संपादक : मनोज भावुक
गांधी अंक से ‘हम भोजपुरिआ’ के श्री गणेश भइल। मन बड़ा खुश भइल। गांधी 150 पऽ भोजपुरी में महात्मा गांधी विशेषांक निकलल। एह बात के सगरो हाला बा। जोरदार स्वागत होता। मार फोन प फोन, मैसेज पऽ मैसेज आ चिट्ठी आवता तऽ मन आह्लादित बा।
30 जनवरी के गांधी जी के पुण्यतिथि पऽ पत्रिका निकलल। ओह दिन वसंत पंचमी भी रहे। विद्या के देवी सरस्वती के आशीर्वाद लेके आगे बढ़नी। अगिला अंक के तरफ।
प्रेम पर केंद्रित अंक
फरवरी के महीना। वसंत ऋतु। वैलेंटाइन डे। प्रेम के महीना। खुशी के महीना। अब ई बनावल बा। प्रेम आ खुशी के त कवनो महीना होला ना। बाकिर लोग कहेला कि इनका जीवन में वसंत बा भा इनका प वसंत चढ़ल बा चाहे युथ रोज़ डे, किश डे, फ्रेंडशिप डे मनावता तऽ एह सब के मतलब प्रेम अउर खुशी से हीं बा आ ई फरवरी में सर चढ़ के बोलेला। त हमहूं एह अंक में प्रेम अउर वसंत पर केंद्रित कुछ सामग्री परोस रहल बानी, प्रेम पर केंद्रित अपना एह गजल के साथ –
बात खुल के कहीं भइल बा का?
प्यार के रंग चढ़ गइल बा का?
रंग चेहरा के बा उड़ल काहे ?
चोर मन के धरा गइल बा का ?
हम त हर घात के भुला गइनी
रउरा मन में अभी मइल बा का?
आईं अबहूं रहे के मिल-जुल के
जिंदगी में अउर धइल बा का?
प्रेम करीं, प्रेम करीं, प्रेम करीं। प्रेम से तन में जवना हार्मोन के संचार होला, ओह से मन में आनंद के सरिता बहेला। मन खुश रहेला। ना त जरनियहपन आ रार बेसहला पऽ तऽ पितपिताइले रहेला। उखी-बिखी लेशले रहेला।
राग-द्वेष, वैमनस्य त अम्ल ह। जवना बर्तन में रहेला, ओकरे के खा जाला। अब उ बर्तन देह के होखे भा देश के।