सरलता, सहजता के जीवन्त मूर्तिः कपिल जी

December 20, 2021
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मार्कण्डेय शारदेय

पाण्डेय कपिल जी के आगे पुण्यश्लोक जोड़त गजिबे लागत बा। बाकिर दिव्यलोकी होखला से उहाँ का आपन यशःशरीरे से नु एहिजा बानीं! भर्तृहरि जी कहलहूँ बानी-

जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाःकवीश्वराः।

नास्ति तेषां यशःकाये जरा-मरणजं भयम्।।

अर्थात्  रस में पगाइल  ओह कवियन के जय होखे, जेकर यश रूपी शरीर बुढ़ापा आ मृत्यु से दूर रहेला। दुनिया में केहू भा कुछुओ अइसन नइखे, जे मृत्यु देवी से बचि जाउ। आजु ना त काल्हु ऊ उठाइये ले जइहें। जे मरियो के जीये, ओकरे जीयल जीयल ह।

कपिल जी अपने खातिर ना; साहित्य देवता खातिर, भोजपुरी माता खातिर आ साहित्यकार बन्धुअनो खातिर जीयत रहलीं। उहाँ का राजभाषा विभाग में उपनिदेशक रहलीं, बाकिर सहित के भाव से अतना ओतप्रोत रहलीं कि एगो छोटो साहित्यसेवी उहाँ के पास चलि जाउ अपनत्व से ओकरा के खींच लेत रहीं।

बात 1983 के ह। हम भोजपुरी में ‘पाशुपत-प्राप्ति’(खण्ड काव्य) लिखले रहीं। जब पाण्डुलिपि पर सम्मति खातिर कविवर विश्वनाथ प्रसाद ‘शैदा’ के पास गइलीं त उहाँ का आपन सम्मति देला के बाद यशस्वी साहित्यकार रासबिहारी राय शर्मा जी से भी अभिमत ले लेबे के परामर्श कइलीं। एके गाँव के बात रहे। हम ओही घरी ऋषितुल्य शर्मा जी किहाँ पहुँच गइलीं। अस्सी ऋतुअन के षट्चक्र से तपल साधुवृत्ति के कारण सस्नेह बइठा के पढ़लीं आ टटके आपन शुभाशंसा लिख देलीं। देखीं, सत्संगति कइसे कइसे जोड़त जाले! उहाँ का कहलीं जे रउरा पटना जाईं त श्रीरंजन सूरिदेव, रामदयाल पाण्डेय आ पाण्डेय कपिल से भेंट करबि। युवा मन उत्साह से भर गइल। कुछे दिन बाद हम पुरनका सचिवालय में स्थित राजभाषा विभाग में पहुँचि गइलीं। कपिल जी अपना चेम्बर में श्री कृष्णानन्द कृष्ण आ श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी के साथे बइठल रहलीं। शर्मा जी के नाम लेके आपन परिचय देलीं त उहाँ के स्नेहपूर्वक बइठइलीं आ हमार काव्य सुनलीं। उहाँ का छपवावे के उपायो सुझइलीं, बाकिर हम सफल ना हो पइलीं। खैर, ई प्रथम साक्षात्कार रहे। बाकिर उहाँ के मुँहे आपनि कृति के प्रशंसा सुनि के संतुष्टि मिलल आ लेखन में गतियो आइल। ओही साले हमार एगो लेख ‘कवि कविता आ काव्य’ भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका के अक्तूबर (शायद) अंक में छापि के मनोबलो बढ़इनी।

दुसरका संक्षिप्ते भेंट हमरा डुमराँवे में कवि-सम्मेलन में भइल। ओह घरी साहित्यिक बन्धु श्री रामेश्वर चौधरी के प्रशंसनीय प्रयास से महाकवि रामदयाल पाण्डेय के साथे पटना के कतने शीर्षस्थ कवि पधरले रहीं सभे। ओही में हमार भोजपुरी कविता-संग्रह ‘गठरी’ के रामदयाल जी के करकमलन से लोकार्पणो भइल रहे। कविवृन्द में बइठल कपिल जी के ओर हमार ध्यान ना गइल, बाकिर उहाँ के तुरते बोलाके अपना सौहार्द से हमरा के सुगन्धित आ आर्द्र कर दीहलीं।

1994 से हम पटने रहे लगलीं त सान्निध्य सुख में वृद्धि भइल।

हम एगो व्यक्ति के रूप में पाण्डेय जी के सदा सरल आ सहज पइलीं। उहाँ के रचल साहित्यो खूब पढ़लीं, ओहू में व्यक्तित्व के जवन सुगन्धि रहल, ऊ समाइल रहे। साहित्य-सृजन एगो अलग काम ह आ संगठन चलावल बहुते अलग। बाकिर कुशल, कर्मठ, जुझारू, दूरदर्शी आ परिपक्व लोगन खातिर कुछुओ असम्भव आ बेमेल ना होला, पाण्डेय कपिल जी के देखि के हमरा अतने बुझाइल। भोजपुरी के उत्थान में उहाँ के योगदान के कबो भुलाइल ना जा सकेला। उहाँ के कीर्ति खाली कृतियन से ना, सम्पादकीय कौशलो से सदैव पसरल रही आ उहाँ का अमर रहबि-कीर्तिर्यस्य स जीवति।

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