आचार्य महेन्द्र शास्त्री संपादित पहिलका भोजपुरी पत्रिका ‘भोजपुरी‘ के याद दियावत बा ई अंक
भावुक जी,
कोरोना के त्रासद काल में अपनहीं कोरोना से जुझार करके उबरते रउरा ‘ भोजपुरी जंक्शन ‘ के 01 मई से 15 मई वाला अंक निकालिये देहनी। ई रउरा संकल्प आ निष्ठा के परिचय देत बा। ई अंक देख के आचार्य महेन्द्र शास्त्री के द्वारा संपादित पहिलुका भोजपुरी पत्रिका- ‘भोजपुरी’ सोझा खाड़ हो गइल। शास्त्री जी का जब रचना पर्याप्त संख्या में ना मिलल, त उहाँ का कई गो सामग्री छद्म नाम से खुदही लिख के डार देले रहीं।
पत्रिका के नीति के अनुसार चले खातिर रउरा एह अंक में संपादकीय के अलावे अउर कई गो आलेख लिखे के पड़ल बा। पत्रिका के पत्रकारिता मानदंड पर खरा राखे खातिर ई जरूरी होला आ ओह जरूरत के संपादक पूरा करे के चाहेला। भोजपुरी में कथा कहानी से ईत्तर विषय पर लिखनिहारन के कमी बा। ओह कमी के रउरा जइसन संपादक अपना बल पर पूरा करे के चाहेला, जवन रउरा एह अंक में करके पत्रिका के स्तरीयता बरकरार रखले बानी।
हर बेर के अइसन अबकियो बेर के संपादकीय जरत विषय पर बा। कोरोना से मानसिक, शारीरिक, आर्थिक व्यवस्था कतना भयावह रूप लेत जा रहल बा आ ओकर भविष्य में आगे तक दुष्प्रभाव देखाई पड़ी, चिंता सोभाविक बा। जवना प्रकार के ठगी, कालाबाजारी आ आर्थिक शोषण कोरोना के नाम पर चल रहल बा, ओह पर तीख नजर संपादक के बा। करुणा आ संवेदनाविहिन मनई के मनई ना कहल जा सके।
‘ सुनीं सभे ‘ स्तम्भ में प्रधान संपादक सिन्हा जी बड़ा मौजूं विषय उठवले बानी। कुछ दिन पहिले छत्तीसगढ़ में उग्रवादी संगठन द्वारा घात लगा के सी आर पी एफ जवान लोग के हत्या पर उहाँ के आक्रोश सोभाविक बा। एह पर उहाँ के सही कहले बानी कि राजनीतिक हित साधेवाला दलन के बढ़ावा में पनपल एह हिंसा विश्वासी संगठनन के खातमा होखहीं के चाहीं।
आवरण कथा में बाबू कुँवर सिंह के वीरता आ शौर्य के आखयान करत तीनों आलेख बढ़िया बा। अबकी धर्मन बाई वाला प्रसंग के ले के आलेख नीक लागल। ई चर्चा में कम आवेला। कई अंकन से दिवंगत भोजपुरी सेवी वाला स्तम्भ लंबित रहल ह, ओह के बढ़ावे के काम बढ़िया भइल बा। भोजपुरी गौरव स्तम्भ में साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन, महेन्दर मिसिर अउर शहनाई के पर्याय विस्मिल्लाह खान पर आलेख दे के बढ़िया स्मृति तर्पण कइले बानी।
राउर प्रसिद्ध कहानी ‘ नेहिया के तेल ‘ पर ज्योत्स्ना प्रसाद के आलेख विमर्शपूर्ण बा। ई कहानी नाट्य रूपांतरित हो के मंचित भइल बा। हर बेर के तरह सिनेमा से जुड़ल राउर आलेख जे मनोज बाजपेयी पर केन्द्रित बा, पठनीय बा। हम विशेष रूप से ‘ राउर पाती ‘ स्तम्भ के बात करे के चाहत बानी। पाती पर तीन पृष्ठ खरच करे के पड़ल बा, ई साबित करत बा कि पत्रिका के पाठकीयता आ स्वीकार्यता बढ़ल बा।
पत्रिका असहीं आपन पहिचान कायम कइले रहे, सुभे हो सुभे।
डॉ. ब्रज भूषण मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार, मुजफ्फरपुर
इतिहास आ वर्तमान सब पर नजर बा भोजपुरी जंक्शन के
