राउर पाती

January 17, 2022
राउर पाती
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संस्मरण अंक लाजवाब आ संग्रहणीय बाटे

संस्मरण अंक के सरसरी निगाह से तs हम ओहि दिन देख लिहलीं जवना दिने ऊ हमरा हाथे लागल रहे बाकिर पूरा पढ़े  कs फुर्सत तनी देर से मिलल।

ईयाद नइखे परत कि ‘भोजपुरी जंक्शन’ कs अबले कवनो अइसन अंक आँखि का सोझा से गुजरल होखे, जवना के कलेवर के लिहाज से हल्लुक कहल जा सके! अपना प्रतिष्ठा आ मेयार का मोताबिक ईहो अंक लाजवाब आ संग्रहणीय बाटे। एह अंक का बारे में जदी रचि के लिखल जाव तs कइ गो पन्ना रँगा जाई। भाई मनोज भावुक जी के  संपादकीय ‘ अनुभव के अँटिया हs संस्मरण ‘ जहाँ सरल भाषा में संस्मरण के परिभाषित कर रहल बा, उहँवे (भलहीं विषय से तनी अलग हटि के होखो ) पूर्व सांसद रवीन्द्र किशोर सिन्हा जी के विचलित कर देवेवाला लेख ‘ बिहारी के मौत पर चुप्पी ‘ देस के अधिकांश राजनीतिक पार्टियन, मानवाधिकारवादियन आ पूर्वाग्रही बुद्धिजीवियन के संकीर्ण मानसिकता, अवसरवादिता आउर दोगलापन के उजागर कर रहल बाटे!

संक्षेप में कहल जाव तs एह अंक कs एक-एगो पन्ना पर टाँकल एक-एगो शब्द पठनीय आ सराहनीय बाटे। एह बदे हम भाई केशव मोहन पाण्डेय जी, डॉ. अन्विति सिंह जी, विनय बिहारी सिंह जी, डॉ. भोला प्रसाद आग्नेय जी, डॉ. रंजन विकास जी, मार्कण्डेय शारदेय जी, भगवती प्रसाद द्विवेदी जी, बहन गरिमा बंधु जी समेत सबकर अभिनंदन-वंदन करत बानीं। वइसे तs हर लेख में कुछ न कुछ सम्मोहक सामग्री मौजूद बाटे बाकिर पर्सनली हमरा के, स्व० रामेश्वर सिंह काश्यप उर्फ लोहा सिंह पर आधारित संस्मरण ‘ काबुल के मोरचावालू ‘ आ भोजपुरी के लोकप्रिय गीतकार स्व० अनिरुद्ध जी के व्यक्तित्व/कृतित्व कs बखान करत लेख पढ़िके बड़ा नीक लागल। महेन्द्र प्रसाद सिंह जी कs संस्मरण ‘चुनौती बनल अवसर’ भी बहुत मजेदार लेख बाटे।

अतना सुघ्घर-सुघ्घर संस्मरणात्मक लेख संग्रहित कर के पाठकन का आगा परोसे खातिर ‘भोजपुरी जंक्शन’ के संपादक भाई भावुक जी के साधुवाद आ परनाम!

शशि कुमार सिंह प्रेमदेव, वरिष्ठ कवि, बलिया ( उत्तर प्रदेश )     

