ज्योत्स्ना प्रसाद
“नौ बरस के जब हम भइलीं, विद्या पढ़न पाट पर गइलीं
वर्ष एक तक जबदल मती, लिखे ना आइल राम गती
मन में विद्या तनिक न भावत, कुछ दिन फिरलीं गाय चरावत ”
भिखारी ठाकुर के विद्या आरम्भ भइल उनका नौ बरीस के भइला पर। बाकिर उनकर पढ़ाई में मन ना लागल। कहल जाला कि पूत के पाँव पालने से ही बुझाये लागेला। बाकिर जीवन के असली आनन्द त लीक से हट के चले में ही आवेला। भेड़ नाहिंन पक्तिबद्ध होके सिर झुकवले एक के पीछे एक के चलला में भला कवन आनन्द बा? एही से त प्रकृति अपना एह नियम के समय-समय पर तोड़े ले भी। ऊ भी मातृभूमि के आशीर्वाद से। अपना देश के माटी के आशीर्वाद जेकरा मिल जाला ऊ धन्य हो जालाl अपना देश के माटी के चमत्कार के त कहहीं के का बा ? एह माटी के रंग में जे रंगा गइल समझी ओकर त जिन्दगी बदल गइल। एह माटी के रंग जब केहू पर चढ़ेला त ऊ आपन रंग दिखावेला आ खूंखार डाकू भी ब्रह्मदेव के समान हो जाला-“ उल्टा नाम जपत ज़ग जाना,वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना l” एतना ही ना जब ओकर आशीर्वाद मिलेला त महामूर्ख भी महाज्ञानी बन ‘मेघदूतम्’ जइसन श्रेष्ठ कृति के रचइता बन जाला। अस्सी बरिस के उमिर में भी जवानी हिलोर मारे लागेला आ ऊ वीर कुँवर सिंह बनके दुश्मन के नाको चना चबवा देला। एही परंपरा के अगिला कड़ी रहले भिखारी ठाकुर। जेकरा लगे स्कूल-कॉलेज के कवनों डिग्री ना रहे आ ऊ भोजपुरी के शेक्सपियर कहाये लगले। काहे कि कवनों भी स्कूल-कॉलेज के पढ़ाई आदमी के डिग्री त दे देला, बाकिर विवेक- बुद्धि आ समझदारी में विस्तार खातिर अभी ले कवनों संस्था नइखे खुलल। कारण ई त हमनी के अंदर अपने आप विकसित होला हमनी के आन्तरिक ज्ञान आ जीवन के अनुभव से। अगर अइसन ना रहित त एगो गणित के शिक्षक अपना गणित के ज्ञान के परिचय देत अपना छात्रन के लम्बाई के औसत निकाल नदी के पानी में भला काहे डूबा दित ?-“लेखा-जोखा थाहे लइका डूबले काहे ?”
भिखारी ठाकुर नाई जाति के रहले। उनकर बचपन भी एक सामान्य नाई के बच्चा नाहिंन ही बीतल। कहीं अइसन कुछ चमत्कारी उनकर व्यक्तित्व ना रहे जे उनका के सामान्य से विशेष बनावत होखे। गाँव के अपना दोस्त-साथियन नाहिंन पढ़ाई से परहेज आ गाय चरावत घूमत फिरले।
हमनी में जे भी अपना गाँव से जुड़ल बा। एह शहरी चकाचौंध के दुनिया से दूर अपना इहाँ के पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था के देखले बा, ऊ एह बात के ठीक-ठीक समझ सकेला कि अपना इहाँ के सामाजिक व्यवस्था में नाई के का काम ह ? चाहे ओकर ओह समाज में का स्थान होला ? नाई अपना समाज के अभिन्न अंग ह। काहेकि ओकरा बिना कवनो सामाजिक काम संपन्न ना होला। जनेव-मुड़न, शादी-विआह में ही ना बल्कि मरला-जियला में भी पण्डित जी लोग के बाद सबसे पहिले उहे नेवताला। ई बात अलग बा कि दूनू लोगन के सम्मान में अंतर रहेला। बाकिर एकरा साथे इहो बात साँच ह कि पण्डित जी लोग त जगे-परोजन में विशेष रूप से पुछाला, बाकिर नाई लोगन के त समाज में रोजे के आना-जाना लागल रहेला। कभी केश कटावे, हजामत बनावे खातिर त कभी अपना हितयी-नतयी में कवनों शुभ-अशुभ के नेवता पेठावे खातिर।
