लेखक – मनोज भावुक
जन्मतिथि – 1 अक्टूबर 1919 पुण्यतिथि – 24 मई 2000
गीतकार मजरुह सुल्तानपुरी प पोथी प पोथी लिखाइल बा। हिंदी सिनेमा में एक से बढ़ के एक गीत देले बाड़न उ। ओह पर बहुत कुछ नइखे कहे के। एह छोट आलेख में कहाइयो नइखे सकत। अँटबे ना करी। आँटे के त भोजपुरियो ठीक से ना आँटी। एह से भोजपुरी सिनेमा में उनका ओह योगदान, ओह गीतन के बात करत बानी, जवन लोग के जुबान पर त चढ़बे कइल, फिलिमियो के हीट करवलस।
बात शुरू करत बानी उनका लोकप्रिय गीत के एगो अंतरा से –
हम त रहनी एगो भोली रे चिरईया
चिरई का पीछे-पीछे लागल बा बहेलिया, लागल बा बहेलिया,
चिरई का जालवा में फँसल बहेलिया गोहार करेला
गोरी हमके छोड़ावs हो गोहार करेला
मजरुह साहेब के बहेलिया एकदम इन्नोसेंट बा। बहेलिया के नाम बा असीम कुमार। चिरई बाड़ी कुमकुम। फिल्म के नाम बा लागी नाहीं छूटे राम आ ई गीतवा सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर आ तलत महमूद के आवाज़ में बा। संगीत चित्रगुप्त जी के बा। छतीस बार सुनले होखब हम। फिलिमियो सत्रह बार से कम ना देखले होखब आ तब ई दावा करे के मन करेला कि ए चनेसर भोजपुरी के गरियावs मत। अश्लील मत कहs। भोजपुरी के समरथ के जाने के बा त फिल्म लागी नाहीं छूटे राम देखs। ई 1963 के फिल्म ह।
त 1963 के बात 2020 में काहे जी? काहे, बाप-दादा के बात ना होई? बिगड़ल त ससुरा नाती-पोता बाड़न स नू ? एह से ओकनी के ईयाद दियावत बानी कि देखs लोग बाप-दादा भोजपुरी के केतना गौरवशाली छवि बना के गइल बा। हाँ, भोजपुरी सिनेमा में गीत के बात होई त शैलेन्द्र आ मजरुह सुल्तानपुरी बापे-दादा नू बा लोग ।
त अब बात आगे बढ़ावत बानी। ऊ चिरई आगे का पूछsतारी आ उनका का जबाब मिलsता। देखीं गीत के खूबसूरती देखीं आ बात के पकड़ी।
एकरा के कहल जाला बोलत-बतियावत गीत, करेजा छूअत गीत। आज हम ओही गीतकार के बात करत बानी जेकर ई गीत भोजपुरी त भोजपुरी गैर भोजपुरी भाषी के जुबान पर भी बा। का जी, के नइखे सुनले ई गीत-
का कमाल के पोएट्री बा। अइसने पोएट्री प पगला के रजवा राजपाट लिख देत रहलन ह स कवि जी के। राजपाट माने राजेपाट ना होला, अशर्फियो ( स्वर्ण मुद्रा) दीहल भी होला ।
आजकल एकरा पसंघो में गीत नइखे लिखात या लिखाता त उहाँ ना प्रोड्यूसर पहुंचता, ना डाइरेक्टर आ उ पहुंचियो के का करी? ओकर त चले ना। चलेला हीरो के आ हीरो लोग अल्बम इंडस्ट्री से आइल बा। ओही जी से नाशल शुरू भइल बा।
खैर, मजरूह साहब के दुनिया गाँव- कस्बा के दुनिया रहे। जहां गुड्डा-गुड्डी के बिआह होखे, जहाँ माई लोरी गा के लइकन के सुतावे। ई लोरी उनका ज़ेहन में रहे। 1965 में एगो फिल्म आइल- भउजी। ओह में मजरुह साहेब के लोरी आइल। लोरी प तरह-तरह के चर्चा चलल। चित्रगुप्त जी के धुन प लता जी के स्वर में गजब खिलल बा ई गीत। हालाँकि कवनो-कवनो घर में माई एकरो से बढ़िया राग में गावेली सन। हम मम्मी लोग के बात नइखीं करत। गाना देखीं।
ए चंदा मामा आरे आव पारे आवs
नदिया किनारे आवs
सोना के कटोरिया में दूध भात ले ले आवs
बबुआ के मुहवा में घुटुक
आवs हो उतर आवs हमरी मुंडेर
कब से पुकारिले भइल बड़ी देर
भइल बड़ी देर हो बाबू के लागल भूख
ए चंदा मामा आरे आव पारे आवs…
मनवा हमार अब लागे कही ना
रहिले जे एक घड़ी बाबू के बिना
एक घड़ी हमरा त लागे सौ जुग
ए चंदा मामा आरे आव पारे आवs…
चांद जइसन मुखड़ा जे देखs एक बार
तोहरा के मोह लिहि बबुआ हमार
बबुआ हमार जइसे तोहरे स्वरूप
