ब्रजकिशोर बाबू - बिहार के जन्मदाता आ स्वतंत्रता-संग्राम के एक महानायक

September 27, 2021
आवरण कथा
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ज्योत्स्ना प्रसाद

ब्रजकिशोर तुम रहे हमारे, ब्रजकिशोर तुम रहे हमारे

राष्ट्रपिता के सहकर्मी हे मातृभूमि के प्यारेs !

स्वतंत्रता की रंगीनी में रंग तुम्हारा रंगा हुआ था

इंक़लाबी इतिहास तुम्हारे कर-कमलों का गढ़ा हुआ है

तेरी प्रतिभा से भास्वर है नीले नभ की सीमा पार

ब्रज किशोर तुम रहे हमारे, ब्रजकिशोर तुम रहे हमारे l’

प्राचार्य स्व. रामचन्द्र त्रिपाठी के एही पंक्तियन से हम ब्रजकिशोर बाबू के स्मरण करत आपन बात आगे बढ़ावे के चाहेब l जब कई दशकन से भारत माता अंगरेजन के गुलामी के जंजीर में बंधल छटपटात होखस तब ब्रजकिशोर बाबू जइसन एक संवेदनशील आ कर्मठ बेटा हाथ पर हाथ रख के कइसे बइठल रह सकेला ? जबकि स्वतंत्रता-आन्दोलन के यज्ञ में औकातभर आपन कर्म-समिधा डाले खातिर भारतमाता के हर विवेकी संतान छटपटा रहल होखे l

भारतीय स्वतंत्रता–संग्राम के दौरान वर्तमान सीवान ज़िला स्वतंत्रता-संग्राम के प्रमुख केन्द्रन में से एक रहे l इहाँ के किशोर-युवा ‘सिक्रेट सोसायटी’ के तहत सुभाषचन्द्र बोस आ भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद से प्रभावित हो अपना काम के अंजाम देत रहले त अधिकांशत: सयान आ अनुभवी लोग गाँधीजी से प्रभावित रहे l सीवान ज़िला के उल्लेखनीय नामन में से बा- सर्वश्री डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, महेन्द्र प्रसाद (राजींदर बाबू के बड़ भाई), मौलाना मज़हरुल हक़ आ फुलेना प्रसाद इत्यादि l

ब्रजकिशोर प्रसाद के जन्म वर्तमान सीवान जिला के श्रीनगर में 14 जनवरी 1877 में एगो कायस्थ परिवार में भइल रहे l इहाँ के बाबूजी के नाम रहे रामजीवन लाल आ माई के नाम रहे समुद्री देवी l इहाँ के माई बहुत ही सरल आ सात्विक प्रवृति के महिला रहनीं l ब्रजकिशोर बाबू के परिवार अपना इलाक़ा के सम्पन्न परिवार में गिनल जात रहे l जमीन-जायदाद के साथ ही इहाँ के बाबूजी नौकरी भी करत रहनीं l एह से इहाँ के शिक्षा में कभी कवनों आर्थिक व्यवधान ना आइल l

ब्रजकिशोर बाबू के प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही भइल l जहाँ उहाँ के उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी आ संस्कृत भाषा के शिक्षा ग्रहण कइनींl उहाँ के ओह घड़ी के प्रचलन के मोतबिक सन् 1888 में, यानी बहुत कमे उमिर में फूल देवी से बिआह हो गई l बाकिर उहाँ के बिआह से पढ़ाई में कोई व्यवधान ना पड़ल l

ब्रजकिशोर बाबू के बाबूजी गया में नौकरी करत रहनीं l एह से ब्रजकिशोर बाबू के माध्यमिक शिक्षा गया के ज़िला स्कूल से भइल l कलकत्ता प्रेसीडेंसी कॉलेज से उहाँ के बी. ए. आ एम. ए. कइनीं l एकरे बाद उहाँ के बाबूजी के स्वर्गवास हो गइल l बाकिर एह से उहाँ के घबड़इनीं ना बल्कि ओह विपरीत परिस्थिति में भी आपन आगे के पढ़ाई जारी रखनीं आ सन् 1898 मे क़ानून के पढ़ाई पूरा कइनीं l

