छोट सा शहर हमार रामनगर

December 14, 2021
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लेखक: अजय कुमार पाण्डेय

बिहार के पश्चिमोत्तर, नेपाल-उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिला चंपारण के एगो भौगोलिक, ऐतिहासिक आ सांस्कृतिक दृष्टि से मशहूर आ महत्वपूर्ण शहर । उत्तरे-दखिने लमा-लामी बसल हमनी के शहर में एगो रेलवे स्टेशन जेकर नाम हरीनगर रहे, एगो हाई-स्कूल, एगो संस्कृत हाई स्कूल, दु गो मिडिल स्कूल आ तीन-चार गो प्राइमरी स्कूल रल स। प्राइवेट स्कूल के कौनो नामो-निशान ना रहे ओ घरी। एगो सिनेमा घर, ” हिन्द-सिनेमा “, चीनी मिल आ सबसे मशहूर प्राचीन शिव मंदिर रहे। शिव मंदिर तबो रामनगर के पहचान रहे आ आजो पहचान बा।

मध्यकालीन सेन वंश के बनवावल मंदिर एतना भव्य बा कि कौनो तरे फोटो खिचला पर पांचों गुम्बद के फोटो एक साथे ना आवेला। रामनगर में राज घराना आ राज महल भी बा। नेपाल के राणा खानदान के लोग उहां के राजा रहल बा लोग आ आजो राजपरिवार के लोग रामनगर में रहेला।

ई सब त हो गइल हमरा शहर के एगो संक्षिप्त परिचय, अब कुछ हमरो बारे में जानी लोगन। बाबू जी हमार ओतहिए ” हरीनगर उच्च विद्यालय ” में शिक्षक रनी। हमनी के तीन भाई आ एगो सबसे बड़ बहिन रहे। हम माझिल रनी। माई-बाबू जी आ हमनी के चार भाई-बहिन के परिवार के बाबू जी अपना औकात भर ठीक-ठाक से चलावत रनी। भैया आ दीदी के जनम के बाद बाबू जी गांव से रामनगर आ गइनी। हमार आ हमर छोट भाई के जनम-करम एतहीये भइल।

बाबू जी मारवाड़ी मोहल्ला में एगो किराया के घर ले के हमनी के रखले रनी आ कहे के गरज नइखे कि हमनी के अधिकांश संघतीया मारवाड़ी समाज के हीं लइका रल स। ओहिमे कुछ गैर-मारवाड़ी लइका भी हमनी के मित्र मंडली में रहल लोग।

हमार लंगोटिया इयारन में, निर्मल, पप्पू, प्रदीप, सुशील ( टुनिया ), अरुण, सुमन, रमेश, रामायण, सुनील, पुरुषोत्तम आदि ढेर लइका रलन स। सब एक से एक खुराफाती आ करामाती।

सुशील ( टुनिया ) के त भगवान एके पीस बना के भेजले रलें। ओकरा दिमाग में खुराफात आ शैतानी के सिवा दोसर कुछु अइबे ना करे। ओकर खुराफत पर पूरा एगो किताब लिखा सकsता।

रामायण, सुमन आ रमेश के तिकड़ी रहे। ऊहो नमूने रहलन स।

निर्मल सामान्य लइका रहे आ पप्पू के हमेशा नाक बहत रहे। प्रदीप दु गो रलन स आ दूनू एक गोल के, शातिर बदमाश। पुरुषोत्तम आ अरुण शांत स्वभाव के लेकिन हमेशा ग्रुप में रहे वाला संघतीया रलन स। एकरा अलावे भी ढेर इयार-दोस्त रहे लोग लेकिन ई हमनी के कोर-ग्रुप रहे।

आज हम सुमन आ रमेश के एगो किस्सा सुनावतानी।

सुमन बहुत जिद्दी टाइप के रहे। जे दिमाग में आ जाए, कर डाले।

रमेश दुबर-पातर, सुमना जे कहे, ऊहे करे।

एक दिन सुमन शायद घर पर डटाईल-पिटाईल रहे। स्कूल दु किलोमीटर पर रहे। रोज रमेश ओकरा घरे आ जाए आ दुनु एके साथे स्कूल जा स। स्कूल के रास्ता में रेलवे क्रासिंग रहे।

ओह दिन सुमन के मुड खराब रहे। जब ऊ दुनू स्कूल चललs स त सुमन बड़ा गंभीर रहे। ओकरा दिमाग में कुछ चलत रहे।

आधा रास्ता गइला पर सुमन रमेश से कहलस,

” चल रमेश साधु बन जाइल जाव।”

रमेश अचकचाइल आ पूछलस ,

“काहे रे, साधु काहे बनल जाई?”

” घर में कौनो भैलू नइखे। जेकरे मन करsता, लतिया देता।

अइसन घर में रह के आदमी का करी।”

” बाक, घरे त हमु पिटानी त का घर-दुआर छोड़ के साधु बन जाइल जाई?”

