चिठ्ठियो भइल राममय

August 18, 2020
राउर पाती
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सेवा में,
संपादक, ‘हम भोजपुरिआ’
नई दिल्ली

महाशय,

राउर चितचोरिनी ई-मेल पत्रिका ‘हम भोजपुरिआ अपने देह-आत्मा के सौंदर्य-प्रभाव से अर्थात् अपने जादूई कलेवर आ ओकरे भीतर मौजूद विद्वान कवि-लेखकजन के खोजपरक चिंतन-मनन आ ग्यान-बिग्यान से भरल-पूरल निबंध-आलेख, गीत-कविता आदि के सुघराई के दिव्य अंजोर से हमके जबरन आपन नियमित पाठक बना लेले बिया।

मन एकरा के देखते हर अंक विशेष पर प्रतिक्रिया देवे खातिर हुरपेटे आ उदबेगे लागेला, बाकिर मायावी गिरिह-जंजाल कलम के लाचार बना देला। तब्बो ”लोक में राम” केंद्रित अंक-5 आ अंक-12, एह लाचारी के पोढ़-बरियार रसरी-बरही तूरि-तारिके आखिर आजु ओही कलम के लिखहू खातिर बेबस कर दिहले बा।

”लोक में राम” केंद्रित ई दूनों अंक कुशल-दक्ष संपादक के हाथ के स्पर्श पाके धरोहर अंक हो गइल बानें सं। अंक-5 के “कोरोना काल में रामायण क्रांति” नामक संपादकीय के अंतर्गत शास्त्र आ लोक-मन में समान रूप से रचल-बसल राम के चरित्र के अत्यंत सूक्ष्मता में व्यापकता के साथ उपस्थित कइल गइल बा। कोरोना जइसन छुतिहा आ विनाशकारी महामारी से बचे-बचावे में राम के उपयोगिता के मात्र दू-चार शब्दन में व्यक्त करिके  प्रासंगिक बना दिहल गइल बा। सीरियल-सिनेमा सहित लोक-जीवन के आचार-व्यवहार, रहन-सहन, जीवन-शैली, गणना-गणित आ जन्म से लेके मृत्यु तक के संस्कारन आ ओसे जुड़ल लोक-गीतन यानी कि ‘सोहर’ से लेके ‘राम-नाम सत्य’ तक में, मजल-कुशल संपादक द्वारा राम के विलक्षण मौजूदगी के  जवन सूक्ष्म अनुभूति करावल गइल बा, ओकरिये विराट सौंदर्य के प्रत्यक्षबोध कलमकारन अउर चित्रकारन के विभिन्न रूप-रंग आ रस-गंध से युक्त रचनन में पत्रिका के भीतर-बाहर ले हो रहल बा।