जवना घड़ी ब्रजकिशोर बाबू के पढ़ाई-लिखाई चलत रहे ओह घड़ी बिहार में आधुनिक शिक्षा के अर्थ रहे जमींदार लोगन द्वारा खोलल ऊ स्कूल-कॉलेज, चाहे ओह तरह के स्कूल-कॉलेज जवना केमाध्यम अँग्रेज़ी होखे l चाहे शिक्षा में अँग्रेज़ी भाषा पर बल देहल जात होखे l जवना के मूल उद्देश्य ई रहे कि जमींदार लोगन के बच्चा अइसन पढ़ाई पढ़े जवना से ओह लोगन के अँगरेजी सम्राज्य आ शासन-पद्धति से परिचय हो सके आ ओकरा के ठीक-ठीक समझे के परिस्थिति उत्पन्न हो सके l ताकि ऊ लोग ब्रिटिश सरकार के सही-सही आंकलन करते हुएसोच-विचार के ई निर्णय ले सके कि ओह परिस्थिति में ओह लोगन के ब्रिटिश सरकार से आपन सम्बंध कइसन बनावे के चाहीं ? ओकरा खातिर कइसन रणनीति बनावल जाव ? इत्यादि-इत्यादि l

ब्रजकिशोर बाबू अपना दूरदृष्टि के परिचय देत स्त्री आ पुरुष दूनू के अँग्रेज़ी पढ़े खातिर प्रोत्साहित करत रहनीं आ उच्च शिक्षा खातिर लोगन के विदेश जाये के बढ़ावा देत रहनीं l एकरा खातिर उहाँ के संकीर्ण राजनीति से ऊपर उठके जे लोग विदेश से आपन पढ़ाई पूरा करके वापस आवत रहे ओह लोगन के सम्मान में भारत लौटला पर रात्रिभोज के आयोजन भी करत रहनीं आ एह तरह के  आयोजन में शामिल भी होत रहनीं l

ब्रजकिशोर बाबू एक ओर विद्वान, उदार, परोपकारी, न्यायविद्, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी रहनीं उहईं दोसरा ओर उहाँ के एक न्यायप्रिय आ निर्भीक सेनानी भी रहनीं l एह से गाँधीजी के चंपारण आवे के पहिले से ही उहाँ के क़ानून के माध्यम से चंपारण के किसानन के दुख-दर्द ब्रिटिश सरकार तक पहुँचावे के भरसक कोशिश करत रहनीं l हालाँकि ओह कोशिश से किसानन के कवनों बहुत लाभ ना भइल l बाकिर एतना त जरूरे भइल कि किसानन के दुख आ शिकायत ब्रिटिश सरकार के नजर में आ गइलl एतने भर ना जवना घड़ी लोग अंग्रेजन के नाम लेबे से डेरात रहे ओह घड़ी भी उहाँ के आपन बात रखे के साहस रखत रहनीं l

ब्रजकिशोर बाबू के समय छपरा वकालत खातिर बहुत मशहूर रहे l एह से ब्रजकिशोर बाबू भी आपन वकालत छपरा से ही शुरू कइनीं आ देखते ही देखते काफी प्रसिद्ध हो गइनीं l बाकिर डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा के सुझाव पर छपरा छोड़ के दरभंगा में वकालत करे लगनीं l एही बीच इंपीरियल कौंसिल के चुनाव में दरभंगा महाराज के विरुद्ध सिन्हा साहेब खड़ा भइनीं l एह चुनाव में ब्रजकिशोर बाबू खुलके सिन्हा साहेब के साथ देहनीं l एही घटना के बाद से ब्रजकिशोर बाबू सियासी जीवन के ओर आपन क़दम बढ़वनीं आ खुलके सियासत में दिलचस्पी लेबे लगनीं l एकर परिणाम ई भइल कि उहाँ के सन् 1910 ई. में दरभंगा नगर परिषद के सदस्य निर्वाचित भइनीं आ एही साले बंगाल विधान परिषद के निर्वाचित सदस्य भी बन गइनीं l ई बात तब के ह जब बिहार एक अलग राज्य ना रहे आ बिहार के अलग राज्य के दर्जा दिलावे खातिर ज़ोर-शोर से आन्दोलन चलत रहे l ओह आन्दोलन के ब्रजकिशोर बाबू एगो प्रमुख नेता रहनीं आ बिहार प्रांतीय सम्मेलन में लगातार हिस्सा लेत रहनीं l ई आन्दोलन लम्बा चलल आ सन् 1912 में बिहार के अलग राज्य के दर्जा मिलल l ब्रजकिशोर बाबू बिहार आ उड़ीसा विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित भइनीं l एही साले बांकीपुर में कांग्रेस पार्टी के सलाना अधिवेशन भइल, जबना के कामयाब बनावे खातिर ब्रजकिशोर बाबू बहुत मेहनत कइनीं l ई बात जवना घड़ी के ह ओह घड़ी भारत के बॉयसराय रहले लॉर्ड हार्डिंग l संयोग से ऊ बिहार के अलग राज्य के दर्जा दिलावे में व्यक्तिगत तौर से दिलचस्पी लेहले रहले l एह से बिहार राज्य के स्थापना खातिर संघर्षरत लोगन के मन मे ई विचार आइल कि लॉर्ड हार्डिंग के एह सहयोग खातिर उनका सम्मान में एगो स्मारक के स्थापना कइल जाव l सन् 1913 में हार्डिंग मेमोरियल समिति बनावल गइल l जेकरा द्वारा हार्डिंग पार्क के स्थापना भइल l एह कमिटी के ब्रजकिशोर बाबू एगो महत्वपूर्ण सदस्य रहनीं l

