रेघरिआवे जोग बेजोड़ अंक बा
‘हम भोजपुरिआ’ के विशेषांकन के सिलसिला में इहो एगो रेघरिआवे जोग बेजोड़ अंक बा, जवना के हर पन्ना पर राउर संपादकीय दम-खम आ मेहनत ऐनक लेखा झलकत बा। दिल से मुबारकबाद!
भगवती प्रसाद द्विवेदी, वरिष्ठ साहित्यकार, पटना
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अपनी माटी की खुशबू से सराबोर पत्रिका
भोजपुरी साहित्य की दुनिया में आदरणीय रविन्द्र किशोर सिन्हा जी के मार्गदर्शन व आपके संपादकत्व में हम भोजपुरिआ पत्रिका रेगिस्तान में नखलिस्तान की तरह है… बहुत दिनों से इस तरह की एक अपनी माटी की खुशबू से सराबोर पत्रिका की जरुरत महसूस की जा रही थी। बहुत बधाई……..
राजेश कुमार, शिक्षक, एकमा हाई स्कूल, सारण
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‘’ लॉकडाउन में माई ‘’ एह अंक के परान बा
“हम भोजपुरिया” के कोरोना विशेषांक ( भाग -2) बहुत मायने में एगो शानदार अउर विशिष्ट अंक बा। एह महामारी के सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, आर्थिक हर तरह के पहलू पर सटीक अउर सुव्यवस्थित बात करे वाला अंक। बाकिर मनोज भावुक सर के लिखल आलेख “लॉकडाउन में माई ” एह अंक के परान बा। हम त ना जाने केतना बेर पढ़नी अउर रोअनी। उहाँ के जवन तरीका से माई के बखान कइनीं लागल कि सारा दृश्य नाचे लागल आँखिन के सामने। असल में उ माई खाली भावुक सर के माई ना हई, उ लगभग हर पूर्वांचली बेटा के माई हई। एगो बेटा के आपन माई के प्रति श्रद्धा अउर एगो माई के आपन बेटा के प्रति ममता अउर चिंता फिकिर के अइसन वर्णन बा जइसे बीतल दिन के हर क्षण नदी के धार अइसन बहत होखे। पढ़े वाला के मन करत बा कि ओह धार में कूद के बह जाईं बाकिर एतना सुंदर बा उ प्रवाह कि पाठक वर्तमान के किनारा पर बइठ के एकटक देखत रह जाता।
बढ़त उमिर अउर घटत शारीरिक क्षमता के साथ माई अपने आप के कइसे अभ्यस्त करे के कोशिश करत बाड़ी, एह ट्रांजिशन के एतना बखूबी वर्णन बा कि आलेख में कभी ठहराव महसूस नइखे होत । लॉकडाउन माई खातिर कवनो विशेष घटना नइखे, ई त रूटीन ह उनका जीवन के। बाकिर उ एह के लेके सजग अउर उदार बाड़ी। उ एह के कबो थोपल नइखी चाहत आपन बेटी-पतोह पर। एगो अउर खास बात रहे एह आलेख के कि बहुत अइसन शब्द जे माई के इयाद अइसन दिल में लुकाइल रहे, उ सामने आ गइल।
अभिषेक वत्स, युवा लेखक, गोपालगंज
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करेजा काढ़ि के माई चिन्हवावल गइल बाड़ी
खोलत सभ देखि गइनीं। बाकिर नजर टिकल “लॉकडाउन में माई ” पर आ जवने सुरू भइनीं आकि अँटक गइनीं। मन लोरा गइल। करेजा काढ़ि के माई चिन्हवावल गइल बाड़ी। सङहीं फोटो के क्रमवार से घटना के चलचित्र बने लागल। बहुत सुंदर सम्हारओ भइल बा।
बहुत बढियाँ। सरसती बनवले रहसु।
सौरभ पांडेय, वरिष्ठ साहित्यकार, प्रयागराज
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एकसुरिए पढ़ गइनी
लॉकडाउन में माई ….एकसुरिए पढ़ गइनी भाई। बात त दमगर बड़ले बा, बान्ह के राखे वाला बा, जवन भाषा बा ऊहो भोजपुरी गद्य के नमूना बा। बधाई।
प्रकाश उदय, एसोसिएट प्रोफेसर, श्री बलदेव पीजी कॉलेज, बड़ागाँव, वाराणसी
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भाव के एकरा से सुन्दर प्रक्षेपण
अत्यंत सुन्दर लेखन। भाव के एकरा से सुन्दर प्रक्षेपण अउर का होई। माई त सभे के होखेले आ एके अइसन ओकर अपना संतान जवन ओकर आपन ही विस्तार (extension) हउए, से जुड़ाव होखेला लेकिन ओकर संतान त नाल कटला के बाद अलग हो जाला। ऊ एह माई से कतना जुड़ल बा, इहे माई के सौभाग्य या दुर्भाग्य होखेला। जे माई के समझ लेवे ओकर जीवन त धन्य बड़ले बा, ऊ समाज खातिर भी रत्न बन जाला। बड़ सुख देनी हमरा के रउआ। हम त ओह अभागा मे से हईं कि तीन दिन लगातार बइठ के दुर्गा से अपना माई के मृत्यु प्रदान करे के प्रार्थना कइनी तब हमार कठजीव माई मूवल रहे। ओकरा सीवियर ब्रेन हैमरेज भइल रहे आ कौमा मे चल गइल रहे।
नवल किशोर ओझा, झरिया
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