संपादक- मनोज भावुक
सउँसे देश में शोर बा- मुंबई में का बा ? फ़िल्मकार अनुभव सिन्हा अउर अभिनेता मनोज वाजपेयी के जवन भोजपुरी रैप सगरो गूँजता, ओकर बोल बा – मुंबई में का बा ? डॉ. सागर के लिखल ह।
हमार सवाल बा कि बिहारे में का बा ? पूर्वांचल में का बा ? अगर रहित त ओह इलाका के मेहरारू छाती पीट-पीट ना गइतीं स – रेलिया बैरन पिया को लिये जाये रे। ई कवनो हर्षोल्लास के गीत ना ह। पीड़ा के गीत ह। प्रवास के गीत ह। जाने कब से गवाता ? 200 साल पहिलहूँ खूब गूंजल रहे जब अंग्रेज गिरमिटिया लोग के रेलगाड़ी में भर-भर के कलकत्ता ले गइलें आ उहाँ से भवानीपुर डिपो से पानी के जहाज में भर के मॉरिशस, फिजी, गुयाना आ सूरीनाम आदि देशन में।
आज कोरोना काल में लॉकडाउन टूटला के बाद, गांव में रोज़ी-रोज़गार ना रहला का चलते, विवश होके, लाचारी में जब केहू दिल्ली, बम्बई के ओर डेग बढ़ावsता त उनका पत्नी के चेहरा प उहे भाव बा – रेलिया बैरन पिया को लिए जाये रे।
राज़ी-ख़ुशी से ना तब केहू तैयार रहे, ना आज।
हमार एगो शेर बा – ” पटना से दिल्ली, दिल्ली से बंबे, बंबे से लंदन / भावुक हो आउर कुछुओ ना पइसे नाच नचावेला ‘‘
त ई पइसा गाँव में नइखे। पइसा माने रोज़गार। एही से रेलिया बैरन बिया। ई गीत सदियन से एह क्षेत्र के त्रासदी आ दरद के प्रतिनिधित्व क रहल बा। ई हर्ष के ना विषाद आ टीस के गीत बा।
पुरबिया ना खाली अपना श्रम, शक्ति, जीवटता आ बुद्धिमत्ता से देश-विदेश सगरो अपना के स्थापित कइले। मजदूर बन के गइलें बाकिर अपना पौरुष से मालिक बन गइलें, गिरमिटिया बन के गइलें बाकी अपना जुझारूपन से गवर्नमेंट बन गइलें। चमका देलें ओह देश के। स्वर्ग बना देलें। बाकिर अपना गाँव-घर, नेटिव प्लेस के स्वर्ग काहे ना बना पवलें? दोसरा जमीन के माटी के छू के सोना बनावे वाला लोग अपना माटी के सोना काहे नइखे बनावत ? अपना गाँवे के मॉरिशस, फिज़ी, सूरीनाम भा दिल्ली-मुंबई काहे नइखे बनावत ?
ई सवाल देश के आजादी के बाद के हर सरकार से बा। केंद्र से भी, राज्य से भी अउर वोटर माने जनता-जनार्दन से भी। हर केहू अपना अंतरात्मा से पूछे। ई सामूहिक सोच आ प्रयास के काम बा भाई। एकर बीड़ा उठावे के पड़ी। जब ले अइसन ना होई पूरब के जनाना लोग ई गीत गावे खातिर अभिशप्त रहीहें कि रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे।
बाकी ‘मुंबई में का बा’ खातिर अनुभव सिन्हा के विशेष रूप से बधाई अइसन कंटेट के चुनाव कइला खातिर जहाँ दूर-दूर तक लोग के दृष्टि ना जाला। भोजपुरी साहित्य में त अइसन बहुत कुछ लिखाइल बा बाकिर भोजपुरी सिनेमा चोली, चुनरी आ टिकुली से बहरी निकलिये नइखे पावत। ओह लोग खातिर एगो नज़ीर बा ई गीत, आँख खुले त।
भोजपुरी हमेशा से प्रतिकार, विरोध, ललकार आ मर्दानगी के भाषा रहल बा। अश्लीलता के बात त दूर रोमांस भी खुल के नइखे भइल एह इलाका में। एह से अधिकांश नायक के कहानी दबले दबल रह गइल बा।
खैर, समय के साथ बदलाव आइल बा, अइबे करी मगर संतुलन जरुरी बा। माटी से कटला पर भी दोसरा जगह के हवा-पानी के असर होला आ ओह में आदमी कुछ बेसिए बहक जाला।
उम्मीद बा आपन माटी मजबूत होई। रोजी-रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा खातिर हमनी के आत्मनिर्भर होखब जा। रेलिया बैरन वाला गाना बंद होई।
… अउर फ़ाइनली हर ख़ुशी खातिर आत्मनिर्भर होखब जा, एही शुभकामना के साथे- राउर मनोज भावुक प्रणाम।