राउर पाती

September 20, 2021
राउर पाती
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संपादकन खातिर मिसाल पेश कइले बानीं

सचहूं एगो यादगार अंक निकालिके रउआ भोजपुरी पत्रिकन के संपादकन खातिर मिसाल पेश कइले बानीं। अबहीं काल्हे मोतियाबिंद के आपरेशन करवले बानी,एसे पढ़ल-लिखल अबहीं बंद बा।

भगवती प्रसाद द्विवेदी, वरिष्ठ साहित्यकार, पटना

 

भोजपुरिये में ना; हिन्दियो में माई-बाबूजी पs ई पहिलका अंक बा

‘भोजपुरी-जंक्शन’ के नयका अंक पढ़नी। ई पत्र दिनानुदिन भोजपुरी के श्रीवृद्धि में आगे बढ़ रहल बा। ई जून अंक ‘माई-बाबूजी’ विशेषांक विशिष्ट आ संग्रहणीय बा। शायद; भोजपुरी में माई-बाबूजी पs एह तरह के ई पहिलका अंक बा। भोजपुरिये में ना; हिन्दियो में। तीन वर्गन में- हमार बाबूजी, हमार माई आ हमार माई-बाबूजी; बाँटिके नीमन-नीमन, धराऊँ-धराऊँ सामग्री जुटावल गइल बा। सम्पादकीयो कमाल के बा।

कहल गइल बा-

‘यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम्।

न तस्य निष्कृतिः शक्या कर्तुं जन्मशतैरपि’।।

 

अर्थात्; बाल-बच्चन के जन्म से लेके पालन-पोषण तक माता-पिता जवन कष्ट सहेलें, ओकर भरपाई हमनीका सइ-सइ जनम लेके भी उतार ना सकींला। रचनाधर्मिता के ई एगो पुण्य कर्म भा ज्ञानयज्ञ हs जे रचनाकारन के ओर से माता-पिता खातिर कइल गइल बा।

एह आयोजन खातिर भोजपुरी-जंक्शन परिवार धन्यवाद के पात्र बा।

मार्कण्डेय शारदेय, वरिष्ठ साहित्यकार, पटना

 

कवनो पत्रिका के माई-बाबूजी पर केंद्रित पहिला विशेषांक

भावुक जी,

‘भोजपुरी जंक्शन’ के 01- 30 जून, 2021 वाला अंक डाउन लोड करके खोलते मन प्रसन्न हो गइल। माई-बाबूजी के संस्मरण वाला अंक आ उहो सै पृष्ठन के। हमरा जानते ‘भोजपुरी जंक्शन’  ऊ पहिला पत्रिका बा, जवन माई-बाबूजी पर केंद्रित विशेषांक निकलले बा। फुटकर ढंग से कविता, कहानी, लघुकथा,संस्मरण त कबहुँ-कभार हिंदी-भोजपुरी के पत्र पत्रिकन में मिल जाला, बाकिर गोटगर ढंग से एह विषय पर लिखवावे आ सामग्री प्रस्तुत करे के श्रेय रउरा मिलत बा। राउर संपादन आ संपादकीय सोच के हमार साधुवाद। हम कामना करत बानी कि पत्रिका अइसहीं आपन पहिचान बनवले राखी।

डॉ. ब्रज भूषण मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार, मुजफ्फरपुर

 

 

कपिल मामा के याद आ गइलन

बेजोड़ अंक बा। स्तरीय रचना के साथे पत्रिका के कलेवर बहुते  मनोरम आ मनमोहक बा। बहुत- बहुत बधाई मनोज जी। राउर सोच, लगन आ मेहनत देख के आज कपिल मामा ( भोजपुरी साहित्य के प्राण आचार्य पाण्डेय कपिल) याद आ गइलन।

डॉ. रंजन विकास, वरिष्ठ साहित्यकार, पटना

 

 

बेजोड़ अंक बा

एह अंक में संपादक के परिकल्पना आ प्रजेंटेशन समेत सब कुछ बेजोड़ बा। बधाई मनोज जी!

