केदार पाण्डेय से बाबा रामोदार दास आ फेर राहुल सांकृत्यायन कइसे बन गइलें राहुल बाबा

June 7, 2021
धरोहर
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जन्मतिथि- 09 अप्रैल 1893 |  पुण्यतिथि- 14 अप्रैल 1963

लेखक- मनोज भावुक

पहिला बार जब हम जननी कि राहुल बाबा भोजपुरियो में किताब लिखले बाड़न, उहो नाटक… उहो एगो-दुगो ना, आठ गो त विश्वासे ना भइल। राहुल बाबा माने महापंडित राहुल सांकृत्यायन।

बात 1996 के ह। तब हम बिहार आर्ट थियेटर, कालिदास रंगालय, पटना में नाट्यकला डिप्लोमा के छात्र रहीं। चुकि लेखन में भी रुचि रहे त नाटक में शोध करे लगनी। स्पेशली भोजपुरी नाटक में, जवन दू साल बाद भोजपुरी अकादमी पटना के पत्रिका में एगो लमहर लेख ‘ भोजपुरी नाटक के संसार ‘ के रूप में छपल। ओही शोध के दौरान ई बात पता चलल आ पता का चलल… बिहाने भइला भोजपुरी साहित्य के पर्याय गुरुवर आचार्य पाण्डेय कपिल जी से राहुल बाबा के लिखल तीन गो नाटक मिलियो गइल पढ़े खातिर- नइकी दुनिया, जोंक आ मेहरारुन के दुर्दशा। ई तीनों नाटक भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका में छप चुकल रहे।

राहुल बाबा के भोजपुरी नाटक पर त बात करबे करब। पहिले उहाँ के भोजपुरी आ भोजपुरियापन पर बात करेम। उहाँ के घुमक्कड़ी स्वभाव आ हर भाषा के जाने-सीखे के ललक आ चाव पर बात करेम। साथ हीं इहो कि आखिर 09 अप्रैल 1893 ई। में आजमगढ़ के पन्दहा गांव में जनमल केदार पाण्डेय, केदार पाण्डेय से बाबा रामोदार दास आ रामोदार दास से राहुल सांकृत्यायन कइसे बन गइलें।

बिहार के छपरा जिला में एकमा के पास एगो जगह बा परसागढ़। ‘परसागढ़’ पुरान संत प्रसादी बाबा के नाम पर बा। परसागढ़ के मठो बहुते प्राचीन हऽ। एही मठ में महापंडित राहुल सांकृत्यायन के नाम केदार पाण्डेय से ‘बाबा रामोदार दास’ धराइल। ई कइसे भाई ?

केदार पाण्डेय से बन गइलें बाबा रामोदार दास

एकमा के प्रोफ़ेसर राजगृह सिंह बतावेनी कि परसागढ़ मठ के महंथ बाबा लक्ष्मण दास महंथ चिंतित रहत रहनी, काहे कि युवा साधु रामोदार दास के मृत्यु हो चुकल रहे आ उनके नाम से मठ के जमीन-जायदाद रहे। युवा साधु के महंथी देत समय बाबू लोग (जमींदार, परसागढ़) नाखुश हो गइल रहे। मठ के जमीन-जायदाद पर बाबू लोग मुकदमा ठोक देले रहे। मठ के जमीन-जायदाद के सुरक्षा खातिर एगो अइसन युवक के तलाश रहे, जे तेज-तर्रार अउर महंथी के काबिल होखे।

नयका मंदिर खातिर पत्थर खरीदे बाबा लक्ष्मण दास महंथ वाराणसी गइल रहनी। ओहिजा के महंथ के एगो छावनी रहे, जवना में संस्कृत के अध्यापन भी होत रहे। अचानके बाबा लक्ष्मण दास के धेयान एगो अइसन 19 वर्षीय युवक पऽ गइल जवन ओहिजा संस्कृत पढ़े आइल रहे अउर ओकरा साधु बने के मनो रहे। ऊ पंडित राजकुमार जी के माध्यम से आइल रहे। ओह युवक के नाव केदार पाण्डेय रहे अउर उ आजमगढ़ के पंदाहा के रहे वाला रहे। बाबा लक्ष्मण दास के संपर्क में आ के अउर पंडित राजकुमार के कहला पऽ केदार पाण्डेय छपरा परसागढ़ चले खातिर तइयार हो गइले। महंत जी केदार पाण्डेय के छपरा लेके अइनी आ 2 दिन रुक के तीसरा दिने एकमा होत परसागढ़ पहुंचनी। केदार पाण्डेय के मठ में ओही चबूतरा प बइठावल गइल, जवना चबूतरा पऽ रामोदार दास बइठत रहनी। एकादशी, 1912 के केदार पाण्डेय के नाम बदलके रामोदर दास कऽ दिहल गइल। शुभ मुहूर्त में वैदिक रीति से उनकर नामकरण संस्कार कइल गइल आ उनका से कहल गइल कि आज से रउरा रामोदार दास साधु हो गइनी। जमीन-जायदाद रउरे नाम से बा। ओकर देखभाल करे के होई अउर मुकदमा के सगरी कागजात रउरे देखे के होई।

