देश के राष्ट्रवादी मुस्लिम सबके जरूरत

January 1, 2021
सुनीं सभे
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आर.के.सिन्हा

कभी-कभी हमरा ये बात के हैरानी होला कि काहे हमरा देश के मुसलमानन के एक बड़ा तबका नकारात्मक सोच के शिकार हो गइल बा? इनका फ्रांस में गला काटे वाला के हक में त बढ़-चढ़ के बोले के होला, पर मोजाम्बिक में इस्लामिक कट्टरपंथियन द्वारा दर्जनों मुसलमान लोगन के जब कत्लेआम होला तब ई लोग चुप रहेला। ई लोग हर मसले पर केंद्र के मोदी सरकार के आदतन भले ही रस्म अदायगी खातिर ही काहे ना होखे, विरोध त अवश्य ही करेला। एसे ये लोग के का लाभ बा, ई समझ से परे के बात बा। ये लोग के पूरा तरह से ब्रेन वाश कर देहल गइल बा, स्वयंभू सेक्यूलरवादियन आ  कठमुल्लन द्वारा।

पाकिस्तान में जनमल आ अब कनाडा में निर्वासित जीवन बीता रहल प्रसिद्ध लेखक आ पत्रकार ठीक ही कहेले कि कठमुल्लन अउर जिहादी आतंकवादी सबके निहित स्वार्थ के कारण अल्ला के इस्लाम अब तेजी से “मुल्ला का इस्लाम” बनत जा रहल बा जेसे विश्व के अमन चैन खतरा में पड़ गइल बा। सबसे ज्यादा खतरा एसे मुसलमान लोग के ही बा, काहे कि सबसे ज्यादा निर्दोष मुसलमान ही मारल जा रहल बा। दरअसल, देश के चाहीं डॉ. ए. पी.जे.अब्दुल कलाम, अब्दुल हमीद, अजीम प्रेमजी, सानिया मिर्जा, मौलाना वहीदुद्दीन खान, उर्दू अदब के चोटी के लेखक डॉ. शमीम हनफी जइसन मुस्लिम शख्सियत। ये तरह के अनगिनत मुसलमान चुपचाप अपने ढंग से राष्ट्र निर्माण में लागल बाटे। मौलाना वहीदुद्दीन खान के हमनी के बीच भइल सुकून देला। गांधीवादी मौलाना के अमेरिकी जार्जटाउन यूनिवर्सिटी दुनिया के 500 सबसे ज्यादा असरदार इस्लाम के आध्यात्मिक नेता लोग के श्रेणी में रखले बा। जामिया मिलिया इस्लामिया में लम्बा समय तक पढ़ावत रहल हनफी साहब जइसन राष्ट्रवादी मुसलमानन पर भारत गर्व करेला। ऊ आज के दिन उर्दू अदब के सबसे सम्मानित नाम बा। ऊ जब गालिब या इकबाल पर बोलेलन त ओके बड़ ध्यान से आ अदब से सुनल जाला।

आईटी कंपनी विप्रो के संस्थापक अजीम प्रेमजी शुरू से ही परामर्थ कार्यन में बढ़-चढ़ के हिस्सा लेत रहल बाड़े। ऊ देश के एक महान नायक बाड़े। ऊ पिछला वित्त वर्ष 2019-20 में परोपकार से जुड़ल सामाजिक कार्य खातिर हर दिन 22 करोड़ रुपया यानी कुल मिला के 7904 करोड़ रुपया दान देले बाड़न। दूसरे तरफ पिछले लगभग 70 वर्ष से साम्प्रदायिक दंगा प्रायोजित कराके स्वयंभू सेक्युलरवादी नेता गरीब मुसलमानन के संघ के डर देखावत रहेला। ये लोग के सोचे के चाहीं कि मोदी शासन के 6 वर्ष में जवन अमन-चैन के माहौल बनल बा, का अइसन कभी कवनो दूसरा प्रधानमंत्री के कार्यकाल में रहल? नेहरू से लेके मनमोहन सिंह तक के शासन काल में आये दिन दंगा ही होत रहल।

अब मौलाना आजाद के पौत्र फ़िरोज़ बख्त अहमद के ही लीं। ऊ दशको दिल्ली के मॉडर्न स्कूल में अंग्रेजी पढ़ावत रहलन। लेकिन, उनका से मुसलमानन के एक कट्टरपंथी तबका एसे नाराज हो गइल कि केंद्र सरकार उनका के हैदराबाद के मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के चांसलर बनवलस। का रउआ यकीन करेम, कवनो विश्विद्यालय के उपकुलपति कुलपति खातिर दरवाजा ये लिए बंद कर देहले होखे कि कुलपति उहाँ पर कुछ सुधार लावे के चाहत होखस, छात्रन के पढ़ावे के चाहत होखस, विश्विद्यालय में मौलाना आजाद “सेंटर फॉर प्रोग्रेसिव स्टडीज अउर सेंटर फॉर इम्पावरमेंट टू मुस्लिम वूमेन” के स्थापना करे के चाह राखत होखस अउर जे उर्दू बाल साहित्य पर कार्यक्रम करे के चाह रखत होखस? फिरोज बख्त के साथ ई सब कुछ एसे भइल कि ऊ संघ से जुड़ल रहल बाड़े। ऊ संघ के शाखा में भी जाले। बख्त साहब एक बार बतावत रहनी कि जब उहाँ के संघ के लोगन के साथ वक्त गुजारे लगनी त उहाँ के अलग तरह के एहसास भइल। तब पता चलल कि संघ त कत्तई मुस्लिम विरोधी नइखे।

