मोहन पाण्डेय
भारतीय शास्त्र आ पुराण में लिखल बा कि जब-जब धरती पर अत्याचार, अधर्म, अउर पाप बढ़ि जाला तब-तब-भगवान कवनो ना कवनो रूप में अवतार लेके धरम के रक्षा करेलीं अउर पपियन के नास कइके धरती माई के भी दुख हरेलीं। अपने देश में मान्यता हवे कि असुरन के नाश करे खातिर भगवान समय-समय पर अवतार लिहले बानी। त्रेता युग में जब धरती अधरम आ अत्याचार से काँपि गइली आ असुरन के मायावी शक्ति से लोग बेहाल हो गइल तब भगवान खुद रघुकुल में माई कोशिल्या के गर्भ से अवतार लिहलीं। ऊ तिथि रहल चईत शुक्ल पक्ष के नवमी अउर भगवान अभिजीत नक्षत्र में अवतार लिहलीं। चारू ओर अपार खुशी फइलि गईल। बधाई बाजे लागल।
महल में तमाम तरह से खुशी के आयोजन कइल गइल।
रामचरित मानस के महान कवि भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी एह समय के बहुते निम्मन बखान कइले बाड़ें-
नवमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकल पक्ष अभिजित हरिप्रीता।
मध्य दिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक विश्रामा।।
जब ब्रह्मा जी जनलीं कि अब भगवान के परगट भइले के समय आ गइल त सब देवता लोग विमान सजा-सजा के चलल। निरमल आकाश देवतन के समूह से भरि गइल। गन्धर्व लोग भगवान के गुणगान गावे लगल-
“सो अवसर विरंचि जब जाना। चले सकल सुर साजि विमाना।।
गगन विमल संकुल सुर जूथा। गावहिं गुन गन्धर्व बरूथा।।
गोस्वामी जी प्रभु के अवतार के बहुते मनभावन भाव लिखले बाड़ें-
“भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।।
लोचन अभिरामा तन घनश्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयन विसाला सोभासिंधु खरारी।।
बालकाण्ड, पृष्ठ176,रामचरित मानस, गीताप्रेस, गोरखपुर।।
आखिर भगवान के राम रूप में अवतार काहें भइल ए बाति पर चर्चा कइल जरूरी बा।
भगवान भोलेनाथ से माई पार्वती पूछली कि हे भोलेनाथ भगवान के राम अवतार के कारण बताईं आ पूरा कथा बताईं।
“बालकाण्ड मे गोस्वामी जी लिखलीं। माई पार्वती पूछति हईं-
पुनि प्रभु कहहु राम अवतारा। बाल चरित पुनि कहहु उदारा।।
कहहु जथा जानकी बिबाहीं। राज तजा सो दूषन काहीं।।
(बालकाण्ड पृष्ठ 107रामचरित मानस, गीताप्रेस, गोरखपुर)
तब भोलेनाथ कहलन कि-
तस मैं सुमुखि सुनावऊँ तोहीं। समुझि परइ जस कारन मोही।।
जब जब होइ धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।
तब तब धरि प्रभु बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
(बालकाण्ड, पृष्ठ 117।रामचरित मानस, गीताप्रेस, गोरखपुर।।
मतलब इ कि जब जब धरम के हरास होला, नीच, अभिमानी, राक्षस बढ़ि जालें, अउर अइसन अन्याय करेलें कि ओकर वर्णन नाहीं कइल जा सकेला, तब तब कृपानिधान प्रभु अनेक दिव्य रूप में शरीर धारण करके सज्जन लोग के पीड़ा दूर करेलें।
भगवान शिव माई पार्वती से कह रहल बानी कि श्री हरि असुरन के मारि खातिर देवगण के स्थापित करेलीं अउर संसार में आपन निरमल यश फइलावेलीं। इहे कारण हवे श्री राम जी के अवतार के-
असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।
जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु।।