ई दूनों अंक आदमी के आंखि खोल देत बाड़न सं। आंखि माने भीतर के आंखि, यानी कि प्रज्ञाचक्षु, जवन मुंनाइल बा। ई खुल जाला, त जीवन-जगत के सगरो भेद-रहस्य खुल जाला, आदमी जिनिगी के असली अर्थ-प्रयोजन समझ-बूझ जाला आ जिये के सही लूर-सहूर पा जाला। ई प्रज्ञाचक्षु कइसे खुली, एकर रहस्य संपादक के शब्द-त्रयी “गणना-गणित में राम” के भीतर छिपल बा। आलेख “राम नाम के महिमा” में मंजूश्री जी एही शब्द-त्रयी के खरिहान के राशि तउलवला के परतोख देत तनीं विस्तार से उपस्थित कइले बानीं-“हमनी के गिनती राम से शुरू होला—रामे राम, दूई राम दू, तीने राम तीन–।” हमरे इहां पूर्वांचल के कुछ इलाका में गिनती के शुरुआत “रामे हऽ राम” के रूप में होला। एकराके हम भोजपुरी के ”अद्वैतवाद” कहेलीं। “रामे हऽ राम” से इहां अभिप्राय ई बा कि जे तउलत बा, ऊहो रामे हऽ, जे तउलवावत बा, ऊहो रामे हऽ, जे कुछ तउलल जा रहल बा, ऊहो रामे हऽ, आ जवने गिनती-गणना भा तराजू-पलड़ा से तउलला के काम-काज हो रहल बा, ऊहो रामे हऽ। माने कि राम के अलावा इहां दूसर कवनो चीज के अस्तित्व नइखे। ई “अदूइ” के भावे आप्त-चिंतन के सार हवे।इहे वैदिक-साहित्य-संस्कृति आ लोक-साहित्य- संस्कृति में तरह-तरह से फुलात-फरत रहल बा।   इहे हमनी के जीवन-दर्शन हवे। इहे भारत के लोकमंगलकारिणी ऋषि-प्रज्ञा हवे, विवेक आ समझदारी के दिव्य ऊर्जा हवे। इहे प्रज्ञा ‘लोकतंत्र’ आ ‘रामराज्य’ के आत्मा हवे, जवना के बनवारी जी “हम भोजपुरिआ” के अंक-12 के “राम राज्य के आदर्श” नामक आलेख के अंतर्गत विभिन्न संदर्भन के आलोक में गंभीरतापूर्वक समुझावे-बुझावे के
सफल प्रयास कइले बानीं। एकरा के त्यागि के ‘लोकतंत्र’ आ ‘रामराज्य’ के कल्पना नइखे कइल जा सकत। भारत के इहे प्रज्ञा सगरो सृष्टि आ विश्व-मानव खातिर विध्वंसकारी बन चुकल आदमी के   भोगवादी, साम्राज्यवादी आ विस्तारवादी सोच आ  दुर्नीति से मुक्ति दे सकेले।

एह अंक में आदमी के आंखि खोलेवाला एक-दू सूत्र अउरो बाड़न सं, जवना के उल्लेख जरूरी बा।  अपने इहां हर बाप राम अइसन बेटा चाहेला। आ ई असंभवो नइखे, संभव बा। बाकिर ई खाली-भर ‘काम-संबध’ से संभव नइखे। ‘काम-संबंध’ से प्राकृतिक विधान के तहत संतान त पैदा हो सकेले,  जइसे अउर जीव-जन्तु से पैदा होले, लेकिन राम अइसन बेटा पैदा ना होई। इहां इहो ध्यान में राखल जरूरी बा कि राम माने राम। राम अइसन रामे हो सकेलें,दूसर ना। एहीलिए पुत्र-प्राप्ति के तपस्या पूरा भइले के बाद जब महाराज मनु वर मांगत खां कहले रहें-“चाहउं तुम्हहि समान सुत” त उनके इष्टदेव के रूप में भगवान कहले रहें-“आपु
सरिस खोजौं कहं जाई।नृप तव तनय होब मैं आई।” बेटा के रूप में राम के पावे खातिर मनु नियर कठिन तप अनिवार्य शर्त बा। उत्तम पुत्र-प्राप्ति खातिर सोलह संस्कारन में गर्भाधान-संस्कार आ ओही से जुड़ल पुंसवन संस्कार अउर सीमन्तोन्नयन संस्कार
अपेक्षित बा,जवने के संपादन खातिर खास-तिथि नक्षत्र जरूरी बा। “भोजपुरी लोकगीतन में राम” लेख के अंतर्गत डाॅo संध्या सिन्हा जी एकरे जिज्ञासा से जुड़ल एगो लोकगीत के अंश प्रस्तुत कइले बानीं-
कवने नछत्तर मथवा खोलेलू हो
त कवने नछत्तर मथवा मीसेलू हो
त कवने नछत्तर सेजिया डसवलू
त राम के दिनवा सुदीन बाड़े हो।
राम अइसन पुत्र-प्राप्ति खातिर तप के अनिवार्यता के एही तरह के संकेत प्रेमशीला जी के आलेख “लोक में राम” के अंतर्गत भी कइल गइल बा-
रानी कवन-कवन तप कइलू
रामइया पुत्र पावेलू।
भूखल  रहनी  एकादशी,
दवादसी के पारन हो,
राजा बिधि से कइलें अवतार,
रामइया पुत्र पावेलू।
स्पष्ट बा कि माई-बाप होखे के सार्थकता पुत्र पैदा
करें में ना, पुत्र में राम के संस्कार देवे में बा, ओकरे
भीतर राम के आत्मा गढ़े में बा। जवना दिन ई बात