ओम प्रकाश अश्क, वरिष्ठ पत्रकार, पटना

 

 

अस्सी बरिस के उमिर में मोबाइल पर पढ़नी माईबाबूजी विशेषांक

हम भोजपुरी जंक्शन के सगरी अंक पढ़ले बानी। एक से बढ़के एक। लेकिन माई-बाबूजी विशेषांक अइसन अंक बा जवन पढ़त-पढ़त हम अपना माई-बाबूजी के संगे फेर से आपन लरिकाई जी लेनी। सब भूलल बिसरल लोग फेर-फेर याद आवे लागल लोग आ आंख में लोर लिया देलस लोग। केहू के लेख गांव-जवार घुमा देलस त केहू के लेख हँसा देलस। भोजपुरी में एतना बढ़िया काम होत देख के जिऊ जुड़ा गइल हमार। अस्सी बरिस के उमिर में मोबाइल में पढ़ला में तनी मुश्किल होला, तब्बो हम सगरी लेख कई-कई बेर पढ़ चुकनी। भावुक जी से इहे कहे के बा कि आजु के समय में अइसन पत्रिका ऊहो भोजपुरी में निकालल, एह ढंग के उत्कृष्ट सामग्री के साथ केतना मुश्किल बा एकर अंदाजा बा हमके। एही से काली माई से दुनो हाथ जोड़ के इहे प्रार्थना बा कि ई पत्रिका असहीं निकलत रहे आ भोजपुरी के इतिहास में आपन नाम दर्ज करावे।

रमा सिंह, कोलकाता  

 

अनमोल विशेषांक

मनोज जी देखनी अपनो लेखवा पढ़ के अतना आनन्द आइल कि का कहीं। एह तरीके क अनूठा प्रयास देखले में आनन्द बुझाता। राउर परयास से सबका माई बाबू सबकर फोटो देख के जइसे मन भरि आइल। मनोज जी मय टीम रउआ के आत्मीय बधाई हेइ अनमोल विशेषांक खातिर।

डॉ. मंजरी पांडेय, वरिष्ठ साहित्यकार, वाराणसी

 

ऐतिहासिक अंक

बहुत सुंदर अंक बा आ बहुतै बढ़िया सामग्री के साथ परोसल गयल बा। सबके पढ़ला के बाद एक बात जवन सब लेख में मिलल ऊ ई कि दुनिया के कवनो कोना में देखल जाय त माई बाबूजी के नेह छोह सब एके लेखा बा। एही से कहल जाला कि दुनिया में हर रिश्ता खास होला लेकिन माई बाबूजी के बराबर केहू ना हो सकेला। सबकर स्मृति अ लेख बहुत सराहनीय अ करेजा के छुवै वाला बा। सब रचनाकार लोगन के हार्दिक बधाई। भाई मनोज भावुक जी के अथक प्रयास अ लगन के नतीजा बा कि आज ई ऐतिहासिक अंक हमहन के सामने बा। बहुत-बहुत आभार भोजपुरी जंक्शन के पूरी टीम क जेकर मेहनत रंग ले आइल।

सरोज त्यागी, कवयित्री, गाजियाबाद

 

 

पानी पर लकीर त तू खींच दिहलs भाई मनोज जी!

हिन्दी-भोजपुरी के मजिगर, मंजल आ उत्साही साहित्यकार-सम्पादक श्री मनोज भावुक के सतत कुछ नया सोचे-समझे आ सिरिजे के अकूत क्षमता आ योग्यता के नायाब नमूना बा- ‘भोजपुरी जंक्शन’ के हाल में छपल माई-बाबूजी विशेषांक।

एह अंक के ‘सम्पादकीय’ में मनोज जी ठीके कहलें बाड़ें कि जेकर सृष्टि हमनीं खुदे बानीं ओकरा व्यक्तित्व के मूल्यांकन अपना शब्दन के जरिए भला कइसे संभव बा? बिल्कुल संभव नइखे आ सही कहीं त मूल्यांकन-विवेचन संस्मरण विधा के उद्देश्यो ना होला। संस्मरण में भावाभिव्यंजना, मार्मिकता, रुचिरता, तथ्यन के सच्चाई आ साफगोई बहुत जरुरी होला। साथही चरितनायक के प्रति लेखक के एगो खास तरे के निस्संगतो आवश्यक गुण ह संस्मरण विधा के, जवना के बदौलत ऊ वर्ण्य व्यक्तित्व सार्वजनीन असीम श्रद्धा भा आत्मीयता के अधिकारी बन जाला। टी.एस.एलियट एकरे के ‘निर्वैयक्तिकता के सिद्धांत’ कहके निरूपित कइले बाड़ें आ उत्कृष्ट सर्जक खातिर बहुत जरूरी मनले बाड़ें। एह वैचारिक निष्कर्ष पर एह अंक के परखला के बाद हमरा ई महसूस हो रहल बा कि अधिकतर लेखक अपना माई-बाबूजी पर लेखनी चलावे के क्रम में ना त कवनो अतिरंजना के फेरा में पड़ल बाड़ें ना बाबूजी-माई के बहाने अपने व्यक्तित्व के पनपावे-पसारे बदे आपन दबल-छिपल मनोरथ पूरा करत दिखत बाड़ें। भोजपुरी लेखक के ई प्रौढ़ता रेखांकित करे योग्य बा। माई-बाबूजी के व्यक्तित्व के मूल्यांकन कहल त तनिका बढ़िया ना होई बाकिर सांच पूछीं त ओह लोग के प्रेरणादायी रूप, महत्व, विचारन के प्रासंगिकता आदि पर जेतना बढ़िया उनकर समझदार संतान सोच सकत बिया ओइसन दोसरा से संभव नइखे। मतलब कि अपना माता-पिता पर ओकर संतति जेतना बढ़िया से कुछ सोच-समझ के रच-परोस सकत बिया अउसन दोसरा से ना हो पाई।