परसागढ़ मठ के महंथी स्वीकार ना कइलें बाबा     

बाबा के महंथी करे के ना रहे। जमीन-जायदाद के लालच रहे ना। सब सुख-सुविधा के बावजूद  ऊ उहां से भाग के दक्षिण चल गइलन आ मठ से संबंधित स्थानन के भ्रमण करे लगलन। महंथ लक्ष्मण दास के निहोरा पर ऊ 1913, 1914, 1917 अउर 1918 में परसागढ़ आवत रहलन अउर मुकदमा के देखभाल करत रहलन। देश के पूरा तीर्थ, मठ से जुड़ल स्थानन के घूमत रहलन। आगरा में जाके 1915 में आर्य समाजी हो गइलन। एक दिन महंथ जी के तार पढ़के ऊ सर्वे के काम से मठ के जमीन के देखभाल करे खातिर परसा आ गइलन। बाकिर महंथी स्वीकार ना कइलन आ महंथ लक्ष्मण दास के मर गइला के बाद मठ में आइल भी ना के बराबर हो गइल। प्रोफ़ेसर राजगृह सिंह बतावेनी कि ओकरा बाद परसागढ़ मठ से कमे नाता रहल उहाँ के बाकिर 1993 में जब कमला जी (बाबा के पत्नी) एकमा आइल रहली त कहत रहली कि बाबा इहाँ के लोगन के खूब ईयाद करीं।

11 साल के उमिर में 8 साल के कन्या से बिआह भइल

गोबर्द्धन पाण्डेय आ कुलवन्ती देवी के संतान राहुल बाबा के लालन-पालन आ पढ़ाई कन्नौल गांव के नाना राम शरण पाठक के देखरेख में 16 साल के उमिर तक चलल। नाना अवकाशभोगी पल्टनिहा रहलन, जेकरा देश-विदेश के घुमला के अनुभव से बाबा काफी प्रभावित रहस। 11 साल के उमिर में 8 साल के कन्या से बाबा के बिआह कऽ दीहल गइल। पुरान विचार के परिवार में घर-गृहस्थी संभाले खातिर एही तरे लोग शादी-बिआह कर देत रहे। बाबा का मन में समाज का प्रति विद्रोह जागल आ उ 16 साल के उमिर में घर बार छोड़ के बनारस भाग अइलन। इहां दयानंद हाई स्कूल में संस्कृत के शिक्षा लेत रहलन। एही बीच उनकर मुलाकात लक्ष्मण बाबा से हो गइल आ उ अपना साथे ले के परसागढ़ मठ चल अइलन।

जेलो गइलें बाबा 

1921 में बिहार अइला के बाद गांधीजी के असहयोग आंदोलन के आकर्षण बढ़ल। कादो, गांधीजी के एकमा बोलावे के श्रेय बाबा के रहे। आन्दोलन में सक्रिय भइला के चलते उनका 6 महिना खातिर बक्सर जेल आ 1923 के आस-पास हजारीबाग सेंट्रल जेल में भी जाए के पड़ल। हजारीबाग सेंट्रल जेल में उ मार्क्सवाद से प्रभावित पुस्तक ‘बाइसवीं सदी’ लिखलन।

कइसे पड़ल नाम महापंडित राहुल सांकृत्यायन

बाबा 1927 में संस्कृत के अध्यापक होके लंका गइलन आ उहां 1928 में उनका ‘त्रिपिटिकाचार्य’ के उपाधि मिलल। भारत लौटला पर 1928 में काशी के पंडित लोग उनका के ‘महापंडित’ के उपाधि से सम्मानित कइल। 30 जुलाई 1930 में बाबा आर्य समाज आ कांग्रेस राजनीति के विचार त्याग के बौद्ध भिक्षु बन गइलन। एह उपलक्ष में उ आपन नाम बदल के ‘राहुल सांकृत्यायन’ रख लेहलन। बुद्धपुत्र ‘राहुल’ आ गोत्र ‘सांकृत्यायन’ मिल के राहुल सांकृत्यायन हो गइल। तब से दुनिया में इहे नाम प्रचलित भइल।

लंका से लंदन आ लंदन से रूस के यात्रा       

1932 में बौद्धधर्म के प्रचार खातिर लंका से लंदन गइलन। यूरोप के यात्रा कके 1933 में लद्दाख लौट के हिमालय, तिब्बत आ मध्य एशिया के यात्रा कइलन। तिब्बत से कई सौ के संख्या में संस्कृत, पाली, प्राकृत आ अपभ्रंश के पाण्डुलिपि लेके अइलन जवन पटना संग्रहालय में सुरक्षित बा। 1937 में लेनिनग्राड (रूस) में प्राचीन भाषा-संस्थान के अध्यापक बन के गइलन आ संस्थान के सचिव एलेना (लोला) से गंधर्व विवाह कर लेलन। 1939 में लौट के भारत अइलन आ सहजानंद सरस्वती का किसान आंदोलन का साथे जुट गइलन। 1939 में छपरा जिला (आज सिवान जिला) के अमबारी में जमींदार के खिलाफ भारत के पहिलका किसान आंदोलन के नेतृत्व कइलन जवना खातिर उनका लाठी, भाला आ जेल सभ मिलल। एशिया, यूरोप के अनेक देश के बार-बार यात्रा कके अपना अनुभव के लाभ लोग के देत रहलन। 24 माह फेर रूस रह के 1949 में राहुल जी भारत लौटलन। 1942 का आस-पास अपना निजी सचिव ‘कमला जी’ के धर्मपत्नी  का रूप में स्वीकार कइलन।

