रहणीय सामग्री हीं रउरा सब के परोसल जाय आ एह में सफलतो मिलल।

पत्रिका में भारत के अलावा सात समुन्दर पार के भोजपुरी लेखक लोग के भी सहयोग मिलल।  स्थापित साहित्यकार लोग के साथे-साथ टेलीविजन अउर प्रिंट मिडिया के मुख्य धारा में कार्यरत साथी लोग के भी सक्रिय सहयोग मिलल। साँच कहीं त एही साथी-संघाती लोग के बल पर हमार नज़र सड़क से संसद ले, गाँव से मेट्रो आ सात समुन्दर पार ले, मकई के लावा से पॉपकॉर्न ले, माड़ से राइस सूप ले रहल।

दरअसल भोजपुरी के ओकरा भदेसपन आ इंटेलेक्ट दुनों खातिर समग्रता में देखल जाए के चाहीं।

हम त देखते बानी रउरो आँख से, अपनो आँख से। 8वीं अनुसूची में भोजपुरी के शामिल कइल जाए खातिर जवन लॉलीपॉप दीहल गइल भा दीहल जात रहल बा, ओकरा के लेके खीस बरल त ई शेर भइल कि –

बात प बात होता, बात ओराते नइखे / कवनो दिक्कत के समाधान भेंटाते नइखे

भोर के आस में जे बूढ़ भइल, सोचत बा / मर गइल बा का सुरुज, रात ई जाते नइखे

बाकिर हार माने के त सवाले नइखे। भोजपुरिआ लोग हमेशा से अपना जिजीविषा, कर्मठता, जुझारूपन आ लड़ाकू तेवर खातिर जानल गइल बा। हमरा दोसरा गजल में ई आशावादी शेर फूटल कि –

होखे अगर जो हिम्मत कुछुओ पहाड़ नइखे / मन में जो ठान लीं त कहँवा बहार नइखे

कहियो त भोर होई, कहियो छंटी कुहासा / भावुक ई मान ल तू, आगे अन्हार नइखे  

एही हौसला आ उम्मीद के साथे आगे बढ़े के बा।

रउरा सब के साथ-सहयोग के आकांक्षी

 

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