ज्योत्स्ना प्रसाद
‘कहानी के प्लॉट’ भोजपुरी-हिन्दी के नया दौर के सुप्रसिद्ध रचनाकार मनोज भावुक के लिखल एक प्रेम-कथा ह l ई कहानी बाबरी मस्जिद के ध्वस्त भइला से उत्पन्न धार्मिक उन्माद के बीच पनपल हिन्दू लइका आ मुस्लिम लइकी के बीच के प्रेम-कथा ह l जवना में पारिवारिक परिवेश आ समय के तकाजा के कारण कथा-नायिका शबनम के श्वेता आ कथा-नायक राहुल के सरफराज बने के पड़ता l बाकिर ओह लोगन के प्यार में ना धोखा भा छल बा आ ना ही कवनों तरह के व्यापार l
एह कहानी में नायक-नायिका के प्रेम छात्र-जीवन के प्रेम ह l जवना में शारीरिक आकर्षण में मर्यादा भंग होखे के संभावना अधिक रहेला l बाकिर एह लोगन के प्रेम, शारीरिक प्रेम ना होके एक सच्चा प्रेम ह जवना के चलते नायक-नायिका एक-दूसरा के बहुत चाहता l एह से ई लोग कभी भी अपना क्षणिक सुख खातिर एक-दूसरा के रुसवा करे के नइखे चाहत l नतीजतन ई लोग कभी भी अपना कवनों आवेग के पल में मर्यादा के लँघलस ना l
कहानी चाहे कवनों भी विषय पर काहे ना लिखल गइल होखे l बाकिर कवनों भी कहानी के पाठक के हृदय में जगह बनावे खातिर पहिला शर्त होला कि ओह कहानी के रोचक होखे के चाहीं l काहेकि कहानी जब रोचक होई तबे नू सामान्य पाठक ओकरा के पढ़ी l एह से कवनों भी कहानी में कहानीकार के ई जिम्मेदारी बनता कि ऊ ओह कहानी में पठनीयता आ कौतूहल ई दूनू तत्व के डाले l काहे कि कथा-साहित्य के अर्थ ना ही कोई शोधकार्य होला आ ना ही कवनों ऐतिहासिक दस्तावेज l एह से ऐतिहासिक पृष्टभूमि पर लिखल कहानी में भी प्रमाणिकता के तकाजा ना होखे l बाकिर आजकल के तथाकथित बौद्धिक वर्ग के कुछ आलोचक ऐतिहासिक परिवेश में लिखल कवनों कहानी में ओह कहानी के प्रमाणिकता आ शोध के कसौटी पर ही कसता l जवना के नतीजा ई हो गइल बा कि आजकल के बहुत-सा कहानी कथा-साहित्य के उद्देश्य आ परिदृश्य से कट के रह गइल बा l एह से कवनों कहानी के रचनात्मकता आ पठनीयता के ओर मुड़ल बहुत जरूरी हो गइल बा l काहे कि इहे कथा-साहित्य के अचूक तत्व ह l रोमांच आ शोध ना l
‘कहानी के प्लॉट’ अपना शीर्षक से सहज ही हमरा के अपना ओर आकर्षित कइलस आ हमरा के अपना छात्र-जीवन में ले गइलस l जहाँ हम आचार्य शिव पूजन सहाय के लिखल कहानी ‘कहानी का प्लॉट’ पढ़ले रहनी l बाकिर हम ज्यों-ज्यों मनोज भावुक के लिखल कहानी पढ़े लगनी हम ओह कहानी में रमे लगनी l
आचार्य शिव पूजन सहाय जी के कहानी से एह कहानी के बस शीर्षके भर मिलता l बाकिर कथानक बिलकुल एक-दूसरा से भिन्न बा l आचार्य शिव पूजन सहाय के कहानी दहेज-प्रथा आ गरीबी पर आधारित बा l जवना में सूत्र-वाक्य बा- ‘सचमुच अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी बड़ी जहरीली होती है l’ जबकि मनोज भावुक जी के कहानी में प्रेम आ कर्तव्य के बीच के कशमकश बा l एह कहानी के सूत्र-वाक्य बा-‘..हम केकर दोष दीं ..ए रूढ़िवादी समाज के.. अपना दुर्भाग्य के.. आ कि माई खातिर बेटी के कर्तव्य के..l’