राहुल बाबा के भोजपुरी साहित्य  

राहुल बाबा 1948 में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के सभापतित्व कइलन आ लमहर लिखित भाषण दिहलन जे भोजपुरी के धरोहर बा। साथ हीं उ आठ गो नाटक भोजपुरी में लिखलन जवन 1942 ई। में छपल।

नइकी दुनिया– आजादी के बाद कइसन होई हमनी के दुनिया एह पर फोकस बा।

जोंक– मिल के मालिक, जमींदारन, साहूकारन आ अन्य समर्थ लोग कइसे कमजोर आ गरीब लोग के जोंक बन के चूसता, एही पर फोकस बा।

मेहरारुन के दुरदसा- नामे से साफ़ बा कि औरतन के शोषण के खिलाफ आवाज उठावत बा ई नाटक।

ई हमार लड़ाई जर्मनी के खिलाफ जनता के लड़े खातिर प्रेरित करे वाला नाटक।

जपनिया राछछ- जापान द्वारा कोरिया आ चीन पर अत्याचार केंद्र में बा। जापान में बढ़त वेश्यावृत्ति पर भी फोकस बा।

जरमनवा के हार निहिचय हिटलर के प्रति आक्रोश बा। ओकरा हार के कामना बा।

देस रच्छक– जापान द्वारा बमबाजी से त्रस्त वर्मावासियन के आजाद हिंद फौजियन द्वारा सेवा टहल के प्रशंसा कइल गइल बाटे एह नाटक में।

ढुनमुन नेता- कॉग्रेसी नेता के दोहरा चरित्र के उजागर करत बा इ नाटक। जमींदारी प्रथा स्क्रिप्ट के आधार बा।

दुर्भाग्यवश उनकर लिखल खाली तीन गो नाटक (मेहरारूअन के दुरदसा, नइकी दुनिया आ जोंक) उपलब्ध बा। अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन पत्रिका में ई तीनों नाटक के प्रकाशन भइल बा। संस्कृत, पाली, प्राकृत से लेके हिन्दी भोजपुरी तक के दुनिया में राहुल जी समान विचार रखेवाला विद्वान रहस। लोकभाषा के विकास पर उनकर काफी जोर रहे। जहां जास उहें भाषा सीख लेस आ ओही में आपन विचार प्रचार शुरू कर देस। राहुल जी अद्भूत मस्तिष्क वाला व्यक्ति रहस। उनकर लेखन कार्य विचित्र ढंग से चलत रहे। उनका साथे बराबर टाइपिस्ट रहत रहे आ उनकर बोली आ भाषण टाइप होत रहे। अइसन विचार आ चिन्तन के धनी आदमी संसार में दुर्लभ बा।

प्रोफ़ेसर राजगृह सिंह बतावेनी कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन जमींदार लोग का व्यवहार से क्षुब्ध हो के भीष्म प्रतिज्ञा कइले रहस कि जब तक जमींदारी प्रथा के अंत ना होई हम एकमा-परसागढ़ में गोड़ ना राखब। एकर उ निर्वाहो कइलन। छपरा-सीवान आवस बाकिर एकमा ना उतरस। जब जमींदारी के अंत हो गइल त 1956 में राहुल जी के प्रतिज्ञा टूटल आ उ परसागढ़-एकमा अइलन।

राहुल जी स्वतंत्र आ स्वाभिमानी रहस। साम्यवाद में उनका आस्था रहे बाकिर हिन्दी राष्ट्रभाषा बने, एह मुद्दा पर उ 1948 से 1958 तक पार्टी (साम्यवादी) से अलग रहलन। हिन्दी के उनकर सेवा अपूर्व बा। सैकड़ो ग्रंथ कहानी, उपन्यास, इतिहास, शोधग्रंथ आदि हिन्दी में लिख के एह भाषा आ साहित्य के सम्पन्न कइलन। 1959 से 1961 तक लंका के विद्यालंकार विश्व विद्यालय में दर्शन विभाग के अध्यक्ष-अध्यापक रहलन आ उहे विश्वविद्यालय उनका के डी। लिट् के उपाधि देहलस।

14 अप्रैल 1963 में उनके पार्थिव शरीर सदा खातिर एह दुनिया से चल गइल बाकिर राहुल जी के यशस्वी शरीर अमर बा। मरणोपरांत भारत सरकार से उनका ‘पद्मभूषण’ के उपाधि मिलल।

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