“भोजपुरी पत्रकारिता के विकास-यात्रा”

October 22, 2021
आवरण कथा
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लेखक: पांडे कपिल

पत्र-पत्रिकन में भोजपुरी के प्रवेश के स्थिति तब बनल, जब कि भारतेन्दु मंडली के कुछ भोजपुरी भाषी साहित्यकार भोजपुरी में रचना करे लगले। रामकृष्ण वर्मा ‘बलवीर’, तेगअली ‘तेग’, खड्ग बहादुर मल्ल आ फेर, आगे चलके, दूधनाथ उपाध्याय, रघुवीर नारायण जइसन कवियन के भोजपुरी रचनन के प्रकाशन से लोगन के ध्यान भोजपुरी साहित्य का ओर आकृष्ट भइल। सन् 1886 के आसपास काशी से प्रकाशित पत्रिका ‘गोरस’ में राधाकृष्ण सहाय के भोजपुरी नाटक ‘दाढ़ के दरद’ प्रकाशित भइल। सितम्बर 1814 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ‘सरस्वती’ जइसन हिन्दी के प्रतिष्ठित पत्रिका में ‘अछूत की शिकायत’ शीर्षक से हीरा डोम के भोजपुरी कविता प्रकाशित कइले। हिन्दी के पत्रिकन में जब-तब भोजपुरी के रचना प्रकाशित करेके सिलसिला तबे से चलत आइल। आगे चलके कुछ द्विभाषिओ पत्रिका निकलली स, जवना में हिन्दी का साथे-साथे भोजपुरिओ के रचना प्रकाशित होत रहली स। आजो अइसन कुछ द्विभाषी पत्रिका प्रकाशित हो रहल बाड़ी स।

भोजपुरी में पत्रिका प्रकाशित करे के पहिलका प्रयास जयपरगास नारायण ‘बगसर समाचार’ नाम के पत्रिका से कइले। सरस्वती पुस्तकालय, बगसर से प्रकाशित ई पत्रिका पहिले कैथी अक्षर में छपल। दू अंकन के बाद ई भोजपुरी पत्रिका देवनागरी अक्षर में प्रकाशित होखे लागल। ई पत्रिका 1918 तक निकलला के बाद बन्द हो गइल।

भोजपुरी के पत्रिका निकाले के अगिला प्रयास आचार्य महेन्द्र शास्त्री द्विमासिक पत्रिका ‘भोजपुरी’ के सम्पादन करके कइले। भोजपुरी-कार्यालय कदमकुआँ, पटना से प्रकाशित एह पत्रिका में प्राय: हर विधा के रचनन के समावेश भइल रहे। बाकिर, सिर्फ एक अंक के प्रकाशन के बाद ई पत्रिका बंद हो गइल।

सन् 1949 में अवध बिहारी ‘सुमन’ के सम्पादन में ‘कृषक’ नाम के एगो साप्ताहिक पत्र भोजपुरी भाषा में प्रकाशित भइल! इहे अवध बिहारी ‘सुमन’ आगे चलके संन्यासी होके दण्डिस्वामी विमलानन्द सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध भइले, जे ‘बउधायन’ नाम के महाकाव्य भोजपुरी में लिखले। ‘कृषक’ असल में भोजपुरिया किसान-मजदर के पत्रिका रहे। एकर लोक-गीत विशेषांक एह पत्रिका के उल्लेखनीय उपलब्धि रहे। एक साल तक निकलला का बाद ई पत्रिका बन्द हो गइल।

कुछ बरिस के चुप्पी का बाद, सन् 1952 में आरा से ‘भोजपुरी’ नाम के मासिक पत्रिका के प्रकाशन शुरू भइल। एकर प्रवेशांक अगस्त, 1952 में निकलल। क्राउन आकार के चालीस पृष्ठ के एह पत्रिका के पूर्ण साहित्यिक पत्रिका होखे के गौरव मिलल। एकरा पहिलका पाँच अंकन के सम्पादन प्रो. विश्वनाथ सिंह कइले रहले, बाकिर एह पत्रिका के प्रबन्ध सम्पादक आ कर्ता-धर्ता रघुवंश नारायण सिंह से वर्तनी के बारे में कवनो बिन्दु पर विवाद हो गइला का वजह से प्रो. विश्वनाथ सिंह एकर सम्पादन छोड़ दिहले आ रघुवंशे नारायण सिंह एकर सम्पादक हो गइले। एक सौ पृष्ठ के एकर लोक साहित्य अंक बहुते पुष्ट विशेषांक रहे, जवना का चलते एह पत्रिका के साहित्यिक स्वीकृति मिले लागल। सन् 1958 तक ई नियमित प्रकाशित होत रहल। भोजपुरी साहित्य के विकास में एह पत्रिका के अनुपम योगदान मानल जाई।

आठ बरिस तक नियमित प्रकाशन के बाद, आर्थिक कठिनाई का चलते एकरा प्रकाशन में गतिरोध होखे लागल, आ आखिरकार, ई बन्द हो गइल।

कुछ बरिस बाद, पटना से सन् 1963 से 1965 तक एकर फेर से प्रकाशन होत रहल, बाकिर आर्थिक कठिनाई से एकरा प्रकाशन में फिर रुकावट हो गइल।

फेर, रघुवंश नारायण सिंह, तिसरका झोंक में एकर प्रकाशन 1973 से 1974 तक कइले। बाकिर, आखिरकार, समुचित साधन का अभाव में एकर प्रकाशन बन्दे हो गइल। भोजपुरी साहित्य के विकास में एह पत्रिका के अनुपम योगदान मानल जाई। ई भोजपुरी के अनेक अइसन लेखक पैदा कइलस, जेकरा योगदान से भोजपुरी भाषा के अनुपम साहित्यिक समृद्धि सुलभ भइल।

आरा से ‘गाँव-घर’ नाम के पाक्षिक पत्रिका के नियमित प्रकाशन भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव ‘भानु’ के सम्पादन में दू बरिस ले होत रहल। ओकरा बाद, ई पत्रिका अनियमित होखत-होखत, आखिरकार, बन्दे हो गइल|

सन् 1960 में पटना में ‘भोजपुरी परिवार’ नाम के संस्था बनल, जवना के आचार्य शिवपूजन सहाय के आशीर्वाद प्राप्त रहे। एही भोजपुरी परिवार’ के तत्वावधान में त्रैमासिक ‘अँजोर’ के प्रकाशन सन् 1960 से शुरू भइल। एकर सम्पादक रहले पाण्डेय नर्मदेश्वर सहाय आ सहायक सम्पादक रहले अविनाश चन्द्र विद्यार्थी। डिमाई आकार के चालीस पृष्ठ के ई पत्रिका 1969 ई. तक लगातार प्रकाशित होखत रहल, बाकिर एकर प्रधान सम्पादक आ ‘भोजपुरी परिवार’ के अध्यक्ष पाण्डेय नर्मदेश्वर सहाय के निधन के बाद एकर प्रकाशन बन्द हो गइल। भोजपुरी साहित्य के सर्वतोमुखी विकास में एह पत्रिका के अनुपम योगदान मानल जाई।