ब्रजकिशोर बाबू किसानन के स्थिति से बहुत दुखी रहनीं l एह से उहाँ के 10 अप्रैल सन् 1914 में बिहार प्रांतीय कांग्रेस के अध्यक्षीय भाषण में भी किसानन के मुद्दा पर ही बल देहनीं l सन् 1916 में लखनऊ में कांग्रेस के सलाना बैठक भइल l जवना में पटना यूनिवर्सिटी के स्थापना के लेके चर्चा भइल l एह चर्चा में ब्रजकिशोर बाबू बढ़-चढ़ के हिस्सा लेहनीं आ रामचन्द्र शुक्ल के साथे गाँधी जी के चंपारण के किसानन के स्थिति बतावत चंपारण आवे के निवेदन भी कइनीं l

गाँधीजी जब चंपारण में सत्याग्रह शुरू कइनीं तब ओह सत्याग्रह के कामयाब बनावे खातिर ब्रजकिशोर बाबू, राजेन्द्र बाबू आ अनुग्रह नारायण के साथे बहुत मेहनत कइनीं l ब्रजकिशोर बाबू ओह आन्दोलन के समय गाँधीजी के साया के तरह रहनीं l कई बार त एने गाँधीजी अंगरेज अधिकारी से बात करत रहनीं आ ओने ब्रजकिशोर बाबू ओही सिलसिला में पटना, राँची आ कलकत्ता के लगातार दौरा करत रहनीं l एकरा साथ ही उहाँ के एह विषय पर कईगो लेख भी लिखनीं l सन् 1918 में सच्चिदानंद सिन्हा आ हसन इमाम मिलके जब ‘सर्चलाइट’ अख़बार निकललस लोग तब ओकर हिन्दी संस्करण ‘देश’ के जिम्मेदारी ब्रजकिशोर बाबू अपना ऊपर ले लेहनीं आ ओकर संपादक बन गइनीं l

सन् 1920 में असहयोग आ ख़िलाफत आन्दोलन में भी ब्रजकिशोर बाबू बड़ा मनोयोग से हिस्सा लेहनीं आ अपना देश के आज़ादी खातिर आपन चलत वकालत के त्याग के पूर्ण कालिक आंदोलनकारी बन गइनीं l

गाँधी जी जब अंगरेजन के खिलाफ़ असहयोग आंदोलन शुरु कइनीं तब गाँधी जी के आह्वान पर छात्रन-द्वारा अंग्रेज़ी–शिक्षा के भी बहिष्कार भइल l एह छात्रन के भारतीय पद्धति से शिक्षा दिलावे खातिर पूरा देश में तीनगो विद्यापीठ- काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ आ बिहार विद्यापीठ के स्थापना भइल l बिहार के राजधानी पटना में 6 फरवरी सन् 1921 में स्वतंत्रता सेनानी ब्रज किशोर बाबू, मौलाना मज़हरुल हक़, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद आ स्वयं गाँधी जी मिलके एकर स्थापना कइनीं l एकरा उद्घाटन में गाँधी जीकस्तूरबा गाँधी आ मोहम्मद अली के साथे पटना आइल भी रहनीं आ बिहार विद्यापीठ के विधिवत उद्घाटन भइल lगाँधी जी मौलाना मज़हरुल हक़ के बिहार विद्यापीठ के प्रथम चांसलर बनवनीं आ ब्रज किशोर बाबू के प्रथम वाइस चांसलर के पद के शोभामान कइनीं l एकरा साथ ही ब्रज किशोर बाबू काशी विश्वविद्यालय आ पटना यूनिवर्सिटी के सीनेट के सदस्य भी रहनीं l