भिखारी ठाकुर भी प्रारम्भ में अपना जीविका खातिर आपन पैतृक पेशा ही अपनवलें। ओह घड़ी सैलून के प्रचलन त रहे ना, एह से उनका अपना काम के सिलसिला में रोजे घर-घर जाये के पड़त होई। एह तरह से उनका घर-घर के कहानी से नित्य दो-चार होखे के पड़त होई। एही तरह से अपना गाँव-जवार से जुड़ल समस्या उनका दिल-दिमाग में आवत गइल होई आ अपना सुसुप्ता अवस्था में उनका दिल-दिमाग के कवनो कोना में आपन जगह बनावे लागल होई।
बिहार के धरती शस्य-श्यामला ह बाकिर ओकरा पर एतना लोगन के पेट भरे के बोझ बा कि ऊ स्वयं त्राहिमाम-त्राहिमाम करत रहेले। बिहार के जनता के सारा बोझ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीका से खेती पर ही बा। आजादी के पहिले से ही एह बोझ के कम करे के कभी कोई ठोस उपाय ना सरकार के ओर से भइल ना कोई गैर सरकारी संस्था के ओर से ही। एकर परिणाम ई भइल कि अर्थशास्त्र के अनुसार जवना के ‘छिपी बेरोजगारी’ कहल जाला ओकर शिकार हमेशा से बिहार रहल बा। जवना घर मे खर्ची के तंगी रहेला ओह घर में लड़ाई-झगड़ा बहुत होला। एही लड़ाई-झगड़ा आ भूखमरी से अपना आ अपना परिवार के बचावे खातिर बिहार से सैकड़न बरिसन से पलायन जारी बा। आजो गाड़ी में भर-भर के लोग बिहार से दोसरा-दोसरा राज्यन में जाला। ई लोग कहीं गिरमिटिया कहाइल, कहीं अप्रवासी भारतीय। कई बार त अपनही देश में ओह लोगन के अपना से ओछा समझत ‘भैया लोग’ कहल जाला। बिहारियन के ई दुरगती एह से होला काहे कि आज भी गाँवन में किसानी के अलावे दोसर कवनों कामे नइखे जवना से ओह लोगन के नगदी आमदनी हो सके। एह नगदी के पावे खातिर बिहार में पलायन के अलावे कोई दोसर उपाय भी नइखे। काहे कि एकरा पर गंभीरता से कभी सोचल ना गइल आऊर कुछ ना त खेती के साथे मुर्गी-पालन, मछली-पालन आ गौशाला के ही व्यवस्था हो गइल रहित त बिहारियन के मुम्बई जाके ठेला पर साग-भाजी बेचे के जरूरत ना परित आ ना ही अपना घर-परिवार से एतना दूर जाके रिक्शा चलावे के चाहे अपार्टमेंट-अपार्टमेंट के चौकीदारी ही करे के पड़ित।
भिखारी ठाकुर के भी एह समस्या से जूझे के पड़ल रहे बाकिर एही बीच उनका साथे एगो अच्छा घटना ई भइल कि जब ऊ कुछ कमाये-धमाये लगलन त उनका पढ़ाई में रुचि बढ़े लागल-
“जब कुछ लगलीं माथ कमाये, तब लागल विद्या मन भाये।
माथ कमाईं नेवती चिट्ठी, विद्या में लागल रहे डीठी।
बनिया गुरु नाम भगवाना, उहे ककहरा साथ पढ़ाना। ”
भिखारी ठाकुर के पाण्डुलिपि कैथी लिपि में लिखल मिलल बा। वइसे उनकर शिक्षा-दीक्षा त कुछ खास भइल ना रहे। ऊ रामायण भी टो-टो के ही पढ़त रहले। ऊ जबले अपना गाँव में रहले अपना उमीर के गाँव के दोसरा नाऊ नाहिन गाय चरावत, चिट्ठी-पतरी पेठावत, लोगन के हजामत बनावत आपन समय काट लेहले। बाकिर आपन एतना देह धूनला के बाद भी उनका का मिलल ? एह से अपना गाँव-जवार के दोसर नवजवान नाहिंन उहो ज्यादा कमाये आ परिवार के कलह से बचे खातिर अपना जातीय पेशा के बल पर बंगाल के खड़गपुर भाग अइले।
