चीन-पाक से एक साथे जूझी भारत !

September 11, 2020
सुनीं सभे
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आर. के. सिन्हा

भारत अउर चीन सीमा पर तनाव अभी बरकरारे बा आ भारत-पाकिस्तान के बीच भी गोला- बारूद चलिए रहल बा। यानी भारत फिलहाल अपना दुगो घोर शत्रु देशन के सरहद पर एक साथ प्रतिदिन ही सामना कर रहल बा। ई दुनु देश बार-बार साबित कर चुकल बा कि ई लोग त हरगिज ना सुधरी। रउआ ए लोग से मैत्रीपूर्ण संबंध के अपेक्षा करिए नइखीं सकत। ए लोग के डीएनए में ही भारत विरोध बा। त साफ ब कि भारत के अपना ए पड़ोसी मुल्कन के नापाक सब हरकत के मुकाबला करे खातिर हर वक़्त चौकस रहहीं के पड़ीं। अटल बिहारी वाजपेयी बार-बार कहीं कि ‘ रउआ आपन मित्र बदल सकsतानी, लेकिन दुर्भाग्य से पड़ोसी ना।’  बात इहवें समाप्त नइखे होत। ई दुनु दुश्मन देश एक-दोसरा के घनिष्ट मित्र भी ह। कम से कम ऊपर से देखे में त इहे लागेला। हालांकि, कूटनीति में कवनों देश केहू के स्थायी मित्र भा शत्रु ना होला। इहो सम्भव बा कि भारत से खुंदक ही ये लोग के करीब ले आवेला। त का अगर अब कभी भारत के चीन के साथ युद्ध भइल त पाकिस्तान भी मैदान में खुल के आई चीन के हक में? एकरे साथे अगर पाकिस्तान के भारत के साथ युद्ध भइल त चीन भी अपना मित्र देश पाकिस्तान के हक में लड़ी? ई सब सवाल वर्तमान में महत्वपूर्ण हो गइल बा। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह सार्वजनिक रूप से कह रहल बानी कि अगर भारत-चीन के युद्ध छिड़ल त पाकिस्तान शांत ना बइठी। ऊहो चीन के हक में लड़ी। चूंकि अमरिंदर सिंह सैन्य मामलन के गहन जानकार हईं,  एही से उनका चेतावनी के नजरअंदाज नइखे कइल जा सकत।

बहरहाल कुछ दिन पहिलहीं लद्दाख के गलवान घाटी में भारत-चीन के सैनिकन के बीच कस के संघर्ष भइल रहे। ओकरा बादे से सीमा पर शांति एगो दूर के कौड़ी बन गइल बा। हालांकि दुनु पक्ष बातचीत भी कर रहल बा, ताकि माहौल शांत हो जाय। पर ई त मानहीं के होई कि बातचीत के नतीजा फिलहाल कवनो बहुत सकारात्मक नइखे। चीन के साथे चल रहल सीमा विवाद पर भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेस स्टाफ़ जनरल बिपिन रावत त 24 अगस्त के कहलन कि लद्दाख में चीनी सेना के अतिक्रमण से निपटे खातिर सैन्य विकल्प भी बा। लेकिन ई तबे अपनावल जाई जब सैनिक आ कूटनीतिक स्तर पर वार्ता विफल रही। रावत के बयान से आम हिंदुस्तानी आश्वस्त हो सकsता कि भारत कवनो भी स्थिति खातिर तैयार बा। रावत जे भी कहनी ओमे कुछ भी गलत ना लागल। ई एक सधल बयान ह। भारत के रक्षा तैयारी युद्ध स्तर पर बा।

एही बीचे फ्रांस से खरीदल गइल बेहद आधुनिक शक्तिशाली 36 राफेल विमानन के पहिलका खेप भारत आ चुकल बा। निश्चित रूप से राफेल लड़ाकू विमान के भारत में आइल अपना सैन्य इतिहास में नया युग के श्रीगणेश बा। ए बहुआयामी विमानन से वायुसेना के क्षमता में क्रांतिकारी बदलाव आई। राफेल विमान के उड़ान के दौरान प्रदर्शन श्रेष्ठ बा। एमे लागल हथियार, राडार अउर अन्य सेंसर आ इलेक्ट्रॉनिक युद्धक क्षमता लाजवाब मानल जाला। कहे के ना होई राफेल के अइला से भारतीय वायुसेना के बहुत ताकत मिलल बा।