रमेश, सुमन के समझावे के प्रयास कइलस। लेकिन सुमन ना मानल आ ऊ आपन बात आ तर्क से रमेश के भी साधु बने के तैयार क लेलस।

रेलवे क्रासिंग पर आ के दुनू आपन-आपन बस्ता नचा के क्रासिंग पर के गड्ढा में फेंकलसs आ लाइन ध के नरकटियागंज की तरफ चल पड़लस।

घर के लोग बुझत रहे कि बबुआ लोग पढ़े गइल बा लेकिन दुनू संघतीया वैराग्य के राह पर निकल पड़ल लोग।

रास्ता में रमेश कई बार सुमन से अभिओ से घर लौट चले के कहलस लेकिन सुमन रहल जिद्दी स्वभाव के, ऊ माने के तैयार ना रहे। साधु बने के बा त बने के बा।

करीब 18 किलोमीटर पैदले, लाइने-लाइने चल के दुनु नरकटियागंज स्टेशन पहुंच गइलन स। नरकटियागंज पहुंच के रमेश, सुमन के अंतिम बार बहुत समझावे के प्रयास कइलस लेकिन सुमन ना मानल, त ना मानल। नरकटियागंज 18 किलोमीटर पैदल चलत-चलत रमेश के दोस्ती निभावे के सारा जोश काफूर हो गइल रहे। ऊ आगे जाए के तैयार ना भइल आ ओतहिए से ट्रेन ध के रामनगर लौट आइल। घर लौट के रमेश चुपचाप खा-पी के सुत गइल।

एने सुमन नरकटियागंज से ठोरी ( भारत-नेपाल के बार्डर पर एक पर्वतीय पर्यटक स्थल, जेकरा से थोड़ा पहले गांधी जी के भितिहरवा आश्रम बा ) के लाइन पकड़ के साधु बने चल पड़ल। ओकरा मालूम रहे कि ठोरी में जंगल आ पहाड़ बा आ साधु बने ला जंगल आ पहाड़ सबसे सही जगह होला। आखिर वाल्मीकि जी भी त जंगल में हीं रहस जहां सीता जी जा के लव-कुश के जनम देली।

इहे सब सोचत सुमन बढ़े लागल। कबो रमेश के मन हीं मन गरिअबो करे कि डरपोक भाग गइल।

नरकटियागंज से ठोरी के दूरी करीब 25-30 किलोमीटर से कम ना रहे लेकिन सुमन भी धुन के पक्का रहे। पैदल चलत-चलत सांझ के सात बजे के आसपास ऊ ठोरी पहुचिये गइल। चारो ओर अंहार हो गइल रहे। वीरान स्टेशन आ आसपास जंगल आ पहाड़। कोढ़ में खाज ई हो गइल रहे कि मौसम खराब हो गइल आ बरखा बरसे लागल। अब सुमन के हिम्मत आ साधु बने के जोश डगमगाए लागल। रात के जंगल वाला रास्ता पर लौटलो मुश्किल रहे। स्टेशन मास्टर के ऑफिस में जाए में डर लागत रहे कि पूछला पर का बतइहें। पैदल चलत-चलत थकान से भी बुरा हाल रहे। भूख से अतडी अलगे कुलबुलात रहे। साधु बनला में एतना दुर्गत होई, ई पहिले पता रहित त माई-बाबू जी के दु लात खा के भी घरहीं रहते। भूख त केहू तरे बर्दास्त हो जाइत लेकिन रात के यदि बाघ-भालू आ जाए त बाघ-भालू के हीं भोजन बन जाए के पडीत।

एक त बरखा में भींजल देह, आ सांय-सांय बहत बेयार, रात बढ़त जात रहे आ सुमन बाबू लगातार बजरंग बली आ दुर्गा महारानी के गोहरावत रहे कि आज के रात जान बच जाई त बाप किरिया फेर कबो साधु बने के सोचबो ना करब।

एने सुमन के घर खोज-बीन शुरू हो गइल रहे। कई गो मोटर साइकिल सुमन के पता लगावे निकल गइल।

एने रमेश अपना घर दमी साध के सुतल रहे। ना त ऊ सुमन के घर कुछ बतवलस ना हीं अपना घर पर।

रात ले जब कुछ पता ना लागल त थाना में भी खबर भइल।

सुमन के कुछु ना बुझाइल त दुसरका लाइन पर लागल एगो पुरान माल गाड़ी के डिब्बा में घुस के चुका मुका बइठ गइलें। बाहर टप-टप बुनी पडत रहे आ भीतर सुमन के करेजा बैठल जात रहे। कइसे रात कटी, बुझाते ना रहे। अंहार में ना कुछु भीतरा लउकत रहे ना बहरा। आंख फार-फार के बस कुछ देखे के असफल प्रयास करत रले सुमन बाबू। पता ना कब ओकर आंख लग गइल आ ओतहिए ढिमला गइल।

केहू सुमन के गोजी के हुरा से खोद-खोद के जगावत रहे। कुनमुनात उठल सुमन त देखलस ओकरा के एगो सिपाही जगावत रहे। ऊ हड़बड़ा के उठल।

“इंहा काहे सुतल बाडs हो, कहां घर ह?

सुमन बिना कुछ बोलले खाली सिपाही के मुंह ताकत रहे।

“बोलत काहे नइखs, काहे इहां सुतल बाड़s ?

सिपाही फेर पुछलें लेकिन जवाब फेर नदारद।

सिपाही सुमन के उठवलें आ स्टेशन मास्टर के ऑफिस में ले गइले।

ढ़ेर देर पूछताछ कइला के बाद सुमन धीरे-धीरे बतवलस कि के तरे ओकरा दिमाग में साधु बने के बात आइल आ केतरे ऊ घर से रमेश के साथे ठोरी ला चल पड़लें।

रात में सुमन के खिया-पिया के स्टेशने में सुतावल लोग आ दोसरा दिन सुबह पहिलका ट्रेन से एगो सिपाही सुमन के लेके चललें आ दुपहरिया ले रामनगर ओकरा घरे पहुंचा देहलें।

ए बीच सुमन के घर के लोग ओकरा के खोजत-खोजत हलकान हो गइल रहे लोग। सुमन के माई के रोअत-रोअत बुरा हाल हो गइल रहे।

सुमन के बाद में का हाल उनका बाबू जी कइलें, एकर बस कल्पना क लीं सभे, बाकी रमेश के घरे ओकरा केतना चइली के मार पड़ल ई हम ना बताइब।

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