“अल्पकाल में लिखे लगलीं, तेकरा बाद खड़गपुर भगलीं l”
बंगाल अइला के बाद ही भिखारी ठाकुर के जीवन में परिवर्तन आइल। ऊ बंगाल के मेदनीपुर जिला में रामलीला देखे गइले। ओह रामलीला के उनका जीवन पर एतना प्रभाव पड़ल कि ऊ रामचरित मानस के अध्ययन आ चिंतन-मनन खातिर बेचैन हो गइले। भले ही ऊ टो-टो के ओकरा के बाँचत होखस। बाकिर उनका लगे ओह भावना के समझे के मौलिक शक्ति रहे। –
“गइलीं मेदनीपुर के जिला, ओही जे कुछ देखलीं रामलीला।
ठाकुर दुअरा उहाँ से गइलीं, चनन तालाब समुद्र नहइलीं।
दर्शन करि डेरा पर आईं, खोलि पोथी देखलीं चौपाई।
फुलवारी में जगह बुझाइल, तुलसीकृत में मन लपटाइल। ”
इहई से भिखारी ठाकुर के जीवन में एक नया मोड़ आइल। ओह घड़ी ले उनकर उमिर तीस के लपेट में आ गइल रहे। उनका मन में रामचरित मानस के प्रति जहाँ एक ओर श्रद्धा उपजल उहई दोसरा ओर समाज के कुरीति के प्रति सजगता भी बढ़ल। बंगाल त कवनों भगवान शंकर के त्रिशूल पर अवस्थित रहे ना जेकरा के कवनों परेशानी छू ना सकत रहे। एह से समाज के उहे कुरीति ओहू जा व्याप्त रहे जे भिखारी ठाकुर के गाँव में रहे। अंतर बस इहे रहे कि बंगाल में ओकर स्वरूप बदल गइल रहे।
देश के कोना-कोना में पहिले से ही समाज-सुधार के बयार बहे लागल रहे। राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, ईश्वरचंद विद्यासागर जइसन लोग अपना-अपना सुधार के क्षेत्र में अलख जगा चुकल रहे। ओकर प्रभाव देश व्यापी भइल भी रहे। भिखारी ठाकुर भी ओह प्रभाव के अपना पर पड़े से रोक ना पइले। ऊ बंगाल गइल त रहले कमाये बाकिर उहाँ से रामलीला के गुण सीख के वापस अपना गाँवे आ गइले। अपना गाँवे वापस अइला के बाद ऊ आपन पुश्तैनी काम छोड़ लगले रामलीला करे। फेर आपन नाच-मंडली बनवले आ अपना घर-परिवार से छिपा के लागल नाच के साटा लिखाये।
भिखारी ठाकुर जे बीजरूप में अपना समाज के दुर्दशा के छवि अपना दिल-दिमाग में सँजो के रखले रहले, ऊ बंगाल के बयार लागते अंकुरित होखे लागल रहे। देखते-देखते ऊ अब एगो सघन पेड़ में परिवर्तित भी होखे लागत। एह से ऊ अपना ओही सब भाव के कला में पिरो के अपना आजीविका के साधन बनवले त दूसरा ओर समाज सुधार के हथियार भी। कहल जाला कि ऊ बिना पईसा के कहीं भी अपना नाच-मंडली के ले ना जात रहले। ऊ एह बात के स्वीकारत कहsतारन-
“नाच-मण्डली के धरि साया, लेक्चर दिहीं जै कहि रघुनाथा।
राम शब्द जय जब तब कहिके, सभा खुश करीं नाच में रहिके।
एह पापी के कवन पुन्न से, भइल चहुँ दिसि नाम।
भजन भाव के हाल न जनलीं, सबसे ठगलीं दाम।”