सन् 1922 में गया में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन भइल जवना के ब्रजकिशोर बाबू स्वागताध्यक्ष रहनीं l ओह अधिवेशन के सफल बनावे में उहाँ के बहुत परिश्रम कइनीं l हालाँकि एही अधिवेशन में कांग्रेस के अंतर्विरोध खुल के सामने आ गइल आ कांग्रेस दू भाग में बँट गइल l बावजूद एकरा ब्रजकिशोर बाबू देश के प्रति आपन सकारात्मक भूमिका निभावत सदा सेवारत रहनीं l सन् 1928-29 में बिहार प्रांतीय कांग्रेस समिति के जब गठन भइल तब उहाँ के दीप नारायण आ शाह मो. ज़ुबैर के साथे ओह समिति के उपाध्यक्ष चुनल गइनीं l

सन् 1930 में गाँधीजी के नमक आन्दोलन के बिहार में कामयाब बनावे खातिर ब्रजकिशोर बाबू बहुत प्रयत्न कइनीं l जब 26 जनवरी सन् 1931 में सम्पूर्ण भारत में स्वतंत्रता दिवस मनावल गइल तब पटना के भँवरपोखर पार्क में बाबू अनुग्रह नारायण राष्ट्रीय झण्डा फहरवलन l ओही झण्डा के नीचे उहाँ उपस्थित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर बाबू, प्रो. अब्दुल बारी आदि सभे क़सम खइलस कि भारत के स्वतंत्रता मिले तक ऊ लोग संघर्षरत रही l

3 जनवरी सन् 1932 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा सदाक़त आश्रम में एगो मीटिंग बुलावल गइल l ओही मीटिंग के दौरान सदाक़त आश्रम में छापा पड़ गइल आ ब्रजकिशोर बाबू सहित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जगत नारायण लाल, मथुरा प्रसाद, प्रजापति सिंह, कृष्ण वल्लभ सहाय के गिरफ़्तार कर लेहल गइल आ सरकार द्वारा सदाक़त आश्रम पर आपन क़ब्ज़ा करके यूनियन जैक फहरा देहल गइल l

ब्रजकिशोर बाबू के पहिले बांकीपुर जेल मे रखल गइल फेर उहाँ के हज़ारीबाग़ भेज देहल गइल l उहाँ के पाँच महीना के क़ैद के सज़ा भइल l जेल के सज़ा में उहाँ के शरीर टूट गइल रहे l एह से जेल से बाहर अइला के बाद भी सेहत में सुधार ना आइल l अपना ओही स्थिति में आपन क़सम भी निभावे के रहे l एह से उहाँ के स्वास्थ्य में सुधार ना हो पावत रहे l आज़ादी खातिर संघर्ष करे वाला ब्रज किशोर बाबू आज़ादी के सवेरा देख ना पइनीं आ अपना आँखन में भारत के आज़ादी के सपना लेहले सन् 1977 में एह दुनिया से विदा ले लेहनीं l

सन् 1934 में बिहार में भयंकर भूकम्प आइल l अइसन समय में ब्रजकिशोर बाबू अपना शरीर के चिंता छोड़ के भूकम्प पीड़ित लोगन के सेवा में जुट गइनीं l बाकिर उहाँ के शरीर उहाँ के साथ ना दे पावत रहे l एह से रह-रह के उहाँ के बीमारी पटक देत रहे l उहाँ के अपना जीवन के अन्तिम दस बरिस ले बीमारी से बड़ा कष्ट भइल l

ब्रजकिशोर बाबू के चारगो संतान रहे l जवना में दूगो बेटा रहले आ दूगो बेटी रहली l उहाँ के बेटा लोगन के नाम रहे- विश्वनाथ प्रसाद आ शिवनाथ प्रसाद l बेटी लोगन के नाम रहे- प्रभावती देवी आ विद्यावती देवी l विद्यावती देवी के बिआह डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के बड़ बेटा मृत्युंजय बाबू से भइल रहे l एह तरह से डॉ. राजेन्द्र प्रसाद उहाँ के समधी रहनीं l ब्रजकिशोर बाबू के बड़की बेटी प्रभावती देवी के नाम त इतिहास में दर्जे बा l

