लेखक : आर. के. सिन्हा
एह विस्मयादिबोधक समय में जबकि सउँसे दुनिया अपना-अपना देशवासियन के बचावे में लागल बा, देश के भीतर कई तरह के जोन के सीमा बनावल बा, कई तरह के प्रतिबंध लगाके एगो महामारी के विरुद्ध लड़ाई चलsता … ओही समय एह महामारी के फइलावे वाला चीन के द्वारा भारत के सीमा के अतिक्रमण कर के युद्ध के नेवता दिहल, चीन के विस्तारवादी अउर संवेदनहीन रवय्या के सबसे पुख्ता सबूत बा। चीन के विदेश नीति शुरु से ही दमनकारी रहल बा। इहाँ ‘शुरु’ से मतलब कम्युनिस्ट पार्टी के चीन सत्ता आइल से बा। भारत के चीन के प्रति हमेशा से मित्रवत व्यवहार रहल बा। हालाँकि चीन भारत के एह व्यवहार के कबो लेहाज़ ना रखलस, उ अलग बात बा। एही के परिणाम रहे 1962 के युद्ध, जवना में चीन एक हाथ में गुलाब त दूसरा हाथ में खंजर लेके भारत के पीठ में भोंक देलस। ओह युद्ध में भारत के सेना अउर जमीन दुनो के भारी क्षति भइल। ओकरा बाद से बहुत बेर दुनो देश के फौज आमने-सामने भइल बा। बाकिर जे अंतिम लड़ाई जवना में भारतीय सैनिक के जान गइल होखे उ 1975 में भइल रहे जवना में आसाम राइफल्स के चार गो जवान शहीद भइल रहलन।
लेकिन 45 साल बाद गलवान के घाटी में जवन भिड़ंत भइल ओह में बिहार रेजिमेंट के 20 गो जवान शहीद भइलें। बाकिर भारत के जवान अकेले ना मरेला, कम से कम दू जाना के तS ले के मरबे करेला… आ सरकारी रिपोर्ट के अनुसार चीन के 43 गो जवान ढेर हो गइल लोग। जहाँ एक ओर अब नया पर नेपाल भी चीन के कहला में आके भारत के आँख देखावत बा, उंहे दूसर ओर पाकिस्तान मानत नइखे आ कश्मीर में लगातार सेना के ऑपरेशन जारी बा। एह सब के बीच भारत के आम जनता में चीन के प्रति रोष बढ़ल जाता अउर लगातार चीनी सामान के बहिष्कार होता। एह रोष के धेयान में राख के सरकार 59 गो चायनीज मोबाइल एप्लीकेशन के बैन कर देलस। सरकार के एह फैसला के जोरदार स्वागत होखत बा। सरकार लगातार ई सुनिश्चित करत बिया कि भारत के एक इंच जमीन भी दुश्मन के कब्ज़ा में मत होखे। दुश्मन यानी कि ड्रैगन ना मानी त का होई ओकरा छाती प तिरंगा लहरावल जाई।
एह कठिन समय में हमनी के अपना सरकार के साथे खड़ा रहल ही देशहित में बा। काहे कि देश के सीमा सुरक्षित रही, देश सुरक्षित रही तबे कवनो राजनीतिक पार्टी या राजनीतिक विचारधारा खातिर जगह रही।
प्रणाम।
मनोज भावुक