राहे-राहे रार करे सगरी हो रामा

May 25, 2021
कविता
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श्री मूंगालाल शास्त्री

राहे-राहे रार करे सगरी हो रामा, चूला चइतवा

ठावें-ठावें ठान देला रगरी हो रामा, खुलमखुला चइतवा

 

बरगद ना बरजेला पछुआ अ बाटी,

दिने दुपहरे के फाड़े रहरी के टाटी,

रहरी के टाटी रामा रहरी के टाटी,

ओरहन पर लूती लहसावे हो रामा, आगबबूला चइतवा

 

साचे-साचे झूठ फ़रियावे हो रामा, लुचा चइतवा,

महुवा टपक बतियावे हो रामा, बतकुचा चइतवा,

दिने होहकारे देहे बस्तर हटाने,

भोरे सिहरावन जाड़ हडी कंपाने,

बाछी बेच कमर किनवावे हो रामा, छूछा चइतवा

सांचे-सांचे …

 

चिरइन के पाँख फड़फड़ाइल हो रामा, उल्हा चइतवा,

झोंझि के खोता खलियाईल हो रामा, मुल्हा चइतवा।

बाँह पीठ पेट कहीं ना ता नपाइल,

देह दूर देस कहीं तिसुआ टंगाइल,

पीरीतिया के गांठ ना कसाइल हो रामा, लुल्हा चइतवा

चिरइन के पाँख…

 

 

 

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