भोजपुरी संस्मरण साहित्य के थाती बा ई अंक

भोजपुरी जंक्शन के संस्मरण अंक पूरा पढि गइनी। पढिके अपार खुशी भइल। अपने बाहरी रूप रंग आ भीतरी कलेवर का साथ ई अंक सुंदर, रुचिकर आ गंभीर विचार वाला बनल बा। सामग्री का संयोजन के त जवाब नइखे। पत्रिका के संपादकीय पूरी पत्रिका के आधार के काम करता। खांटी भोजपुरिया अंदाज में संस्मरण के पारिभाषित करत संपादकीय संस्मरण का सार्थकता आ उपयोगिता के भी बतावता। पत्रिका के पहिला लेख भोजपुरी संस्मरण साहित्य के संक्षिप्त रूपरेखा सामने रखता, जेसे भोजपुरी का संस्मरण साहित्य के परंपरा के बोध हो जाता। एकरा बाद त पत्रिका एक से बढके एक संस्मरण से सजल बा। को बड छोट कहत अपराधू। संस्मरण में काफी विविधता बा। स्थान से लेके व्यक्ति तक से जुडल संस्मरण पत्रिका में बाड़े सन। कब्बो संस्मरण गांव के सैर करावता, कब्बो लंदन में पूवा पकावता, कलकत्ता में भाते के खीर बनावता। कई संस्मरण रचनाकार लोगन से जुडल बा। ए सब संस्मरणन के भोजपुरी संस्मरण साहित्य के थाती कहल जा सकेला।

पत्रिका में दुगो गैर संस्मरण लेख बा। बिहारी के मौत पर चुप्पी एगो बेहद जरूरी बात के उठावता। गंगा किनारे के छोरा से मुलाकात के वर्णन रोचकता से भरल बा।

एह तरह से ई विशेषांक महत्वपूर्ण विशेषांक बा। भोजपुरी साहित्य का अइसने विशेषांकन के जरुरत बा। संपादक सहित सभे लेखक लोगन के सादर बधाई।

डॉ. प्रेमशीला शुक्ल, वरिष्ठ लेखिका, देवरिया

अनुभव के अंटियन के बान्हि के एगो दमगर बोझा बनल बा

अनुभव के अंटियन के बान्हि के एगो दमगर बोझा का रूप में भोजपुरी जंक्शन के पिछला अंक मिलल। पूर्व सांसद आ एह पत्रिका के प्रधान संपादक सिन्हा साहेब के लेख पढ़नी। मन कचोट के रह गइल। भोजपुरी के युवा साहित्यकार, केशव मोहन पाण्डेय जी के शोधपरक लेख ज्ञानवर्धक बा। भोजपुरियन क जीवटता के बखान पढ़ के छाती दोबर हो गइल। भावुक जी के संस्मरण में छुपल सनेस सुन्नर आ सामयिक बा। भात के खीर आ साधु बने के धुन रोचक लागल। पाण्डेय कपिल जी के बारे में पढ़ के आंख लोरा गइल। डॉ. उदय नारायण तिवारी, कुंज बिहारी कुंजन जी, कविवर अनिरुद्ध आ रामेश्वर सिंह कश्यप जइसन विभूतियन पर क्रमशः पाण्डेय कपिल जी, भगवती प्रसाद द्विवेदी जी, डॉ.निरंजन प्र.श्रीवास्तव जी आ डॉ. ब्रज भूषण मिश्र जी के संस्मरणात्मक लेख एह अंक के संग्रहणीय बना देले बा। देश-विदेश में घूमला आ रहला के संस्मरणो रोचक बा। कुल्हि मिला के ई पत्रिका बहुत सुंदर बा। उमेद बा ई क्रम जारी रही। हार्दिक बधाई आ शुभकामना।

महेन्द्र प्रसाद सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार, दिल्ली

भोजपुरी जंक्शन: यथा नाम तथा रूप

भोजपुरी जंक्शन के संस्मरण विशेषांक देखनी। बहुत नीक लागल। यथा नाम तथा रूप। जंक्शन ओकरा के कहल जाला जहाँ अलग-अलग रास्ता आके मिलत होखे। ‘भोजपुरी जंक्शन’ पर भोजपुरी साहित्य का अलग-अलग विधा आ के मिलेला। ई अंक संस्मरण पर केंद्रित बा। संस्मरण साहित्य के एगो विधा ह जवना में लेखक अतीत के स्मृतियन का ढेर में से कुछ रमणीय स्मृति अपना भावना का रंग से रंग के असरदार तरीका से पेश करेला।