भिखारी ठाकुर के रामलीला से लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़े लागल, जवना चलते इलाका के लोग उनका के जाने-पहचाने लागल। एकरा बाद समाज में व्याप्त कुरीति के प्रति जे आक्रोश उनका दिल-दिमाग में रहे, ऊ ओकरा के नाटक के रूप में जनता के सामने परोसे लगले, जेकरा के दर्शक बहुत पसंद कइलें। उनका 10 नाटकन के एक संपादक-मण्डल द्वारा ‘भिखारी ठाकुर ग्रंथावली खण्ड 1-2’ के रूप में संपादित कइल गइल बा।
भिखारी ठाकुर के सबसे पहिला रचना ह ‘बिरहा बहार’। ई गीत-संवाद शैली में बा। इहे उनकर पहिला नाटक रहे आ गीत पुस्तक भी। बाद में ‘नवीन बिरहा’ के नाम से एगो दोसर किताब निकलल। इनकर अन्य गीत पुस्तकन के नाम बा- भिखारी हरिकीर्तन, नाई-बहार, श्रीनाथ रत्न, रामनाममाला, भिखारी शंका समाधान, जयहिनू खबर, नर नव अवतार इत्यादि। एकरा अलावें उनकर कुछ स्फुट रचना बा जेकर अभी प्रकाशन बाकी बा।
भिखारी ठाकुर के गीतन के विषय के दृष्टि से मोटा-मोटी तीन भागन में बाँटल जा सकेला, जवना में-
भिखारी ठाकुर के कुल 28-29 पुस्तकन के प्रणेता बतावल जाला, जवना में इनका प्रसिद्धि के राज़ छुपल बा। इनका प्रसिद्धि में सबसे बड़ा योगदान इनका नाटकन के ही रहे। जवना के ई लेखन आ निर्देशन ही ना करत रहले बल्कि अपना नाच-मण्डली के साथे ओकरा मंचन में भी आपन सहयोग देत रहले। ई बहुआयामी प्रतिभा के धनी रहले। ई एक ही साथे एगो सफल लोक कलाकार, कवि, गीतकार, नाटककार, रचनाकार, निर्देशक ही ना रहले बल्कि कुशल संयोजक भी रहले। इनका नाचमण्डली में बहुत अनुशासन रहे। ई कभी भी तत्काल लोकप्रियता के ललक में अश्लील प्रस्तुति देके अपना नाच-मण्डली के स्तर गिरवले ना। इनका नाटकन के विषय प्राय: सामाजिक आ पारिवारिक बा। काहे कि ई अपना नाटक के माध्यम से समाज में घटित घटना आ समस्या के ही उठवले बाड़न। काहे कि इनका में समाहित कलाकार जानत रहे ‘नाच कांच हs बात साँच हs’। इनकर सबसे लोकप्रिय नाटक ह ‘विदेसिया’, जेकर कथा अइसन बा कि बिहार के हर गाँव के लोग से आपन निजता के सम्बन्ध जोड़ लेला। सभे के लागेला कि एह नाटक में उनके गाँव के बात कहल बा। एह नाटक के कथा जीविका खातिर गाँव से पलायन के बा। कथा-नायक के गवना कराके अपना कनिया के देहात में छोड़ कलकत्ता कमाये जाये के मजबूरी बा। उहाँ के शहरी चकाचौंध में चौंधिआइल ओकरा मन के शहर के एक औरत के फंदा में फँसला से आपन जिनगी तबाह क लेबे के बात बा। फिर बटोही के समझवला पर अपना घरे वापस आवे के कथा बा। एह नाटक के अंत सुखांत भइल बा।
‘पियवा निसइल’ में गाँव में गृह-उद्योग के अभाव, बाढ़-सूखा के मार झेलत किसान, खेती के वैज्ञानिक संसाधन के कमी, समुचित शिक्षा के अभाव में नैतिक आचरण से क्षीण होत लोग अपना जीविका खातिर दोसर-दोसर नगर-महानगर में पलायन करता आ उहाँ नशाखोरी के ओर प्रवृत हो जाता, जवना के परिणति ई होता कि ओकरा आचरण में अन्य कई दोष भी शामिल हो जाता, जवना के चलते परिवार बर्बाद हो जाता।