आनन्द मार्ग के सामाजिक संगठन ‘प्रोग्रेसिव फेडरेशन ऑफ इंडिया’ 1964 में गाजीपुर से ‘भोजपुरी समाचार’ नाम के एगो समाचार साप्ताहिक के प्रकाशन शुरू कइलस, जेकर सम्पादक रहले जरदारी। ईहे पत्रिका आगे चलके ‘भोजपुरी वार्ता’ नाम से गोरखपुर से प्रकाशित होखे लागल, जेकर सम्पादक रहले आचार्य प्रतापादित्य। कुछ समय बाद, एकर प्रकाशन मोतिहारी से अर्ध-साप्ताहिक रूप में होखे लागल आ तब एकर सम्पादक भइले देवदत्त। बाद में, पटना से एकर प्रकाशन दैनिक पत्र का रूप में होखे लागल। बाकिर, आनन्द मार्ग पर प्रतिबन्ध लाग गइला से प्रकाशन में गतिरोध आ गइल आ एकरा के बन्द कर देबे के पड़ल। कुछ साल बाद, 1993 ई. में, एकर फेर से प्रकाशन विनोद कुमार देव का सम्पादन में शुरू भइल, बाकिर साल-भर से आगे एकरा के चलावल सम्भव ना हो सकल।

वाराणसी के सुप्रसिद्ध भोजपुरी संस्था ‘भोजपुरी संसद’ 1964 ई. में ‘भोजपुरी कहानियाँ’ नाम से मासिक पत्रिका के प्रकाशन शुरू कइलस। पहिले एकर सम्पादक रहले डॉ. स्वामीनाथ सिंह। बाद में, प्रो. राजबली पाण्डेय आ गिरिजाशंकर राय ‘गिरिजेश’ एकर सम्पादक भइले। ‘गिरिजेश’ के सम्पादन में ई पत्रिका एक-से-एक कहानीकार त पैदा कइबे कइलस, भोजपुरी के पाठको-वर्ग तइयार कइलस। भोजपुरी के ई पहिलकी पत्रिका रहे, जवना के अपेक्षित मार्केटिंग भइल आ जवना के वितरण के बीड़ा ए.एच.ह्वीलर जइसन नामी कम्पनी उठवलस। सन् 1966 तक ई पत्रिका लोकप्रिय बनल रहल, बाकिर आगे एकर प्रकाशन कईएक वजह से बन्द हो गइल।

भोजपुरी संसद, वाराणसी सन् 1968 में त्रैमासिक ‘पुरवइया’ के प्रकाशन शुरू कइलस, जेकर सम्पादक रहले राजबली पाण्डेय। बाकिर उचित व्यवस्था के अभाव में ई पत्रिका एक साल बाद बन्द हो गइल।

सन् 1964 में, दूगो आउर मासिक पत्रिकन के प्रकाशन शुरू भइल- छपरा से ‘माटी के बोली’ आउर आरा से ‘भोजपुरी साहित्य’। ‘माटी के बोली’ के सम्पादक रहले सतीश्वर सहाय वर्मा ‘सतीश’, बच्चू पाण्डेय आ विश्वरंजन। दू अंक निकलला का बाद ‘माटी के बोली’ के प्रकाशन बन्द हो गइल, त 1969 में एकर प्रकाशन विश्वनाथ प्रसाद का सम्पादन में फेर शुरू भइल, बाकिर कुछ अंकन के बाद एकरा के आउर आगे चला सकल आर्थिक कारण से सम्भव ना हो सकल।

आरा से डॉ. जितराम पाठक के सम्पादन में भोजपुरी साहित्य’ 1968 ई. तक प्रकाशित भइल। आगे चलके, भोजपुरी साहित्य मंडल, बक्सर के मुखपत्र के रूप में एकर प्रकाशन सन् 1975 से 1977 तक जितरामे पाठक के सम्पादन में होत रहल। ई पत्रिका भोजपुरी साहित्य के रचनात्मक स्तर के ऊँच उठावे में महत्वपूर्ण योगदान कइलस, जेकर श्रेय एकरा विद्वान् सम्पादक डॉ. पाठक के देवे के होई।

‘हमार बोल’ नामक बत्तीस पृष्ठ के पत्रिका मासिक रूप में निकलल रहे, जे दू-तीन अंक निकलला का बाद बंद हो गइल।

जमशेदपुर भोजपुरी साहित्य परिषद् के अनियतकालिक पत्रिका ‘लुकार’ के प्रकाशन सन् 1965 में शुरू भइल। अंक-1 से 19 तक, विभिन्न व्यक्तियन के सम्पादन में, एकरा के चक्रमुद्रित करके प्रकाशित कइल गइल। ओकरा बाद, अंक 20 से ई पत्रिका प्रेस में छपे लागल, जेकर सम्पादन गंगा प्रसाद ‘अरुण’ करे लगले। अट्ठाइसवाँ अंक से एकरा सम्पादन के भार अजय कुमार ओझा उठा रहल बाड़े आ गंगा प्रसाद ‘अरुण’ प्रधान सम्पादक के भूमिका निभा रहल बाड़े। सन् 2008 तक ‘लुकार’ के चौंतीस अंक प्रकाशित हो चुकल रहे। ओकरा बाद ई पत्रिका बन्द हो गइल।

सन् 1966 में आरा से हरेराम तिवारी ‘चेतन’ के सम्पादन में ‘आँतर’ नाम के पत्रिका निकलल रहे, जवना के पाँच अंक प्रकाशित भइल रहे। फेर सन् 1999 में ‘चेतने’ के सम्पादन में राँची से एकर एगो अंक हस्तलिखित रूप में निकलल, जवना के सौ गो हस्तलिखित प्रति तइयार करा के वितरित कइल गइल रहे।

सन् 1968 में सर्वानन्द के सम्पादन में ‘जागल पहरुआ’ नाम के एगो पत्रिका, छपरा से, प्राउटिस्ट फोरम ऑफ इंडिया का ओर से प्रकाशित भइल रहे, जे कुछे अंक निकल के बन्द हो गइल।