कवनों भी साहित्यकार कवनों ना कवनों समाज के उपजही होला l बाकिर समाज के सही रास्ता पर ले जाये के जिम्मेवारी भी ओकरा कंधा पर होला l ई बात दोसर बा कि ओकर तरीक़ा एक समाज सुधारक के तरीक़ा से भिन्न होला l ऊ कुनैन के गोली भी देला त मधू में लपेट के l मनोज भावुक जी के ई कहानी उहे कुनैन के गोली ह l जे मधू में लपेट के समाज के सामने परोसाइल बा l कवनो भी कुशल रचनाकार अपना रचना के माध्यम से अपना समाज मे व्याप्त कुरीति पर प्रहार त करेला बाकिर एक रोचक अंदाज से l जवना से बात पाठक के सीधे दिल पर चोट करे l बाकिर उहो अपना लेखनी के ओह सरस अंदाज से जवना से पाठक ओह कहानी में घटित घटना में रमत जाय l ओही में गोता लगावत आ ओही कहानी के पात्रन से आपन सम्बन्ध जोड़त ख़ुद ही ओह निर्णय पर पहुँच जाय जे बात कहानीकार स्वयं कहे के चाहत होखे l एही से कवनों कुशल रचनाकार जब अपना समाज में व्याप्त कुरीति पर प्रहार करेला तब ओकर अन्दाज बड़ा कंविंसिंग रहेला l जवना के चलते पाठक ओकरा बात से सहमत होत जाला l एह कोशिश में भावुक जी सफल भइल बाड़न l काहेकि एह कहानी के पात्रन के प्रति पाठक के सहज सहानुभूति हो जाता l
मौलिक रूप से ई कहानी एक वियोग प्रेम-कथा ह l काहेकि एह कहानी में नायक-नायिका के प्रेम के एकीकरण नइखे हो पावत l बाकिर एकर ई अर्थ ना भइल कि ऊ लोग अपना के ओह दर्द में डूबा के मटियामेट कर देहले होखे l एकरा ठीक विपरीत ओह लोगन के ओह संकुचित प्रेम के उदात्तीकरण हो जाता l जवना में एतना विस्तार हो जाता कि ओह प्रेम में ओह लोगन के आपन माई-बाप, घर-परिवार, धर्म-समाज आ आपन करियर तक सब कुछ समाहित हो जाता l
जीवन के उद्देश्य अपना स्वार्थ खातिर अपनहियन के प्राण हरल ना ह l सत्य-साहित्य के उद्देश्य भी सिर्फ मानव के रक्षा कइल ना ह बल्कि ओकरा अस्मिता, गरिमा आ मानवता के ओह वर्णित-परिवेश में संरक्षण कइल भी ह l
हालाँकि ई कहानी दिसम्बर 1992 के अयोध्या में बाबरी मस्जिद ध्वस्त भइला के परिणाम स्वरूप देश में उत्पन्न परिस्थिति के मध्य के कहानी ह l बावजूद एकरा एह कहानी में कहीं भी अपना समाज के विद्रूप छवि के प्रत्यक्ष चित्रण नइखे भइल l
कहानी के प्रारंभ पत्र-शैली से होत त नइखे l बाकिर कथा के नींव ही पड़ता कथा-नायिका के ओह चिट्ठी से, जे कथा-नायक के भौजाई के हाथे लाग गइल बा l जेकरा के ऊ पढ़sतारी l वइसे ऊ चिट्ठी भी कोई सामान्य प्रेम-पत्र नइखे l बल्कि अतीत के पूरा घटना-चक्र के अपना में समेटले बा l ओही चिट्ठी से पता चलsता कि ई कहानी एक प्रेम-कहानी ह l जवना में छात्र-जीवन के प्रेम के साथे-साथे अपना जीवन में मुकाम हासिल करे के संघर्ष आ अपना माई-बाप के प्रति कर्तव्य-बोध के निर्मल धारा भी रह-रह के प्रवाहित हो रहल बा l
एह कहानी के कथा-वाचक स्वयं कथा-नायक ही बारन l जेकरा अइसन बुझाता कि ऊ अपना जीवन-कथा के अपना साथी से कहsतारन l बाकिर कहानी के अंत में पता चलsता कि ऊ बात त स्वयं से ही करत रहले ह l फेर उनका बुझाइल कि केहू उनका से पूछत होखे- ‘..कहानी के प्लॉट ह कि हकीकत के पोस्टमार्टम ?’
