जयंती विशेषः जन्म : 21 मार्च, 1916
मृत्यु : 21 अगस्त, 2006
लेखक : डॉ. सुनील कुमार पाठक
बिहार के सपूत बिस्मिल्लाह खां के जन्म बक्सर जिला के डुमरांव के पटवा टोली में भइल रहे। साहित्य, संगीत आउर कला के भरपूर सम्मान आ राज्याश्रय प्रदान करेवाला डुमरांव के महाराज बिस्मिल्लाह खां के परदादा जनाब पीरबक्श के बनारस से बोला के अपना इहां भरपूर आदर-भाव से सत्कार कइले रहनी। जनाब पीर बक्श के बेटा रसूल बक्श आ रसूल बक्श के बेटा पैगम्बर बक्श ऊर्फ बचई मियां रहनी (जेकर लाड़ला बिस्मिल्लाह खां ‘शहनाई के शहंशाह’ के नाम से पूरा दुनिया में मशहूर भइनी।)
बिस्मिल्लाह खां के तीन पीढ़ी डुमरांवे में रहल रहे। बिस्मिल्लाह जी जब से होश सम्हरनी, तब से भारतीय संगीत के सबसे प्राचीन आ लोकप्रिय वाद्ययंत्र शहनाई के तरफ उहां के झुकाव रहल। बाद में तऽ ई अनुराग एतना ले बढ़ गइल कि शहनाई आ बिस्मिल्लाह साहेब दूनू एक दोसरा के पर्याय हो गइले।
बिस्मिल्लाह साहेब के पिताजी पैगम्बरो साहेब के शहनाई-वादन के उस्ताद मानल जात रहे। सांच पूछल जाव तऽ ‘शहनाई’ बिस्मिल्लाह खां के विरासत में मिलल रहे उनकर दादा अउर परदादा भी शहनाई के उस्ताद रहनी। ना खाली ददहर के खानदान बलुक मामा विलायत हुसैन आ छोटका मामा अली बक्श साहेब से शहनाई-वादन के गुर बिस्मिल्लाह खां भरपूर सिखले रहनी। दूनू मामा लोग जब रियाज करे बइठे, तऽ बालक बिस्मिल्लाह बड़ा प्रेम से बइठ के उहां सबके सुनस-गुनस आ मोका पा के खुदो शहनाई के होठ से सटा लेस।
अपना बाबूजी के आपन प्रेरणा-स्रोत स्वीकारे वाला बिस्मिल्लाह खां जी अपना छोटका मामू अली बक्श साहेब से शहनाई-वादन के शिक्षा लेले रहनी। अपना ममहर बनारस में शहनाई के विधिवत सब गुर सीखेवाला बिस्मिल्लाह साहेब बहुत कमे उमिर में संगीत समारोहन के सिंगार बन गइल रहनी। ठुमरी, कजरी, चइती आ ना जाने केतना-केतना धुन में महारथ हासिल क के, उहां के हर महफिल के बादशाहियत हासिल कऽ लेबे में माहिर हो गइल रहनी। बचपने में ख्याल गायकी आ अउरो कइगो रागन पऽ उहां के बढि़या पकड़ बन गइल रहे।
शुरुआतिये दौर में ढेर नाम आ जश कमइला के बावजूदो उहां के विदेश-दौरा पर जाये के कवनो उत्सुकता ना रहत रहे। हवाई यात्रा से उहां के काफी घबरात रहनी। 1965 में लंदन जा के कार्यक्रम देवे के जब उहां के नेवता मिलल तऽ आपन यात्रा टाले के खेयाल से उहां के एगो शर्त रख दीहनी कि ‘हम तबे जायेब जब हमार सगरी समाजी लोग जाई।’ 1966 ई. में दोबारा नेवता आइल आ ई बतावल गइल कि सगरी शर्त माने खातिर आयोजक तइयार बाड़न, तब उहां के आपन मन-मिजाज हार-पाछ के बनवनी। उहां के सब समाजी संगे मक्का-मदीना घुमावल गइल आ फेरू उहां के एडिनबर्ग सबकरा साथे पहुंचनी। ओजवा के संगीत-समारोह में बिस्मिल्लाह खां के शहनाई-वादन के जादू सिर चढि़ के बोलल आ उहां के ओजवा के अखबारन के सुर्खी बन गइनी। बाद में खां साहेब जहाज से अमेरिको गइनी आ अपना प्रतिष्ठा के पताका लहरा के लवटनी। एक बेर अहस खुल गइला के बाद तऽ लगातार बिदेशन से उहां के बोलावा आवे लागल आ ओजवा जा के बिस्मिल्लाह खां भारतीय संगीत आ अपना ‘शहनाई-वादन’ के काफी लोकप्रिय बना दिहनी।
बिस्मिल्लाह जी वचन के पक्का आ ईमानदार आदमी रहनी। जेतना बड़ कलाकार ओतने बड़ आ सच्चा इंसान। एचएमवी कम्पनी के एगो अधिकारी श्री जीएन जोशी आपन एगो किताब -‘डाऊन मेलोडी लेन'(1984) में लिखलें बाड़न कि ‘मुम्बई में अप्रैल महीना में एगो बड़हन संगीत समारोह हर साल होत रहे। बिस्मिल्लाह जी ओकर उद्घाटन करत रहनी। ओही दौरान कम्पनी खातिर रिकॉर्डिंग करावे के हम निहोरा कइनी। कार्यक्रम शनिचर के शुरू होखे वाला रहे। हमनी के एक दिन पहिले शुक्रवार के रिकॉर्डिंग के दिन रोपनी जा। शुक्रवार के जुम्मा के नमाज के चलते उस्ताद बिस्मिल्लाह खां तय कइनी कि रिकॉर्डिंग सबेरे 8:30 बजे से होई। उहां के अपना वचन के मोताबिक सबेरे ठीक 8:15 बजे स्टूडियो पहुंच गइनी। आंख पर करिया चश्मा पेन्हले आइल रहनी। हम पूछनी कि करिया चश्मा काहे चढ़वले बानी? बोलनी -रियाज में तनिका देरी हो गइल रात। आंख गड़त बिया। एही से लगा लेले बानी। हम कहनी- ‘रउरा ना आवे के चाहत रहल हटे तब।’ उहां के जवाब प्रेरणादायी रहे-‘हम रउरा के वचन दे दिहले रहनी। हम ई ना सुने के चाहीले कि केहू कहो कि उस्ताद कहके ना अइले। वादाखिलाफी के आरोप हमरा से बर्दाश्त ना हो सकेला।’ बिस्मिल्लाह साहेब के अइसन विचार एह बेरा के ओह कलाकारन के माथा ठनकावे खातिर काफी बा जे करार ना निभावल अपना महानता के पैमाना मान लेत बा लोग।
बिस्मिल्लाह खां के भोजपुरी संस्कृति, भाषा आ भोजपुरिआ लोग से बड़ा लगाव रहे। भोजपुरी कजरी, पूरबी, ठुमरी आ अउरो कइगो धुन पऽ आधारित गीतन के पूरा दुनिया में उहां के बेहद लोकप्रिय बनवनी। भोजपुरी लोकगीतन आ संस्कार गीतन के शहनाई पऽ सुना के उहां के जन-मानस के खूब रिझवनी। हिन्दी-भोजपुरी फिल्मन में उहां के शहनाई-वादन सिने-जगत में खूब नाम कमइलस।
बिस्मिल्लाह खां के डुमरांव के पटवा टोली स्थित पैतृक निवास के ‘स्मारक’ के रूप में विकसित करे के दिशा में सरकार के ठोस कदम जल्दिये उठावे के चाहीं, ताकि उहां के स्मृति के सहेजल जा सके आ बिहार के एह सपूत के ईयाद में सरधा के फ़ूल हर साल चढ़ावल जा सके।
(लेखक के कई गो किताब छप चुकल बा, जवना में कविता का सर्वनाम कविता संग्रह 2- उमड़े निबन्ध मेघ निबंध संग्रह प्रमुख बा।)