भोजपुरी जंक्शन जवन काम कर रहल बा, ओकर जेतने बड़ाई कइल जाव कम बा। भोजपुरी में गीत, कविता, कहानी ढेर भइल। अब जरुरत बा कि भोजपुरी में समाज के हर पक्ष चाहे उ शिक्षा होखे, राजनीति होखे भा ज्ञान-विज्ञान …. ओह पर स्तरीय लेख आ चिंतन विचार सबके मिले। ई पत्रिका एह कमी के पूरा करे में बहुत बड़ काम कर रहल बा। आपन थाती के सँजोअल जेतना जरुरी बा ओतने जरुरी बा कुछ नया रचल आ सभे तक पहुँचावल, एहू काम में ई पत्रिका बाजी मार रहल बा। इतिहास त बतावते बा, संगे-संगे वर्तमान पर भी नजर रखले बा आ ओके दर्ज कर रहल बा। सबसे बड़ बात कि भोजपुरी साहित्य के महान हस्ताक्षर लोग से भी लगातार परिचय करा रहल बा। अब तक के आपन सफर में ई पत्रिका हर विषय पर भोजपुरी में लेख उपलब्ध करइले बा। भावुक जी निश्चित तौर पर प्रशंसा आ बधाई के हक़दार बानी। एह आशा के साथ कि ई सफर जारी रही आ भोजपुरी में एगो मील के पत्थर साबित होई भावुक जी के बहुत बहुत शुभकामना।
डॉ. अन्विति सिंह, रिसर्च एसोसिएट, दिल्ली
बाजारु भोजपुरी के खिलाफ अभियान बा भोजपुरी जंक्शन
भोजपुरी जंक्शन के नवका अंक पढल शुरू कर देले बानीं।
आपकs संपादकीय गागर में सागर के चरितार्थ करत बाटे। वीरवर कुंवर सिंह पर लेख ज्ञानवर्धक आउर प्रेरक लागल। धर्मन बाई आउर कुंवर सिंह जी के प्रेमकथा भी मर्मस्पर्शी बन पडल बाटे।
हं, ख्यातिलब्ध कथाकार कृष्ण कुमार जी का लेख में बाबू कुंवर सिंह के जनम क साल अनजाने में गलत छपि गइल बा। अइसने गलती महेन्दर मिसिर जी का मशहूर गीत ‘ अंगुरी में डंसले बिया…’ में भी खटकत बाटे काहें कि पहिलका आउर दोसरका अंतरा में क्रमशः ‘ विषहरिया ‘ आ ‘ सेजरिया ‘ का जगहा गलत शब्दन के रख दिहल गइल बा …
भावुक जी का बारे में बेसी ना कहि के, हम एतने कहब कि उहां क जवने काम करेलीं, ओकरा के निखारे खातिर ओह में जीव-जान झोंकि देलीं!
अइसन भोजपुरी साधक आ कर्मजोगी के भगवान दीर्घायु आउर सेहतमंद राखस ताकि बाजारु भोजपुरी के खिलाफ ऊ पूरा दम-खम का साथे लड़ के विजयी हो सकसु।
शशि प्रेमदेव, बलिया
भोजपुरी समाज खातिर मील के पत्थर साबित होई
भोजपुरी जंक्शन के 1-15 मई वाला अंक पढ़ि के ए बात के खुशी भइल कि ए जंक्शन में खाली भोजपुरी साहित्यकारे ना बलुक भोजपुरी माटी में पैदा होखे वाला हर क्षेत्र के महापुरुषन प ध्यान दिहल जाता, जवन पत्रिका के कवर देखते बुझा जाता। सम्पादकीय में कोरोना के कहर आ असर पे चर्चा करत दृढ़ संकल्प के साथ समाज के विश्वास दियावल गइल बा —जंग जीते के बा कोरोना से, एही संकल्प के गोहरावे के बा।
माओवादी नक्सलियन के अमानवीय, संवेदनाहीन आ क्रूर कृत्यन के सजीव चित्रण करत दू गो लेख बाटे जवना से सरकार के सामने सवाल खड़ा भइल बा कि का सरकार के सेना नक्सलियन से कमजोर बा, ओके समूल नष्ट काहे नइखे क पावत।
वीरवर बाबू कुँवर सिंह पे तीन गो लेख बा जवना के पढ़ि के रोआ-रोआ फड़फड़ा जाता। श्री कृष्ण कुमार जी के लेख में उनके जन्म तिथि 23 अप्रैल 1977 लिखल बा जवन टाइप के गलती बुझाता काहें कि हमरे जानकारी से उनके जन्म तिथि 13 नवम्बर 1777 हवे। एगो हमार सुझाव बा कि 1857 में क्रांति के विगुल बजावे वाला भोजपुरी माटी के शहीद मंगल पांडे रहते उनहूं प दू चार शब्द लिखा सकेला।