राहुल अपना परिवार के बारे में बतावsतारन- ‘हम अपना घर के खुलल माहौल से वाकिफ रहनी l’ बावजूद एकरा उनका एह बात के एहसास रहे कि उनकर माई के जब वास्तविकता के जानकारी होई त ओकरा पर का बीती ? ‘का हमार माई ई बर्दास्त कर पाई कि ओकर बहू हिन्दू ना मुसलमान लड़की हs जेकर असली नाम शबाना ह l आ अगर ऊ बर्दास्त कइयो ली, अपना बेटा खातिर त का बेटा के इहे फरज ह कि ऊ अपना स्वार्थ खातिर अपना महतारी के एह बुढ़ापा में अइसन आत्मिक कष्ट देवे जवना में ऊ रूढ़िवादी समाज से टकरात-टकरात दम तूड़ देव l ना-ना ई हमरा से ना हो सकी l’ एह से ऊ अपना जीवन के सच्चाई के कहानी के प्लॉट बतावsतारन l एह तरह से एह कहानी के शीर्षक भी सार्थक हो गइल बा l दोसरा ओर शबाना जेकर माई स्वयं एगो डॉक्टर हई l बावजूद एकरा ऊ अपना माई के बारे में राहुल से कहsतारी- ‘राहुल देखs हमार माई एगो डॉक्टर होइयो के बड़ी कड़ियल आ कट्टर धार्मिक भावना वाली महिला हियs l तू हमरा घर में राहुल बन के त ना चल सकेलs, एह से तू हमरा खातिर एगो नाम रख लs l’ एह तरह से अपना-अपना छद्म नाम में राहुल मुहम्मद सरफराज खाँ हो गइले आ शबाना श्वेता हो गइली l
चूँकि श्वेता आ सरफराज दूनू नाम छद्म रहे l एह से ओह लोगन के एह बात के एहसास भी रहे कि धोखा से जीवन ना चले l एह से ई दूनू नाम भी ओह लोगन के जीवन में बहुत दूर ले साथ ना दे सकी l इहे सोच के शबाना कहsतारी- ‘हमार माई त कहिए से सरफराज के आपन दामाद मान चुकल बिया l जब ओकरा ई पता चलल रहे कि सरफराज हमेशा खातिर कानपुर छोड़ देहले बाड़न आ उनकर कवनों पता ठेकान हमरा पास नइखे, त ऊ बड़ा दुखी भइल l’ उहे शबाना अपना माई के बारे में आगे कहsतारी-‘बाकिर उहे माई जब ई जानी कि ओकर दामाद मुसलमान ना..हिन्दू हउवन त ओकरा प का गुजरी l ऊ हिन्दू के त फूटलो आंखि ना देख सकेले आ जब से बाबरी मस्जिद ढहल, तब से त आउरो ना l एमें रिश्ता के बात सोचल त..l’ राहुल भी एह शादी के परिणाम से वाकिफ रहले l बाकिर जब उनका जवान हृदय में शबाना के प्यार जोर मरलस तब ऊ सब कुछ भुला गइले आ उनका- ‘बुझाइल जे सामाजिक रूढ़िवादिता के महल जर के राख हो गइल आ हमनी एक हो गइनी l’ बाकिर उनका दिल में उठल प्रेम के ई आवेग भी ढेर देर ले उनका के आह्लादित ना कर सकलस l काहेकि तुरते उनका अपना वर्तमान परिस्थिति के एहसास हो गइल l काहेकि उनका- ‘तलहीं ओह राख में दू गो परिवार के ढेर लोग के लाश लउकल l’ एकरा बाद उनकर जोश ठंढा पड़ गइल आ ऊ पटना वापस लौट गइले l