माफ करीं दू बार उपराष्ट्रपति रहल हमीद अंसारी जइसन मुसलमान त ये देश के कत्तई ना चाहीं। ऊ जब तक कुर्सी पर रहलन त सरकार के खिलाफ एक शब्द भी ना बोललन अउर जब उनका के तीसरा बार उपराष्ट्रपति ना बनावल गइल (वोइसे ऊ राष्ट्रपति बने के अरमान पलले रहलन) त ऊ मुस्लिम नेता बन गइले। अइसन लोगन के उटपटांग कारनामन के खामियाजा सामान्य मुसलमान लोग के उठावे के परे ला जेकरा ये राजनीति से कवनो मतलब ही नइखे। ऊ लोग त बस रात-दिन मेहनत कर के कमाए-खाए के फ़िक्र में ही लागल रहेले। उनकर स्थिति बहुत खराब हो जाला। ऊ लोग हर जगह पिसते रहेला। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह जब रिटायर भइलें त उनके कवनों देश के राजदूत, राज्यसभा सांसद अथवा राज्यपाल ना नियुक्त कइल गइल। त फेर ऊहो मुस्लिम नेता बन गइले। ऊ मोदी जी के विरुद्ध पुस्तक “द सरकारी मुसलमान: लाइफ एंड ट्रावेल्स ऑफ़ ए सोल्जर” लिख डललन अउर उन पर गुजरात दंगा के आरोप ठोक देहलन। यदि जनरल साहब एतने ही बहादुर रहले आ मुस्लिम कौम के बफादार रहले त ऊ तुरंत सेना के उच्च जनरल के पद से या बाद में कुलपति पद से इस्तीफा देके मुसलमानन के नेतागिरी करते। कुलपति पद पर बइठ के मलाई डकारे के का आवश्यकता रहे? अइसन लचर आ दोगला चरित्र के लोगन के केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से सीख लेवे के आवश्यता बा जे अपने व्याख्यानन में कुरान अउर गीता के कथन पर सद्भाव बनावे के प्रयत्न करेले।

देश के चाहीं एयर चीफ मार्शल इदरीस हसन लतीफ जइसन महान मुसलमान। ऊ 31 अगस्त 1978 के एयर चीफ मार्शल एच मूलगांवकर के रिटायर भइला के बाद भारतीय एयर फोर्स के प्रमुख नियुक्त कइल गइल रहले। सन 1947 में देश के बँटवारा के वक्त सशस्त्र सेनन के विभाजन के बात आइल त एक मुस्लिम अफसर भइला के नाते इदरीस लतीफ के सामने भारत या पाकिस्तान दुनू में से कवनों भी एक वायुसेना में शामिल होखे के विकल्प मौजूद रहे। परंतु ऊ भारत के ही चुनलन। ऊ 1950 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर पहली सलामी उड़ान के नेतृत्व कइले रहले। ऊ 1981 में सेवानिवृत्त भइले। एकरा बाद ऊ महाराष्ट्र के राज्यपाल अउर फिर फ्रांस में भारत के राजदूत के पदभार सम्हरले। आपन कार्यकाल पूरा करके इहाँ के 1988 में फ्रांस से वापस अइनीं अउर अपना गृह स्थान हैदराबाद में रहे लगनी।

अब बात करsतानी, 1965 के जंग के नायक शहीद अब्दुल हमीद (परमवीर चक्र) के बहादुरी के। देश निश्चित रूप से 1965 के जंग में अब्दुल हमीद के शौर्य के इयाद राखी। येही तरह अगर कारगिल जंग के बात होई त इयाद आवत रहिहें कैप्टन हनीफुद्दीन। ऊ राजपुताना राइफल्स के कैप्टन रहले। कैप्टन हनीफुद्दीन कारगिल के जंग के समय तुरतुक में शहादत हासिल कइले रहलन। कारगिल के तुरतुक के ऊँची बर्फ से ढँकल ऊँची पहाड़िन पर बइठल दुश्मन के मार गिरावे खातिर हनीफुद्दीन भीषण पाकिस्तानी गोलाबारी के बावजूद आगे बढ़त रहलन। उनके बहादुरी के कहानी आज भी देश वासी सबके जुबान पर बा। पाकिस्तानी सैनिक मई 1999 में कारगिल सेक्टर में घुसपैठियन के शक्ल में घुसलन आ नियंत्रण रेखा पार कर हमनी के कई चोटिन पर कब्जा कर लेहलस। दुश्मन के ये नापाक हरकत के जबाब देवे खातिर आर्मी, “ऑपरेशन विजय” शुरू कइल, जेमे 30 हजार सैनिक शामिल रहे। ओही में से रहले बहादुर मोहम्मद हनीफुद्दीन। हाल के दौर में देश देख आ पहचान लिहले बा राष्ट्रवादी अउर कठमुल्ला मुसलमानन के। “कठमुल्ला मुसलमान के कौम” देश के हितैषी नइखे। अब देश चाहता सिर्फ राष्ट्रवादी मुसलमानन के जे भारत के मिट्टी से प्यार करे आ सभ देशवासी के साथ मिलजुल के रहे। ई काहे भुलातानी सन कि सभ भारतवासी लोग के पूर्वज तब से एक ही बा जब ना त ईसायत के जनम भइल रहे नाहीं इस्लाम के। फिर काहे पैदा करsतानी भेदभाव अउर कट्टरपूर्ण माहौल?

(लेखक वरिष्ठ सम्पादक, स्तंभकार अउर पूर्व सांसद हईं)

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