पढ़ीं भोजपुरी जंक्शन, देखीं एकर फंक्शन
हम जब भोजपुरी जंक्शन के 01-15 अक्टूबर के अंक प्राप्त कइनी आ पढ़ल शुरू कइनी त पढ़ के मन खुश हो गइल। श्री मनोज भावुक जी के संपादकीय के भाषा बहुत ही सरल, सहज आ मनभावन होला आ एसे पाठक सब के पढ़े के जिज्ञासा हमेशा बनल रहेला। अबकी सम्पादकीय “गाँधी जी के भोजपुरी कनेक्शन” जबरदस्त रहल जेमे सम्पादक महोदय, गाँधी जी के चंपारण यात्रा आ गाँधी जी खातिर चंपारण के देन पर चर्चा भी कइले बानी। ई महात्मा गाँधी विशेषांक-02 ह जेमे गाँधी जी के भोजपुरी कनेक्शन के भरपूर वर्णन बा। ये अंक में विशेष रूप से, हम भोजपुरिआ के, 01-15 फरवरी 2020 के, बापू विशेषांक पर बहुत सुंदर समीक्षा भइल बा आ अनेकानेक विद्वतजन आपन-आपन विचार प्रेषित कइले बानी जेमे श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी जी, डॉक्टर बृजभूषण मिश्रा जी, डॉक्टर प्रेमशीला शुक्ल जी, डॉ सुनील कुमार पाठक जी, श्री सौरभ पाण्डेय जी, श्री प्रकाश उदय जी, डॉ राजेश कुमार “माँझी” जी, श्री सुमन कुमार सिंह जी आ मनोरमा सिंह जी शामिल बानी। श्री परिचय दास जी के “गाँधी आ मातृभाषा” बड़ा नीक लागल। डॉ राजेश कुमार “माँझी” जी के” गांधी के कर्मस्थली” बड़ा समृद्ध आलेख बा। श्री आर.के.सिन्हा जी के” फाँसी होखे जासूसी के सजा” पत्रकारिता आ पत्रकार के रूप, स्वरूप आ भूमिका के कटघरा में खड़ा करत चिंतनीय आ विचारणीय आलेख बा। ई पत्रिका अउर समृद्ध बने इहे कामना बा। अंत में हम इहे कहेम” आईं पढ़ीं भोजपुरी जंक्शन, देखीं ढेर बा एकर फंक्शन।”
बहुत बहुत शुभकामना के साथे
अखिलेश्वर मिश्र, कवि अउर साहित्यकार, बेतिया, प.चंपारण, बिहार
भोजपुरी हमनी के भाषा सूत्र में कब शामिल होई ?
हम भोजपुरिआ’ अब ‘भोजपुरी जक्शन’ में बदल गइल। का बात बा? हम महात्मा गाँधी विशेषांक -2 पढ़नी हँ आ संपादक मनोज जी से सहमत बानी कि इ विशेषांक प विशेषांक बा। साँचो। अनघा बधाई!
हम एह अंक के समीक्षन प बात ना करब। काहें कि समीक्षा के समीक्षा का करेके बा! बाकिर एकर मतलब हम इ नइखीं कहत कि समीक्षा माने रचना ना होला। समीक्षा एगो जरूरी रचना विद्या ह आ भोजपुरी में एकर बहुत जरूरत बा। त अपना सहिते कुल्हि समीक्षक सभे के बधाई! एह अंक में मनोज जी के संपादकीय कहनाम से हम सहमत बानी कि रसूल मियाँ के गीत ‘के हमरा गाँधीजी के गोली मारल हो, धमा धम तीन गो’ के भाषा में जवन ‘हम’ बा उहे गाँधीजी के भोजपुरी कनेक्शन ह। बहुत बारीकी से रेखियवले बानीं।
एह अंक में आदरणीय परिचय दासजी के एगो जरूरी आलेख बा। ओकरा के सभके पढ़ेके चाहीं। मातरी भाषा में शिक्षा के जरूरत के गाँधीजी बहुत पहिले सूत्र मनले रहीं। भोजपुरी जक्शन प एह लेख के महत्व बढ़ जाता। संगे-संगे सवालो छोड़ जाता कि भोजपुरी हमनी के भाषा सूत्र में कब शामिल होई ? इ बहस-विचार एह जक्शन प जरूर उठे के चाहीं। आदरणीय भगवती प्रसाद द्विवेदी जी के व्यंग्य कविता आजुके व्यवस्था के पोल खोले में सक्षम बिया। डॉ.राजेश कुमार माझी जी अपना आलेख से गाँधीजी से जुड़ल जगहन आ कर्मस्थली के संक्षेप में सहजता से यात्रा करावे में सफल बानी। रवा सभ के बहुत-बहुत आभार! परनाम!!
सुमन कुमार सिंह, शिक्षक आ साहित्यकार, आरा, भोजपुर।