कवि भा कवनों रचनाकार के बारे में त इहे नू कहल गइल बा कि ऊ ब्रह्मा के समान होला-“कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभू।” ऊ आपन संसार अपना रुचि से रच लेला-“यथास्मै रोचते विश्वं तथेदं परिवर्तते।” फेर ऊ अपना माई-बाबूजी के छवि गढ़े में फेल हो जाई-ई कहाँ संभव बा।”आत्मा वै जायते पुत्रः” जे जेकर सृष्टि बा ओकर भाव-अभाव-स्वभाव-प्रभाव उहे नू सबसे बढ़िया तरे जानीं। हमनीं सभे मानव भगवान के सिरिजना बानीं त भगवत्ता के सर्वाधिक महत्व त हमनिये नू जानब।

एह विशेषांक के एक-एक रचना हमरा ऊपर के विचारन के पोख्ता करत बाड़ी सं। कैलाश गौतम जी पर सरोज त्यागी जी के संस्मरण, शारदा बाबू पर रंजन जी के आलेख, मनोज जी के अपना माई पर लिखल आलेख ‘ऊ कोरा काहे नइखे भुलात’ आ साथही सौरभ पांडेय, भालचंद त्रिपाठी,भगवती प्रसाद द्विवेदी, उमेश चतुर्वेदी, कौशल मोहब्बतपुरी,मंजरी पांडेय, आदित्य अंशु, राजेश मांझी आदि के रचनन के पढ़ि के मन अघा जात बा। सगरी रचना एक से बढ़िके एक बाटे।

तब के दुनिया आ अब के दुनिया के बीच का फरक हो गइल बा, जवन बदलाव बा ऊ सही दिशा में हो रहल बा कि कुछ-कुछ अरजत आ कुछ-कुछ बरजत चले के जरुरत बा, काल्ह आ आज में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक हर तरे के संबंध-सेतु कइसे बनल रही- ई सब दिसाईं बहुत कुछ बात मन-माथा में उमड़े-घुमड़े आ नाचे लागत बा।

सारतः ई अंक आ एकरा बाद आवे वाला एह विषय पर एकाग्र काव्य भाग- एह दूनू के ऐतिहासिक आ सांस्कृतिक सार्वकालिक-सार्वभाषिक महत्व बनल रही।

भोजपुरी गद्य लिखे के दिसाईं अब भोजपुरी रचनाकार खूब सजग आ प्रभावशाली हो गइल बाड़ें, इहो बात एह अंक से जाहिर हो रहल बा। एह अंक खातिर युवा आ स्थापित सब लेखक खूब मिजाज बनाके,मन रमाके लिखले बा लोग- ई देख के बड़ी खुशी हो रहल बा। मनोज जी के काव्य में माई विषय पर लिखल विष्णुदेव जी के लेखो बढ़िया उतरल बा। बेरि-बेरि बधाई भाई मनोज जी एह अनूठा सारस्वत आयोजन खातिर। पानी पर लकीर खींचे में त बेशक अपने पूरा तरे कामयाब हो गइल बानीं।

बहुत शानदार अंक बा भाई। रउरा परिकल्पना के जोड़ नइखे।

सुनील कुमार पाठक, वरिष्ठ साहित्यकार, पटना

 

