अइसन पत्रिका त बुक स्टालो प रहे के चाही
‘हम भोजपुरिया’ पत्रिका पढ़ि के मन मुद्रित हो गइल आ हम भावुक हो गइलीं। महतारी भाषा भोजपुरी के सैकड़ों पत्रिका पढ़े के मिलल बाकिर एकरा लेखा नीमन, उहो मल्टीकलर में आ बापू के शोधपरक रचना से भरल साहित्य के एक-एक पन्ना कीमती बा आ दिल के छू देबे वाला बाटे। विशेषांक देखिके हदय हुलास से भर गइल। बधाई के पात्र बानी श्रद्धेय भगवती प्र0 द्विवेदी जी, जे हमरा मो० प भेजले रहीं तब मालूम भइल एकरा बारे में। बुत अगते जानकारी भइल रहित त हमहूं एकरा से जुड़ गइल रहतीं।
मनोकामना बा कि ई संग्रहणीय अंक अविरल गति से दिनों दिन उच्च शिखर प पहुंचे। अइसन पत्रिका त बुक स्टालों प रहे के चाही। एह से जुड़ल सभे व्यवस्थापक, संपादक अउर सहयोगी जन के हार्दिक अभिनन्दन बा।
– राउर अपने, सुरेन्द्र कृष्ण रस्तोगी, कुदरा (कैमूर) बिहार
भोजपुरी जंक्शन कवनो भी भाषा के स्तरीय पत्रिका के बारबार बा
भावुक जी,
हर बेर के अइसन एहू बेर पत्रिका के अंक महत्वपूर्ण सामग्री लेके सोझा आइल बाटे। सामयिक आ ज्वलंत विषयन पर संपादकीय आ अग्रलेख देके रउआ पत्रिका के कवनो भाषा के स्तरीय पत्रिका के बराबरी में भोजपुरी जंक्शन के खड़ा कर देत बानी। भोजपुरी साहित्य के पुरोधा लोग के बारे में विमर्शपूर्ण लेख देके ,ओह लोग के अवदान से नवकी पीढ़ी के परिचय करावे के लमहर काम हो रहल बा । सीनेमा के दुनिया आज समाज के बड़ा प्रभावित करेला आ लोग ओकरा बारे में जाने खातिर उत्सुक रहेला। रउआ ओहू पर सामग्री दे के एगो लमहर जमात के जिज्ञासा के शांत करत बानी। पत्रिका निकले आ कीर्तिमान स्थापित करे ,एह शुभकामना के साथ साधुवाद।
डॉ. ब्रजभूषण मिश्र, मुजफ्फरपुर
संकीर्ण मानसिकता के बदले के कोशिश बा ‘’ कहानी के प्लॉट ’’
मनोज जी के लिखल “कहानी के प्लॉट” 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वस्त भइला के पृष्टभूमि पर लिखल हिन्दू मुस्लिम प्रेम कथा पर आधारित बा। लेखक के लिहाज से भले ही एगो प्लॉट होइ पर एगो पाठक के नजर से ई वास्तविक घटना बा। खाली इहे घटना नाही जुग-जुग से इ घटना चलल आवsतिया, जेकर अंत शायदे कब्बो सुखांत भइल होई।
इ कहानी पढ़ला से साफ परिलक्षित होला कि प्रेम त्याग के दोसर रूप ह। कहानी के नायिका मुस्लिम होते हुए भी आपन हिन्दू प्रेमी खातिर शबनम से श्वेता बन गइली आ राहुल सरफ़राज़ बन गइले। मुस्लिम होते हुए भी शबाना मंदिर जाए में तनिको ना हिचकिचइली। इ कहानी असल प्रेम के पराकाष्ठा आ प्रमाण ह।
इ प्लॉट सदियन से आपन समय, नाव आ जगह बदल के समाज के सोझा आवत रहल बा जेकर ज्यादातर परिणाम हत्या अऊर दंगा के रूप में प्रकट भइल बा। इ जानते हुए भी कि सब धर्म आ जाति से बढ़ के प्रेम के धरम बा तब्बो हमनी का एके स्वीकारे मे कोताही बरतेनी जा।
हमनी का समाज मे अंतरजातीय विवाह खातिर कमोबेश सहमति बनल बा बाकी जहां हिन्दू-मुसलमान के बात आवेला उहां तेवर बदल जाला। आज के हिन्दू अभिभावक बडा शान से कहेला कि “कवनो जाति में बियाह करs परहेज नइखे बाकी उ मुस्लिम, ईसाई भा छोट जात ना होखे ठीक मुस्लिम परिवार के साथ भी इहे मानसिकता बा।
ई सोच बदले में अभी बहुत समय लागी अऊर इ कहानी संकीर्ण मानसिकता के बदले के एगो जरिया बा।
एह कहानी के नायक नायिका जदि चाहित लोग त प्रेम के स्वार्थ में वशीभूत होके भाग के बियाह कर सकत रहे लोग मगर आपन परिवार समाज के मान मर्यादा सर्वोपरि मान के आपन पाक प्रेम के आहुति दे देहलस लोग। इहे त्याग इ कहानी के गरिमा बा।
लेखन एतना क्रमबद्ध आ दृश्यात्मक बा कि पाठक एक सांस में कहानी खत्म करे के बाध्य हो जाई। मन के झंझोरत एक संदेशात्मक कहानी खातिर लेखक के साधुवाद।
श्रीमती सरोज सिंह, लेखिका, लखनऊ