हम का करब कह के?

October 22, 2021
कविता
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विष्णुदेव तिवारी

हम का करब कह के

के मानीं?

 

के कही कि हमरो

एगो कहानी बा!

 

राम अस ना

त रावणो अस ना

कन्हइया अस ना

त कंसो अस ना।

 

अजातशत्रु,चन्द्रगुप्त, हर्षवर्द्धन भा

पल्लवराज महेन्द्रवर्मन-

केहू के छिटिको भर नइखे

हमार जिनिगी के सात पुश्त

हम जानत बानीं।

 

गाँधी, सुबास, भगत, आजाद

चाहे एकदम पीछे चलीं त

भक्त प्रहलाद

केहू के जिनगी के कुछुओ

हमरा जिनगी से नइखे जुटत

त कइसे कह दीं

आपन वजन बढ़ा के कुछुओ?

 

आन्ही में उड़त

सूखल कोंढ़ी

केने जाई

केने बिलाई

के बता सकत बा?

 

खपड़ा वाला घर में

भइल रहलीं हम

माई कहत रहे

हमरा से बड़ एगो भाई भइल

मुअले भइल

हमार जनम भइल त

चनरमा के उगरह हो गइल रहे

हम आजु ले गरहने में

गोताइल बानीं

गोर पैदा भइल रहीं

बाकिर करिखे पोताइल बानीं

सवखे लागत रह गइल

तनियो-मनी पेट फुललगर होइत

से ना भइल।

 

जनमे से

अपना भार से बेसी

भार से जँताइल बानीं

कुछ कहींला त लोग कहेला

करियट्ठा मनसपापी ह

देख-देख जरेला।

 

हमार रोज-रोज के मुअलका

केहू के लउके ना।

 

हमरा जिनगी में

ताकीं मत, महाराज!

हमार जिनगी केहू से ना मिली।

 

ठीक बा कि मनरेगा वाला

मजूर हम ना हईं

त गद्दी के नासूरो त ना हईं

देश के माटी, हवा, पानी

जइसे सबके ह

ओइसे हमरो

जहिया मूअब ओही में मिलब

पइसा होई त

जिअते काम-किरिया सपरा देब

मुअला के बाद के

कवनो विधान में

हमरा विश्वास ना ह

अब ई रउआ प बा कि

हमरा के का कहब!

 

ओइसे हम

खाली एगो बात कहब

हमरा के केहू ऊ ना कहल

जे हम रहीं

अब रउए बताईं

हम का कहीं?

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