दमदार आ असरदार बा ‘भोजपुरी जंक्शन’
‘भोजपुरी जंक्शन ‘के दोसरका अंक कई माने में दमदार आ असरदार जनात बा। एह सदी के उनईस बरिस में भोजपुरी सिनेमा में जवन बदलाव आइल बा, ऊ इहो सोचे पर अलचार करत बा कि ई तब्दीली कतना सकारात्मक बा। एह दौर के कलाकारन से रूबरू करवावे वाला मनोज भावुक एह दौरान आइल फिल्मन के समीक्षो करत चलत बाड़न। एह में भोजपुरी सिनेमा के वर्तमान आ भविष्य के झलक मिलत बा। कोरोना महामारी में लॉकडाउन से अनलॉक तक के दास्तानो एगो जियतार सर्वेक्षण बा। एह महामारी के अलगा-अलगा आयामन पर भोजपुरी में जवन यादगार कविता रचाइल बाड़ी स, उन्हनी पर केन्द्रित एगो शोधपरक आ सुचिंतित वैचारिक आलेख डॉ. सुनील कुमार पाठक के प्रकाशित भइल बा, जवन अंक के महत्वपूर्ण बनावत बा। हरेक माध्यम में घुसिके उहाँ के गम्हीर पड़ताल कइले बानीं। ई एहू तथ्य के प्रमाणित करत बा कि भोजपुरिया रचनाकार कतना सजग आ सचेत बाड़न। लोकगीत का नाँव पर गायकी करेवालन प मनीषा श्रीवास्तव के जरूरी आउर सारगर्भित टिप्पणी ग़ौरतलब बा।
हास्य-व्यंग्य के स्तंभ त गुदगुदावे में कामयाब बड़ले बा, संपादकीयो ‘बंबई में का बा‘ के बहाने ‘’ बिहारे में का बा ? ‘’ बड़हन सवाल ठाढ़ कइले बा। देस-दुनिया में जाके जवन भोजपुरिया मेहनतकश आपन जांगर ठेठाके उहाँ के दिन-दसा बदलि दिहलन, उहे लोग अपना इलाका में ऊ काम काहें नइखन करत? एह अंक में भोजपुरी साहित्य-संगठन के सर्जनात्मक ऊँचाई देबे वाला आचार्य पाण्डेय के पुन्न तिथि पर एगो आलेख आउर कोरोना पर एगो नवगीतो बा। एह पठनीय आ संग्रहणीय अंक खातिर प्रधान संपादक आ संपादक दिली मुबारकबाद के पात्र बाड़न। हँ, हर अंक में कम से कम एगो कहानी जरूर रहे के चाहीं।
भगवती प्रसाद द्विवेदी, वरिष्ठ साहित्यकार, पटना
सम्पादकीय मन के छू लेत बा
भोजपुरी जंक्शन के दुसरका अंक (16-30 सितम्बर 2020) मिलल। सम्पादकीय में भावुक जी के “बम्बई में का बा ?.. त बिहारे में का बा ?” में कहल कुछ बात मन के छू लेत बा। हमनी के भोजपुरिया बघार के अदमी में नावा सोच बिचार जीनिगी के देखे के नावा नजरिया आ विवेकपूर्ण ब्यवहार करे के लूर सहूर त आ गइल बाकिर हलुकाहे ढंग से। पिछड़ापन के अन्हार एतना न जबरदस्त बा की छिटपुट अँजोर से ढेर फायदा लउकत नइखे। जबरा हरमेशा से अबरा के चपलस आजुवो चापत बा। एहिजा त घर खुला छोड़ के अदमी पराता, छोड़ा गइल त भाड़ में जाव ओकरा से का मतलब। लेकिन अदमी के मूल पहचान शरीर से कबो बिलगे ना अपना जन्मभूमि पर जरूर ले जाला। कतनो दोसर भाषा नीक से बोल ली, सिख ली, लिख ली, भेष भूषा अपना ली लेकिन राउर हियरा जानता कि ई राउर ना ह, पराया के ह। अइसन कटाह समय मे जब भोजपुरी बोलल पिछड़ापन के निशानी बनी के रह गइल बा, ओह समय मे माईभाषा भोजपुरी मे उहो ई-पत्रिका के रूप में अवलोकन क के सुखद एहसास भइल। नवगीत “खूँटी पर संसा टँगाइल” पढ़ी के मन मयूर नाच गइल। पत्रिका के आलेख नवगीत कविता हर रचना स्तरीय पठनीय सराहनीय बा। कमलेश पाण्डेय जी के हास्य ब्यंग्य “एगो पदयात्री के कहानी पैर के जुबानी” पढ़ी के बहुते नीक लागल। माईभाषा भोजपुरी के गरीमा के फिर से वापीस जगावे खातीर भोजपुरी जंक्शन के सम्पादक मण्डल के धन्यवाद, एह पत्रिका के अगीला अंक खातीर अवगढ़ शुभकामना बा।
तारकेश्वर राय “तारक”, उप सम्पादक- सिरिजन, स्थानीय सम्पादक – दि ग्राम टुडे