विश्व-मानव के समझ में आ जाई, ओही दिन एह धरती पर दिव्य प्रज्ञा द्वारा संचालित प्रेम आ समरसता से भरल-पूरल रामराज्य उतर आई। एहीलिए भोजपुरी के तमाम कलमकार दीर्घकाल से अपने महाकाव्यन में राम के अवतरण के कठिन साधना करत आ रहल बानें। आ, डॉo ब्रजभूषण मिश्र जइसन मनीषी “भोजपुरी साहित्य में राम”नियन खोजपरक आ कष्टसाध्य आलेख द्वारा उनके साधना के प्रचारित अउर सम्मानित करेके नि:स्वार्थ
तप में लागल बानीं। अंक-12 में, तुलसीदास के ‘मानस’ के अप्रतिम अध्येता आ व्याख्याता डॉo कमला प्रसाद मिश्र ‘विप्र’ के सम्मान में भाषा वैज्ञानिक डॉo जयकांत सिंह जय के आलेख “विशिष्ट विवेचक विप्र जी आ उनकर राम काव्य परंपरा में मानस” एही तरह के प्रयोजन-सिद्धि से अनुप्रेरित नि:स्वार्थ तप के उदाहरण बा।

आंखि खोलेवाला एगो बात इहो कि, प्रज्ञा द्वारा संचालित जीवन-कर्म के अर्थ हवे- ‘मैं’ से मुक्त कर्म।एहमें कर्म त होला, बाकी कर्म के ‘मैं’ ना होला। तब जीवन एगो अभिनय हो जाला आ आदमी ओकर अभिनेता। राम के सगरो कर्म एगो अभिनेता
के कर्म बा। एहीलिए उनके कर्म के ‘रामलीला’ कहल गइल बा अर्थात् राम के लीला। लीला माने अभिनय। राम कतहूं कवनो कर्म से बंधल नइखें, यानी कि कर्म त बा बाकिर कर्म के बंधन नइखे। इहे ‘जीवनमुक्त पुरुष’ के लक्षण हवे। अपने भोजपुरिया समाज में नाटक के रूप में ‘रामलीला’ आजो बहुते लोकप्रिय बा। लेखकद्वै सियाराम पांडेय/संजय सिंह अपने आलेख “देशकाल से परे लोकजीवन में बसल राम” के अंतर्गत विभिन्न प्रसिद्ध नगरन के रामलीला के विषय में विस्तार से चर्चा कइले बाड़न। संक्षेप में, आखिरी बात ई कि ‘मैं’ आसुरी प्रवृत्ति हवे। साम्राज्यवाद आ विस्तारवाद एही आसुरी प्रवृत्ति के उपज हवे। चीन एही आसुरी प्रवृत्ति से ग्रस्त बा।नेपाल के प्रधानमंत्री ओली सत्ता-सुख के लोभ में फंसिके चीन के साथ खुलके ठाढ़े-भर नइखें, बलुक आजु त ऊ ओकरे हाथ के कठपुतरी बनिके राम के नया इतिहास बोकरि देले बाड़न जवना के चलते नेपाल से लेके भारत ले भूचाल आ गइल बा।अंक-12 के संपादकीय “कहीं, ओली के मुंह में चीन के जुबान त नइखे” में निजी स्वार्थ से अनुप्रेरित ओली के एह घटिया आ ओछी हरकत के विरुद्ध शिष्ट लहजा में तिलमिला देवेवाला सवाल खड़ा  कइल गइल बा। अंत में, “हम भोजपुरिआ” के संपादक मनोज भावुक आ उनके टीम के सदस्यन के बहुत-बहुत बधाई आ सर्जनात्मक भविष्य के अनघा शुभकामना। अस्तु।

अनिरुद्ध त्रिपाठी ‘अशेष’

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