‘बेटी बेचवा’ में अपना गरीबी के चलते तिलक ना जुटला के कारण अपना बेटी के दादा के उमिर के आदमी के साथे बिआह के नाम पर बेच देहला के लाचारी बा। एकरा के कुछ लोग बेमेल बिआह के नाम देहले बा बाकिर एक बेमेल बिआह में हमेशा कनिए छोट रहेले कभी भी वर ना। हमरा नजर से अभी ले मात्र एके गो उपन्यास गुजरल बा जे उर्दू के ह। ई उपन्यास राजिन्दर सिंह बेदी के ‘एक चादर मैली-सी’ ह, जवना में देवर से समाज के लोगन के दबाव पर बड़ भाई के विधवा पर चादर डलवा देहल जाता। समाज के सोच देखीं कि ओह चादर के ‘मैली-सी’ कहल जाता। ई प्रचलन खाली बिहारे में ना रहे आ ना ही सिर्फ भिखारी ठाकुर ही एकरा के उठवले बाड़न बल्कि दोसरा-दोसरा भाषा के कई रचनाकार भी अपना रचना के माध्यम से ई मुद्दा उठवले बा। बंगाल के ही कथाशिल्पी शरत चंद चट्टोपाध्याय अपना उपन्यासन में औरतन के मुद्दा उठवले बाड़े। उनकर बहुचर्चित उपन्यास ‘देवदास’ में भी त पार्वती के बिआह तीन गो बच्चा के बाप से करावल जाता। ऊ का बेटी बेचवा के ही रूप ना ह ? मुट्ठीभर अपवाद के छोड़ दीं त पूरा भारत के किस्सा इहे रहे। आजो कभी-कभी कवनों ना कवनों रूप में अइसन घटना देखे-सुने के मिल जाला।
‘गबरघिचोर/ घिचोर बहार’ नाटक में बेटा पर माई, बाप आ प्रेमी के अधिकार पर सवाल उठावल बा। ई नाटक इनकर अन्तिम आ सबसे प्रौढ़ नाटक मानल जाला। एह नाटक में नायिका अपना कोख पर अपना अधिकार के बात करतिया। एह नाटक में स्त्री वर्ग के पुरुष वर्ग के समक्ष खड़ा कइल गइल बा। जवना से आवे वाला पीढ़ी खातिर भिखारी ठाकुर मार्ग प्रशस्त्र कइले बाड़न। एह दृष्टिकोण से ई नाटक ‘विदेसिया’ से बहुत आगे निकल गइल बा। हालाँकि लोकप्रियता के दृष्टि से ‘विदेसिया’ नाटक ही भिखारी ठाकुर खातिर मिल के पत्थर साबित भइल। जबकि कई समीक्षक इनका के एह नाटक के चलते जर्मन के प्रसिद्ध कवि, नाटककार, नाट्य निर्देशक आ ‘बर्लिन एन्सेंबल नाट्य-मंडली’ के मालिक बर्तोल्ट ब्रेष्ट के समकक्ष खड़ा क देले बा आ इनका एह नाटक के ‘कॉकेशियन चाक सर्किल’ के बराबर बतवले बा। वास्तव में एह दूनू रचना में विस्मयकारी समानता ही एह दूनू व्यक्ति के एके धरातल पर ला के खड़ा कर देले बा। जबकि दूनू के कथा भिन्न बा। एकरा अलावें भी भिखारी ठाकुर के कई अन्य नाटक बा, जइसे ‘गंगा स्नान’ जवना में ढोंगी साधु से ठगाइल बा। ‘पुत्र-वध’ में गहना के लालच में बेटा के हत्या के जिक्र बा। ‘विधवा-विलाप में धन खातिर विधवा के मारे के मनसा बा त ‘भाई-विरोध में कुटनी के बात लहरवला से संयुक्त परिवार के टूटन के जिक्र बा।
लोक-कलावंत भिखारी ठाकुर के मातृभाषा भोजपुरी रहे आ ऊ एही के अपना काव्य आ नाटक के भाषा बनवलन। ऊ अपना साहित्य के माध्यम से लोक-जागरण के संदेश वाहक ही ना बनले बल्कि नारी आ दलित विमर्श के उद्घोषक भी बनले। एह से ऊ जहाँ एक ओर अपना नाटकन में नारी के समस्या उठावत रहले, उहई दोसरा ओर उनका नाच-मण्डली में सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगन के तरजीह देहल जात रहे। जइसे-यादव, बिंद, लोहार, नाई, कहार, मनसुर, गोंड, दुसाध, पासी, भाँट इत्यादि जाति के लोगन