‘भोजपुरी जनपद’ नामक पत्रिका के प्रकाशन सन् 1968 में भोजपुरी साहित्य मंदिर, वाराणसी से राधामोहन ‘राधेश’ के सम्पादन में शुरू भइल रहे। सन् 1970-72 के दौरान एह पत्रिका के नियमित प्रकाशन होत रहल। कुछ बरिस बंद रहला का बाद, 1977 से 1981 तक ले एकर चार-पाँच अंक निकल सकल। शुरुआत में, एकरा सम्पादन से सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’ भी जुड़ल रहले।

सन् 1971-72 के दौरान ‘राधेश’ जी ‘पहरुआ’ नाम के साप्ताहिक अपना सम्पादन में निकलले रहले। भोजपुरी साहित्य मन्दिर जइसन प्रकाशन संस्थान आ ‘भोजपुरी जनपद’ आउर ‘पहरुआ’ जइसन पत्रिकन के संचालक राधामोहन ‘राधेशे’ जी रहले, जे आपन पैत्रिक सम्पत्ति बेंच-बेंच के एह प्रकाशनन के आगे बढ़ावत गइले। इहाँ तक ले कि ऊ अपना गाँव के पैत्रिक घर तक ले बेंच दिहले आ भोजपुरी साहित्य के आपन जिनिगी समर्पित करत परलोकवासी हो गइले।

सन् 1969 में विनोदचन्द्र सिनहा के सम्पादन में वाराणसी से ‘काशिका’ नाम के पाक्षिक बड़ आकार में निकलल रहे। ओही साले, छिन्दवाड़ा (मध्यप्रदेश) से क्राउन आकार में अड़तालीस पृष्ठ के पत्रिका ‘भोजपुरी समाज’ भोलानाथ सिंह के सम्पादन में आ डॉ. रामनाथ पाठक ‘प्रणयी’ के सम्पादन में ‘हिलोर’ नाम के पत्रिका आरा से प्रकाशित भइल रहली स। एह तीनों पत्रिकन के कुछुए-कुछ अंक निकल सकल, आ ई पत्रिका बन्द हो गइली स। हँ, ‘हिलोर’ के कुछ अंक 1979 में गयो से (गया से भी) निकलल रहे।

सन् 1971 में पटना से ब्रह्मानन्द मिश्र के सम्पादन में ‘भोजपुरी टाइम्स’ नाम के समाचार साप्ताहिक-प्रकाशित भइल, बाद में जवना के नाम ‘भोजपुरी संवाद’ कर दिहल गइल रहे। एक-डेढ़ बरिस ले अनियमित रूप में प्रकाशित होखत-होखत, आखिरकार, ई साप्ताहिक बन्द हो गइल। सन् 1972 में आरा से ‘टटका’ नाम के पाक्षिक रमाशंकर पाण्डेय के सम्पादन में निकलल। सन् 1976 से एकर नाम ‘टटका राह’ हो गइल रहे। कुछ समय बाद बन्द हो गइल।

सन् 1992 ई. में ‘सरायकेला अनुमंडल भोजपुरी समाज’ (अब झारखंड में) के मुखपत्र के रूप में ‘ललकार’ के प्रकाशन रामवचन तिवारी के संचालन में शुरू भइल, जेकर सम्पादक रहले डॉ. बच्चन पाठक ‘सलिल’ । सन् 1978 से एह पत्र के नाम ‘जनता ललकार’ हो गइल। 1982-83 तक ई पत्र निकलत रहल, बाकिर रामवचन तिवारी के निधन के बाद बन्द हो गइल।

सन् 1982-83 में बीरगंज (नेपाल) से श्री दीपनारायण मिश्र के सम्पादन में त्रैमासिक ‘सनेस’ के प्रकाशन शुरू भइल। ओही घड़ी हुगली (पश्चिम बंगाल) से राममूर्ति पराग आ चन्द्रकान्त के सम्पादन में ‘अँजोरिया’ (द्विमासिक) के प्रकाशन शुरू भइल। ‘सनेस’ दू बरिस ले निकलत रहल, त ‘अँजोरिया’ के दुइये अंक निकल सकल।

भोजपुरी साहित्य सदन, सीवान से पहिले त्रैमासिक आ बाद में मासिक रूप में प्रकाशित ‘माटी के गमक’ विमल कुमार सिंह ‘विमलेश’ के सम्पादन में सन् 1973 से प्रकाशित होत रहल। दू-तीन बरिस के उमिर वाला ई त्रैमासिक/मासिक जबतक निकलल, नियमित निकलल। सन् उनइस सौ तिहतरे में चितरंजन के सम्पादन में आरा से ‘चटक’ निकलल। 1974 में कांचरापाड़ा (पश्चिम बंगाल) से रवीन्द्र कुमार शर्मा के सम्पादन में मासिक ‘भिनसार’ निकलल, जेकर उमिर दू अंक के प्रकाशन तकले सीमित रहल।

सन् 1975 में पाण्डेय कपिल आ नागेन्द्र प्रसाद सिंह के सम्पादन में ‘लोग’ त्रैमासिक के प्रकाशन भइल। तीन अंक निकलला का बाद पाण्डेय कपिल एकरा सम्पादन से अलग हो गइले, त नागेन्द्र प्रसाद सिंह 1979 से ‘भोजपुरी उचार’ नाम से एकर प्रकाशन आगे बढ़वले आ कुछ अंक के प्रकाशन के बाद ई बन्द हो गइल। एही साले, ‘गोहार’ नामक पत्रिका राकेश कुमार सिंह के सम्पादन में आरा से निकलल। आगे चलके एकर दूगो अंक लखनऊ से प्रकाशित भइल।

सन् 1976 के साल भोजपुरी में पत्र-पत्रिका के प्रकाशन का दिसाई विशेष महत्व के रहल, काहे कि एह साल कईगो पत्रिका कई जगह से निकलली स। एह समय तक अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के गठन हो चुकल रहे आ एकर पहिलका अधिवेशनो प्रयाग में, हिन्दी साहित्य सम्मेलन के मंच पर, डॉ. उदय नारायण तिवारी के अध्यक्षता में आयोजित हो चुकल रहे। बिहार विश्वविद्यालय के लंगट सिंह कॉलेज में भोजपुरी के पढ़ाइओ शुरू हो चुकल रहे। एह सब वजहन से भोजपुरी के साहित्यकार लोगन में नया उत्साह आइल रहे।

एही साल (1976) से पटना से भोजपुरी संस्थान के तत्वावधान में ‘उरेह’ त्रैमासिक पाण्डेय कपिल का सम्पादन में प्रकाशित होखे लागल, जवना का माध्यम से भोजपुरी में नवलेखन के बढ़ावा मिलल। पाँच बरिस ले नियमित निकलला का बाद एकर प्रकाशन अर्थाभाव का चलते बन्द हो गइल।

