अनुभव के अँटिया ह संस्मरण

December 10, 2021
संपादकीय
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संस्मरण का ह ? याददाश्त ह। मेमोरी ह। याददाश्त कवना रुप में दिमाग पर छपल बा, केतना गहराई के साथे मन में बइठल बा, ओही तासीर आ भावना के साथे दिलोदिमाग में गूँजेला। दरअसल संस्मरण अनुभव के अँटिया ह, जवन बोझा बन्हा जाला मन के ढोये खातिर।

जब लइका पैदा होला त अपना होश सम्हरला ले, अपना नजर में ना उ हिन्दू होला, ना मुसलमान, ना बाभन होला ना बनिया, ना इंडियन होला, ना अमेरिकन। एही से उ मस्त रहेला। छने में लड़े-झगड़ेला आ छने में सब भुला के साथे खेले लागेला। उ अपना ओरिजिनल रुप में रहेला। कुछुओ ओढ़ले-बिछौले ना रहेला। ओकर दिमाग खाली रहेला। विचार शून्य रहेला। याददाश्त के कचरा ना भरल रहेला।

कचरा शब्द के प्रयोग हम एह से कइनी ह कि एगो सांसारिक आदमी के दिमाग में याददाश्त के नाम पर कुछ जरूरी इन्फॉर्मेशन के छोड़ के ढ़ेर फालतुये बात होला। कवनो तरीका से अगर ई फालतू बात, ई सब बकवास दिमाग से निकल जाये त आदमी फेर लइका बन जाला, अपना मूल स्वरूप में आ जाला। आदमी के मूल स्वरूप आनंद के ह।

बाकिर आज अधिकांश आदमी दुखी बा, परेशान बा। कुछ दुख जेनुइन बा। ऊ आर्थिक बा, शारीरिक बा। कुछ दुख मानसिक बा। मानसिक दुख के अधिकांश हिस्सा अइसने कचरा वाला याददाश्त के चलते बा, जवन बढ़त उम्र के साथ हमनी के इकठ्ठा कइले बानी जा। एजुकेशन, धर्म, राजनीतिक पार्टी, अलग-अलग गोल, गुट, समाज, सरहद आदि से जुड़ला से जइसन इन्फॉर्मेशन एह दिमाग में फीड भइल, ओइसने याददाश्त बनल, ओइसने संस्मरण। …

अउर इहे संस्मरण आगे के जीवन खातिर रेगुलेटर के काम करेला, डिसीजन मेकर के काम करेला। एगो अर्थ में संस्मरण के रउरा अनुभव भी कह सकेनी। अनुभव आदमी के कई गो मुहावरा देले बा जइसे कि दूध के जरल मट्ठा फूंक-फूंक के पीयेला। अनुभव न जाने केतना गीत-गजल, कविता देले बा। हमरे एगो शेर बा –

अइसहीं ना नू गजल-गीत लिखेलें भावुक

वक्त इनको के बहुत नाच नचवले होई

बाकिर सब अनुभव छंद के बंध में बन्हइबो त ना करे। एह संदर्भ में हमार कुछ शेर हाजिर बा –

दफ़्न बा दिल में तजुर्बा त बहुत ए भावुक

छंद के बंध में सब काहे समाते नइखे

चाहे

अनुभव नया-नया मिले भावुक हो रोज-रोज

पर गीत आ गजल में ले कवनो-कवनो बात

त बात भा अनुभव लेले केतना लोग मर गइल। केतना लोग भीतरे-भीतर घुटल भा खुश भइल। केतना लोग खुशी के मारे नाचल भा दुख से छाती पीटल। केतना लोग अपना नाती-पोता, पर-परिवार के साथे ( अगर उ सुने वाला आ सुने लायक भइल त ) आपन अनुभव, आपन संस्मरण साझा कइल।

ई अंक ओह खुशकिस्मत लोग के चलते बा जेकरा के भगवान ई हुनर देले बाड़े कि ऊ अपना अनुभव के कागज प उतार सके। अपना याददाश्त के लिपिबद्ध कर सके। एही से लेखक के क्रियेटर कहल जाला। ऊ लोर के गजल बना लेला, आग के कविता। घात-प्रतिघात, ठेस-ठोकर के कहानी-संस्मरण।

त सुख-दुख, आग-पानी, काँट-कूस, फूल-खुशबू, हँसी-खुशी, जहर-माहुर से भरल मन आ ओह मन के याददाश्त से उपजल समय-समय के बात हाजिर बा एह संस्मरण अंक में।

त काहे खातिर संस्मरण अंक? आनंद खातिर, दोसरा के अनुभव आ जानकारी से सीखे खातिर, सचेत रहे खातिर आ जिनगी के गहराई आ रहस्य के समझे खातिर।

बात प बात चलsता त कई गो बात मन परsता। ओही बात भा अनुभव भा एहसास से उपजल आपन कई गो शेर मन परsता। ओही में से एगो शेर के साथे आपन बात खतम करत बानी।

ऊ जौन देखलें, ऊ जौन भोगलें, ना भोगे आगे के नस्ल ऊ सब

एही से आपन कथा-कहानी कहत रहलें मनोज भावुक

प्रणाम

मनोज भावुक

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