चीन के टेंटुआ दबावे के सही वक्त

June 4, 2020
सुनीं सभे
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  लेखक : आर. के. सिन्हा

दुनिया भर के कोविड-19 जइसन भयानक संक्रमण देवेवाला चीन तनिको बाज नइखे आवत। उ अब भारत से टकराये के मूड में लागत बा। ओकर सेना लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल ए सी) पर पैंगोंगतसो (झील) अउर गालवन घाटी में आपन सैनिक के संख्या अउर गतिविधि बढ़ा देले बा। बाकिर अब भारत भी पूरी तरह से तइयार बा, चीन के गला में अँगूठा डाले खातिर। चीन के तबियत से क्लास लेवे खातिर भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवाने लद्दाख में 14 कोर के मुख्यालय लेह के दौरा कइले अउर चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सुरक्षा बल के तैनाती के बारे में सेना के अफसर लोग से गहन चर्चा कइले। चीन के नेतृत्व के शायद गलतफहमी हो गइल बा कि उनकर देश अजेय ह। उ अजेय अउर अतिशक्तिशाली रहित त फिर उ हांगकांग में लंबा समय से चलत आंदोलन के दबा चुकल रहित। उ अजेय रहित त अब तक ताइवान के खा गइल रहित। चीन के इरादा शुरू से ही विस्तारवादी रहल बा। इहे ओकर विदेश नीति के मूल आधार ह। बाकिर अबकी बेर मुकाबला भारत से होखत बा जवन अब 1962 वाला भारत नइखे रह गइल। बुद्ध, महावीर अउर गाँधी के ई देश संकट के घड़ी में एकजुट हो के ओकरा से लड़ी। हमनी के अहिंसा पसंद बा, बाकिर हमनी के नायकन में कर्ण अउर अर्जुन भी बाड़े।

भारत से टकरइला के अर्थ बा चीन के आपन अर्थव्यवस्था चौउपट होखे के नेवता दिहल। भारत चीन के बीच 100 अरब डॉलर के व्यापार होला। एह से चीन बहुत लाभ के स्थिति में बा। उ भारत से जेतना माल आयात करेला ओह से ढेर बेसी भारत के निर्यात करेला। उ आपन हरकत ना बंद कइल त भारत चीन से आपन आयात भारी मात्रा में घटा सकत बा। अइसहूं भारत में चीन के खिलाफ जमीनी स्तर पर पूरा माहौल बन चुकल बा। औसत भारतीय आदमी चीन से 1962 से ही नफरत करेला। अब कोरोना महामारी के बाद अउर ज्यादा करे लागल बा।

बहरहाल, सेना प्रमुख के चीन से लागल सीमा पर दौरा से साफ संकेत बा कि दुनो देश के बीच  तनाव बढ़ल जाता। सरहद पर दुनो ओर के हज़ारो सैनिक एक दूसरा के आमने सामने जमल बाड़े। चीन के तकलीफ तब शुरू भइल जब कुछ समय पहिले भारत के फौज सरहद के नजदीक कुछ इलाका में निर्माण कार्य शुरू कइलस। भारत त अपना सीमा के अंदर ही काम करत रहे बाकिर चीन के सैनिक विरोध कइले सन। चीन के एहू खातिर तकलीफ भइल बा काहे कि अब भारत चीन के नाजायज गतिविधि अउर हरकत के सहन नइखे करत। अब भारत के पहिले  जइसन रक्षात्मक रवय्या नइखे रह गइल। इहे बात चीनी नेतृत्व के हैरान करत बा।

एही बीच में, उत्तरी सिक्किम में भी 9 मई के भारत अउर चीनी सैनिकन के बीच झड़प भइल रहे जेकरा में कई गो चीनी सैनिक घायल भइल रहन। साँच पूछी त, चीन के असली औकात हमनी के डोकलाम विवाद के बेरा ही बढ़िया से बता देले रहीं जा। तब हमनी के बहादुर सैनिक लोग ओकनी के एकदम खदेड़ दिहले रहे। भारत से एह तरह के आक्रामकता के चीन के कबो उमीद ना रहे। तबे से चीन कइसहूं आपन अपमान के बदला भारत से लेवे के फिराक में रहेला। अब ओकरा समझ जाए के चाहीं कि एह बार भी नतीजा डोकलाम वाला चाहे ओकरो से सख्त होई। भारत सरकार भी साफ कर देले बिया कि सीमा पर सैनिक लोग जे भी करत बा, उ लोग आपन इलाका में करत बा। ओह पर आपत्ति जतावे के केहू के हक नइखे। अब समय के मांग बा कि भारत अक्साई चीन के 86000 किलोमीटर के क्षेत्र के चीन के कब्ज़ा से छोड़ावे। चीन अउर भारत के बीच एगो लंबा सीमा बा। ई सीमा हिमालय पर्वत से सटल बा जवन म्यांमार तक फइलल बा। एह सीमा पर चीन बार-बार अतिक्रमण करे के कोशिश करत रहेला। हालांकि हमनी के बहादुर सैनिक लोग उनका लोग के जम के कूटबो करेला।

