कुशल शासक शेरशाह सूरी के डाक व्यवस्था

September 27, 2021
आवरण कथा
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अनुराधा कृष्ण रस्तोगी

आपन भारत के इतिहास में इनल–गिनल महान परोपकारी शासक भइल बाड़न । ओकरा में एगो शेरशाह सूरी भी रहलें । इनकर दादा इबराहीम खां सूरी आ बाबू हसन खां सूरी सुल्तान बहलोल लोदी के शासन काल 1451-1989 में अफगानिस्तान से भारत आइल रहलें । शेरशाह के जन्म  कब कहां भइल रहे एकर ठीक–ठीक पता नइखे । विसवास बा की 1472 के आस–पास बजवाड़k परगना में भा 1486 के आस–पास नारनौल भा हिसार फिरोजा में शेरशाह के जनम भइल रहे । इनकर लड़काइये के नाव  फरीद खां सूरी रहे । फरीद खां बचपन में अपना बाबू के साथ सासाराम में रहत रहलें । पहिले सासाराम बिहार के शाहाबाद जिला में रहे उ अब रोहतास में बा जेकरा आज सासाराम के नाव से जानल जाला । सासाराम में इनकर बाबू के जागीर रहे, जे में सासाराम आ खवासपुर टांडा के परगना में सामिल रहे ।

बचपन में फरीद खां के पढाई खातीर जौनपुर भेजल  गइल । ई प्रकृति से ही चल्हांक आ प्रतिभाशाली रहलें । जौनपुर में फारसी अउर अरबी  भाषा के नीमन अभेयास कर लेले रहन । शेरशाह सूरी सत्ता पा के 1538 में गौड़ बंगाल नगर में आपन ताजपोशी के जसन मनवालन । ओंह  मोका प ऊ आपन दृढ़ संकल्प के एलान कइलें  की हम मुगलन के खदेड़ के अफगान के सत्ता फिन से स्थापित करब ।आपन कुशल राजनित अउर  सैनिक नेतृत्व में उ आखिर दिल्ली के जीत लेलन । आपन दृढ़ निश्चय के मोताबिक उ 1540 में मोगल बादशाह हुमायू के गंगा आ बिलग्राम के लड़ाई में हरा देलन । इतिहास में ई लड़ाई कनौज के लड़ाई के नाव से बड़ा प्रसिद्ध बा । येह जीत के उपरांत उ दिल्ली प  कब्ज़ा कर लेलन अऊर ओकरे के राजधानी बनवलें ।

भारत के अफगान शासक शेरशाह खातिर मुगल सम्राट हुमायू के साथे सम्राज के लड़ाई में अनुपम प्राकृतिक दिरिस के बीच बिन्ध्य पहाड़ प स्थित भारत के सबसे बड़ एगो मात्र पहाड़ी किला, सत्यवादी हरिश्चंद्र पुत्र रोहिताश्व द्वारा निर्मित रोहतासगढ़ किला बहुते उपयोगी साबित भइल रहे जे रोहतास जिला के डेहरी ओन सोन से दखिन 60 कोस के दूरी प तूटल-फूटल अवस्था में आजो खाड़ बा । जेकरा नाव प रोहतास जिला के नाव भईल । एगो किला पाकिस्तान में भी झेलम नदी के जरी लाहौर के 60 कोस के दूरी प खुरासान मार्ग प मौजूद बा । ऐह किला के शेरशाह जीर्णोधार क के मजबूती प्रदान कइलन अउर ऐह दुर्ग के असमिता  के कायम कईलें । रोहतास फोर्ट के सम्मान में पाकिस्तान 25 सितम्बर 1984 में 10 पै० के डाकटिकट जारी रहलें ।