भावना के बाढ़ि लेके सोझा आइल बा भोजपुरी जंक्शन

माई-बाबूजी प एगो विशद अंक हाथे बा। ’भोजपुरी जंक्शन’ के माध्यम से मनोज भाई जवन ई कोरसिस कइले बानीं, आवे वाला समै एह कोरसिस प पन्नन लीखी आ लिखवाई। माई त माई हऽ। कवनो साहित्य में माई के लेके कथ्य आ रचना के अक्सरहाँ कमी ना भइल करे। गोर्की के ’मदर’ भलहीं उपन्यास हऽ, बाकिर कथावस्तु के अधार एगो माइये बाड़ी। हिन्दी-साहित्य में उग्र जी के लिखल एगो बहुत सशक्त कहानी ’उसकी माँ’ हमरा कबो भोर ना परे। बाकिर ईहो साँच बा जे ई सभ माई लोग अपना लेखकन के कल्पना से कथा-कहानी के रूप में जियतार बाड़ी लोग। बाकिर अबकी भोजपुरी जंक्शन में कथा आ कहानी के माध्यम से ना, बलुक आपन माई आ आपन बाबूजी प सोझ लिखे के निर्देश भइल। बाबूजी प अभिधात्मक रूप से लिखल, उहो ओह बेटा-बेटी के द्वारा जे अपना जीवन के एगो बड़हन भाग अपना बाबूजी के अनुशासन के धमक से कढ़ात महसूस कइले बा, सहज ना रहे। अइसन कोरसिस अमूमन कवनो लेखक तबले ना करे, जबले ऊ आपन कथा, मने आत्मकथा, के तैयारी नत करत होखो। बाकिर भोजपुरी जंक्शन के यशस्वी संपादक भाई मनोज भावुक अइसन सबका से करवा लेनी।

भोजपुरिया समाज आजु तनिका धन के छँवक पावते फफात बुझा रहल बा, बाकिर अछछ गरीबी भोगत आवत एह समाज के आम जीवन कबो सोझ, सीधा आ निकहा साधारन भइल करे। आ, उच्च आध्यात्मिकता भाव में सनाइल आपन दिनचर्या के निबाह करत रहे। सादा जीवन, उच्च बिचार के सूत के गाँठे बन्हले ओह लोगन के बर्ताव में नरमई त साफा लउके, बाकिर आन-बान-मान आ शान से ई समाज कबो समझौता ना करे। ’जान जाय त जाय, आन-मान ना जाय’ के भाव मन में तारी रहल करे। अकसरहाँ अस्मरनकर्ता-लेखकन के बाबूजी-माई ओही पुरनका भोजपुरिया समाज के नुमांइदगी करत सोझबक लोग बुझइले। ढेर बाबूजी-माई लोग आजु भा त अपना वार्धक्य में जी रहल बाड़े, भा पूर्वज-पितर हो के परिवार के असीस रहल बाड़े।

एह से, अबकी पत्रिका के अंक कसकत भावना के ज्वार आ उपटत आह के भाटा प लेखकन आ पाठकन के चढ़ा के आस्ते-आस्ते हलरावे के माहौल मुहैया करवले बा। कहे के नइखे, जे माई के दुलार आ भावना प भोजपुरी साहित्य में ढेर सामग्री भेंटा जाई। बाकिर, अपना बाबूजी से जुड़ल भाव प, भा उनका जीवन से जुडल कवनो इयादि, भा प्रसंग प लिखे के बात त बाद के चीझु हऽ, बाबूजी लोगन प कथा-कहानी भा कविता-गीत तक ले साहित्य में, बिसेस क के भोजपुरी साहित्य में, रचना रूप में उपलब्ध नइखे। ओह हिसाब से भोजपुरी जंक्शन के अबकी के अंक भावना के बाढ़ि लेके सोझा आइल बा।

भगवान-भगवती के हमनी में केहू नइखे देखले। बाकिर अपना शरीर के जनक के मरजादा गहिराहे भाव से बूझल जाव त, भगवान के संसार आ आपन जिनिगी के कार-बार के वाहक दूनो लोगन के सहजही सरधा से नमन करत महसूस कइल जा सकेला। जबकि एही लगले दोसर सोच माई-बाबूजी के नितांत मानव सुलभ भाव के सान प राखत परखे के कोरसिस करत लउकेले। संपादकीय में मनोज जी कहतो बाड़े – ’ई साँच बा कि उ लोग भगवान ना ह। त अगर ओह लोग से कवन भूल हो जाय त दिल बड़ा क के भुला जाये के चाहीं..’ अइसना दूनो तरहा के भावन के भँवर में बूडत-उतरात एह अंक के अक्सरहाँ हर लेखक गुजरत बुझाइल बा।

ई बतिया साँच त बड़ले बिया, जे हाँह खा ले जवन बाबूजी के ताड़त आँखि के सपाट सवालन से बाँचल जवन बेटा-बेटी के मोस्किल भइल करे, ओही बाबूजी के जियतार वजूद के एगो तस्वीर बनते ना बनत, खुद आपने वजूद खोखर फेड़ अस निरीह बुझाये लागल बा। एह ठूँठ भइल मन से करीब हर लेखक के ओह शख्शियत प लिखल अपना करेजा प छेनी खोभात, आ कपार प बर्मा से दरात महसूस भइल होखी।

