देवनागरी लिपि के पहिला व्यंजन, अंक शास्त्र के सातवां अंक आ वीर कुँवर सिंह

June 2, 2021
आवरण कथा
0

कृष्ण कुमार

      देवनागरी लिपि के पहिला व्यंजन ‘क’  से शुरू होखे वाला कुँवर सिंह आ 1857 के सिपाही विद्रोह के भीष्म पितामह बाबू वीर कुँवर सिंह एगो अइसन वीर पुरूष रहीं जे अन्याय, अत्याचार आ शोषण के खिलाफ ना कबो आंख मूंदनी आ ना कबो सिर झुकवनी। राउर जनम बिहार के पुरान आ सबसे बड़ जिला शाहाबाद आ नयका जिला भोजपुर के जगदीशपुर में 23 अप्रैल 1977 के भइल रहे। रावां मालवा के राजा भोज के वंशज रहीं। शाहाबाद के आन-बान-शान के प्रतीक राउर बाबूजी महाराजा साहबजादा सिंह आ माई महारानी पचरतन देवी रहनी। रउआ भारत के पहिला स्वतंत्रता संग्राम में आपन अतुलनीय धीरज आ अलौकिक वीरता के परिचय देनी। ईस्ट इंडिया कंपनी के फौजन के साथे अनेक लड़ाईअन में विजय प्राप्त कइनी। रउआ छापामार युद्ध में महारत हासिल रहे। रउआ रणनीति आ युद्ध कौशल के समतुल्य ओह समय मे केहू ना रहे। रउआ रणकौशल के समझे में अंग्रेजी सेना हमेशा असफल रहल। रउआ सोझा अंग्रेजी सेना के अइला के बाद ओकरा मात्र दू गो राह रहे–चाहे त तलवार के धार  से कटा जाये के चाहे सोझा से भाग जाये के।

बंगाल के बैरकपुर छावनी के सिपाही वीर मंगल पांडे अंग्रेज अपसरन के परेड मैदान में गोली मार देनी, जवना के चलते 8 अप्रैल 1857  के मंगल पांडे के ओहिजे अंग्रेज कोर्ट मार्शल  क देलें स। मंगल पांडे के मृत्यु समूचा भारतवर्ष के ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ खउला देलस। जगह-जगह सिपाही विद्रोह शुरू हो गइल। 25 जुलाई 1857 के दानापुर के सिपाही विद्रोह क देलें आ आरा के तरफ चल देलें। ऊ लोग जगदीशपुर पहुंच के कुँवर सिंह से संपर्क कइलें। ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ अस्सी साल के उमिर में रउआ बगावत कइनी। विद्रोही सिपाही लोग के एगो मात्र नारा रहे- ‘जगदीशपुर चलीं जा….। ‘ रउआ रते राति आरा जेल के फाटक तुरि के सब कैदी लोग के मुक्त कइनी आ ओह लोग के साथे एगो सेना तइआर कइनी आ ओहि राति आरा के आजाद कराके आपन शासन व्यवस्था कायम क लेनी। बीबीगंज, कायमनगर, नारायणपुर आ दुलौर के लड़ाई में अंग्रेजन के बुरा तरह से पराजित कइनी। बाकिर बाद में कंपनी सरकार रउआ के रियासत से बेदखल कर देलस। तब रउआ एलान कइनी–‘जहंवा कुँवर सिंह, ओइजे जगदीशपुर ….।’ – ई अइसन घोषणा रहे जेकरा वजह से अन्त दाव तक राउर फौज रउआ से बन्हाइल रहल…।