ब्रजकिशोर बाबू अपना ज़िंदगीभर सिर्फ़ स्त्री शिक्षा आ परदा-प्रथा के विरोध ही ना करत रहनीं बल्कि अपना बेटीयन के भी एकर महत्त्व समझवनीं आ अपना एक काम में आगे बढ़े खातिर अपना बड़ बेटी प्रभावती जी के भी लगवनीं l

प्रभावती देवी ब्रजकिशोर बाबू के पद चिन्ह पर चलत स्वयं एगो स्वतंत्रता सेनानी रहनीं l उहाँ के बिआह प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता आ जेपी आन्दोलन के पुरोधा जयप्रकाश नारायण जी से भइल रहे l इहाँ के चंपारण में गांधीजी के प्रथम सहयोगी ब्रजकिशोर बाबू के पुत्री त रहबे कइनीं साथ ही गाँधीजी के मानस-पुत्री के गौरव भी इहाँ के प्राप्त रहे l

चंपारण के किसान आंदोलन, जेकर ब्रजकिशोर बाबू के यजमान कहल जाला, ऊ आंदोलन गाँधीजी के भारत में लोकप्रियता दिलावे में बहुत योगदान कइले बाl सन् 1917 के ई चंपारण सत्याग्रह गाँधी जी के साथ एह तरह से जुड़ गइल बा कि गाँधी जी के जीवनी एकरा बिना पूर्णता ना पा सकेला l काहेकि ई भारत में गाँधी जी के दक्षिण अफ्रीका में आजमावलसत्याग्रह के पहिला प्रयोग रहे l एकर महत्त्व एही से समझल जा सकेला कि गाँधी जी के जीवनी चंपारण सत्याग्रह के बिना पूरा ही ना हो सकेला आ गाँधी जी के बिना चंपारण सत्याग्रह के त कल्पना भी ना कइल जा सकेला l एही सत्याग्रह के बाद गाँधी जी के लोकप्रियता के ग्राफ में काफी उछाल आइल l तत्कालीन समाचार पत्रन में गाँधी जी के एह सफलता के काफी प्रमुखता से स्थान मिलल l जवना के बाद ब्रिटिश शासन के

गाँधी जी अपना आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ के पाँचवा भाग के बारहवाँ अध्याय ‘नील का दाग’ में लिखतानीं- ‘लखनऊ कांग्रेस में जाने से पहले तक मैं चंपारण का नाम तक न जनता था l नील की खेती होती है, इसका तो ख्याल भी न के बराबर था l इसके कारण हज़ारों किसानों को कष्ट भोगना पड़ता है, इसकी भी मुझे कोई जानकारी न थी l’ एही किताब में गाँधी जी आगे लिखतानी- ‘राजकुमार शुक्ल नाम के चंपारण के एक किसान ने वहाँ मेरा पीछा पकड़ा । वकील बाबू (ब्रजकिशोर प्रसाद, बिहार के उस समय के नामी वकील और जय प्रकाश नारायण के ससुर) आपको सब बतायेंगे, कहकर वे मेरा पीछा करते जाते और मुझे अपने यहाँ आने का निमंत्रण देते जाते l’ ओही अधिवेशन में ब्रजकिशोर बाबू चंपारण के दुर्दशा पर आपन बात रखनीं l चूँकि गाँधी जी चंपारण के दुर्दशा से अनभिज्ञ रहनीं एह से ब्रजकिशोर बाबू ही उहाँ के सामने चंपारण के परिस्थिति के चित्र उकेरनीं l ब्रजकिशोर बाबू के संगठनात्मक क्षमता, कानूनी कौशल से गाँधी जी के किसानन के दुख दूर करे में मदद मिलल l