आज का साहित्य से, चाहे उ कवनो भाषा के काहे ना होखे साहित्य के ई विधा खतम हो रहल बा। एकर कारण ई बा कि आज के आदमी वर्तमान में रहे के चाहता-एगो अंतहीन रोशनी में, नींद, सपना आ अंधरिया के भुला के। बीतल समय आ गुजरल आदमी आ घटना से ओकर लगाव नइखे। संस्मरण उहे लिख सकता जे अपना भीतर एक साथ अतीत आ वर्तमान के ढो सके।

भोजपुरी जंक्शन के संस्मरण अंक हर पाठक के अवसर देता कि उ वर्तमान में रहके अतीत के देख सके- कुछे देर खातिर दू कालखंड में जी सके। ई पत्रिका के सबसे बड़ उपलब्धि बा। एकरा खातिर हम मनोज भावुक सहित उ सब लोगन के साधुवाद कहतानी जेकरा अथक प्रयास ई अंक एह कलेवर में हमनी का सामने बा।

निरंजन प्रसाद श्रीवास्तव, वरिष्ठ साहित्यकार, मुजफ्फरपुर  

संस्मरण अंक अपना उद्देश्य में पूर्ण रूप से सफल बा

भोजपुरी जंक्शन के संस्मरण अंक देखलीं, पढ़ली आ विचरलीं। कवर पेज बहुते जोरदार आ आकर्षक बा। भोजपुरी में अक्सर समय बढ़ावे खातिर s के प्रयोग हमरा अनावश्यक बुझाला, उ त पाठक अपना हिसाब से समय निर्धारित क लेला। जइसे- “सोशल अड्डा प ” लिखल काफी बा, प के आगा s लिखल जरूरी नइखे। S से अंग्रेजी आ अंग्रेजियत के गंध आ रहल बा।

सम्पादकीय अपने आप में परिपूर्ण बा। ई बात खाली दू लाइन से स्पष्ट बा- अनुभव नया नया मिले भावुक हो रोज रोज, पर गीत ग़ज़ल में ढले कवनो कवनो बात।

श्री रवींद्र किशोर सिन्हा जी के लेख बिहारियन पर केंद्रित बा जब कि हकीकत ई बा कि कतहुँ कवनो आम नागरिक के चाहे जइसे मौत होखे शासन प्रशासन भा राजनेता लोगन के चुप्पी हमेशा देखे के मिलेला। श्री महेंद्र जी के लेख चुनौती बनल अवसर काफी प्रभावशाली बा। ई बात एकदम सांच बा कि कवनो कवनो अवसर जीवन भर एगो चुनौती बन के स्मृति पट अंकित रहेला। भावुक जी के लेख पढ़ के हमके अपने गाँव के इयाद परे लागल है बाकिर का करीं जबसे शहर अपना भइल आपन गाँव सपना भइल।

कुल मिला के भोजपुरी जंक्शन के ई संस्मरण अंक अपना उद्देश्य में पूर्ण रूप से सफल बा। भोजपुरी नभ में पथ प्रदर्शक का रूप में काम करत मील के पत्थर साबित होई। एह अंक के सम्पादक आ प्रकाशक के कोटि कोटि बधाई आ साधुवाद।

डॉ. भोला प्रसाद आग्नेय, वरिष्ठ साहित्यकार, बलिया

पत्रिका जोगा के रखे लायक बा

काल्ह से आज अभी तक ये अंक के बहुत ध्यान से पढनीं हँ। राउर सम्पादकीय बहुते प्रभावशाली बा। साहित्यकार सबके संस्मरण भी बहुत उत्तम आ रोचक बा। पत्रिका के सफल यात्रा के हमेशा कामना बा। सुंदर आवरण आ साज सज्जा भी बहुत आकर्षक बा। पत्रिका जोगा के रखे लायक बा। हार्दिक बधाई।

अखिलेश्वर मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार, बेतिया

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