पत्रिका के एह अंक में साहित्य के नजरिये से सहेजे जोग कवनो अस्मरन बड़ुये त, ऊ कैलाशजी गौतम प उनका पुत्री सरोज बहिनी के आलेख बा। कैलाश जी हिन्दी-भोजपुरी के आधुनिक साहित्य के केन्द्र प के नाँव हवे। अपना बाबूजी प बोलत मनोज भावुक जी कहत बानीं- नोकरी लागते लोग के लागेला कि जिनगी सेफ हो गइल बाकिर इहो ओतने साँच बा कि नोकरी करे वाला आदमी अपना जिनगी के बहुत संभावना के मार के बइठ जाला। एह भाव के गहिराई बुझे के जरूरत बा। मनोज भाई के कलम में रस बा, भाव बा। बलुक इहे रस, इहे भाव, इहे सरधा सभन के कलम से छलकहीं के रहे। भाव, रस आ सरधा के एकसार उछाह अनिता सिंह जी, आशा सिंह जी, अन्विति सिंह जी, उमेश चतुर्वेदी जी, डॉ आदित्य अंशु जी, राजेश्वर सिंह जी आ कनक किशोर जी, विनय बिहारी सिंह जी, सुनील कुमार पाठक जी, कृष्ण कुमार जी, बद्रीनाथ वर्मा जी, तारकेश्वर राय ’तारक’ जी जइसन ढेर भावुक आ हिरदै में सरधा राखत बेटा-बेटी लोगन के कलम से छलकल बा। हमार मूल मकसद लेखक लोगन के नाँव जतावल भर नइखे, बलुक जवन अस्मरनन के हम एह हफ्ता में पढ़ि सकल बानीं। छोटहीं में कौ-एक कृतग्य बेटा-बेटी लोग आपन-आपन अस्मरन लेके आइल बा। हमहूँ अपना पापा प सोचत-बिचारत आपन बेर-बेर ओदात आँखि सङे कलम चलवले बानीं। एह लिखल्का के बलुक पापा पढ़ सकिते। बाकिर, अपना माई के इयाद पारत भगवती प्रसाद द्विवेदी जी जवना भाव से अपना बड़की माई के चर्चा कइले बानीं, ऊ बेर-बेर लोरा देवे के तागद राखऽता। सङहीं, भोजपुरिया समाज में बाल-विधवा के लेके जवन ’आहि’ उपटि के शाब्दिक भइल बा, ऊ गागरि में सागर तरहा सोझा आइल बा। एही लगले एह अंक में साक्षात्कार के विधान में जवन बतकही सोझा ले आवल गइल बा, ओह दूनों साक्षात्कारन के तासीर दू तौर के भलहीं लउक रहल बा, बाकिर निकहा मनलग्गू बा। पढ़ि जाये खातिर धेयान घींचऽता। एही लगले, विष्णुदेव तिवारी जी के आलेख-सह-आलोचना प अलगे से धेयान जाता – ’मनोज भावुक के कवितन में माई’। ’तोर बउरहवा रे माई’ के आलोक में एह आलेख के मर्म प निकहा से निगाह जा रहल बा।

एह बेर के सौ पन्ना से ढेर में फइलल एह अंक के भावमय गमक मन-प्रान सुवासित क रहल बा। बाकिर, सङ्हीं एह अंक के अकसरे आजकाल के घटना प नजर राखत आलेख ’ब्रिक्स के कमजोर करत चीन’ प चर्चा नत कइल जाव, त वरिष्ठ पत्रकार आ प्रधान संपादक रवीन्द्र किशोर सिन्हा जी के दत्त-चित्त उतजोग सङे न्याय भइल ना कहाई। भारत के हित के सोझा राखत लेखक ब्रिक्स में चीन के खुराफात प करेड़ कलम चलवले बानीं।  संपादक आ संपादन-मंडल के एह अंक प गहन कोरसिस कइला खातिर बहुत-बहुत धन्नवाद।

सौरभ पाण्डेय, छंदशास्त्री, प्रयागराज

माई-बाबूजी के प्रति समर्पित ए ढंग के विशेषांक शायद हीं  अउरी कौनो भाषा में निकलल होई

आज भोजपुरि भाषा के सेवा, प्रचार-प्रसार आ आम जन तक पहुंचावे में जौन भूमिका ” भोजपुरी जंक्शन ” के बा, बहुत कम संस्था  भा पत्र-पत्रिका उ स्तर तक पहुंच पवले बा।

 

एगो खास विषय के लेके ओपर एगो पूरा विशेषांक निकाल के पत्रिका के और भी विशिष्ट आ ज्ञानवर्धक बना देता आदरणीय सम्पादक मंडल।

 