अनियतकालिक पत्रिका ‘अहेरी’ के प्रकाशन अवधेश नारायण आ शंभुशरण राम के सम्पादन में मुजफ्फरपुर से भइल। वीरगंज (नेपाल) से दीपनारायण मिश्र के सम्पादन में ‘समाद’ प्रकाशित भइल। मुजफ्फरपुर से ओमप्रकाश सिंह के सम्पादन में मासिक ‘भोजपुरिहा’ के प्रकाशन शुरू भइल। अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के वार्षिक मुखपत्र ‘भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका’ डॉ. वसन्त कुमार के सम्पादन में प्रकाशित भइल। वार्षिक रूप में एह पत्रिका के दू अंक निकलल, जवना से भोजपुरी में शोध के प्रवृत्ति के बढ़ावा मिलल।

सन् 1980 से ‘भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका’ के त्रैमासिक रूप में निकाले के आउर शोध-समीक्षा का अलावे एकरा में रचनात्मको साहित्य के बढ़ावा देवे के निर्णय लिहल गइल। एकर प्रधान सम्पादक ईश्वरचन्द्र सिनहा आ सम्पादक पाण्डेय कपिल भइले। सन् 1984-85 का दौरान एकर चार गो अंक निकलल आ ई पत्रिका आपन पहचान कायम कर लिहलस। फेर, दिसम्बर, 1986, दिसम्बर, 1987 आ अक्टूबर, 1988 में एकरे एक-एक विशेषांक-क्रमश: रघुवीर नारायण जन्मशताब्दी विशेषांक, भिखारी ठाकुर जन्म शताब्दी विशेषांक आ सम्मेलन-अध्यक्ष-विशेषांक का रूप में प्रकाशित भइल।

जनवरी, 1990 से ‘भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका’ मासिक रूप में नियमित निकले लागल, जेकर प्रकाशन आजो जारी बा। जनवरी, 1990 से दिसम्बर, 2001 तक ले एह पत्रिका के सम्पादन पाण्डेय कपिल कइले। एह बारह बरिस का दौरान एह पत्रिका के अनेक महत्वपूर्ण विशेषांक निकलल, जइसे- राहुल सांकृत्यायन रचनावली-विशेषांक, हाइकू-विशेषांक, लघुकथा-विशेषांक, गीत- विशेषांक, दोहा-विशेषांक, भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका संदर्भ-विशेषांक।

जनवरी, 2002 से एह पत्रिका के सम्पादन प्रो. ब्रजकिशोर कर रहल बाड़े आ सह-सम्पादक बाड़े डॉ. जीतेन्द्र वर्मा। प्रो. ब्रजकिशोर के सम्पादन-काल में अबतक एह पत्रिका के कई गो महत्वपूर्ण विशेषांक प्रकाशित भइल बा, यथा- डॉ. विवेकी राय-विशेषांक, डॉ. आंजनेय-विशेषांक, संत दुनिया राम-विशेषांक। भोजपुरी के रचनात्मक सक्रियता के आगे बढ़ावे में ई पत्रिका महत्वपूर्ण योगदान करत रहल बा।

सन् 1977 में लगभग नौ गो भोजपुरी पत्रिकन के शुरुआत भइल। जमशेदपुर से माधव पाण्डेय ‘निर्मल’ के सम्पादन में ‘भोजपुरी संसार’ के दू अंक निकलल। पटना में अवस्थित गैर-सरकारी भोजपुरी अकादमी का ओर से समाचार बुलेटिन का रूप में भोजपुरी समाचार’ के कई अंक निकलल, जेकर सम्पादन हवलदार त्रिपाठी ‘सहृदय’ आ भैरवनाथ पाण्डेय कइले रहले। कलकत्ता से ऋषिदेव दूबे आ अनिल ओझा ‘नीरद’ के सम्पादन में ‘भोजपुरी मिलाप’ के तीन अंक निकलल। आरा से डॉ. रामनाथ पाठक ‘प्रणयी’ के सम्पादन में मासिक ‘कलश’ निकलल, जे आगे चलके अनियतकालिक हो गइल। ब्रजकिशोर दीक्षित ‘ब्रजेश’ के सम्पादन में सीवान से ‘मोजर’ के प्रकाशन भइल, जे तीन अंक के बाद बन्द हो गइल। पटना से प्रो. तैयब हुसैन ‘पीडित’ के सम्पादन में ‘डेग’, मोतिहारी से रजनीकान्त ‘राकेश’ के सम्पादन में ‘डगर’ (बाद में जेकर नाम ‘डहर’ हो गइल रहे), आ इलाहाबाद से शशिभूषण लाल के सम्पादन में ‘चोट’ जइसन प्रगतिशील विचारधारा के पत्रिका निकललीसन, जे कुछ-कुछ अंक निकल के बन्द हो गइलीसन।

एही साल (1977 ई.) कलकत्ता के पश्चिम बंग भोजपुरी परिषद् का ओर से त्रैमासिक ‘भोजपुरी माटी’ के प्रकाशन शुरू भइल, जेकर सम्पादक रहले कृष्णबिहारी मिश्र। सन् 1980 से ई पत्रिका प्रो. शिवनाथ चौबे के सम्पादन में मासिक रूप से प्रकाशित होखे लागल। भोजपुरी साहित्य के रचनात्मक विकास में एह पत्रिका के अनुपम योगदान भइल। ई मासिक पत्रिका लगभग लगातार निकलत जा रहल बिया। पिछला कई बरिस से एह पत्रिका के सम्पादन अनिल ओझा ‘नीरद’ करत रहले। कई बरिस बाद, अब ई पत्रिका सभाजीत मिश्र के सम्पादन में प्रकाशित हो रहल बा। भोजपुरी में रचनात्मक साहित्य के श्रीवृद्धि में एह पत्रिका के अनुपम योगदान के नकारल नइखे जा सकत।