रउआ एगो बेटी आ दू गो बहादुर बेटा रहे लोग –दलभंजन सिंह आ ब्रजभंजन सिंह। दलभंजन सिंह के एगो बेटा रहन वीरभंजन सिंह जे 8 अक्टूबर 1857 के उत्तरप्रदेश के बांदा में अंग्रेजन के साथे लड़ाई में मारल गइले। ब्रजभंजन सिंह के कवनो बाल बच्चा ना रहे। राउर बेटा दलभंजन सिंह भी 7 नवंबर 1857 के गोरा सरकार के साथे महासमर में कानपुर में शहीद हो गइले। रउआ प राउर बाबूजी महाराजा साहबजादा सिंह के अधिका प्रभाव रहे। 1857 के क्रांति के विद्रोही सिपाहियन के रावा सबसे बड़का नायक रहीं। इतिहास गवाह बा, रउआ नौ महीना तक लगातार पैदल चलल रहि गइनी। ब्रितानी फौज के सामने कबो घुटना ना टेकनी। पोता आ बेटा के शहीद भइला के बादो पांच महिना तक लगातार अंग्रेजन से लोहा गाहत रहि गइनी। बलिया (उ.प्र.) से जगदीशपुर लवटे के बेरा गंगा नदी में शिवपुर घाट से तनिका दूर अंग्रेजन के गोली से घाही हो गइनी। बांहि में गोली लागल रहे। बीच गंगा में अपने तलवार से आपन बांहि काटि के रउआ गंगा  मइया में अरपि देनी। देहि से बहुत खून निकल गइल रहे। कसहूं जगदीशपुर अइनी। 26 अप्रैल 1958  के रउआ अपना तीन पिढियन के शहादत के बाद आपन प्राण तेयाग देनी। अंग्रेजन के हाथे राउर लाश तक ना भेंटाइल। एकरा सबूत में शाहाबाद के कलक्टर एच. आर. मैडाक्स एस्कायर के ऊ पतरी बा, जेवना में ऊ लिखले बाड़े- “जगदीशपुर से आठ मील दूर बाबूसाहेब का दाह संस्कार कर दिया गया। गोरा सैनिक उनकी लाश तक हासिल करने में असफल रही.।”

जिला मुख्यालय आरा नगर से तीस किलोमीटर दूर पच्छिम आ जगदीशपुर में स्वाधीनता संग्राम के लड़ाई के अमर योद्धा बाबू वीर कुँवर सिंह के विराट किला, झंझरिअवा पोखरा, राजा के पोखर के ईदगाह,  किला परिसर में शहीद बाबा दाता करीम शाह रहमतुल्लाह अल्लोह के मजार आजुवो मौजुद बा, जवन देखे लायक बा। आरा शहर में राउर ऐतिहासिक स्थल के रूप में आरा हाउस, रावा समक्य के अस्तबल (मौजूद समय में आरा जेल), बाबू बाजार में स्थित काली मंदिर, पाकशाला (मौजूद समय में जिला स्कूल), लोगन खातिर धरोहर के रूप में स्थापित बा। एकरा अलावे रावा सेना के वीरांगना बहिन करमन  बाई आ धरमन बाई के नाम पर करमन टोला आ धरमन चौक प मस्जिद, महाराजा कालेज में स्थित राउर कार्यालय विभिन्न सम्प्रदाय, वर्ग आ बुद्धिजीविअन खातिर आजुओ श्रद्धा आ अस्था के केंद्र बनल बा। रउआ हिंदू मुस्लिम एकता के हिमायती रहीं। एहि से किला मैदान परिसर में मजार, राजा के पोखरा में ईदगाह, आरा के धरमन चौक प विशाल मस्जिद मौजूद बा। राउर स्मृति धरोहर बिहार के अलावे अवरू जगहा प भी देखे लायक बा। जइसे देवघर के शिधारघाट, कौंरा के विश्राम दलान, बीबीगंज के हाता, दुसाधी बाजार पीरो, दलीपपुर गढ़, कैथी कोठी, मिठहां कोठी, भदवर गढ़, बराढ़ी गढ़, राज श्मशान घाट, जगदीशपुर से आरा के भुजावरा, मोर्चा के जंगी मैदान आ शिवपुर घाट …।