रउआ एकरा के ए तरे समझ सकीले कि हमनी के रक्षा तैयारी सही दिशा में बा। एही से अगर चीन के साथ युद्ध के नौबत आइल त एह बेरा चीन के गला के दबा देवे के पुख्ता इंतजाम भारतीय सेना के पास बा। पर सवाल ऊहे बा कि का तब पाकिस्तान भी युद्ध में कूद पड़ी? अगर हम पीछे मुड़ के देखीं त 1962 में चीन के साथ भइल जंग के समय पाकिस्तान भी ओकरा हक में लड़े के चाहत रहे। लेकिन उहाँ शिखर स्तर पर ए बाबत कवनो सर्वानुमति ना बनला के कारण उ मैदान में ना आइल। ओने पाकिस्तान भारत पर 1965, 1971 अउर फेर कारगिल में हमला बोलल त  चीन भी तटस्थ ही रहे। ओइसे त हमला उ 1948 में भी कइले रहे। लेकिन तब के दुनिया अलग रहे। कहल जाला कि 1965 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान आ उनकर विदेश मंत्री जुल्फिकार भुट्टो के उम्मीद रहे कि चीन ओकरा हक में आई, पर अइसन भइल ना।

पाकिस्तान कच्छ में आपन नापाक हरकत चालू कर देले रहे। पाकिस्तान के अदूरदर्शी सेना प्रमुख मूसा खान कच्छ के बाद कश्मीर में घुसपैठ चालू क देहलन। उ भारत के कच्छ आ कश्मीर में एक साथ उलझावे के चाहत रहे। लेकिन भारतीय सेना उनकर कमर ही तूर देहलस। भारतीय सेना के कब्जा से ढ़ेर दूर ना रहे लाहौर। यानी कश्मीर पर कब्जा जमावे के चाहत राखे वाला पाकिस्तान लाहौर के ही खो देवे वाला रहे। भारत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर(पीओके) से करीब आठ किलोमीटर दूरी पर स्थित हाजी पीर पास पर आपन कब्जा जमा लेले रहे। भारत 1971 के जंग में पाकिस्तान के त दु फाड़ ही क के रख देले रहे अउर कारगिल में भी ओकर कस के धुनाई कइले रहे। ए दुनु मौका पर चीन अपना मित्र के हक में भारत से पंगा लेवे से बचल ही सही मनलस।

हालांकि इहो सच बा कि 1971 से अब तकले वैश्विक स्तर पर दुनिया के चेहरा-मोहरा बहुत बदल चुकल बा। चीन पर पाकिस्तान के निर्भरता के आलम ई बा कि उ चीन में लाखों मुसलमान लोग पर हो रहल अत्याचार के लेके जुबान तक ना खोले। ओकरा भय सतावेला कि कहीं चीन ओकरा से नाराज ना हो जाय। पाकिस्तान के लम्बा समय से मुँहमांगी मदद देवे वाला सऊदी अरब अउर संयुक्त अरब अमीरात भी पाकिस्तान से दूरी बना लेले बा। पिछला साल जब सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान इस्लामाबाद के दौरा कइलन त संकट में फँसल पाकिस्तान के अर्थ व्यवस्था खातिर 20 अरब डॉलर के समझौता पर हस्ताक्षर भइल और अइसन लागल कि सऊदी अरब आ पाकिस्तान के ऐतिहासिक रिश्तन के नया आयाम मिल गइल बा। लेकिन हाले में दुनु देश में दूरी एही से भइल काहे कि सऊदी अरब कश्मीर के मसला पर पाकिस्तान के हिसाब से ना चलल। पाकिस्तान के उम्मीद रहे कि भारत जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जा खत्म कइलस त सऊदी अरब ओकरा साथ भारत के निंदा करी। लेकिन ई ना भइल। जबकि चीन ओकरा साथ रहे। एही से कहल जा रहल बा कि अगर अब भारत के चीन से युद्ध भइल त पाकिस्तान ओकरा साथ खुल के आ जाई। एह आशंका के आलोक में भारत के अपना रक्षा तैयारी के अउर चाक-चौबंद राखे के होई।

( लेखक वरिष्ठ सम्पादक, स्तंभकार अउर पूर्व सांसद हईं।)

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