संपादक- मनोज भावुक
हमरा बुझाला जे छठी मईया के भोजपुरी गाना बहुत पसंद बा। उ हर अरज गीतवे में सुनबे करेली। घर से घाटे निकले से लेके, घाट पर भर पूजा चाहे घाट से लौट के कोशी भरे या फेर भोरे अरघ देवे तक उहे– तिले-तिले गीत। गायको लोग ई बात बुझ गइल बा। दे दनादन गीत। गीत के एतना प्रोडक्शन त अउर कबो ना होला। त छठी मईया के भाषा गद्य ना पद्य बा। पद्य में भी लोकगीत…लोकभाषा में…बिहार के भाषा में, भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका आ बज्जिका में। बा नू ? त ई कन्फर्म हो गइल कि छठी मईया बिहारी हई…बिहार के हई…लोक के हई…एह से छठ पूजा लोकपर्व ह…लोक के आस्था के महापर्व ह। एही से ऊ लोकभाषा में बतियावेली गा-गा के काहे कि लोक के बोले में भी एगो लय होला, लहरा होला, राग होला आ भाषा सरल-सहज होला, सोझ होला। लापिटाह ना होला, क्लिष्ट ना होला, संस्कृतनिष्ट ना होला।
जब संस्कृतनिष्ट ना होला त एह पूजा मे पंडीजी के कवनो जरुरत ना होला। अरघ कवनो छोट लइको दे देला। बाकी मंतर त मेहरारु खुदे गीत गा-गाके पढ़ देली सन। जइसन कि पहिलहीं बतवनी ह कि छठी मईया संस्कृत वाला क्लिष्ट मंतरवा से बेसी भोजपुरी वाला भक्ति गीतवा पसंद करेली काहे कि उ आम आदमी के देवी हई। लोक के देवी हई। लोक के पूजा ह। लोक के भाषा बुझेली। एही से उनका इहाँ अमीरी-गरीबी के भेद नइखे। जात-पात के भेद नइखे। सभे एक्के घाट प एक्के साथे बइठ जाला। सस्ता पूजा बा। पंडीजी के फीस त देवे के नइखे। कवनो महंगा फल-फूल के दरकार नइखे। अनाज आ सीजनल फल से काम चल जाला।
बाकी देवता लो के लड्डू-पेड़ा चढ़ेला आ छठी मईया के?….दूघ, फल, घी, ऊंख, गागल नींबू, कच्चा हरदी, अमरख, आँवला, सुथनी, सिंघाड़ा …इहे नू चढ़ेला जी ?
बाकी देवी-देवता लो घर में पूजाला भा मंदिर में आ छठी मईया? नदी, पोखरा, झील, बीच, आइसलैंड, पैडलिंग पूल, स्वीमिंग पुल आ कहीं-कहीं त बाथटब में भी।
केतना एडजस्टेबल आ एक्सेप्टेबल बाड़ी छठी मईया। एक्सेप्टेबल त एतना कि ग्लोबल हो गइल बाड़ी। आरा से अमेरिका पहुँच गइल बाड़ी। बरवा तर के पोखरवा से सिलिकॉन वैली के क्वेरी झील पहुँच गइल बाड़ी। बाकी अंगरेज नइखी भइल। अपना मूल स्वरुप में बाड़ी। अमेरिको में घाट प रउरा ठेकुआ, नरियर, केरा, सूप, कलसूप, डलिया, दउरी-दउरा, दिया-दियरी, सेनुर-पियरी अइसे लउकी जइसे अमेरिका में बिहार समाइल बा।…आ सुरुज भगवान त सबकर एक्के बाड़े कहीं अरघ दीं। धरती नू बंटाइल बाड़ी, आदमी बंटाइल बा, ब्रम्हांड त एक्के बा, परमात्मा एक्के बाड़न। ..छठियो मईया इहे बतावेली।..बड़का-छोटका, अमीरी-गरीबी, ऊँच-नीच के भेद मिटा के सबका के एक्के घाट बरोबरी प बइठावेली आ कहेली कि रे कथी बंटाइल बा, काहे खातिर लड़त बाड़न स। लेकिन लोग त गावे में बा, गाना के मरम बूझे में थोड़े ? छठी मईया किहाँ त डूबत आ उगत सूरूज के भी भेद ना होला। दूनू पुजालें। एह बात के मरम बूझल आ ओकरा के जिनगी में उतारल हीं छठ पूजा बा। देवता लोग दुःख के थोड़े मार दी लो। हाँ, दुःख सहे आ झेले भा सुख-दुःख में समभाव रहे के ताकत दे दी लो। दुःख ख़तम होखे वाला रहित त देवता लो प दुःख कइसे आइत ?
चूकि छठ सूर्य उपासना के महापर्व ह त सुरुजे भगवान प एगो शेर से आपन बात ख़तम करत बानी –
सूरज से ताकतवाला के बाटे दुनिया में बाकिर
धुंध, कुहासा, बदरी, गरहन उनको ऊपर आवेला
दुःख में भी इन्सान बनल रहीं। सुख में भी इन्सान बनल रहीं। इहे कहेली छठी मईया।
जै छठी मईया !