गौतम ऋषि के घरनी अहिल्या लेखा ई सब जगहा अपना जीणोद्धार के बाट निहारता आ न्याय के गुहार लगावत बा कि बाबूसाहेब के स्मृति के राष्ट्रीय स्तर प पर्यटन के दर्जा आजु ना काल्हु कवनो ना कवनो देशभक्त जरूर दीहें। रउवा जीवन आ संघर्ष से जुड़ल कतना लेख-अभिलेख, अस्त्र-शस्त्र आ दुर्लभ समान रख रखाव के अभाव में बिला गइलें स। तबो राउर ढ़ेर निशानी अबहिं जगदीशपुर किला संग्रहालय में प्रशासन के कृपा दृष्टि से अगोरात हमनी के बाट खोजत बा।

भारतवर्ष आ वीर कुँवर सिंह:–-कवनो-कवनो  राति बड़ा अकरावन होला। कतनो कोशिश करीं नींन आंखिन से कोसहन फरका परा जाला। अनभुआर अस लागेला। बुझाला, कुछ भुला गइल होखे। अन्हरिया रात रहला प अवरू अखड़ेला। अइसने राति से हमरा एक बे सबाका परल। इ मकान मई डाढ़े दउरे लागल। हमरा कान में काल्हु सांझि के बारिश के पहिले ओला तेज हवा के सांय-सांय ठांठ मारे लागल।

एका एक भारतवर्ष आ वीर कुँवर सिंह हमरा जेहन में पइसि गइनी। पहिले 1857 के सिपाही विद्रोह आ 1947 के भारतवर्ष के आजादी वाला साल दिमाग प दस्तक देलसि। एह दूनों साल के जोड़-घटाव में भीरनी –1857—1+8+5+7=21,  1947—-1+9+4+7=21, दूनों साल के सभ अंकन के जोड़ एक बराबर(21)। एह सासे बढ़ोतरी आगा बढ़ल। सोच के नया वितान खुलल। नियति के धन्यवाद देनी। दिमाग लम्मी लेलस। वीर कुँवर सिंह के जनम वर्ष 1777 पर गौर कइनी। एक साथे तीन गो सात। आगे बढ़नी। वीर कुँवर सिंह के जनम 1777,  सिपाही विद्रोह -1857, भारतवर्ष के आजादी-1947—–सवाल-दर-सवाल आ जवाब-दर-जवाब बदरी लेखा दिमाग में उमड़े घुमड़े लागल। एह तीनों साल प गौर कइनी। तीनों साल के अंतिम अंक –7 मिलल। फेरू तीन गो सात। ऊपर के दूनों साल 1857 आ 1947 के योगफल 21 में एह तीनों साल के 3 से भाग देनी—21÷3=7,  यानि भागफल 7 मिलल। गणित के अंक 7 भारतवर्ष खातिर अद्वितीय अंक मानल जाला। सात अंक के ई सुखद संयोग हमनिन के भारतीय संस्कृति आ विज्ञान से संबंधित ह। अंकशास्त्र के अनुसार नवंबर सात के लक्की अंक मानल जाला। जइसे— सप्ताह के सात दिन, सात चक्र बीज मंत्र, सात न्यायाधीश लोग के द्वारा दिहल गइल सलाहकार मत, इसलाम के सात आसमान, हिन्दू के सात लोक, शादी के सात फेरा, सात वचन, सात जनम, सात सुर, सात समुद्र, इन्द्रधनुष के सात रंग, सप्तऋषि मंडल, देवी जी के सात बहिन आ भारतवर्ष के ऊ सात महिला, जे परिस्थिति से हार ना मनली, चुनौतिअन के कबूल कइली, ओकरा के पूरा क के दोसरा खातिर मिसाल रखली, जेकरा के साल 2020  के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी आपन सोशल मीडिया अकाउंट सौंपि देनी आदि……। शायद एहि बात के ध्यान मे राखि के नवरात्र में दुर्गा माता के पट सप्तमी तिथि के ही खुलेला। फेरू कुँवर सिंह के जनम 1777 आ मृत्यु 1858 और दिमाग दउरल। ओह दूनों साल के योगफल निकलनी —-1777—-1+7+7+7=22, 1858—1+8+5+8=22, फेरू एगो साम्य बाइस। एकइस के बाद बाइस आवेला। नियति वीर कुँवर सिंह आ भारतवर्ष के बीचे साल-वर्ष के ममिला में एगो तारतम्यता स्थापित कइले बिया। एह स्थापना के अंजोर में ले आवे खातिर ओहि राति हम “वीर कुँवर सिंह सोहर” रचनी आ अपना बेटा पुष्कर कुमार के यूट्यूब चैनल प 8 अक्टूबर 2019 के लोड करववनी। ऊ सोहर अपने सभे के अवलोकनार्थ एह आलेख के साथे प्रस्तुत कर रहल बानी। रउआ पाठक लोगन के बेबाक प्रतिक्रिया के इन्तज़ार हमेशा रही……