गाँधी जी के उहे चंपारण सत्याग्रह जवना के ब्रज किशोर बाबू के यजमान कहल जाला ऊ सिर्फ़  भारतीय इतिहास में ही ना बल्कि विश्व इतिहास में भी आपन नाम दर्ज क लेहलस l काहेकि इतिहास के ई घटना ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खुलल चुनौती रहे l ई घटना से गाँधी जी के ‘महात्मा’ बने के मार्ग भी प्रशस्त भइल l एह घटना से गाँधी जी के एक ओर लोकप्रियता बढ़त गइल उहईं दोसरा ओर ब्रिटिश सरकार पर जीत के ओर उहाँ के एक-एक सीढ़ी चढ़त गइनीं l पहिला जीत रहे निलहन के जाँच कमिटी के गठन, ओह कमिटी में गाँधी जी के सदस्य बनना दूसरा जीत रहे आ तीसरा जीत ‘तीन कठिया-प्रथा’ के समाप्त कइल रहे l किसान अपना जमीन के मालिक बन गइले l ई सब एक-एक कड़ी मिलके भारत में गाँधी जी के सत्याग्रह के पहिला विजय-शंख फूँकाइल आ देखते-देखते चंपारण गाँधी जी के भारत में सत्याग्रह के जन्म-स्थली बन गइल l गाँधी जी के एह सत्याग्रह में कानून से लेके ज़मीन तक में ब्रजकिशोर बाबू के साथ मिलल l उहाँ के गाँधी जी के साथे साया नाहिंन लागल रहनींl जवना से प्रभावित होके गाँधी जी अपना आत्मकथात्मक किताब ‘द स्टोरी ऑफ माई एक्सपेरीमेंट्स विथ ट्रूथ’ में ‘द जेंटल बिहारी’नाम से एओ पूरा अध्याय ही लिख देले बानीं l दोसरा ओर एह घटना के ओह क्षेत्र खातिर दूरगामी परिणाम भी निकलल l क्षेत्रीय-विकास के पहल भइल जवना के अन्तर्गत पाठशाला, चिकित्सालय, खड़ी संस्था, आश्रम आदि के स्थापना भइल l

ब्रज किशोर बाबू के कर्मयोग के ऋणी बिहार समय-समय पर उहाँ के अपना तरह से श्रद्धांजलि भी अर्पित करेला l 21 अगस्त, 2016 में पटना बीट्स स्टाफ द्वारा ‘ब्रजकिशोर प्रसाद द फॉर्गाटन हीरो ऑफ बिहार’ के नाम से एगो किताब छपल बा जवन एक तरह से सिर्फ़ एगो ऐतिहासिक दस्तावेज ही ना ह बल्कि एक शोधात्मक ग्रंथ भी हl ‘द नेशनल बुक ट्रस्ट,’ इण्डिया द्वारा हाल ही में सचिदानंद सिन्हा द्वारा ब्रजकिशोर बाबू पर लिखल पुस्तक ‘द हीरो ऑफ द बैटल’ प्रकाशित भइल बा l देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के साहित्यिक सलाहकार संत कुमार वर्मा द्वारा ब्रजकिशोर बाबू के जीवनी ‘बाबू ब्रज किशोर प्रसाद’ के नाम से दशकों पहिले छप चुकल बा l ब्रजकिशोर स्मारक संस्था द्वारा भी ब्रज किशोर बाबू के जीवनी प्रकाशित भइल बा l

चूँकि ब्रज किशोर बाबू के ई मत रहे कि शिक्षा के अभाव में ही चंपारण के किसानन के अधिक दुरगती भइल l एह से उहाँ के स्कूल के जरूरत पर आ गाँवा-गायीं बालक-बालिका के शिक्षा पर भी बहुत बल देत रहनीं l एह से उहाँ के स्मृति में भी पुरनका सारण ज़िला में कई गो शैक्षणिक संस्था खोलल गइल बा l उहाँ के जन्मस्थली श्रीनगर में सीवान के स्वतंत्रता सेनानी महेन्द्र कुमार (सीवान ज़िला के पहिला डब्बल एम. ए. आ शिक्षाविद् ) ब्रज किशोर बाबू के आकांक्षा आ शिक्षा के महत्त्व के ठीक-ठीक पहचानत रहनीं l एह से ब्रज किशोर बाबू के स्मृति में उहाँ के प्राइमरी से लेके इण्टर मीडिएट तक दू गो स्कूल खोलले बानीं l उहें के प्रयत्न आ स्थानीय लोगन के सहयोग से ब्रज किशोर बाबू के जन्म शताब्दी के बहुत बड़ा पैमाना पर मनावल गइल l ओह समारोह के मुख्य अतिथि रहनीं अनेक बार केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुकल जगजीवन राम, जेकरा प्रथम दलित उपप्रधान मंत्री के गौरव भी प्राप्त बा l

अंत में हम स्व. शैलजा कुमारी के कविता के चंद पंक्तियन से ब्रज किशोर बाबू के श्रद्धांजलि देत आपन बात खत्म करतानीं l-

‘वे थे स्वतंत्रता के अग्रदूत भारत के वीर सपूतों में

नव भारत भाग्य-विधाता थे, स्वराष्ट्रव्रती उद्भूतों में l

हे जन-मानस के राजहंस अब भी उठती मन में हिलोर

कैसे दर्शाएँ भाव-विमल शत-नमन तुम्हें हे ब्रज किशोर l’

 

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