(बालकाण्ड,121) पृष्ठ 117
फिर आगे कहत बानीं कि ओही यश के गाके भगत लोग भवसागर पार क जालें। किरपा सिंधु भगवान भगत जन के हित के खातिर शरीर धारण करेलीं। भगवान के जनम के अनेक कारण बा जवन एक से बढ़ि के एक बा-
सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं।कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं।।
राम जनम के हेतु अनेका।परम बिचित्र एक तें एका।।
(बालकाण्ड, पृष्ठ118,रामचरित मानस, गीताप्रेस, गोरखपुर)
भगवान भोलेनाथ माई पार्वती जी से कहत बानी कि एक कल्प में भगवान बैकुण्ठनाथ, अपने द्ववारपाल विजय के असुर योनि से मुक्ति दिलावे खातिर वाराह अवतार लेके हिरण्याक्ष के अउर नृसिंह अवतार लेके हिरण्यकशिपु के नाश कइलीं। जवन जय विजय, सनकादि ब्रह्मर्षि गण के शाप से असुर कुल में जन्म लिहले रहलें। सनकादि ब्रह्मर्षि गण के शाप रहल कि जय विजय (श्री हरि के द्ववारपाल) तीन जनम तक असुर योनि में जन्म लिहें। रावण कुंभकर्ण के रघुकुल मणि के रूप में अवतार लेके नाश कइलीं।
राम जनम के हेतु अनेका।परम विचत्र एक ते एका।।
जनम एक दुइ कह ऊँ बखानी।सावधान सुनु सुमति भवानी।।
(मानस रहस्य पृष्ठ15,हनुमान प्रसाद पोद्दार, गीताप्रेस गोरखपुर)।
एगो प्रसंग अउर आवेला कि नैमिषारण्य में मनु अउर उनके पत्नी शतरूपा के तपस्या से खुश होके दर्शन दिहलीं तब श्री हरी जी वर माँगेके कहलीं तब मनु जी विनती कइलें कि हे कृपानिधान! रउवाँ से का छिपावे के बा, हम आप ही के समान पुत्र चाहत बानी-
दानि सिरोमनि कृपानिधि नाथ कह ऊँ सति भाउ।
चाह ऊँ. तुम्हहिं समान सुत प्रभु सन कवन दुराऊ।।
( रामचरित मानस, बालकाण्ड, पृष्ठ140गीताप्रेस गोरखपुर।।)
तब भगवान लक्ष्मीनारायण कहलीं कि अपने जइसन पुत्र कहाँ खोजे जाइब हम खुद तोहरे पुत्र के रूप में जन्म लेब। एह तरह से अयोध्या में राजा दशरथ अउर कौशल्या के पुत्र के रूप में भगवान अवतार लिहलीं। पहिले जन्म में इहे दशरथ अउर कौशल्या मनु व शतरूपा के रूप में रहलें।
उहवें नारद जी के श्राप के मान रखे के कारण भी भगवान नारायण के श्री राम के रूप में अवतार लेवेके पड़ल।
*भले भवन घर बायन दीन्हा।पावहुगे फल आपन कीन्हा।।
*बंचेहु मोहि जवनि धरि देहा।सोइ तनु धरहु श्राप मम एहा।।
कपि आकृति तुम कीन्हि हमारी।करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी।।
मम अपकार कीन्ह तुम्ह भारी।नारि बिरह तुम्ह होब दुखारी।।
*।।बालकाण्ड, पृष्ठ130।।रामचरित मानस।।
भक्त वत्सल भगवान जी तुरंत भक्त के श्राप स्वीकार क लीहलीं अउर रघुकुल शिरोमणि के रूप में श्री अयोध्या में अवतार लीहलीं।।
अनेक कारण बा भगवान के अवतार के लेकिन सबके मूल में इहे बा कि जब-जब धरती पर अधरम बढ़ेला, धरती माई पाप के बोझ से व्याकुल हो जाली तब-तब भगवान नारायण, अनेक रूप में अवतार लेके भगत लोग के सुख देलीं अउर पपियन के नाश करेलीं।
भगवान नारायण के अवतार के ई कथा लोक में कल्याणकारी बा सुने अउर सुनावे वाला सबके कल्याण होखेला।
(परिचय- मोहन पाण्डेय हाटा, कुशीनगर में शिक्षक अउर वरिष्ठ साहित्यकार बानी)