ए चंदा मामा आरे आव पारे आवs…
एही फिल्म (भौजी) में एगो अउर गीत जवन रफ़ी साहेब के आवाज़ में बा, ओकरा के लोग सराहल- हम गरीबन से भइल प्या
दरअसल मजरुह साहब बहुत बड़ा शायर रहनी। समय आ समाज के धड़कन उनका शायरी आ गीतन के स्वर रहे। सिचुएशनल गीत में भी एकर गुंजाइश उ निकालिए लेस। एही से उ भोजपुरियो में कालजयी रचना कइलें। फिल्म लागी नाहीं छूटे राम के टाइटल ट्रैक हीं लीं ना। इहो तलत महमूद आ लता जी के आवाज़ में बा।
हई पोएट्री देखीं। जबाब नइखे ।
तड़पइले रात दिन कौनारे जमनवा से
लागी नाहीं छूटे …
एह फिल्म के सगरी गीतवे कमाल बा। हर साल राखी पर पूर्वांचल में सबसे बेसी इहे गीत गूंजेला –
रखिया बन्हा ल भईया सावन आइल जीयs तू लाख बरिस हो
तोहरा के लागे भईया हमरो उमिरिया बहिना त देले असीस हो
हई लाइन सुन के त मन मोहा जाता। नेग में का माँगतारी बहिन। कहsतारी कि जब भउजी अइहें त-
अँचरा में भरि-भरि लेइब रुपइया, गाँव लेइब दस-बीस हो
अंतिम लाइन त करेजा काढ़ लेता –
अइसन ना होखे कहीं अँखियाँ निहारे जाये सावन ऋतु बीत हो
रखिया बन्हा ल भईया सावन आइल जीयs तू लाख बरिस हो
अगर केहू के पति भकचोन्हर मिल जाय त हेसे बढ़िया गीत त ना मिली। माने हर सिचुएशन में कमाल बाड़े मजरुह चचा। गीत के मजा लीं।
सखिया सहेलिया के पिया अलबेला
बनवारी हो हमरा के बलमा गँवार
जामुन जइसन रंग पिया के
ओऽपर लाल लिबास।
तवना उपर पान चबावे
हँसे ननद अउर सास
बनवारी हो
बनवारी हो ताना मारे सगरे जवार
बनवारी हो हमरा के बलमा गँवार
टिकुली सटनी सेनुर भरनी
कइनी सब सिंगार
बइठल टुकुर टुकुर ताकेला
जिया भइल अंगार
बनवारी हो
बनवारी हो जर गइल एंड़ी से कपार
बनवारी हो हमरा के बलमा गँवार
भागलपुर से फैजाबाद तक घुमनी गाँवे गाँव
बागड़पन में बलमा जइसन केहू के नईखे नाँव
बनवारी हो
बनवारी हो केकर होई अइसन भतार
ओही तरे आशा भोंसले और मन्ना डे के आवाज़ में ‘’ अजी मुंहवा से बोलs कनखिया न मारs ‘’ ग़ज़ब के नोंक-झोंक वाला गीत बा। चाहे ‘’ मोरी कलइया सुकुवार हो चुभि जाला कंगनवा / जब से भइल नैना चार हो चुभि जाला कंगनवा ’’ चाहे सुमन कल्यानपुरी के आवाज़ में ‘’ सज के त गइनी रामा पिया के नगरिया से भुलाई हो गइले ना / हमरी माथे के टिकुलिया भुलाई हो गइले ना ‘’… एह सब गीत में मजरुह साहब के चिंतन, भाव के जादूगरी आ अंदाजे बयां मन मोह लेता।
मजरुह साहब के गीतन में श्रृंगार आ जीवन दर्शन गजब के घुसपैठ बनइले बा।
लोक जीवन के रंग आ लोक संगीत के तेवर उनका हिंदी गीतन में भी मौजूद बा। फ़िल्म ‘धरती कहे पुकार के’ गीत के रंग देखीं –
जे हम तुम चोरी से, बंधे इक डोरी से
जइयो कहां ऐ हुजूर
अरे ई बंधन है प्यार का… जे हम तुम चोरी से
चाहे हई गीत देखीं –
ठाड़े रहियो ओ बांके यार हो
ठहरो लगा आऊं नैनों में कजरा
चोटी में गूंध आऊं फूलों का गजरा
मैं तो कर आऊं सोलह सिंगार रे
ठाड़े रहियो ओ बांके यार रे
अउर अब मजरुह साहब के, आज के समय के सबसे जरुरी, सबसे प्रासंगिक दू गो सदाबहार गीत के साथे आपन बात ख़तम करत बानी ।
पहिलका गीत –
राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है
दुख तो अपना साथी है
सुख है एक छांव ढलती
आती है जाती है, दुख तो अपना साथी है
आ दुसरका गीत –
इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल
जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल
दूजे के होठों को देकर अपने गीत
कोई निशानी छोड़ फिर दुनिया से डोल