के। एकर दूगो कारण रहे। पहिला ई कि ई नाच-पद्धति एही लोगन के उपज रहे आ दूसरा कि बहुसंख्यक होके भी जे लोग समाज के हासिया पर रहे ओकरा जीविको पार्जन के साधन जुटावल। भिखारी ठाकुर के नाच में स्त्री पात्र के अभिनय पुरुष पात्र द्वारा स्त्री के साज-शृंगार में कइल जात रहे। जवना के ‘लौंडा’ कहल जात रहे, जेकरा के समाज में हेय दृष्टि से देखल जाला। फिर भी मनोरंजन के एह विधा के ही ऊ अपना जीविकोपार्जन आ सृजनात्मक अभिव्यक्ति खातिर चुनले। ऊ अपना एह नाच-मण्डली के माध्यम से ही लोकप्रिय भी भइले।
भिखारी ठाकुर नाटक के शुरुआत त कइले रामलीला से बाकिर बहुत जल्दी ही रामलीला छोड़ आपन नाच-मण्डली बना लेहले। ऊ अपना नाटकन में गोंड, नेटुआ, धोबी के नाच के नकल भी करत रहलें। उनका जिंदगी में ही उनकर नाम चारो ओर फइल गइल रहे। उनका प्रदर्शन में टिकिट लागत रहे। बावजूद एकरा उनका कार्यक्रम में एतना भीड़ उमड़े कि पुलिस के इंतजाम करे के पड़े। एतना ही ना भोजपुरी के ई अमर कलाकार अपना मण्डली के साथे सिर्फ बंगाल, आसाम में ही ना गइले बल्कि देश से बाहर मॉरीशस, केन्या, सिंगापुर, युगांडा, म्यांमार, नेपाल, मैडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका, फिजी, त्रिनिडाड आदि जगह पर भी गइले जहाँ कम या ज्यादा भोजपुरी संस्कृति रहे।
भिखारी ठाकुर के ब्रिटिश शासन में रायबहादुर के खिताब देहल गइल त बिहार सरकार का ओर से ताम्र-पत्र से सम्मानित कइल गइल। इनकर ‘विदेसिया’ एतना मशहूर हो गइल बा कि आज भिखारी ठाकुर आ ऊ एक-दूसरा के पर्याय बन गइल बा। ‘विदेसिया’ पर फिल्म भी बनल बा जवना में इनका छोटा-मोटा भूमिका भी मिलल रहे बाकिर ओह फिल्म में कहानी बदला गइल रहे।
पं० राहुल सांकृत्यायन उनका के भोजपुरी के शेक्सपियर आ अनगढ़ हीरा कहले बाड़न। सचहूँ अल्प शिक्षा प्राप्त करके ऊ अपना समय से एतना आगे रहले त अगर उनका समुचित शिक्षा मिलल रहित त ऊ का करते? जगदीशचन्द्र माथुर उनका के ओह भरतमुनि-परम्परा के कहले बाड़न, जेकर ‘नाट्यशास्त्र’ भारतीय नाट्य आ काव्य-शास्त्र के आदिग्रंथ ह। सबसे पहिले रस सिद्धांत के चर्चा एही नाट्यशास्त्र में एह प्रसिद्ध सूत्र- ‘विभावनुभाव संचारी भाव संयोगद्रस निष्पति:’ से कइल गइल बा। भरतमुनि अपना एह नाट्यशास्त्र के उत्पत्ति ब्रह्मा से मनले बाड़न।
भिखारी ठाकुर के अपना भविष्य के जानकारी ही ना रहे बल्कि उनका अपना कृति पर एतना विश्वास रहे कि उनकर ई कृति सब दिनों-दिन उनका कीर्ति में चार चाँद लगाई। एह से मानो ऊ अपना एह विश्वास के उद्घोषणा करत कहत होखस –
“अबहीं नाम भइल बा थोरा, जबई छूट जाई तन मोरा।
तेकरा बाद पचास बरीसा, तेकरा बाद बीस दस तीसा।
तेकरा बाद नाम होई जइहन, पण्डित,कवि,सज्जन, यश गइहन।
नइखीं पाठ पर पढ़ल भाई , गलती बहुत लउकते जाई। ”
भिखारी ठाकुर के कहल बात आज साँच साबित हो रहल बा। उनका योगदान के केहू भुला ना सकेला। ओह महान आत्मा के हमार शत-शत नमन आ श्रद्धांजलि।