एह कहानी में भावुक जी प्रथम-मिलन के प्रथम एहसास के बहुत अच्छा वर्णन कइले बाड़न l श्वेता कहsतारी-‘ तू कइसे भूला गइलs ओह पहिला मुलाकात के, जब ‘विवेकानन्द भारत परिक्रमा’ कार्यक्रम के दौरान तू हमरा के फूल के गुलदस्ता भेंट कइले रहलs,.. हमार अंगुरी, तहरा अंगुरी से छुआ गइल रहे त कहले रहलs- ‘अब तो कयामत तक भी इस क्षण से मुक्त नहीं हो सकेंगी ये उँगलियाँ l’
चूँकि ई एक वियोग प्रेम-कथा ह l एह से एह कहानी में नायक-नायिका के परिस्थिति वश मेल नइखे हो पावत आ ऊ लोग आपस में निर्णय करता –‘.. आजु ले हमनी दोस्त बनके रहल बानी आ जिनिगी भर रहब l एमें बियाह के सवाल कहाँ उठत बा l आवs हमनी के किरिया खा लेबे के कि दोसरा के होइयो के हमनी के बीच के डोर कबहूँ टूटी ना l’ बाकिर एकरा चलते ओह लोगन के जिनगी में अँधार नइखे हो जात l जे राहुल एशिया के सबसे बड़ा महाविद्यालय में पढ़त रहले, छात्रनेता रहले, अभिनेता रहले आ साथ में कवियों रहले l उहे राहुल शबाना से बिछुड़न के बाद भी अपना प्रतिभा के बर्बाद नइखन करत l ऊ अभी भी आपन काव्य-रचना जारी रखले बाड़न आ पढ़ाई भी l ऊ एम. एससी. के परीक्षार्थी बाड़न l एने राहुल से बिछुड़न के बाद शबाना छात्रनेता के पद त्याग त देहली l बाकिर अपना राहुल आ इनका प्रतिभा के इयाद कके पढ़े लगली l जवना के परिणाम स्वरूप CPMT में उनकर चयन हो गइल आ ऊ लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में पढ़े लगली l एतने भर ना ऊ कविता आ अभिनय के क्षेत्र में भी आगे बढ़ गइली आ सौन्दर्य-प्रतिस्पर्धा में भी टॉप कइली l
ई कहानी समान्य रूप से आगे बढ़ता l अपना आकर्षण आ ‘आगे का होई ?’ के जिज्ञासा के डोर के साथे l बाकिर कहानी में कहीं कोई असामान्य घटना नइखे घटत l दूगो हम उम्र छात्र-नेता, जे विपरीत लिंग के होखे आ ऊ लोग कवनों ना कवनों कार्यक्रम के दौरान प्राय: मिलत-जुलत होखे l अइसन परिस्थिति में ओह दूनू लोगन के बीच आकर्षण के होना स्वाभाविक बात बा l
एह कहानी में प्रेम के कवनों क्रान्तिकारी संदेश नइखे आ ना ही समाज में व्याप्त जाति-धर्म के प्रति कहीं कोई मुखर विरोध ही बा l प्रेम के आग में धधकत दिल अपना घर-परिवार के आहुति के ख्याल से ही काँप गइल l काहेकि ओह दूनू प्रेमी-जोड़ा के मालूम रहे कि ओह दूनू के एक भइला के अर्थ रहे दूनू परिवार के विनाश l जबकि प्यार के काम विनाश कइल ना ह बल्कि जोड़ल ह l एह से एह कहानी के पात्र ओही के आपन भाग्य मान ओकरा से समझौता कर लेता आ अपना कर्तव्य के निभावत अपना करियर के सँवारे में लाग जाता l एह से ई कहानी अपना विपरीत परिस्थिति में भी जीवन के प्रति आस्थावान रहे के आ जिजीविषा के संदेश देता l एक कमजोर आदमी के तरह गुमनामी के अँधकार में डूबे के ना l
