आर. के.सिन्हा
बिहार एक बार फेर चुनावी समर खातिर तैयार बा। राज्य में राजनीतिक माहौल गरमा गइल बा। नेता लोग के जनसंपर्क अभियान जारी बा। केतना अच्छा होइत अगर अबकी बिहार विधान सभा चुनाव जाति के सवाल के बजाय विकास के मुद्दा पर ही लड़ल जाइत। ये मसला पर सभ क्षेत्रन में गम्भीर बहस होखे। सब दल अपना विकास के रोडमैप जनता के सामने रखे। दुर्भाग्यवश बिहार में विकास के सवाल गौड़ होते जा रहल बा। हम पिछला राज्य विधान सभा चुनाव भी देखले रहीं। तब कैम्पेन में विकास के सवाल पर महागठबंधन के नेता लोग फोकस ही ना कर पावत रहे। अभी त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास के सब कैंपेन के केंद्र में लाके खड़ा कर देले बाड़न।
पिछला चुनाव में त एनडीए के खिलाफ खड़ा तमाम शक्ति राज्य के विकास के बिंदु पर बात करे से भी कतरात रहे। ओ सब में जाति के नाम पर वोट हासिल करे के होड़ सा मचल रहे। एही मानसिकता के चलते बिहार विकास के दौड़ में बाकी राज्यन से कहीं बहुत पीछे छूट गइल। ई सही में बड़ी गम्भीर मसला बा। बिहार में जाति के राजनीति करे वाला लोग के कारण ही राज्य में औद्योगिक विकास ना के बराबर भइल। रउए बता दीं कि बिहार में बिगत तीस साल में कवन औद्योगिक घराना आपन कवनो इकाई लगवलस ? टाटा, रिलायंस, महिंद्रा, गोयनका, मारुति, इंफोसिस जइसन कवनो भी बड़हन कम्पनी बिहार में निवेश कइल उचित तक ना समझल आ यही के नतीजा ह कि बिहार के नौजवान के अपना घर के आसपास कवनो कायदा के नौकरी ना मिले। उनका घर से बाहर दूर निकलहीं के पड़ेला। आप दिल्ली, मुंबई, पुणे, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलुरू, लुधियाना समेत देश के कवनो भी औद्योगिक शहर में चल जाईं, उहाँ पर रउआ बिहारी नौजवान हर तरह के नौकरी करत मिली। का बिहार में जाति के राजनीति करे वाला लोग ये सवाल के कवनो जवाब दे पाई कि उनके गलत नीतियन के कारण ही राज्य में निजी क्षेत्र से कोई निवेश करे के हिम्मत तक ना करे।
इयाद रख लीं कि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडू जइसन राज्यन के तगड़ा विकास एही से हो रहल बा काहे कि उहाँ हर साल भारी निजी क्षेत्र के निवेश आ रहल बा। केंद्र सरकार हर साल एगो रैंकिंग जारी करेला कि देश के कवना राज्य में कारोबार कइल आसान आ कहाँ सबसे मुश्किल बा। सरकार हाल हीं में “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” के रैंकिंग जारी कइलस। एमे पहिला पायदान पर आंध्र प्रदेश बा। एकर मतलब बा कि देश में आंध्र प्रदेश में कारोबार कइल आज के दिन सबसे आसान बा। तेलांगना दूसरा पायदान पर बा। हरियाणा तीसरा नम्बर पर बा। कारोबार करे में आसानी के मामला में आंध्र प्रदेश चौथा त झारखंड पाँचवा स्थान पर बा। उहें छत्तीसगढ़ 6वाँ, हिमाचल प्रदेश 7वाँ आ राजस्थान 8वाँ स्थान पर बा। एकरा अलावे पश्चिम बंगाल अबकी बार शीर्ष 10 में शामिल होते हुए 9वाँ नम्बर पर पहुँच गइल बा। उहवें गुजरात ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामला में 10वाँ पायदान पर बा। लेकिन बिहार त एमे 15वाँ स्थान तक कहीं नइखे। कइसे होई बिहार के विकास? दरअसल ये रैंकिंग के उद्देश्य घरेलू अउर वैश्विक निवेशक सबके आकर्षित करे खातिर कारोबारी माहौल में सुधार लावे खातिर राज्यन के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू कइल बा। सरकार राज्यन के रैंकिंग के कंस्ट्रक्शन परमिट, श्रम कानून, पर्यावरण पंजीकरण, इन्फॉर्मेशन तक पहुँच, जमीन के उपलब्धता अउर सिंगल विंडो सिस्टम के आधार पर मापी करेला।
