संपादक- मनोज भावुक
एगो त घर में तनाव बा। बाहर कुक्कुर बोलsतारs सन। इन्हनीं के टेंशन त देलहीं बाड़न स, तवना में कउवन के काँव-काँव अलगे चल रहल बा। एही में बिहार में चुनाव बा। नारा से बेसी भोजपुरी गाना गूँजsता। कोरोना के चलते जे बेरोजगार भइल बा ओकरा असहीं अंघी नइखे लागत। भोर के अखबार सुरुज भगवान से बेसी लाल बा। हत्या से बेसी आत्महत्या के खबर लउकsता। ब्रम्हांड के सर्वश्रेष्ठ जीव आत्मघाती हो गइल बा। आखिर ई कइसन समय आ गइल बा हे दुर्गा मइया।
कइसे गोहराईं तोहरा के? लइका लेखा फूट-फूट के रोईं? रोईं भोंकार पार के? सीना चीर के देखाईं? का करीं? कइसे बुझबू कि हम दुखी बानी। हमार दुख तोहरा काहे नइखे लउकत? आकि चनेसरा लेखां तुहूँ मजा ले तारू?
चनेसरा त विपक्षी हs। हमरा अच्छाइयो में बुराइये देखेला। केतनो बड़का काम काँहें ना करीं, तारीफ़ के दू बोल ना बोली। हमरा जवना काम के उ निन्दा करता, ओकर आका भा गुरुजी लोग, ओही में डूबल बा। बाकिर उ ओह लोग के तलवा चाटsता। खैर, छोड़s, ई कुल्हि सियासी बात हs।
तू त माई हऊ। तू दिल के सब दरद बुझेलू। बस बहरिये बहरी भोकाल बा ए माई। भीतर खाली बा। कुछ बा ना। कइसे रही? इहाँ भुँजवो खाये के बा, फँड़वो टोवे के बा। पेट खाली बा। खाली पेट में दिमगवो खाली हो जाला। दिमाग कामे नइखे करत। कुछ सूझते नइखे।
पंडी जी से पूछनी हँ। उहाँ के कहनी हँ जे राहू-केतु ठीक नइखे चलत। खैर, उहाँ के त कुंडली के आधार पर ग्रह के बात कहनी हँ।
हमरा त हई कुल्ही राहू-केतु लउकत बाड़न स। एगो जवन अपना देसवा के बाउंडरिया पर फँउकत बाड़न स ड्रैगनवा, ऊ। दोसर देस के भीतरे दोस्त के रूप में दुश्मन बनल घूमsतारs सन, भितरघतिया, ऊ। तीसर ऊ, जेकरा हर काम में नुक्से लउकsता, निगेटिव आदमी, ऊ। ए सगरी के बुद्धि ठीक करs ए माई।
हम देश में अमन चाहsतानी। अमन दs। निरोग करs। देशे के ना, सउँसे दुनिया के। कोरोना मुक्त करs।
आम आदमी भूखे मूअता।
सबका थाली में रोटी होखे आ आँखि में नींन, एह नवरात्रि में बस अतने प्रार्थना बा ए दुर्गा माई।
एह अबोध के पीठ ठोकs । अपना शेर से बात खतम करत बानी –
काँट चारो तरफ उगावे के
फूल के अस्मिता बचावे के
एह दशहरा में कवनो पुतला ना
मन के रावण के तन जरावे के