खैर, चीन के ताजा विवाद के आलोक में ब्रिक्स के भी बात होखे के चाहीं। ब्रिक्स पाँच गो उभरत अर्थव्यवस्था के समूह ह। एह में भारत, चीन के साथ-साथ ब्राज़ील, रूस अउर दक्षिण अफ्रीका भी बा। ब्रिक्स देशन में विश्व के 43 % आबादी रहेला अउर विश्व के सकल घरेलू उत्पाद के 30 % एही पाँच देशन में बा। विश्व व्यापार में एह देशन के 17% हिस्सेदारी बा। कहे के त सब ब्रिक्स देश आपस में व्यापार, स्वास्थ्य, विज्ञान अउर प्रौद्योगिकी, शिक्षा, कृषि, संचार, श्रम जइसन मामला पर सहयोग करे के वादा करेलें बाकिर लागत बा कि ई वादा खाली कागजे पर होखेला। ई लोग खाली साल भर में एगो शिखर सम्मेलन कर लेवेला लोग। जब ब्रिक्स समूह के कवनो नालायक सदस्य गड़बड़ करेला त बाकी लोग चुप हो जाला। का एह समय में रूस, ब्राज़ील अउर दक्षिण अफ्रीका के चीन के कसे के ना चाहीं? का बाकी सदस्य लोग के एह दू देश के विवाद सुलझावे खातिर आगे ना आवे के चाहीं? बाकिर हैरानी के बात बा कि फिलहाल कवनो देश अइसन कदम नइखे उठवले। त फिर एह तरह के निकम्मा अउर बेकार मंच के रहे के का लाभ बा? राजधानी दिल्ली के डिप्लोमेटिक एरिया चाणक्यपुरी में ब्रिक्स गार्डन के आगे से गुजरत ई सवाल जरूर दिमाग में कौंधेला कि का ब्रिक्स के ले के सारा जिम्मेदारी भारत के ही बा? सड़क से गुजरब त सौ से ज्यादा किसिम-किसिम के गुलाब के महक से रउआ खुश जरूर होखब। बाकिर ओही समय ढेर सवाल भी मन के परेशान करत रही। भारत के कूटनीतिज्ञ लोग के चीन के साथ आपन भावी संबंध के साथ-साथ ब्रिक्स के भूमिका पर भी देर-सबेर विचार करहीं के पड़ी।

एही बीच में भारत के नेपाल के साथ संबंध के लेके भी आपन कदम ध्यान से उठावे के होखी। नेपाल से भारत के रिश्ता बेटी रोटी से भी बढ़ के खून के रिश्ता बा। अनगिनत गोरखा सिपाही भारत खातिर आपन प्राण के बलिदान देले बाड़ें। दुनो देश के बीच सीमा विवाद के शांतिपूर्वक हल होखे चाहीं। काला पानी इलाका के अलावे एगो अउर इलाका विवादास्पद बा दुनो देश के बीच – सुस्ता वाला इलाका, जवन गोरखपुर से सटल बा। ओकर देखरेख सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) करेला।

भारत के कूटनीति से ही काम लेवे के पड़ी। हमनी के नेपाल के चीन अउर पाकिस्तान के श्रेणी में राखे के भूल ना करे के चाहीं। हालाँकि कुछ अति उत्साही लोग कहत बा कि नेपाल के मजा चिखा देवे के चाहीं। ई गलत सोच बा। जब हमनी के बांग्लादेश के साथे सीमा विवाद हल कर सकत बानी जा, त नेपाल के साथे काहे ना। भारत के कवनो स्थिति में नेपाल के साथ संबंध सामान्य बनावहीं के पड़ी। हालाँकि चीन आजकल नेपाल के लगातार भड़कावत बा। ई बात अलग बा कि नेपाल के जनता भारत के दिल से प्रेम अउर आदर करेला। एह घड़ी हमनी के चीन के कसे के रणनीति बना लेवे के चाहीं।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार अउर पूर्व सांसद हईं ।)

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