अबकी बेर के ” माई-बाबूजी विशेषांक ” आपन माई-बाबूजी के प्रति श्रद्धा आ आदर समर्पित करे के अवसर देलस,एसे बढ़ के और का हो सकsता। भोजपुरी के जे भी सेवक लोग बा, जी भर के माई-बाबूजी के प्रति आपन श्रद्धा सुमन एक से एक आलेख आ संस्मरण के द्वारा प्रकट कइले बा लोग।

 

सम्पादक श्री मनोज भावुक के संपादकीय ” पानी प पानी लिखे के कोशिश ” ई विशेषांक के सगरी भाव के अपना में समेट लेले बा। माई-बाबूजी के संस्कार आ पुण्य कर्म के बाल-बच्चा पर केतना असर होला, ई एगो श्लोक के माध्यम से उहां के बहुत हीं सुंदर ढंग से बतवले बानी। सम्पादकीय सम्पूर्ण विशेषांक के दर्पण होला जे विशेषांक के विशिष्टता बतावेला आ ई माने में श्री भावुक जी के  सम्पादकीय शत प्रतिशत खरा उतरता।

 

ई विशेषांक में जे भी भोजपुरी के विद्वान आपन विचार आ भावना प्रकट कइले बा लोग, एक से एक बढ़कर बा। केकरा के बेसी कहल जाव आ केकरा के कम, ई बतावल बहुत कठिन बा।

 

जनकवि कैलाश गौतम जी के सुपुत्री सरोज त्यागी जी के शब्दांजली से  कविवर के बारे में बहुत अइसन बात के जानकारी भईल जे हमनी ना जानत रनी। ओम्हर के कविता आ गीत त हमनी के संमोहित करते रहल बा, आज सरोज जी के संस्मरण बहुत कुछ दे गइल।

 

सबसे त अच्छा लागल हमनी के प्रिय मनोज भावुक जी के बाबू जी, बड़का बाबूजी आ माई के बारे में पढ़ के। अब बुझाइल ह कि मनोज जी में एतना प्रतिभा, जुझारूपन आ नम्रता कहां से आइल बा।

हिंडाल्को के मजदूर नेता के झुझारू तेवर, बड़का बाबूजी के कला आ गायकी के संस्कार आ ना भुलाए वाला माई के कोरा के आशीर्वाद के वजह से हीं मनोज जी आज ई मुकाम हासिल कइले बानी। मनोज जी माई-बाबूजी के आशीर्वाद से आज आपन भाषा के सेवा कर रहल बानी, हमनी के सभी  भोजपुरिया के भी शुभकामना आ आशीर्वाद उहां के साथे बा। मनोज जी कबो अपना के अकेल जन बुझेब, देश आ देश के बाहर के सभी भोजपुरी भाषी के मंगलकामना रउआ साथे बा।

हमार बहुत हीं प्रिय गायक आ कलाकार आदरणीय  श्री राकेश श्रीवास्तव जी के उहां के माई प्रसिद्ध लोकगायिका आदरणीय मैनावती देवी श्रीवास्तव जी के बारे में लेख पढ़के मन श्रद्धा से भर गइल। माई के संस्कार आ कला राकेश जी माई के पेटे में से ले के आइल बानी। राकेश जी के सुनल एगो अलौकिक अहसास देवे ला। आदरणीय मैनावती जी त इतना उच्च कोटि के गायिका रनी कि उहां के बारे में कुछ कहल आ लिखल हमारा बुता आ औकात के बाहर के बात बा। हम त उहां के केवल श्रद्धापूर्वक नमन कर सकतानी ।

श्री तारकेश्वर राय ” तारक ” जी के  ” अम्मा रे अम्मा “, श्री अखिलेश्वर मिश्र जी के ” माई-बाबूजी के बात कान में गूंजत रहेला ” आ बाकी सब विद्वान लोग के शब्दांजली बहुत अच्छा लागल। सब कर जिक्र भले हीं हम नइखीं क पावत, बाकी हमार प्रणाम आ आदर सबका खातिर बा जे आपन माई- बाबूजी के एतना आदर आ सम्मान के साथ स्मरण कइल। सब विद्वान लेखक लोग के गोड लागsतानी।

एगो बात अउरी कहे से हम अपना के रोक नइखी पावत। श्री विष्णुदेव तिवारी जी एगो बहुत बड़ा खजाना के दरवाजा हमनी ला खोल देहनी। हम व्यक्तिगत रूप से ना जानत रनी ह कि मनोज भावुक जी अपना कवितन में माई के केतना इआद कइले बानी।

जे माई के सम्मान देला ओकर सगरो सम्मान होला। तिवारी जी के ई आलेख पढ़ के मनोज जी के प्रति हमार सम्मान अउरी बढ़ गइल।