सन् 1978 में भोजपुरी के चार गो नया पत्रिकन के प्रकाशन शुरू भइल। पटना से प्रो. ब्रजकिशोर के सम्पादन में ‘भोजपुरी कथा-कहानी’, बिहार सरकार द्वारा गठित भोजपुरी अकादमी के पत्रिका ‘भोजपुरी अकादमी पत्रिका’, जेकर सम्पादक आचार्य विश्वनाथ सिंह भइले, लखनऊ से राकेश कुमार सिंह के सम्पादन में त्रैमासिक ‘सनेहिया’, आउर ढोंढस्थान (सारन) से प्रो. वैद्यनाथ विभाकर के सम्पादन में अनियतकालिक ‘पपीहरा’। ‘भोजपुरी अकादमी पत्रिका’ कुछ समय तक अकादमी के कार्यकारी निदेशक चित्तरंजन के सम्पादन में, फिर आगे चल के अकादमी के उपनिदेशक नागेन्द्र प्रसाद सिंह के सम्पादन में प्रकाशित भइल आ फेर बंद हो गइल। एकर अंतिम कुछ अंक काफी दबीज आ विशिष्ट रहले स। नागेन्द्र प्रसाद सिंह के सेवा-निवृत्ति के बाद एकर प्रकाशन बंद रहल ह, बाकिर, एह साल 2008 में फेर से एकर प्रकाशन डॉ. शिववंश पाण्डेय के सम्पादन में शुरू भइल रहे। अबहीं ई पत्रिका बन्द बा।

सन् 1979 में दू गो नया पत्रिका अइली स- दिघवा दुबौली (गोपालगंज) से गौरीकान्त ‘कमल’ के सम्पादन में पाक्षिक ‘लाल माटी’ आ बलिया से डॉ. अशोक द्विवेदी के सम्पादन में ‘पाती’ । शुरू में ‘पाती’ के चार अंक निकलला का बाद गतिरोध आ गइल आ पत्रिका बन्द हो गइल। फेर अगिला साल 1992 से नया कलेवर में एकर प्रकाशन होखे लागल। डॉ. अशोक द्विवेदी के सम्पादकीय ऊर्जा ‘पाती’ के जे विशिष्टता प्रदान कइले बा, ऊ भोजपुरी साहित्य खातिर महत्वपूर्ण अवदान साबित भइल बा। अबतक प्रकाशित ‘पाती’ के पचास-साठ अंक भोजपुरी के अनेक प्रतिभाशाली रचनाकारन के उजागर कइले बा।

जनवरी, 1980 से अप्रैल, 1987 तक नोखा (रोहतास) के साहित्य-कला-मंच के तत्वावधान में ‘झनकार’ नाम के पत्रिका के प्रकाशन जवाहर लाल ‘बेकस’ के व्यवस्था में भइल रहे, जेकर सम्पादक रहले फणीन्द्रनाथ मिश्र। ई हिन्दी आ भोजपुरी के मिलल-जुलल पत्रिका रहे। ओकरा बाद एह मासिक के प्रकाशन पटना से ‘पनघट’ के नाम से, जवाहर लाल ‘बेकस’ के सम्पादन में, होखे लागल आ एकरा में हिन्दी आ भोजपुरी के अलग-अलग खण्ड होखे लागल। सन् 1996 में ‘पनघट’ के प्रकाशन बंद हो गइल रहे। बाकिर, जनवरी, 1999 से त्रैमासिक रूप में फेर से एकर प्रकाशन ‘बेकस’ के सम्पादन में होखे लागल, जवना में हिन्दी आ भोजपुरी के अलग-अलग खंड पहिलहीं जइसन रहे लागल। एही त्रैमासिक रूप में ‘पनघट’ के नियमित प्रकाशन इनके सम्पादन में आजो जारी बा।

सन् 1980 में भोजपुरी के कुछ आउर नया-नया पत्रिका प्रकाश में अइली स- मुजफ्फरपुर से वाल्मीकि विमल के सम्पादन में पाक्षिक ‘भोजपुरी के गमक’; पटना से शास्त्री सर्वेन्द्रपति त्रिपाठी के सम्पादन में भोजपुरी समाचार’; कुल्हड़िया (भोजपुर) से महेन्द्र गोस्वामी के सम्पादन में मासिक ‘आपन गाँव’; मोतिहारी से साँवलिया विकल के सम्पादन में मासिक ‘जोखिम’ आ जमशेदपुर से परमेश्वर दूबे शाहाबादी के सम्पादन में अनियतकालिक ‘साखी’ । एक-दू अंक निकल के ई सब पत्रिका बन्द हो गइली सन। ‘साखी’ के ‘परमेश्वर दूबे शाहाबादी स्मृति विशेषांक’ के सम्पादन डॉ. रसिक बिहारी ओझा ‘निर्भीक’ कइले रहलें।

सन् 1981 में छपरा से डा. धीरेन्द्र बहादुर चाँद के सम्पादन में ‘झकोर’, मठनपुरा (सीवान) से श्रीवास्तव प्रदीप कुमार ‘प्रभाकर’ के सम्पादन में ‘कचनार’ आउर दिनारा (भोजपुर) से अरुण भोजपुरी के सम्पादन में ‘तरई’ नाम के पत्रिका निकललीसन, जिनकर कुछ-कुछ अंक निकल पावल आ ई सब प्रत्रिका बन्द हो गइली सन।

सन् 1982 में छपरा से रामनाथ पाण्डेय आ डॉ. वीरेन्द्र नारायण पाण्डेय के सम्पादन में कहानी-पत्रिका ‘चाक’ के कुछ अंक निकलल, जवना से भोजपुरी में कहानी-लेखन के गतिविधि में सकारात्मक हलचल भइल बाकिर कुछए अंक के प्रकाशन का बाद ई विशिष्ट पत्रिका बन्द हो गइल।

एही साल (1982 में) गोरखपुर से मैनावती देवी श्रीवास्तव ‘मैना’ के सम्पादन में त्रैमासिक ‘सोनहुला माटी’, भलुनीधाम (रोहतास) से डॉ. नंदकिशोर तिवारी के सम्पादन में त्रैमासिक ‘माई के बोली’ आउर बडकी नैनीजोर (भोजपुर) से महेश्वराचार्य के सम्पादन में त्रैमासिक ‘दियरी’ के प्रकाशन शुरु भइल। बाकिर ई तीनू पत्रिका अल्पजीवी साबित भइली स। एही साल, पतरातू थर्मल पावर के वार्षिकी ‘भोजपुरी परिवार पत्रिका’ के प्रकाशन भइल रहे, जवना के सम्पादक रहले अनिरुद्ध दूबे, विपिन बिहारी चौधरी आ ब्रजभूषण मिश्र।

सन् 1983 में बीरगंज (नेपाल) से ‘सगुन’ नाम के पत्रिका विजय प्रकाश बीन के सम्पादन में निकलल, बाकिर आगे ना चल सकल। एही साल, छपरा से प्रो. हरिकिशोर पाण्डेय के सम्पादन में ‘कसौटी’ नाम के समीक्षा-पत्रिका निकलल। एह पत्रिका के सिर्फ चारे-पाँच अंक त निकल सकल, बाकिर भोजपुरी में समीक्षा के विकास का दिसाईं आपन अमिट छाप छोड़ गइल। एही साल, छपरा से अर्द्धन्दु भूपण के सम्पादन में बालोपयोगी त्रैमासिक ‘नवनिहाल’ के प्रकाशन शुरू भइल, जवना के उमिर कुछुए अंक ले सीमित रहल।

