संपादक- मनोज भावुक
टीवी पर रात-दिन एगो ऐड आवsता, जे, मैंने अपने बच्चे को कोचिंग से निकालकर सोचिंग में डाल दिया है। खैर, ओह ऐड के संदर्भ दोसर बा बाकिर व्यापक फलक पर देखला पर ई बहुत कुछ सोचे-समझे खातिर मजबूर कs रहल बा।
एह कोरोने काल के देख लीहीं। लोग अपना राजनीतिक पार्टी, सम्प्रदाय, क्षेत्र, देश, परिवेश भा संस्थान से प्रत्यक्ष भा परोक्ष रुप से जवन ट्रेनिंग (कोचिंग) लेता, ओकरे हिसाब से स्टेटमेंट देता। व्यवहार करता। कोचिंग के ज्ञान भा पूर्वाग्रह से ऊपर उठ के सोचिंग के एक्सट्रीम पर उ जाते नइखे। ओशो के एगो किताब ‘’ नये भारत की ओर ‘’ में हम पढ़ले रहनीं जे, ” जिंदगी रटे हुए उत्तर नहीं चाहती। जिंदगी चाहती है विचारपूर्ण चेतना..”
कोचिंग भा स्कूल भा कॉलेज त एही खातिर बनले होला, जे आदमी सोचे के सीखे। ज्ञान त रॉ मटेरियल हs सोच खातिर। सोच के संबंध सिचुएशन से बा। सिचुएशन के हिसाब से सोचे के पड़ी।
कोरोना काल में सबसे जरूरी का बा ? जान बचावल। अपने ना, दोसरो के। जान बचावे खातिर सबसे जरूरी का बा ? अपना पार्टी-पउआ, संप्रदाय आ क्षेत्र के कोचिंग से बहरी निकल के सोचिंग में घूसल। जहवाँ आदमियत पर फोकस ढेर होखे। बाकिर लोग लाशो प सियासत कs रहल बा। मरणासन्न लोगन के परिवारन के मजबूर क के आपन तिजोरी भर रहल बा। दवा आ जीवन रक्षक सामान के कालाबाजारी कs रहल बा। आ ई सब करे वाला मनई कवनो अनपढ़ नइखन। ई लोग कोचिंग कइले बा। बाकिर एह लोगन के कोचिंग के ज्ञान सोचिंग ले जाते नइखे। गइल रहित त इहो लउकित कि ई रस्ता ओह लोगन के कहवाँ ले ले जाई। कर्म के अंतिम परिणामओ लउकित। माल आ मलाई के चक्कर में ई लोग राछछ बनल बा।
कोरोना काल में कालाबाजारी, जमाखोरी, ऑनलाइन ठगी आ हॉस्पिटल के मनमाना बिल से मिलल लग्जरी लाइफ एह लोग के सकून ना छीनत होई ? इ सब ज्ञानी लोग हs। कोचिंग कइल लोग हs।
एने तीन दशक में कोचिंगे त बढ़ल बा। हर चीजवे के कोचिंग बा। हँसे के कोचिंग। रोवे के कोचिंग। नाचे के कोचिंग।. फिटनेस के कोचिंग। करियर के कोचिंग। पर्सनालिटी-डेवलपमेंट के कोचिंग। चले तक के लूर-ढङ सिखावे के कोचिंग। अतने ना, कोचिंग करावे के कोचिंग ! … दू का, दू का, दू का !
पढाई-लिखाई, फिटनेस, पर्सनालिटी-डेवलपमेंट आ करियर सबके कोचिंग-काउन्सिलिंग खुल गइल, बाकिर आदमी के आदमी बनावे वाली ब्रम्हचर्य आश्रम में जवन पढ़ाई-लिखाई होत रहे, ऊ गायब हो गइल। प्रोफेशनल प प्रोफेशनल कोर्स बढ़त गइल, ओकर कोचिंग बढ़त रहल। बाकिर आदमी आदमी से मशीन बन गइल। पइसा कमाए वाली मशीन। ऊ कोचिंग क के कमाता। पइसा कमाए का फेरा में ऊ पूरा बाई के बेग में धउर रहल बा। पेड़ कटाता। कंकरीट के जंगल में फ्लैट बुक होता। गला काट प्रतियोगिता क के करोड़न के कार किनातिया। करोड़न के डेस्टिनेशन-मैरीज होता। जेकरा लगे करोड़ नइखे उ करोड़ के चिंता में मुअsता। बाकिर, केहू के ई होश नइखे जे ई सब जिनगी खातिर संजीवनी तत्त्व ऑक्सीजन आ शुद्ध भोजन के कीमत प हो रहल बा। ई सभ सुख अछइत सुख नइखे। त तड़पीं ऑक्सीजन खातिर। पीहीं केमिकल वाला दूध। खाईं सुई घोंपल घेंवड़ा आ लउकी।
कोचिंग से जिनगी ना सुधरी ए चनेसर! … सोचिंग से सुधरी। अच्छा आहार तन खातिर आ अच्छा विचार मन खातिर सबसे जरुरी बा. .. आ तन-मन ठीक रही त कोचिंग के रस्ता सोचिंग ले जाई। तब आदमी आदमियत के साथे जिन्दा रही। बिना सोचिंग के कोचिंग त मानवता के दुश्मन, क्रिमिनल आ देशद्रोही पैदा करेला।
कोचिंग आ सोचिंग में कुछ मूलभूत फरक बा, ई समझे के जरुरत बा।
कोचिंग में दोसरा प निर्भर रहल जाला। जबकि सोचिंग आत्म निर्भर, आत्म मंथन आ आत्मचिंतन के प्रकिया हs। सोचिंग ज्ञान के तत्त्व मन में बइठावल ह। जबकि कोचिंग बेबुझले-समझले सोझे रट्टा मारल हs।
कोचिंग के ज्ञान से धनओ कमाके मनई सुखले रहेला। जबकि सोचिंग के प्रकिया से आदमी कम रहलो में खुश रहेला। कोचिंग असंतोष बढावेला। सोचिंग संतोष देला। ‘आत्म दीपो भवः’ के भाव जगावेला।
एही से कहsतानी, जे लइकन के कोचिंग में डाले से पहिले सोचिंग में डालीं। विचारपूर्ण चेतना आ मानवीय मूल्यन से भरल पूरल अदमिये एह धरती के बचइहें। मशीनी आदमी त विनाशे करी।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया… ईश्वर सबका के निरोग राखस…