लोक बनवले बा बाबू कुँवर सिंह के इतिहास पुरुष

April 18, 2020
संपादकीय
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संपादक- मनोज भावुक

कवनो चीज के कथा-कहानी के रूप में देखल आ ओकरा के भोगल दूनों दू गो बात ह। दूनों के मरम अलग होला।

अबहीं सउँसे विश्व में कोरोना महामारी के प्रकोप बा। भारत में भी लॉक डाउन चलsता। लोग दहशत में बा। घर में कैद बा। केहू के बाल-बच्चा कहीं फँसल बा त केहू के माई-बाप। डॉक्टर, पुलिस, पत्रकार जान-जोखिम में डाल के दिन रात सेवा में लागल बाड़े। ई दुख वर्तमान में भोगल जाता। अभी एकर पीड़ा इंटेंस बा। दस-बीस साल बाद, पचास साल बाद ई इतिहास हो जाई। कहानी हो जाई। डायनासोर युग के जुरासिक पार्क जइसन फिलिम हो जाई।

जइसे आजकल रोज हमनी के टीवी पर रामायण आ महाभारत देखत बानी जा। हमनी खातिर ई बस एगो कहानी बा, सीरियल बा। मजा ले तानी जा। मन बहलावsतानी जा। बाकिर एकरा के अगर रउरा सत्यकथा मानी त महसूस करीं ओह कष्ट के, ओह पीड़ा के जे रामायण के पात्र राम भोगलें, सीता भोगली, राजा दशरथ भोगलें भा लक्ष्मण जी के पत्नी उर्मिला भोगली भा महाभारत के पात्र पांडव भोगलें, कुंती भोगली। कहे के मतलब कि असली चीज महसूस कइल बा। ओह कालखंड में जाके अपना के ओह स्थिति में रख के महसूस कइल बा। तबे अंदर के इंसान ज्यादा समृद्ध, ज्यादा मानवीय होई।

ई अंक 1857 के गदर में बिहार के प्रतिनिधित्व करे वाला 80 बरिस के हीरो बाबू कुँवर सिंह के समर्पित बा, जेकरा बारे में प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार होम्स के भी लिखे के पड़ल कि युद्ध के समय कुँवर सिंह के उम्र अस्सी साल रहे, अगर उ जवान रहितन त अंग्रेजन के 1857 में ही भारत छोड़े के पड़ित।

ओह आजादी के संघर्ष कथा-कहानी भा इतिहास के रूप में देखला आ पढला के जरूरत नइखे। जानकारी से खाली ज्ञान बढ़ी। अंदर के आदमी ना जागी आ जबले अंदर के आदमी ना जागे, सब ज्ञान बेकार बा, छलावा बा। कवनो कविता, कहानी, सीरियल, फिलिम के भी इहे मकसद होला कि अंदर के आदमी जागे। केतना मुश्किल से, केतना संघर्ष से आजादी मिलल बा, एकरा के महसूस कइला के जरूरत बा। ई एहसास हमनी के आगे के खतरा से बचाई। शायद इतिहास के भी मकसद इहे होला।

हालांकि कई गो विद्वान लोग के मत बा कि इतिहासकार कुँवर सिंह के संगे न्याय नइखन कइले। उ त भला होखे लोक कवि, कथाकार आ लोक गायकन के जे उनका के कविता में, गीत में आ लोकगीत में अमर कइले बा। साँच कहीं त लोके कुँवर सिंह के बचवले बा। लोके कुँवर सिंह के इतिहास पुरुष बनवले बा। लोक में का-का कहल गइल बा, कइसे-कइसे कहल गइल बा वीर कुँवर के बारे में, ओकरे झलकी बा ई अंक। एह अंक में भोजपुरी साहित्य, लोकगीत आ काव्य में कुँवर सिंह के अलग-अलग रूप के दर्शन होता। उनका सम्पूर्ण नायकत्व के दर्शन होता। इतिहास के पन्ना से ना, उनका गोतिया-देयाद, गाँव-जवार के मुँहा-मुही जवन बात माउथ पब्लिसिटी से अब तक ले एक पीढ़ी से दोसरा पीढ़ी ले अलग-अलग विधा के रूप में लोक में पहुँचल बा, उ रउरा तक पहुँचावे के कोशिश बा।

हमनी किहाँ चइता, फगुआ, कजरी, बिरहा सब विधा में कुँवर सिंह बाड़न। हमनी के धड़कन में कुँवर सिंह अंकित बाड़न बाकिर पता ना काहे भारतीय इतिहास में धड़कन के उ आवाज ठीक से अंकित आज ले ना भइल। सीरियल-सिनेमा के भी विषय ना बनले कुँवर सिंह जबकि उनका कहानी में त युद्ध भी बा, प्रेम भी। मतलब सारा फिल्मी एलिमेंट जइसे कि स्टोरी, एक्शन, रोमांस, इमोशन सब कुछ बा तबो एह दिशा में कवनो प्रयास ना भइल अचरज के बात बा। खैर, हम भोजपुरिआ के प्रयास बा कि अनसंग हीरोज पर एगो विशेषांक निकलो। कुँवर सिंह त हमनी के महानायके बाड़न …हमनी के प्रेरणा स्रोत। हमनी के रीयल हीरो।

एह रीयल हीरो के शत-शत नमन।

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