ज्योत्स्ना प्रसाद
हमनी के पीढ़ियन से ई बात सुनत चलल आवतानी सन कि कवनों भी बड़ लड़ाई के मूल में- ज़र,जोरू आ ज़मीन एही तीनों चीज़न में से कवनों ना कवनों के प्रधानता रहेला। आजो कमोबेश ज़र आ ज़मीन ही युद्घ के मूल रूप से कारण रहेला। एकरा साथ ही समय के एह दौर में 'ज़र' के अर्थ में अगर हम तनि विस्तार करके देखीं त ओकरा में आज के परिस्थिति के अनुसार कुछ आउर बिन्दु भी बहुत आसानी से जोड़ल जा सकेला। जवना में हमरा हिसाब से परस्पर प्रतिस्पर्धी आ विरोधी देशन के आपन स्वार्थ, आपन व्यापार, आपन वर्चस्व, आपन अहंकार के हम बहुत आसानी से जोड़ सकेंनी।
अब बात रहल कभी युद्ध के कारण बनल 'जोरू' शब्द के। समय के एह दौर में कई देशन में गृहयुद्ध त होता, चाहे ओकर संभावना भी बनता। बाकिर देशी राज्यन के युग खत्म हो गइला से एकेगो देश में अपना अलग-अलग ध्वज के साथे आपन अलग-अलग अस्तित्व के एहसास करावत राजा लोगन के भी युग खत्म हो गइल बा। आज विश्व के ज्यादातर देशन में राजतंत्र के भी कब्र खोदा गइल बा। एह से 'जोरू' के वज़ह से कवनों दू देशन के बीच में लड़ाई के संभावना भी दूर-दूर तक लउकत नइखे। चूँकि एह काल-खण्ड में 'जोरू' कवनों भी युद्ध के कारण नइखे बनत। एह से ई भाव भी अब इतिहास-पुराण में ही सिमट के रह गइल बा।
अब चलीं अपना असली मुद्दा पर। यानी रूस-यूक्रेन युद्ध पर। यूक्रेन आ रूस दूनू ही देश पहिले सोवियत संघ के अंग रहे। सोवियत संघ के पूरा नाम रहे 'सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ' जेकरा के संक्षेप में USSR कहल जात रहे। 'सोवियत' शब्द श्रमिकन के परिषद के नाम से आइल बा आ लाल झंडा पर हथौड़ा आ दरांती प्रतीकात्मक रूप से देश के श्रमिकन के श्रम के प्रतिनिधित्व करेला।
कभी एह सोवियत संघ के दुनिया पर बहुत प्रभाव रहे। एकरा स्थापना के दशक के साथे अनेक देशन में महत्त्वपूर्ण सरकार उभरल। जवना में चीन, क्यूबा आ उत्तर कोरिया जइसन कई देशन में आजो अइसन सरकार मौजूद बा।
रूस USSR के सबसे प्रमुख गणराज्य रहे। ओकरा बाद के ओह महाद्वीप के दोसर बड़ देश रहे यूक्रेन। सोवियत संघ (USSR) विश्व के पहिला साम्यवादी देश रहे। एकर स्थापना रूस के ही एगो गृहयुद्ध के बाद भइल, जे सन् 1917- 1921 तक चलल। सोवियत संघ एक विशाल क्षेत्र के नियंत्रित कइलस आ शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के साथे प्रतिस्पर्धा भी कइलस। जवना कारण कई बार त ई बुझाव कि दुनिया अब एक परमाणु युद्ध के कगार पर आके खड़ा हो गइल बा।
ई बात अब जरूर बा कि सोवियत संघ के पतन के बाद से रूस में कम्युनिस्ट सरकार नइखे। हालाँकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सोवियत संघ के पतन के 20 वीं शताब्दी के सबसे बड़ा भू-राजनीतिक तबाही मानेलन।
यूक्रेन 1918-20 में स्वतंत्र रहे। बाकिर दूगो विश्व युद्ध के बीच के अवधि में पश्चिमी यूक्रेन के कुछ हिस्सा पर पोलैण्ड, रोमानिया आ चेकोस्लोवाकिया के अधिकार हो गइल। बाद में यूक्रेन, यूक्रेनी सोवियत समाजवादी के रूप में सोवियत संघ के हिस्सा बन गइल।
रूस के सीमा एक दर्जन से अधिक देशन से मिलेला, जवना में अनेक देश पहिले सोवियत संघ के ही हिस्सा रहे। बाकिर आज ऊ सब देश 'उत्तर अटलांटिक संधि संगठन' यानी नाटो के सदस्य बन गइल बा।