हरिद्वार (उत्तरप्रदेश) से डॉ. सच्चिदानन्द शुक्ल के सम्पादन में ‘भोजपुरी सनेस’ के प्रकाशन 1984 में शुरू भइल। एक अंक के बाद एकर नाम बदल के भोजपुरी आँगन’ कर दिहल गइल। तीन-चार अंक के बाद ई पत्रिका बन्द हो गइल। उनइस सौ चौरासिये में आरा से डॉ. रामनाथ पाठक ‘प्रणयी’ के सम्पादन में ‘आपन भाषा’ के त्रैमासिक प्रकाशन शुरू भइल, बाकिर एकर दुइये अंक निकल सकल। एह पत्रिका के महिलांक निकाले के योजना रहे, जे कार्यान्वित ना हो पावल।

सन् उनइस सौ तिरासिये में, पटना से कुशवाहा कुसुम के सम्पादन में त्रैमासिक ‘पुजारिन’, दिघवारा (सारन) से प्रियव्रत शास्त्री ‘प्रीतेश’ के सम्पादन में ‘भोजकंठ’ आउर पटना से शास्त्री सर्वेन्द्रपति त्रिपाठी आ रासबिहारी पाण्डेय के सम्पादन में भोजपुरी भाषा सम्मेलन पत्रिका’ के प्रकाशन शुरू भइल, बाकिर दू-तीन अंक निकलत-निकलत ई तीन पत्रिका बंद हो गइलीसन। बाद में, सन् 1993 में रासबिहारी पाण्डेय देवघर से ‘भोजपुरी भाषा सम्मेलन पत्रिका’ के फेर से शुरूआत कइले आ उनका जिनिगी-भर ई पत्रिका नियमित निकलत रहल, हालाँकि एकर भाषा-नीति विवादास्पद बनल रहल।

सन् 1985 में हरविलास नारायण सिंह के सम्पादन में पटना से ‘लटर-पटर’ आ विश्वनाथ भोजपुरिया के सम्पादन में ‘दिआ’ मासिक के प्रकाशन होखे लागल, बाकिर एह पत्रिकन के उमिर कुछुए अंक ले सीमित रहल।

सन् 1986 में बरौली (गोपालगंज) से दिनेश कुमार पाण्डेय ‘दिवाकर’ के सम्पादन में मासिक ‘आरती’, ढोंढस्थान (सारन) से प्रो. वैद्यनाथ विभाकर के सम्पादन में ‘भोजपुरी भारती’ आउर अरदेवा (सारन) से रामाज्ञा प्रसाद सिंह ‘विकल’ के सम्पादन में त्रैमासिक ‘कलेवा’ के प्रकाशन शुरू भइल, बाकिर एह सब पत्रिकन के उमिर कुछ-कुछ अंक तकले रहल।

सन् 1987 में साहेबगंज (मुजफ्फरपुर) से डॉ. ब्रजभूषण मिश्र के सम्पादन में ‘कोइल’ के मासिक प्रकाशन शुरू भइल। डॉ. धीरज कुमार भट्टाचार्य के आर्थिक सहयोग से ई पत्रिका अप्रैल, 1992 तक नियमित निकलत रहल।

एह अवधि में पटना से पशुपतिनाथ सिंह के सम्पादन में भोजपुरी कलम’ नाम के पत्रिका निकलल। प्रगतिशील विचारधारा आ तेवरदार भाषा-शैली का वजह से ई पत्रिका चर्चा में रहल, बाकिर आर्थिक वजहन से एकर प्रकाशन कुछुए अंक के बाद रुक गइल। सन् 1989 में मुजफ्फरपुर से कुमार विरल के सम्पादन में ‘हिरामन’ नाम के पत्रिका के दू अंक निकलल। एकरा बन्द भइला पर कुमार विरले के सम्पादन में ‘भोजपुरी आवाज’ नाम के पत्रिका निकलल, जें एके अंक ले सीमित रह गइल।

मई 1988 में लखनऊ से ‘भोजपुरी लोक’ नाम के मासिक पत्रिका डॉ. राजेश्वरी शांडिल्य के सम्पादन में निकलल आ बारह बरिस ले निरन्तर निकलत रहल। ई हिन्दी आ भोजपुरी के द्विभाषी पत्रिका रहे, जवना में हिन्दी आ भोजपुरी के अलग-अलग खण्ड रहत रहे। हिन्दीओ खण्ड में भोजपुरी भाषा-साहित्य-संस्कृति विषयक सामग्री छपत रहे।

सन् 1988 में छपरा से बैकुण्ठ नारायण के सम्पादन में ‘पाँति-पाँति’ आउर जमालपुर से अशोक ‘अश्क’ के सम्पादन में ‘बटोहिया’ के प्रकाशन शुरू भइल। ‘बटोहिया’ के कथा-अंक बहुत सफल आयोजन रहे। अनियतकालिक रूप में ‘बटोहिया’ के कुछ अंक जब-तब निकले, बाकिर, आखिरकार, ई पत्रिका बंद हो गइल। 1989 में बेतिया (पश्चिमी चम्पारण) से चतुर्भुज मिश्र के सम्पादन में ‘हालचाल’ निकलल, बाकिर दू-तीन अंक से आगे ना चल सकल।

सन् 1990 में गोरयाकोठी (सीवान) से सूर्यदेव पाठक ‘पराग’ के सम्पादन में ‘बिगुल’ के प्रकाशन शुरू भइल आ बरिसन ले निकलत रहल। एकर कविता-अंक आ लघुकथा-अंक विशेष चर्चित भइले सन। श्री अक्षयवर दीक्षित पर एकर विशेषांको बहुत अच्छा निकलल। ‘बिगुल’ का प्रकाशन से सैकड़न लेखक प्रकाश में अइलन। एही साल, साहेबगंज से ‘भोजपुरी त्रैमासिक’ नाम के पत्रिका कमलेश्वर प्रसाद पाठक का सम्पादन में निकलल रहे, जवना के उमिर दू अंक ले सीमित रहल।

सन् 1991 में बक्सर से विजयानन्द तिवारी के सम्पादन में त्रैमासिक ‘जगरम’ के प्रकाशन शुरू भइल, जे काफी अरसा ले जारी रहल। एह पत्रिका के ‘खोलकदास’ शीर्षक स्थायी स्तम्भ खूब चर्चित रहल। एह पत्रिका के लोक-साहित्य अंक बहुत पुष्ट आ स्तरीय रहे।

सन् 1991 में ही, बोकारो स्टील सिटी से ‘इंगुर’ नाम के त्रैमासिक रामनारायण उपाध्याय के सम्पादन में प्रकाशित भइल रहे। ई त्रैमासिक अल्पजीवी त जरूर रहे, बाकिर जवने दू-तीन अंक निकलल, ऊ साहित्यिक दृष्टि से स्वस्थ आ पुष्ट रहे।

सन् 1992 में बक्सर से प्रभंजन भारद्वाज के सम्पादन में ‘लहार’ आ 1993 में लखनऊ से सत्येन्द्रपति त्रिपाठी के सम्पादन के भोजपुरी के बोली’ नाम के पत्रिका प्रकाशित भइली स, जे कुछ अंक निकलला का बाद बंद हो गइली सन।

सन् 1994 में बरौली (गोपालगंज) से सच्चिदानन्द श्रीवास्तव के सम्पादन में त्रैमासिक ‘बायेन’ के प्रकाशन भइल, जेकर दू गो अंक निकलल। एही साल, आशापड़री (बक्सर) से चन्द्रधर पाण्डेय ‘कमल’ के सम्पादन में ‘भोजपुरी लहर’ के प्रकाशन शुरू भइल, जेकर सात गो अंक निकलल रहे।

सन् 1995 में बीरगंज (नेपाल) से गोपाल ‘अश्क’ के सम्पादन में ‘गमक’ के प्रकाशन भइल रहे, जेकर चार-पाँच अंक निकलल रहे। एही साल, हीरालाल अमृतपुत्र, मदन प्रसाद आ जयकान्त सिंह ‘जय’ के सम्पादन में ‘उगेन’ नाम के पत्रिका के कईगो अंक निकलल रहे।

सन् 1996 में सेतु न्यास (मुम्बई) द्वारा संचालित विश्व भोजपुरी सम्मेलन, देवरिया (उत्तरप्रदेश) के त्रैमासिक पत्रिका ‘समकालीन भोजपुरी साहित्य’ के प्रकाशन डॉ. अरुणेश ‘नीरन’ के सम्पादन में शुरू भइल। सुन्दर, सुभेख आ पृथुलकाय एह विशिष्ट त्रैमासिक के सन् 2008 तक अट्ठाईस गो अंक प्रकाशित हो चुकल बा, जवना में कहानी-विशेषांक, धरोहर-विशेषांक, स्त्री-विशेषांक, कविता-विशेषांक आउर संस्मरण-विशेषांक अतिशय महत्व के बाटे। भोजपुरी भाषी क्षेत्र के हिन्दी आ संस्कृत के विद्वान आ साहित्यकार लोगन के कलम से भोजपुरी के रचना लिखवावे में एकर सम्पादक का बहुते सफलता मिलल बा, जेकरा खातिर ऊ बधाई के पात्र बाड़े।

एही साल, कॉलेज शिक्षकन के भोजपुरी संस्था ‘भारतीय भोजपुरी साहित्य परिषद’ का ओर से एही नाम के एगो पत्रिका डॉ. प्रभुनाथ सिंह का सम्पादन में प्रकाशित भइल रहे। बाकिर आगे एकर प्रकाशन ना हो सकल।

1997 में भगवान सिंह ‘भास्कर’ के सम्पादन में सीवान से ‘बयार’ नाम के पत्रिका निकलल रहे, जेकर छव गो अंक प्रकाशित भइल रहे।

सन् 1998 में दिल्ली से महेन्द्र प्रसाद सिंह के सम्पादन में नाटक आ रंगमंच पर केन्द्रित एगो अनियतकालिक पत्रिका ‘विभोर’ के प्रकाशन शुरू भइल, जेकर सात-आठ अंक सन् 2008 तक प्रकाशित हो चुकल बा।

सासाराम (रोहतास) से डॉ. नन्दकिशोर तिवारी के सम्पादन में ‘सुरसती’ नाम के पत्रिका सन् 1999 से ही प्रकाशित हो रहल बा। सन् 2008 तक एकर लगभग पचीस अंक प्रकाशित हो चुकल रहे। अबो जब-तब एकर अंक देखे में आवेला।

एह अवधि में निकलेवाली एगो विशिष्ठ मासिक पत्रिका रहे बलिया से प्रकाशित होखे वाली ‘भोजपुरी विकास चेतना’, जेकर सम्पादक रहले डॉ. राजेन्द्र भारती। अइसे त ई पत्रिका बरिसन पहिले शुरू भइल रहे, बाकिर तुरन्ते बंद हो गइल आ फेर कई बेर शुरू आ बन्द होत रहल। बाकिर राजेन्द्र भारती के सम्पादन में एकर निरन्तरता एगो लम्बा समय तक बनल रहे आ एकर साहित्यिक स्तरो श्लाघनीय बनल रहल।

जुलाई, 1999 से ‘कविता’ नाम के त्रैमासिक पत्रिका भोजपुरी साहित्य प्रतिष्ठान, पटना से नियमित रूप में प्रकाशित होत रहल बा, जेकर सम्पादक हवे कविवर जगन्नाथ आ सह-सम्पादक हवे भगवती प्रसाद द्विवेदी। अबतक एकर बावन गो अंक प्रकाशित हो चुकल बा। वित्त-पोषण के अभाव का चलते 52 अंक के लोकार्पण का बाद, एकर त्रैमासिक प्रकाशन बंद कर दिहल गइल बा, एह संकल्प का साथे कि एकर वार्षिक प्रकाशन कइल जाई। विविध भावबोध आ विविध शिल्प-शैली के उत्कृष्ट कवितन का अलावे कविता-विषयक लघु निबन्ध आ कविता-पुस्तकन के समीक्षा से लैस ई पत्रिका भोजपुरी कविता के उत्कर्ष के प्रति समर्पित रहल बा।

अगस्त, 2000 में सीवान से भगवान सिंह ‘भास्कर’ के सम्पादन में ‘उड़ान’ नामक पत्रिका प्रकाशित भइल रहे, मगर दू अंक से आगे ना बढ़ सकल। जनवरी-मार्च 2001 में ‘महाभोजपुर’ नाम के पत्रिका विनोद कुमार देव का सम्पादन में सज-धज से निकलल, बाकिर आगे ओकर प्रकाशन ना बढ़ सकल।

विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय इकाई के तत्वावधान में पटना से ‘भोजपुरी विश्व’ नाम के पत्रिका के प्रकाशन कई बरिस ले रहल बा, जेकर प्रधान सम्पादक रहले डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय आ सम्पादक बाड़े डॉ. लालबाबू तिवारी। डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय के निधन के बाद ई पत्रिका देखे में ना आइल।

जमशेदपुर से अजय कुमार ओझा के सम्पादन में ‘निर्भीक संदेश’ नामक त्रैमासिक पत्रिका सन् 2002 से प्रकाशित हो रहल बा। ई द्विमासिक पत्रिका ह, जवना में हिन्दी आ भोजपुरी के अलग-अलग खण्ड रहेला। सुरुचिसम्पन्नता आ नियमितता एह पत्रिका के विशेषता बा।

सन् 2006 से लखनऊ से ‘भोजपुरी संसार’ नामक त्रैमासिक के नियमित प्रकाशन होत रहल। श्रीमती आशा श्रीवास्तव एकर सम्पादक बाड़ी आ मनोज श्रीवास्तव एकर समन्वयक सम्पादक बाड़े। सुरुचिसम्पन्नता आउर सुन्दर गेटअप-मेकअप के ई मनोहारी पत्रिका आम लोगन में बहुत लोकप्रिय रहल बा। भोजपुरी के कुछुए पत्रिका अइसन बाड़ी सन, जवना के उत्तर भारत के विभिन्न शहरन के पत्रिका का स्टालन पर देखल जा सकेला। ‘भोजपुरी संसार’ अइसन कुछ पत्रिकन में से एगो रहे। बाकिर अब ई पत्रिका देखे में नइखे आवत।

सन् 2007 में मुजफ्फरपुर से ‘भोर’ नाम के एगो त्रैमासिक के प्रकाशन शुरू भइल, जवना के चार गो अंक निकल सकल। एह पत्रिका के प्रधान सम्पादक रहले डॉ. ब्रजभूषण मिश्र आ सम्पादक रहले डॉ. जयकान्त सिंह ‘जय’। एकरा प्रकाशन में तत्काल गतिरोध हो गइल बाकिर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर में भोजपुरी के पढ़ाई होखे का चलते एह पत्रिका में छात्रोपयोगी सामग्री के समावेश से उमेद कइल जा सकेला कि एकर प्रकाशन में आइल गतिरोध जल्दिए खतम हो जाई।

जुलाई-सितम्बर, सन् 2008 से ‘परास’ नाम के एगो त्रैमासिक के प्रकाशन तेनुघाट (झारखण्ड) से होत रहल। निबन्ध, कहानी, कविता आदि सब विधन से लैस एह पत्रिका के सम्पादक बाड़े डॉ. आसिफ रोहतासवी। एकर स्तरीय प्रकाशन जारी बा, जेकर श्रेय एकरा सम्पादक के बा।

एह पत्र-पत्रिकन का अलावे, भोजपुरी के सम्मेलनन के अवसर पर प्रकाशित स्मारिको सभन अनियतकालिक पत्रिकन खानी बढ़िया सामग्री पाठकन खातिर परोसत रहल बाड़ी सन।

हिन्दी के दैनिक पत्र ‘आज’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘राँची एक्सप्रेस’, ‘नवभारत’, ‘प्रभात खबर’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘जनसत्ता’, ‘दैनिक जागरण’, ‘भोजपुरी फोरम’ जइसन अखबार समय-समय पर भा धारावाहिक रूप से भोजपुरी भाषा-साहित्य-संस्कृति विषयक ज्ञानवर्धक आ रोचक सामग्री परोस के भोजपुरी के पत्रकारिता के आ भोजपुरी के साहित्यिक-सांस्कृतिक उत्कर्ष के प्रोत्साहित कइले बाड़े स। अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के बिलासपुर (मध्यप्रदेश) में आयोजित आठवाँ अधिवेशन के अवसर पर ‘बिलासपुर टाइम्स’ नामक दैनिक पत्र आपन विशेषांक त निकललहीं रहे, पूरा-के-पूरा विशेषांक भोजपुरिए- भाषा में निकलले रहे।

एह पत्र-पत्रिकन के अलावा नवंबर, 2008 से श्री विनोद कुमार तिवारी के संपादन में जमशेदपुर से मासिक समाचार-पत्रिका ‘गाँव-घर’ के प्रकाशन हो रहल बा। एगो आउर नया तिमाही ‘भोजपुरिया अमन’ के भी प्रकाशन उहें से होत रहल, बाकिर अब ओकर अंक देखे में नइखे आवत।

भोजपुरी पत्रकारिता के विवेचन से एक बात साफ बा कि भोजपुरी के पत्र-पत्रिकन में साहित्यिके सामग्री प्रस्तुत करे पर विशेष ध्यान दिहल जात रहल बा। साहित्येतर समाचार, सूचना, रपट आदि के समावेश भोजपुरी के पत्र-पत्रिकन में कमे होत रहल बा। कुछेक समाचारप्रधान पत्रिका निकललो बा, त ओह में भोजपुरी के साहित्यिके प्रगति भा गतिविधि के स्थान मिलल बा। देश-दुनिया के साहित्येतर खबरन के समावेश इन्हनी में ना के बराबर होत रहल बा।

बाकिर, एह अभाव के पूर्ति का दिसाईं एगो अत्यन्त महत्वपूर्ण डेग एही साल 2008 में अरिन्दम चौधरी उठवले बाड़े ‘द संडे इंडियन’ के भोजपुरी संस्करण प्रकाशित कइके। ई समाचार-साप्ताहिक पत्रिका अंग्रेजी, हिन्दी, उर्द, बंगला, तमिल, कन्नड़, तेलुगु, मलयानम, गुजराती, मराठी, असमिया, उड़िया आ पंजाबी का साथे-साथे भोजपुरिओ में प्रकाशित होखे लागल बा। ‘द संडे इंडियन’ जइसन समाचार-साप्ताहिक के भोजपुरीसंस्करण प्रकाशित करके भारत के संविधान-स्वीकृत भाषा सभन का पाँत में भोजपुरी के प्रकारान्तर से प्रतिष्ठित करेके जे महत्कार्य कइल गइल बा, ओकरा खातिर भोजपुरीभाषी जनता सदैव आभारी रही। उमेद कइल जा सकेला कि एह से प्रेरणा पाके भोजपुरी में कुछ समाचार-साप्ताहिक आउरो प्रकाशित होइहेंसन। भोजपुरी में कवनो दैनिको समाचार पत्र प्रकाशित होखे, एकर कल्पना त आउरो सुख देबेवाला बा।

(सभारलेखाञ्जलिसे )

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