अंत में हम एतने कहेब कि बहुत सा भारतीय भाषा के पत्र-पत्रिका देश में निकलेली स बाकी माई-बाबूजी के प्रति समर्पित ए ढंग के विशेषांक शायद हीं  अउरी कौनो भाषा में निकलल होई।

अजय कुमार पाण्डेय, सहायक, सिविल कोर्ट, बगहा, पश्चिमी चंपारण

 

माई-बाबूजी जइसन विषय पर विशेषांक निकाले खातिर बधाई

‘माई-बाबूजी विशेषांक’ पर कुछ लिखे के पहिले हम एह पत्रिका के संपादक मनोज भावुक जी के  एह बात खातिर बधाई देतानी कि माई-बाबूजी जइसन विषय पर रउरा विशेषांक निकाले के विचार कइनी।

संतान आ माई-बाबूजी के बीच एगो पूरा पीढ़ी के अन्तर होला। एह से दूनू पीढ़ी के बीच वैचारिक मतभेद चाहे वैचारिक संघर्ष संभव बा। काहे कि दूनू पीढ़ी के बीच सिर्फ विचार-विश्वास में ही अन्तर ना होला बल्कि कार्य-पद्धति में भी बहुत अन्तर होला। एह से मतभेद स्वाभाविक बा। बाकिर ओह अंतर के मर्म के सही अर्थ में आदमी महसूस करेला तब जब ऊ स्वयं माता-पिता बन जाला।  चाहे ओकरा अइसन आपन ह्रदय बना लेला।

हमरा कहे के मतलब ई ना भइल कि संसार में हर माई-बाप अपना संतान के प्रति समर्पित ही होला। बाकिर अपवाद से नियम भी त ना बनावल जा सके। अपना सुख के बिसरा के संतान के सुख में ही आपन सुख के ढूँढल का ह ?

एह अंक में कुल 36 गो रचना छपल बा। जवना में पहिला राजनीति से सम्बंधित बा त अंतिम समीक्षा ह। बाकी 34 रचना में 13 गो बाबूजी से सम्बंधित बा, 10 गो माई से त 11 गो दूनू आदमी से। अब एही से बुझा जाई कि हमनी के अपना माई-बाबूजी पर कुछ लिखे खातिर केतना उत्सुक बानी सन । एकर सबसे बड़का कारण ई बा कि हमनी के अपना माई-बाबूजी के चरणन में आपन भावांजलि अर्पित करेके चाहत रहनी ह सन बाकिर अवसर ना मिल पावत रहल ह। जब अवसर मिलल त आपन उद्गार प्रकट कर देहनी सन। बाकिर भावुक जी के शब्दन  में ‘पानी प पानी लिखे के कोशिश’ में का हमनी के अपना रचना से न्याय कर पइले बानी? जे हमरा के संस्कार आ आकार देहलस ओकरा के हम अपना शब्दन से आकार का देब?

हम ढाई दिन में सब रचना पढ़ गइनी ह। बाकिर रउआ साच मानी प्रायः हर रचना में भोजपुरी साहित्य के साथ भी वफादारी भइल बा। एक से एक रोचक कथा के साथ ही भोजपुरी के कइगो रूप जहाँ एक ओर देखे के मिलल उहईं दोसरा ओर भोजपुरी भाषा आ संस्कृति के संजोये के बेचैनी भी दिखल।

डॉ. ज्योत्स्ना प्रसाद, वरिष्ठ लेखिका, पटना

मुंहजबानी रट लिहल जाओ लइकन नियर !

जइसहीं माई बाबूजी विशेषांक पढ़ के उठनी हं, लिखे खातिर कलम उठ गइल ह। सोच रहल बानी कि भगवान त माईए बाबू के रुप में एह धरती पर हमनी के सङ्गे बाड़न, जेकरा एह बात के भान बा से पूज रहल बा, आ जेकरा नइखे बुझात सेकरा भाग के दोष बा।

संपादकीय एतना नीमन लागल ह कि मन करSता कि मुंहजबानी रट लिहल जाओ लइकन नियर! ‘पानी प पानी लिखे के कोशिश’ अइसन शानदार आ क्लासिक शीर्षक,कि हम खाली लिख के नइखीं बतावे सकत! रउरा के विशेष बधाई एह खातिर मनोज भैया!

माई बाबूजी प एक से बढ़के एक लेख पढ़ के अलगे संतोष के अनुभव कर रहल बानी। ब्रिक्स पर बेहतरीन आलेख पढ़ला के बाद, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के कवनो पुस्तक भोजपुरी में पढ़े के मन करSता। आदरणीय विष्णुदेव तिवारी जी के समीक्षा बहुते नीमन लागल ह। अन्त में इहे कहेम कि जून के ई संयुक्तांक सहेज के रखे जोग बा। भोजपुरी साहित्य के उपवन रउरा प्रयास के सुवास से सदा गमकत रहो!