यूक्रेन के सीमा पश्चिम में यूरोपियन देशन से आ पूरब में रूस के साथे लागल बा। हालाँकि यूक्रेन सोवियत संघ के सदस्य रह चुकल बा आ आजो यूक्रेन के आबादी के करीब छट्ठा हिस्सा रूसी मूल के भइला के कारण यूक्रेन के रूस के साथे गहरा सामाजिक आ सांस्कृतिक जुड़ाव भी बा। एकरा साथ ही रूस सन् 19 94 में एगो समझौता पर हस्ताक्षर करके यूक्रेन के स्वतंत्रता आ संप्रभुता के सम्मान देबे पर आपन सहमति जता भी चुकल बा। बावजूद एकरा सन् 2014 में यूक्रेन के लोग रूस समर्थक अपना राष्ट्रपति के ओकरा पद से च्युत क देहलस। जवना के चलते रूस यूक्रेन से नाराज हो गइल आ ऊ दक्षिणी यूक्रेन के क्राइमिया प्रायद्वीप के अपना क़ब्ज़ा में ले लेहलस। एकरा साथ ही रूस यूक्रेन के अलगाववादीयन के आपन समर्थन भी देहलस। जवना के चलते ऊ लोग पूर्वी यूक्रेन के एगो बड़ा हिस्सा पर आपन क़ब्ज़ा क लेहलस। तब से रूस समर्थक विद्रोहियन आ यूक्रेन के सेना के बीच चलत लड़ाई में अबले 14 हज़ार से अधिक लोग मरा चुकल बा।
रूस यूक्रेन के क्राइमिया पर सन् 2014 में ई कहत क़ब्ज़ा क लेहलस कि ओह प्रायद्वीप पर रूस के ऐतिहासिक दावा रहल बा। काहेकि यूक्रेन सोवियत संघ के हिस्सा रह चुकल बा। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कहनाम बा कि चूँकि यूक्रेन के गठन ही कम्युनिस्ट रूस कइले रहे। एह से सन् 1991 में सोवियत संघ के विघटन के अर्थ ऐतिहासिक 'रूस' के टूटला जइसन ही भइल। हमरा कहे के तात्पर्य ई बा कि सोवियत संघ के अंग के रूस आजो अपना ही देश के अंग समझेला।
यूक्रेन के वर्तमान राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के झुकाव पश्चिमी देशन के ओर रहल ह। एह से रूस के अपना सुरक्षा खातिर चिंतित भइल वाजिब बा। रूस के ई लागता कि ओकरा सुरक्षा-संबंधी चिंता के पश्चिमी देश आ विशेष रूप से अमेरिका द्वारा नज़र अंदाज़ कइल जाता। संभवतः अमेरिका आ पश्चिमी देशन के भी ई बुझात रहल ह कि अब रूस ओतना शक्तिशाली नइखे कि ऊ नाटो के साथे अमेरिका के जब सहयोग रही तब ऊ कवनों तरह के कोई कड़ा विरोध कर पायी। एह से अमेरिका के सह पर जइसे नाटो सन् 1994 में एक-एक करके हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया, लातविया, लिथुवानिया जइसन देशन के धीरे-धीरे करके नाटो के सदस्य बना लेहलस। ओइसही यूक्रेन के भी नाटो में ऊ शामिल क ली।
अब जब कवनों तरह से यूक्रेन नाटो के सदस्य बन जाई तब नाटो बहुत आसानी से यूक्रेन के मदद से अपना सेना के रूस के मुहाने पर खड़ा क दी। एह तरह से नाटो के रूस पर आक्रमण कइल आसान हो जाई। ई सब सोच के रूस चिंतित बा। हालाँकि यूक्रेन के रूस के ई चिंता समझे के चाहीं। काहेकि कभी दूनू देश सोवियत संघ के हिस्सा भी रह चुकल बा। बाकिर यूक्रेन अमेरिका आ पश्चिमी देशन के बहकावा में आके रूस के ई चिंता ना समझ सकलस आ आज ओकर परिणाम भुगतत अपना पूरा देश के युद्ध के आग में झोंक देले बा।
रूस चाहता कि यूक्रेन नाटो के सदस्य ना बने। एकरे साथ ही ऊ कवनों यूरोपियन संस्था से भी ना जुड़े। नाटो के सेना सन् 1997 के पहिले के स्थित में लौट जाय आ पूरब में सेना के ना ही कवनों विस्तार होखो आ ना ही पूर्वी यूरोप में ओकर कोई सैन्य गतिविधि ही होखे। एकरा खातिर रूस क़ानून के पुख़्ता भरोसा चाहता।
फिलहाल नाटो के 30 देशन के सदस्यता बा। बाकिर ओकर नीति ह-"हर केहू खातिर दरवाज़ा खुला रखे के"। नाटो अपना एह नीति से पीछे हटे के तइयार नइखे। रूस-यूक्रेन युद्ध के हमरा अनुसार इहे असली कारण बा। काहेकि नाटो के एही नीति से यूक्रेन के आस रहे कि ऊ बहुत आसानी से नाटो के सदस्य बन जाई।
यूक्रेन के वर्तमान राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेस्की यूक्रेन के नाटो में शामिल करे खातिर बेचैन बाड़न। एह से ऊ यूक्रेन के नाटो में शामिल होखे खातिर एगो तय समय-सीमा आ संभावना स्पष्ट करे के माँग करत रहल बाड़ें। बाकिर जर्मनी के चांसलर द्वारा निकट भविष्य में एह तरह के संभावना से साफ इनकार कइल जात रहल बा।
यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेस्की के एह युद्ध के पहिले उनका अपना देश में भी ओतना लोकप्रियता ना रहे। बाकिर एह युद्ध के समय स्वाभाविक रूप से अपना देश से प्रेम रखे वाला लोगन के नज़र में उनकर महत्त्व बढ़ गइल बा। चूँकि ऊ यूक्रेन के कमाण्डर इन चीफ भी हउअन, एह से ओह दृष्टि से भी रूस-यूक्रेन युद्ध में उनकर काम सराहनीय रहल बा। ऊ एक ओर जहाँ अपना सेना के मोराल बढ़ावे में कामयाब होत दिखाई दे तारन उहईं दोसरा ओर अमेरिका आ नाटो से अपना तरह से मदद के गुहार भी लगावतारन।
24 फरवरी से रूस-यूक्रेन के बीच लड़ाई शुरू भइल। ऊ लड़ाई बा दस्तूर आज यानी 12 मार्च आ युद्ध के 17 वाँ दिन भी ज़ारी बा। एह दूनू देशन के बीच कई दौर के बातचीत भी भइल बाकिर कवनों ठोस नतीजा अभी ले ना निकल। कबो-कबो त हमरा ई बुझाता कि रूस-यूक्रेन के बीच जवन वार्ता जहाँ से शुरू भइल रहल ह ऊ वार्ता घुम फिर के ओही जगह पर जा पहुँचता। ह, ई बात जरूर कहल जा सकेला कि कई दौर के वार्ता के बाद भी जे ज़ेलेस्की के तेवर कड़ा लउकत रहल ह, ऊ अब तनिमनी नरम पड़ल बा। ऊ अब यूक्रेन के नाटो आ रूस के बीच तटस्थ रहे के बात भी करतारन।
यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेस्की नाटो के सदस्य देशन से भी बहुत खुश नइखन लउकत। काहेकि ऊ यूक्रेन के मदद जवना तरह से नाटो के सदस्य देशन से चाहत रहले ह ओह तरह से उनका नइखे मिलत। ऊ रूस खातिर नाटो के सदस्य देशन से 'नो फ्लाई जोन' के घोषणा चाहत रहले ह। बाकिर यूक्रेन खातिर कवनों देश रूस जइसन शक्तिशाली देश से दुश्मनी मोल लेबे के तइयार नइखे ।
जर्मनी ई घोषणा त कइये चुकल बा कि ऊ रूस से गैस, तेल के आयात पर रोक ना लगाई। बाकिर यूके रूस पर प्रतिबंध लगावे के घोषणा कइले बा। एह घोषणा के अर्थ हो गइल कि एह मद में ओकरा अपना बजट के आठ गुना खर्च बढ़ावे के पड़ी।
अमेरिका भी पहिले कहले रहे कि यूक्रेन के संप्रभुता सुरक्षित करे खातिर ऊ प्रतिबद्ध बा। बाकिर यूक्रेन पर आक्रमण भइला के बाद ऊ रूस पर प्रतिबंध लगावे, यूक्रेन तक हथियार पहुँचावे जइसन मदद ही करता। बाकिर यूक्रेन के मदद में आपन सेना नइखे उतारत। पोलैण्ड यूक्रेन के हथियार देबे के एवज़ में अमेरिका से सौदाबाजी करे के चाहता।
रूस-यूक्रेन युद्ध विश्व के ई बता देहले बा कि अपना देश के हर परिस्थिति से जूझे खातिर सबसे पहिले अपना देश के ही मजबूत आ आत्मनिर्भर बनावल जरूरी बा। दोसर जरूरी बात ई कि कवनों लड़ाई अपने बूते पर ही लड़े के चाहीं। दोसरा के भरोसा पर कवनों युद्ध ना लड़ले जा सकेला आ ना जीतले जा सकेला। एह बात के समझ अब यूक्रेन के भी हो गइल बा कि अभी ओकर हैसियत अइसन नइखे कि ऊ रूस जइसन महाशक्ति से युद्ध खुल के लड़ या जीत सके।
हमरा डर बा कि अपना ज़िद्द में आके ज़ेलेंस्की अपना हरा-भरा देश के खण्डहर में तबदील ना कर देस। वैसे रूस चाहित त ई युद्ध कबे समाप्त हो गइल रहित। बाकिर उहो अपना रणनीति के तहत यूक्रेन के खेला रहल बा। रूस के रणनीति के ई हिस्सा रहल बा कि ऊ पहिले चारो ओर से घेरेला तब ओकरा पर आपन चाँप चढ़ावेला। कीव के साथ आज ऊहे हो रहल बा। वैसे पुतिन के तरफ़ से ई बात निकल के आइल ह कि यूक्रेन के टार्गेट पूरा हो गइल। पुतिन के वक्तव्य बा कि उनका यूक्रेन के सत्ता बदले में रुचि नइखे। ऊ सिर्फ रूस के सुरक्षा के लेके चिन्तित बाड़न। बाकिर हमरा बुझाता कि युद्ध के आग अभी आउर धधकी। एकरा लपेट में कुछ आउर देश आई। बाकिर कब आ कइसे ई समय बतायी।
रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव