राउर पाती

March 17, 2020
राउर पाती
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सामूहिकता के बोध करावेला ‘हम’

‘हम भोजपुरिआ’ के दमगर शुरुआत से मन बड़ा अगरा रहल बा। एह पत्रिका में सामग्री जुटावे से ले के सजावे-संवारे में रउरा अपना स्किल के भरपूर आ सफल प्रयोग कइले बानी। ई देखते बनत बा। पहिलके अंक महात्मा गांधी पऽ केन्द्रित कऽ के अतना सामग्री रउरा एकट्ठा कऽ देले बानी कि शोध संदर्भ में शोधार्थी लोग खातिर मददगार साबित होई। बाद के दुनो अंक जवन वसंत आ होली पऽ आइल बा, वासंतिक छटा आ फगुआ के रंग से सराबोर बा। रउरा संपादन कला के साधुवाद बा।

एगो बड़हन बात ई बा कि एह पत्रिका के नामकरण बड़ा सोच समझ के भइल बा।  ‘हम’ सामूहिकता के बोध करावेला। भोजपुरी इलाका समूह के ईकाई मानेला। उहां ‘मैं’ ना चले। जहां तक ‘भोजपुरिआ’ के सवाल बा, ऊ भोजपुरी के ध्वनि प्रकृति के हिसाब से बा। अइसे भोजपुरी आ भोजपुरिअन खातिर ‘भोजपुरिया’ आ ‘भोजपुरिहा’ दुनों के प्रचलन बा। बाकिर भोजपुरी में ‘य’ के परिवर्तन आ उच्चारण ‘ज’ होला।  एह से इहां ‘भोजपुरिया’ हिन्दीआइन हो जाला। जहां तक ‘भोजपुरिहा’ के सवाल बा, ओह में हेय भा उपेक्षा भाव बा। एह से ‘हम भोजपुरिआ’ नामकरण भोजपुरी के प्रकृति-प्रवृत्ति के समेटत सोगहग भाव में बा।

डॉ. ब्रज भूषण मिश्र

मुजफ्फरपुर, बिहार

भोजपुरी के प्रचार-प्रसार खातिर साधुवाद

हमरा बड़ा दुख बा कि हम पहिला अंक आइल त ओह समय  ना पढ़ सकनी, अब जाके पढ़नी ह, अउरी हमरा बड़ा गर्व बा कि हम उहां से बानी जहां (भितिहरवा, प. चंपारण) गांधी जी एक महीना रुक के इहां के लोगन के जागरूक कइनी, फिर इंहे से सत्याग्रह शुरू कइनी। संपादक जी, रउरा से एगो आग्रह बाटे कि वीर सावरकर जी के वीरता के बारे में भी लोग भ्रमित बा। बतावल जाव कि काला पानी के सजा फेर माफी के बाद बाहर आ के अंग्रेजन के खिलाफ आंदोलन कइल देश से गद्दारी ना होला। आ हमरा बड़ा खुशी बा कि ई पत्रिका संदीप द्विवेदी जी के कारण पढ़े के मिलल।

दोसरा अंक में,जल जीवन हरियाली के बारे में पढ़ के बहुत अच्छा लागल, आ संजोग देखी कि इहो जल जीवन हरियाली योजना के शुरुवातो हमरे इहां (नंदी-भौजी पोखरा) से नीतीश जी आ सुशील मोदी जी कइनी आ एहमें हमरो योगदान देवे के मौका मिलल।

मुन्ना चौबे

वाल्मीकिनगर, बिहार

जादा सही लागत बा भोजपुरिआ

‘आ’ चाहे ‘या’ नाम का अन्त में जोड़े के प्रथा बिदेशी प्रभाव से आइल बा। जइसे तुर्कमेनिस्तान के तुर्कमेनिया कहे के रिवाज या हिन्दुस्तान के इन्डिया कहे के प्रचलन। स्थान का अलावे व्यक्ति का नामो में या चाहे आ जोड़ल जाला जइसे आलिया या मारिया! बाकिर ई प्रथा संस्कृत से अनुमोदित नइखे। संस्कृत में शब्द अइसे ना बनऽ स। बाकिर भोजपुरी में एकर प्रयोग बहुत जादा बा, आ लागत बा कि कवनो बिदेशी भाषा का सान्निध्य में प्रथा पनपल बा जइसे अनन्दवा, देसवा, रजकुमरिया भा गोड़वा वगैरह! ई प्रथा एतना गहराई तक जा चुकल बा कि एकर उपेक्षा सम्भव नइखे।

जहां तक ‘या’ अउर ‘आ’ में से एगो अपनावे के सवाल बा त ओके भोजपुरी का वाचिक स्वरूप देख के समझल जा सकत बा। वाचिक प्रथा के अनुसार आ जादा सही लागत बा जइसे भोजपुरिआ! भोजपुरिहा भी सही बा लेकिन भोजपुरिया खटकत बा।

आनन्द सन्धिदूत

मीरजापुर, उत्तर प्रदेश

ऐतिहासिक अंक बनल बा समहुतांक

‘हम भोजपुरिआ’ के अब ले तीन गो दमदार अंक देखे के मिलल। समहुतांक डाक से पा के दिली खुशी भइल। बापू पऽ अब ले भोजपुरी साहित्य-संस्कृति के हलका में जवन यादगार काम भइल बा,ओकरा के एक जगह जुटा के आ ओह सभ के आकलन कऽ के उतजोग समहुतांक में बखूबी भइल बा, जवन अंक के ऐतिहासिक बनावत बा। एह खातिर दिली मुबारकबाद आ शुभकामना!

एगो बात कहल चाहब, ऊ ई कि सूची में लेखक के नाव ना दिहल कवनो स्वस्थ आ नीमन परिपाटी ना ह। ई-पत्रिका निकली, एहमें कवनो अचरज नइखे, बाकिर संगे-संगे मुद्रित अंको जरूर आवे के चाहीं। आदरणीय रवीन्द्र किशोर सिन्हा साहब समर्थ बानी, एह से उहां के अगुवाई में भोजपुरी आन्दोलन के गति देवे खातिर एह पत्रिका के मुद्रित रूप आइल जरूरी बा। उहां के मार्फत विज्ञापनों के कमी ना होखे पाई। एह से उहां के एह सुझाव पऽ जरूर गौर करे के चाहीं। उमेद बा, ई सिलसिला चलत रही।

भगवती प्रसाद द्विवेदी,

पटना, बिहार

 

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