ओलंपिक हॉकी में जुनून के जीत

October 22, 2021
सुनीं सभे
0

आर.के. सिन्हा

भारत के महिला आ पुरुष हॉकी टीम के टोक्यो ओलंपिक खेल में चमत्कारी प्रदर्शन पर सारा देश गर्व महसूस कर रहल बा I  भारत के हॉकी प्रेमी के आँख एतना शानदार प्रदर्शन देखे खातिर तरस गइल रहे। पर तनी देखीं कि पुरुष अउर महिला हॉकी टीम के अधिकतर खेलाड़ी जेकर संबंध देश के छोट-छोट शहर, कस्बा आ गाँव से रहे ई कमाल कर दिखवलस। जेकरा पास खेल के आधारभूत ढांचा तक नसीब नइखे उहे खिलाड़ी अपना दुनू हॉकी टीम में लाजवाब खेल देखा रहल बा। ई खिलाड़ी लोग हरियाणा के शाहबाद मारकंडा, उत्तराखंड के हरिद्वार, झारखंड के खूंटी, पंजाब के अमृतसर के गांव अउर दूसर अनाम जगह से संबंध रखे ला लो। पर एह लोग में जीत आ आगे बढ़े के जज्बा सच में अदभुत बा।

भारत के महिला हॉकी टीम दुनिया में अभी तक नौंवी रैंकिंग पर बा। उ क्वार्टर फाइनल में दुनिया के नंबर एक रैकिंग टीम आस्ट्रेलिया के हरा दिहलस। अमृतसर के पास के एक गांव मिद्दी कलां के बेटी गुरुजीत कौर भारत खातिर विजयी गोल दगली। उ एक बहुत छोट किसान के बेटी हई। लेकिन अब त उनका के सारा देश जानता। एक के बाद एक चमत्कार कर रहल भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रानी रामपाल हरियाणा के कुरुक्षेत्र के छोट से कस्बा शाहबाद मारकंडा से संबंध रखेली। उनकर पिता दिहाड़ी मजदूर रहलन। रानी के पिता रामपाल जी हमरा के एक बार बतावत रहलन कि जब रानी हॉकी खेलल शुरू कइली त उनका से शाहबाद मारकंडा में बहुत से लोग कहे लागल कि, “रानी छोटहन पैंट पहिर के हॉकी खेले खातिर जाली। तोहार माली हालत खराब बा। कइसे उनका खातिर हॉकी के किट वगैरह दिलवा पइबs। सवाल वाजिब रहे। हालांकि ई हमरा अंदर एक अलग तरह के जज्बा पैदा कर दिहलस संघर्ष करे के। हम रानी खातिर जवन भी कर सकत रहनी उ कइनीं।” रानी के 2010 के जूनियर वर्ल्ड कप हॉकी चैंपियनशिप में सबसे बेहतरीन खिलाड़ी के सम्मान मिलल रहे। ऊ तब से ही भारत के हॉकी टीम खातिर खेल रहल बाड़ी।

आख़िरकार, केतना लोग वंदना कटारिया के नाम भारत के दक्षिण अफ्रीका पर विजय से पहिले सुनले रहल। ओह पूल ए के मैच में उ तीन गोल दगले रहली। एह तरह से ऊ भारत के पहिला महिला हॉकी खिलाड़ी बन गइली जे ओलंपिक में एक मैच में तीन गोल कइल। हरिद्दार से कुछ दूर स्थित रोशनाबाद कस्बे के वंदना के पिता तमाम अवरोधन के बावजूद उनका के हॉकी खेले खातिर प्रेरित कइले। वंदना के हॉकी सेंस गजब के बा। पिता भेल के फैक्टरी में मामूली सा नौकरी करत रहले। वंदना के ‘डी’ के भीतर निशाना अचूक ही रहेला।

उ भारत के तरफ से लगातार खेल रहल बाड़ी। लेकिन, एह कीर्तिमानन के बीच वंदना के गरीबी अउर अभाव के सामना त करहीं के पड़ल

दरअसल, भारत के महिला हॉकी खिलाड़ी सबके कथा, परी कथा जइसन नइखे। एमे अभाव, गरीबी अउर समाज के विरोध आ आलोचना भी शामिल बा। एमे से अधिकतर के पास बचपन में खेले खातिर ना त जूता रहे आ ना हॉकी किट। अगर ई लोग शिखर पर पहुँचल आ अपना देश के सम्मान दिलववलस त एकरा खातिर इनकर खेल के प्रति जुनून आ कुछ करे के जिद ही त रहे। अगर बात भारत के पुरुष हॉकी टीम के करीं त ओकर अधिकतर खिलाड़ी भी अति सामान्य परिवार से बाड़ें। ये भारतीय टीम में कवनों भी खिलाड़ी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता या कवनों भी बड़ा महानगर या संपन्न परिवार से नइखे। महानगरन में त खेल के विकास पर लगातार निवेश होत रहल बा। पर ये शहरन से कवनों खिलाड़ी सामने नइखे आवत। अगर दिल्ली के बात करीं त इहाँ पर दादा ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम से लेके शिवाजी स्टेडियम तक हॉकी के विश्व स्तरीय स्टेडियम बा। एमे एस्ट्रो टर्फ वगैरह के सारी सुविधा बा। पर भारतीय हॉकी टीम में एक भी दिल्ली के खिलाड़ी नइखे। इहे दिल्ली पूर्व में हरबिंदर सिंह, मोहिन्दर लाल, जोगिन्दर सिंह (सब 1964 के टोक्यो ओलंपिक विजयी टीम के खिलाड़ी), एम.के. कौशिक (1980 के गोल्ड मेडल विजयी टीम के सदस्य), आर.एस.जेंटल जइसन खिलाड़ी निकलले बा। पता ना अब का हो गइल बा दिल्ली के युवा लोग के I

आर.एस.जेंटल 1948 (हेलसिंकी),1952 (लंदन) अउर 1956 (मेलबर्न) में भारतीय हॉकी टीम के मेंबर रहलें। उ आपन शुरुआती हॉकी कश्मीरी गेट में खेललन। उ कमाल के फुल बैक रहलन। उ 1956 के मेलबर्न ओलंपिक खेल में टीम के कप्तान भी रहलें। उनहीं के फील्ड गोल के बदौलत भारत पाकिस्तान के फाइनल में शिकस्त दिहलस। जेंटल बेहद रफ-टफ खिलाड़ी रहलन। विरोधी टीम के खिलाड़ियन के कई बार धक्का मारत आगे बढ़त रहलें। एही से कई बार उनका के खिलाड़ी कहत रहले “प्लीज, बी जेंटल”। एही से उनकर नाम ही जेंटल हो गइल।

कुल मिला के ई बात त समझ ही लेवे के चाहीं कि अब बडहन सफलता बड़ शहरन के बपौती ना रहल। बड़ शहरन में बड़ स्टेडियम अउर दोसर आधुनिक सुविधा त जरूर बा, पर जज्बा छोटे शहर आ गाँव वालन में भी कम ना होला। ई लोग अवरोधन के पार करके सफल हो रहल बा लो। ये लोग में अर्जुन दृष्टि बा। ई जवन भी करेला लो, ओमे आपन पूरा ताकत झोंक देला लोग। ई लो सोशल मीडिया पर आ पार्टिन में बिजी ना रहेला। नया भारत में सफलता के स्वाद सभ राज्यन के छोट शहरन के बच्चन के भी अच्छा तरह लाग गइल बा। मेरठ, देवास, आजमगढ़, खूंटी, सिमडेगा आ दूसर शहरन में बच्चन के खेल के मैदान में अभ्यास करत देखल  जा सकेला। अगर इहाँ पर छोट शहरन से संबंध रखे वाला बच्चन के अभिभावक के कुर्बानी के बात ना होई त बात अधूरे रह जाई। जब सारा समाज ई मानता कि क्रिकेट के अलावा कवनों खेल में करियर नइखे फिर भी कुछ माता-पिता अपना बच्चन खातिर तमाम तरह से संघर्ष करते रहेला लो।

एक बात अवश्य कहेम कि सफलता खातिर सुविधा जरूरी बा, पर खेलन में या जीवन के कवनो भी क्षेत्र में सफलता खातिर जुनूनी भइल कहीं ज्यादा अनिवार्य बा। कुछ लोग ई कह देला कि धनी परिवार के बच्चा खेल में आगे नइखे जा सकत। ऊ लोग मेहनत करे से बचे ला। इहो सरासर गलत सोच बा। मत भूलीं कि भारत के पहिलका ओलंपिक के गोल्ड मेडल शूटिंग में अभिनव बिन्द्रा ही दिलववले रहले। उ खासे धनी परिवार से संबंध रखेलन। उनकर पिता उनका के अनेक सुविधा दिहलन आ अभिनव मेहनत करके अपना के साबित कर दिहलन। सफलता खातिर पहिला शर्त ई बा कि खिलाड़ी में जीते के इच्छा शक्ति होखे।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार अउर पूर्व सांसद हईं)

Hey, like this? Why not share it with a buddy?

Related Posts

Leave a Comment

Laest News

@2022 – All Right Reserved. Designed and Developed by Bhojpuri Junction