इहो अंक बहुते दमदार आ असरदार बा
‘हम भोजपुरिआ’ के टटका अंक मिलल। हर अंक की तरे इहो अंक बहुते दमदार आ असरदार बा। अपने माटी के मदिर गंध आ प्रासंगिकता के चटक रंग से सरोबार हर कलम के धार आ तेवर बेजोड़ बा। संपादकीय ‘जिंदगी जंग ह,बोझ ना’ निराशा आ हताशा के अन्हार में हेराइल-अफनाइल मन के जीये खातिर खुद नया सूरज गढ़े के ईंधन देत बा। विश्व-पटल प भोजपुरी पत्रकारिता के स्थापित आ आलोकित करे के एह होनहार-जवान प्रयास के अनघा बधाई आ शुभकामना। …. आलेख से निम्मन आ मनमोहन त ओकर प्रस्तुति आ प्रकाशन बा, बहुत-बहुत आभार।
अनिरुद्ध त्रिपाठी‘अशेष‘, वरिष्ठ साहित्यकार, जमशेदपुर
जिनगी के जिजीविषा के बहुते नीक ढंग से समझवले बानी
आदरणीय संपादक जी,
रउआ ‘हम भोजपुरिआ ‘ के संपादकीय ‘जिंदगी जंग ह, बोझ ना……….’ में जिनगी के संघर्ष आउर घोर निराशा के बीच जिनगी के जिजीविषा के बहुते नीक ढंग से समझवले बानी। विशलेषण तथ्यपरक के साथे रोचक भी बा। जिनगी के झरना सुःख आउर दुःख के बीच बहत रहेला। ( ‘ जीवन का झरना’ — आरसी प्रसाद सिंह) जब उषा के किरन भोर में धरती पर पड़ेला त हमनी के रात के कुच-कुच अन्हरीया के भुला जाइले। जब सावन के बयार बहेला त हमनी के पछुआ के सुखावल ओठ के भुला जाइले। जब वसंत के बहार आवेला त हमनी के पतझड़ के ठूंठ पेड़ के भुला जाइले। जिनगी में जब दुःख आवेला त ऊ जिनगी के चमक के बढ़ावेला, सोना बनावेला। एह से जिनगी टूटे के ना चाहीं, जिनगी जूटे के चाहीं ।
राउर गजल रोचक होला। राउर गध भी कम रोचक नइखे। लोकप्रिय साहित्यकार भगवत प्रसाद द्विवेदी जी के भोजपुरी के गौरव स्तंभ में भोजपुरी के धरोहर डॉ. विवेकी राय पर आलेख दमदार बा ।
डॉ. सत्येन्द्र प्रसाद सिंह, हरिराम कॉलेज, मैरवा, सिवान
इहो अंक बेजोड़ बा
इहो अंक बेजोड़ बा जी। पूरा पढ़नी हँ। सब आलेखवे मनगर बा। ज्ञानवर्धक बा। संजो के रखे लायक बा। कोरोना कवितावली त लोकप्रिय हो गइल बा। सभका इन्तजार रहेला। राउर सम्पादकीय बहुत ही सुंदर बा। समसामयिक, अभी अभी के समय के छुवत। जे भी पढ़ी ओकर मन जरूर मजबूत हो जाई। बधाई लीं।
अखिलेश्वर मिश्रा, कवि, बेतिया, बिहार
भोजपुरी के फैलाव आ विस्तार में मददगार ‘हम भोजपुरिया’
हम भोजपुरिया के टटका अंक ( 15-30 जून ) पढ़ के अतना मन में खुशी लागल कि भोजपुरी भाषा के स्तर कहीं से केहू से कम नइखे। ‘ भावुक अब बाटे कहाँ पहिले जस हालात, हमरा उनका होत बा, बस बाते भर बात‘ मनोज जी के ई लाईन के अर्थ मानी त बहुत गहिरा बा। आजु आपस के परेम आ मनवा के मितवा के अभाव के प्रभाव ही कहल जाव कि नौछेरिहा लोग प्रसिद्धि के पुताली पर पहुँचला के वावजूद फँसरी लगा लेता। लेकिन चमगादुर चीन के फइलावल कोरोना में सोशल दूरियो जरूरी बा। ई दूरी देह से होखे पर एह ओट मे मनवा में कवनो खोट ठीक ना कहाई।
मनोज भावुक जी के फिलिम मे भोजपुरी के प्रवेश के गाथा रोचकता से भरपूर लागल। भगवती जी के लेख डॉ विवेकी राय जी के बारे में पढ़ के मन एतना प्रभावित भइल कि हम खोज के उनके ‘ सोनामाटी’ एक संसिये आधा पढ़ गइनी। कुल मिला के ई एगो संग्रहणीय अंक बा। पत्रिका निश्चित रूप से भोजपुरी के फैलाव आ विस्तार में मददगार होई।
सूर्येन्दु मिश्र, शिक्षक, सिवान, बिहार