चूँकि भावुक जी एगो कवियो हउअन आ एह कथा के कथा-नायक भी कवि बाड़न l एह से प्रसंगवश सुन्दर-सुन्दर काव्य-पक्ति भी एह कहानी में पढ़े के मिल जाता l एह कहानी में नारी के दू रूप में चित्रित कइल गइल बा l एगो परम्परागत नारी के रूप में l जवना के युधिष्ठर के शाप के कारण ई कहल जाला कि मेहरारू के पेट में कवनों बात ना पची l एह कहानी में भी एकदम उहे बात कहल जाता- ‘मेहररूअन का पेट में बात ना पचे l’ उहई कहानी के नायिका जे एक आई. ए. एस. अधिकारी के एकलौती बेटी हई आ खुद मेडिकल छात्रा हई l ऊ अपना माई-बाप से अंत-अंत ले ई नइखी कह पावत कि सरफराज के असली नाम राहुल ह l बाकिर दूनू औरतन के उद्देश्य एके बा l अपना परिवार के बाँध के रखल l ताकि परिवार में कवनों तनाव आ बिखराव ना आवे l राहुल के भौजाई चाहsतारी कि राहुल जवना लड़की से प्रेम करsतारन ओह लड़की से उनकर बिआह हो जाव आ उनकर जीवन सुखमय हो जाव l एने शबाना चूँकि अपना माई-बाप के एकलौती संतान हई एह से कवनों तरह से अपना माई-बाप के दु:ख नइखी पहुँचावे के चाहत l ऊ कवनों अइसन काम भी नइखी करे के चाहत जवना से उनकर परिवार बिखर जाए l
‘कहानी के प्लॉट’ एक अइसन प्रेम-कहानी ह जवना में ना कवनों समाज-परिवार से विद्रोह बा, ना ही लव-जेहाद के पचरा में ही ई कहानी फसल बा l ई कहानी एक अइसन प्रेम कहानी ह जवना में प्रेम के सच्चाई भी बा l एकरा साथे अपना जड़ आ संस्कृति से जुड़ला के संदेश भी बा l आदमी के अपना परिवार-समाज के प्रति आस्थावान रहे के चाहीं l अपना जड़ से कट के केहू खुश ना रह सकेला l भावना में बहला से जिन्दगी ना चले l जिन्दगी के राह कठोर बा l एह से कठोर राह पर सफर करे खातिर आदमियों के कठोर बने के चाहीं l हाल ही में एह कहानी के आशा रेपर्टरी के बैनर तले युवा निर्देशक जहाँगीर खान के निर्देशन में ‘जिनिगिया तोहार’ के नाम से पटना के सुप्रसिद्ध कालिदास रंगालय आ प्रेमचंद रंगशाल में सफल मंचन भी कइल गइल ह l अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के पत्रिका ‘ भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका ‘ में 1998 में छपल ई प्रेम कहानी हर साल दिसम्बर में बाबरी मस्जिद वाली घटना के चलते याद में आ जाला आ कवनों ना कवनों पत्रिका में छपिये जाला. भोजपुरी साहित्य में अपना तरह के इ एगो अनोखा प्रेम कथा बा l