उपर्युक्त रैंकिंग से बिहार के सब नेता आ दल के सबक लेहीं के चाहीं। ये लोग के पता चल गइल होई कि उनका राज्य के स्थिति कारोबार करे के लिहाज से कतई उपयुक्त नइखे। ई सही बा कि पिछले लंबा समय से बिहार में औद्योगिक क्षेत्र के विकास थम सा गइल बा। अब बिहार में जवन भी नया सरकार बने ओकरा देश के प्रमुख उद्योग अउर वाणिज्य संगठन जइसे फिक्की, सीआईआई या एसोचैम से तालमेल रख के उद्योगपति सबके राज्य में निवेश करे खातिर प्रयास करे के होई। ई केहू के बतावे के जरूरत नइखे कि बिहार के औद्योगिक क्षेत्र में पिछड़ापन के कई कारण बा। जइसे कि राज्य में नया उद्यमी आ पहिले से चल रहल उद्योग के मसलन के हल करे खातिर कवनो सिंगल विंडो सिस्टम नइखे बनावल गइल। बिहार में आपन कारोबार स्थापित करे वाला उद्योग खातिर भूमि आवंटन के कवनों ठोस व्यवस्था ना कइल गइल आ राज्य में इंफ्रास्ट्रक्चर के मजबूत करे के जरूरत तक ना समझल गइल।
अर्थात बिजली-पानी के आपूर्ति के व्यवस्था तक पक्का नइखे। सड़कन के खस्ताहाल बा। पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था बेहद खराब बा। स्वास्थ्य सेवा भी भगवान भरोसे बा। हालांकि नीतीश जी के शासन में विकास के प्रयास कम भइल, अइसन भी नइखे। पर लालू राज्य में जवन छवि राज्य के बन गइल ओके निवेशक सबके मन से निकालल आसान भी त नइखे। ये सब हालात में बिहार में के निवेशक आके निवेश करी भला? बिहार में फूड प्रोसेसिंग, कृषि आधारित हजारों उद्योग, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर उद्योग, कपड़ा, कागज और आईटी उद्योग वगैरह के भारी विकास संभव बा। ए तरफ ध्यान त देवहीं के परी।
बिहार काहे ना बनल औद्योगिक हब
विगत 20-25 साल के दौरान देश के अनेक शहर मैन्युफैक्चरिंग अउर सेवा क्षेत्र के हब बनत चल गइल। पर ये लिहाज से बिहार पिछड़ गइल। बिहार के कवनो भी शहर नोएडा, मानेसर, बद्दी या श्रीपेरंबदूर ना बन सकल। नोएडा अउर ग्रेटर नोएडा के हीं देखीं। इहाँ इलेक्ट्रॉनिक सामान आ आटोमोबाइल सेक्टर से जुड़ल सैकड़न उत्पाद के उत्पादन हो रहल बा। एकरा अलावा इहाँ सैकड़ों आईटी कंपनी सब में लाखों नौजवानन के रोजगार मिल रहल बा जेमे एगो बड़ा प्रतिशत बिहारी जवानन के भी बा। एने दक्षिण कोरिया के एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स, मोजर बेयर, यमाहा, न्यू हालैंड ट्रेक्टर्स, वीडियोकॉन इंटरनेशनल श्रीराम होंडा पॉवर इक्विमेंट अउर होंडा सियल नॉएडा- ग्रेटर नॉएडा में तगड़ा निवेश कइले बा।
एही तरे से हरियाणा के शहर मानेसर एगो प्रमुख औद्योगिक शहर के रूप में स्थापित हो चुकल बा। मानेसर गुड़गांव जिला के एगो तेजी से उभरत औद्योगिक शहर ह। साथ ही ई दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एनसीआर के एगो हिस्सा भी ह। मानेसर में ऑटो और ऑटो पार्ट्स के अनेक इकाई खड़ा हो चुकल बा। एमे मारुति सुजुकी, होंडा मोटर साइकिल एंड स्कूटर इंडिया लिमिटेड शामिल बा। इहाँ भी लाखों लोग काम करेला जेमे बड़ी संख्या में बिहारी बाड़न। मानेसर के रउआ उत्तर भारत के श्रीपेरंबदूर मान सकेनी। तमिलनाडू के श्रीपेरंबदूर में भी ऑटो सेक्टर के कम से कम 12 बड़हन कम्पनी उत्पादन कर रहल बा आ एही सब कम्पनीन के पार्ट्-पुर्जा सप्लाई करे खातिर सैकड़न सहयोगी उद्योग भी चल रहल बा।
आ अब चलीं महाराष्ट्र के चाकण में। चाकण पुणे से 50 किलोमीटर अउर मुंबई से 160 किलोमीटर के दूरी पर स्थित बा। इहाँ पर बजाज ऑटो अउर टाटा मोटर्स के अनेक इकाई बा। ये दुनू बड़हन कम्पनीन के इकाईं आ गइला के बाद चाकण अपने आप में एक खास मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप ले चुकल बा। इहाँ हजारों पेशेवर अउर श्रमिक काम कर रहल बाड़े। अब महिंद्रा समूह भी चाकण में दस हजार करोड़ रुपया के लागत से आपन एगो नया इकाई स्थापित करे के फैसला कइले बा। वाल्कसवैगन भी इहाँ आ चुकल बा। एकरा अलावे भी देश के अनेक शहर एही तरे मैन्युफैक्चरिंग चाहे सेवा क्षेत्र के केंद्र बनल।
दूसरा तरफ जवन बिहार टाटा नगर अउर डालमिया नगर जइसन निजी औद्योगिक शहर आजादी से पहिले बसा रखले रहे, ओही बिहार के कवनो शहर काहे मैन्युफैक्चरिंग चाहे सेवा क्षेत्र के हब ना बन सकल ? ये बिहार के बिहार विधान सभा के चुनाव में ये सब मसला पर भी बात होखे आ जनता उनहीं के वोट देवे जे बिहार में निजी क्षेत्र के निवेश ले आवे तब त कवनो बात बनी।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार अउर पूर्व सांसद हईं।)