शेरशाह सूरी बड़ उत्कृष्ट शासक रहलें । उनकर शासन बहुत ही छोट 1541-1545 पांच बरीस से कुछ अधिक रहे बुत कम उमिर में ही आपन उदारता अउर कर्मठता के परिचय देहलन । उ आपन शासन में जनता के हित में कईगो सुधार कइलें  जेकरा में राजस्व, मुद्रा अउर शुल्कदर दर के सुधार प्रमुख बाटे । उ केंद्रीय अउर प्रांतीय शासन के भी पुनर-गठन क के डाक व्यवस्था के मजबूत बनवलन अउर सेना के पुनरगठन कइलन । शेरशाह उपेक्षित अउर शोषित किसानन  के भलाई के कामो  में भी बहुते रूचि लेख । शेरशाह के शाही फरमान के वजह से राजस्व अधिकारी निर्धारण के समय काफी उदारता से काम लेत रहन।

उ चानी के नया सिक्का चलवलें जेकरा के ‘रुपिया’ कहल जात रहे ई सिक्का तांबा के चालीस पइसा के बराबर रहे । एकरा पाहिले उ बंगाल में जवन सिक्का चलवले रहन ओकरा में सबसे पहिले  सिक्का प देवनागरी अउर फारसी लिपि में उनकर नाव ‘सिरी सैर साहि’ (श्री शेरशाह) अंकित बा । शेरशाह सड़क के बहुते बड़ निर्माण कर्ता के रूप में बहुते प्रसिद्ध बाड़े । उनकर आदेश से बनल सबसे बड़ सडक ‘शाहराह-इ-आजम’ कहलात रहे । ग्रांड ट्रंक रोड के नाम से चर्चित एह सड़क के आधुनिक नाम राष्ट्रीय राज मार्ग – 2 बा । बंगाल से सुनार गाँव से शुरू होके आगरा, दिल्ली अउर लाहौर होखते सिंध नदी तक जाला । उनकर बनावल दूसर सड़क आगरा, बुरहानपुर के सड़क जवन ओकरा से आगे मांडू तक जाला । आगरा से जोधपुर अउर चितौड़ के सड़क अउर लाहौर से मुल्तान के सड़क प्रसिद्ध बाटे ।

शेरशाह आपन शासन काल में राष्ट्रीय आधार प सुसंगठित डाक व्यवस्ता के नींव रखलें । उत्तर भारत के कइगो भाग के बीच राजपथ के भी निर्माण से यातायात में जवन सुधार भइल ओकरा से एह काम में बहुते मदद मिलल । ग्रांड-ट्रंक रोड के निर्माण करइलें बुत जगह-जगह प सड़क के बीच में डाक चौकी, सराय भी बनवलें  जेकरा से डाक देश के एक भाग से दूसरा भाग में पहुंचात रहे । हर सराय प दुगो घोड़ा तैयार रहत रहे, जेमें डाक (चिठ्ठी) के आवा जाही आसानी से होत रहे । ओहीजे से भारत में मुख्य रूप से डाक व्यवस्था के विकास भइल ।

एहिसे शेरशाह सूरी के भारतीय डाक के जनक कहल जाला । कालिंजर के चढ़ाई में शेरशाह के जीत भइल रहे । बारूद खाना में बिस्फोट भइला से घायल होखे 22 मई 1545 में शेरशाह के मृत्यु हो गइल ।

सन्-1146 में बगदाद के खलीफा सुल्तान नारदिन अपना पूरा राज्य में नियमित रूप से कबूतर से खबर भेज के व्यवस्था कइले रहन ।

बलुक भारत में डाक व्यवस्था सन-1296 में चालू रहे , सेना के समाचार निरंतर पावे खातीर पठान शासक अलाउदीन खिल्जी घोड़ा अउर पैदल डाक व्यवस्था कायम कइले रहन । अकबर के शासन काल में 1556-1605 परिवहन के व्यवस्था में एगो अउर सुधार भइल रहे । अब घोड़ा के अलावा ऊँट के भी परयोग भइल रहे । कहल जाला की मैसूर के राजा चिक्कदेव सन–1672 में अपना पूरा राज्य में नियमित डाक सेवा में व्यवस्था देले रहन । आज के जिनगी में डाक के बहुत बड़ स्थान बा । एह समय भारतीय डाक के नेटवर्क में सबसे बड़ प्रणाली बा । शेरशाह सूरी के शासन काल में भारतीय डाक व्यवस्था के एगो नया स्फूर्ति अउर दिशा मिलल ।

 

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