वीर कुँवर सिंह सोहर “

जगदीशपुर नगरिया बड़ा नामी, त जाने सभ लोग नु हो ।

ए साहेब ऊहंवा के बाबू कुँवर सिंह, बड़ा बलवान रहनी हो ।।

तेईस अप्रैल शुभ दिनवा, त साल सतरह सत्तहतर रहे हो।

ए साहेब पंचरतन के अंगना फुलइलें त बाबूजी साहबजादा सिंह हो ।।

मलवा के नामी राजा भोज रहन, उनके वंशज कुंवर सिंह हो ।

ए साहेब बड़हन जगिरवा के मालिक, जगदीशपुर में किला बाड़ें हो ।।

गोरन के नजर पलटि गइलें, जगिरवां छिनाई गइलें हो ।

ए साहेब बड़ा ए धीरजवा से काम लेलें, तनि ना अधीर भइलें हो ।।

बलिया के बागी मंगल पांडे, त अगिआ लगाई देलें हो ।

ए साहेब बैरकपुर छवनिआ लागल लहके, त संउसे देशवा जागि गइलें हो ।।

आठ अप्रैल काला दिनवा, त साल अठारह सनतावन रहे हो ।

ए साहेब मंगल पांडे फंसिआ प झुलि गइलें, भारत खउलि गइलें हो ।।

लखनऊ से बेगम हजरत महल, त कानपुर से नाना साहेब हो ।

ए साहेब लियाकत अली खाड़ भइलें इलाहाबाद से, झांसी से लछमी बाई हो ।।

बिहार से खाड़ भइले कुँवर सिंह, साथवा में पीर अली हो ।

ए साहेब गोरिला लड़ईआ के बीरवा, त हाथें तलवार लेलें हो ।।

दानापुर छवनिआ के सैनिक, आपन नेता चुनि देले हो ।

ए साहेब अस्सी ए बरिसवा के कुँवर सिंह, फेरू से जवान भइलें हो ।।

जगदीशपुर से बिज्जू घोड़ा कसइलें, त गोरन के काटे लगलें हो ।

ए साहेब आरा हाउस मचल घमसनवा, त डगलस पराई चलल हो ।।

आजमगढ़ से चलल रहे डगलस, लाव-लश्कर साथ रहे हो ।

ए साहेब शिवपुर घाटवा मलिन भइलें, कुँवर सिंह घाही भइलें हो ।।

छब्बीस अप्रैल अठारह स अठावन रहे, कुँवर सिंह अमर भइलें हो ।

ए साहेब खोजत रहि गइलें अंग्रेजवा, त फुलवों ना भेंटाइल हो ।।

सनतावन-सैंतालीस के मति फरक करीं, कुँवर सिंह के इआद करीं हो ।

ए साहेब उहें के प्रभुतइया से भारत, सैंतालीस में आजाद भइल हो।।

जगदीशपुर के नियरे बराढ़ी गांव, ओहिजे के निर्मल सिंह हो ।

ए साहेब कुँवर सिंह फाउंडेशनवा के माध्यम से कुँवर के जिअवले बानी हो ।।

 

Hey, like this? Why not share it with a buddy?

Related Posts

Leave a Comment

Laest News

@2022 – All Right Reserved. Designed and Developed by Bhojpuri Junction