भोजपुरी के दिवंगत सत्तर साहित्यकारन के बाद सात गो आउर साहित्यकारन के संक्षिप्त परिचय अगली पीढ़ी बदे प्रेरणा स्रोत के काम कर रहल बा। एही क्रम में हमार निहोरा बा कि बलिया के दिवंगत करुण रस भोजपुरी गीतकार स्व०राधा मोहन धीरज के नाम जोड़ लिहल जाव।
महेन्दर मिसिर, राहुल सांकृत्यायन, बिसमिल्ला खां आ मनोज बाजपेयी जी प लेख काफी ज्ञान वर्द्धक बाड़न स। सम्पादक मनोज भावुक जी के कहानी ” तेल नेहिया के “नाम से त एगो प्रेम कहानी बुझाता बाकिर ओमे पइसा खातिर समाज में हो रहल कर्म कुकर्म प करारा प्रहार बा जवना से समाज के एगो यथोचित दिशा मिल रहल बा।
ई पत्रिका एक दिन भोजपुरी भाषा आ साहित्य खातिर मील के पत्थर साबित होई। एह कुशल आ सफल प्रयास खातिर सम्पादक जी के कोटि कोटि बधाई आ धन्यवाद।
डॉ. भोला प्रसाद आग्नेय, बलिया उ०प्र०
हिम्मत आ हौसला के प्रणाम
अस्वस्थ रह के भी भोजपुरी खतीरा समर्पित, रउआ हिम्मत आ हौसला के प्रणाम बा। बहुत चीज़ के अपना कलेवर में समेटले ई अंक खतीरा बधाई बा।
मधुबाला सिन्हा, मोतिहारी,चम्पारण, बिहार
दुःख दरद भुला के एह समर्पन के प्रणाम
सबके याद समेटल, आपन दुःख दरद भुला के एह समर्पन के प्रणाम। मिसाल बा इ त। प्रेरणा मिली।
अजय यादव, युवा कवि, शिक्षक, गोरखपुर
साहित्य समाज से फिल्मी दुनिया तक कुल्ही कवर भइल बा
बहुत बहुत बधाई मनोज जी। देखनी। गजब। एक से बढ़ के एक लेख, विषय साहित्य समाज से फिल्मी दुनिया तक कुल्ही कवर भइल बा। अद्भुत जानकारियो बा। कुल्ही लेख अभी पढाइल ना। पढल जाई। बाकी जल्दीये पढ़ के खतम कइले के मन करता।
मञ्जरी पाण्डेय, शिक्षिका, लेखिका, कवयित्री, रंगकर्मी बनारस
भोजपुरी के लिए अतुलित समर्पण है यह
भाई मनोज भावुक जी की मेहनत इस पत्रिका में स्पष्ट दिखाई देती है। भोजपुरी के लिए आपका यह अतुलित समर्पण आदर के योग्य है।
धनञ्जय राकिम, सुप्रसिद्ध शायर, रेनुकूट, सोनभद्र
शानदार अंक बा
शानदार अंक। अचानक आपन नाम देख के खूब खुशी भइल। हमार चइता अंक के प्रतिक्रिया देख के बहुत अच्छा लागल। आभार। अभिनंदन।
रजनी रंजन, जमशेदपुर
मिठास में चीनी आ जरुरत में नमक जइसन बा भोजपुरी जंक्शन
भोजपुरी जंक्शन के मई के पहिला अंक पढ़ लेनी। शुरुआत सम्पादकीय से कइनी हं,बहुते संवेदनशील आलेख बा,जवन सब लोग के एकजुट रहे के आ अपना हीत संघतिया के साथ कवनो हाल में धइले रहे के प्रेरित कर रहल बा।
आगे ,वीरवर कुंवर सिंह ,महेंद्र मिसिर ,उस्ताद विस्मिल्लाह खान आ राहुल सांकृत्यायन के बारे में बड़ा रोचक लेख पढ़ के आनन्द आ गइल ह।एगो खास ई बात बुझाइल ह कि ननीआउर के पोसाइल लइकन के नाम (प्रसिद्धि) मिलेला। सिनेमा से, मनोज बाजपेयी के बारे में आलेख बहुत बेहतरीन लागल ह।
एतना शानदार अंक खातिर भोजपुरी जंक्शन के सगरी टीम के बधाई । भोजपुरी बोले आ बूझे वाला हर सुधी जन खातिर ई पत्रिका मिठास में चीनी आ जरुरत में नमक से इचिको कम नइखे।
डॉ. कादम्बिनी सिंह, बलिया