डॉ. कादम्बिनी सिंह, कवयित्री, बलिया 

 

अब तक अइसन विशेषांक देखे के नइखे मिलल

भोजपुरी जंक्शन के टटका अंक में जंक्शन के वास्तविक स्वरूप के दर्शन होता।एक तरफ सामयिक, साहित्य आलेख वहीं दूसरा तरफ माई बाबूजी विशेषांक में संग्रहित संस्मरण के संकलन संपादक के दूर दृष्टि के परिचायक बा। भोजपुरी साहित्य में एह तरह के विशेषांक माई बाबूजी,जे जीवन के आधार होला,जे पग पग पर मार्गदर्शक होला आ जेकरा से ताउम्र उऋण ना हो पावे, पर अब तक अइसन विशेषांक देखे के नइखे मिलल। अनूठा आ अनुपम बा ई संकलन। भावुक जी के भोजपुरी साहित्य सेवा आ नया-नया प्रयोग सराहनीय आ अनुकरणीय बा। भोजपुरी जंक्शन परिवार के खूब खूब साधुवाद।

कनक किशोर, वरिष्ठ साहित्यकार, रांची

ऐतिहासिक प्रयास

भोजपुरी जंक्शन में ईश्वर तुल्य माई-बाबूजी के संदर्भ में संस्मरण पढिके हृदय भाव-विह्वल हो गइल। एकरा प्रति सब लेखकन के प्रणाम बा। भावुक जी के ऐतिहासिक प्रयास सबके भावुक बना देहलस। माई बाबू के पद-चिन्ह पर चलल इहे सन्तान के कर्तव्य बा।

अनुराधा कृष्ण रस्तोगी,  कुदरा, कैमूर, बिहार

 

जियरा अघा गइल

भोजपुरी जंक्शन के ‘माई-बाबूजी’ विशेषांक पढ़ के जियरा अघा गइल। बूढ़ पुरनिया के प्रति  आदर-सम्मान देहल हमनी के सनातनी परंपरा हऽ जवना के जिंदा रख के, बल्कि ई कहीं कि आगे बढ़ावे खातिर श्री मनोज सिंह भावुक जी के जतना प्रशंसा कइल जाए कम बा। जिनगी के कवनो भरोसा नइखे रह गइल। कब के साथ छोड़ जाई कहल नइखे जा सकत। अइसन में ई नवका पीढ़ी के मन में आपन  बुजुर्गन के प्रति भाव व्यक्त करे के  सोनहर मउका मिलल जवना के एगो धरोहर मान के भविष्य में संजो के रखे लाएक अंक के परिकल्पना कइनी, एह खाती उहां के साधुवाद आ भोजपुरी जंक्शन के उत्तरोत्तर बढ़ंती के पुरहर सुभकामना देतानी।

 गीता चौबे गूँज, कवयित्री, रांची

 

जज्बा के सलाम

रउरा मेहनत, लगन आ जज्बा के सलाम। ई सब भोजपुरी जंक्शन में झलकत बा। मां सरस्वती से विनती बा लेखनी के स्याही कभी ना सूखे। मां हंसवाहिनी के आशीर्वाद बनल रहे भाई पर।

राजेश मांझी, जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली

 

मनवा भाव बिभोर

माई बाबूजी के अंक पढ़ि, मनवा भाव बिभोर
सांच कहीं ई अद्भुत करनीं हऊंवें भाउक तोर
भइया मनोज हे भाउक बा,
कर जोरि प्रनाम तुहें मोर भाई।
सांच तs ई बा मोबाइल में,
भोजपुरियन के लेहलs तूं जुटाई।।
उनके मुंह से उन कर गितिया,
बाड़s धन्नि की तूं दिहलs सुनवाई।
एहि कारन बानें प्रनाम प्रनाम,
प्रनाम तुहें मोर सीस नवाई।।

एहि पुनीत कारे खातिर भगवान राउर जीऊ जांगंर बनवले रहें।

ओम प्रकाश आचार्य, वरिष्ठ कवि, गोरखपुर

 

संपादकीय बहुत बढ़िया लागल हs

संपादकीय ( हर बेर की तरह ) बहुत बढ़िया लागल हs … बाकी सामग्री का बारे में भी पढि के राय देत बानीं।

शाशि प्रेमदेव, वरिष्ठ कवि, बलिया 

 

लमहर काम भइल बा

भोजपुरी जंक्शन के “माई-बाबूजी” विशेषांक हाथ में बा। कई बेरी पढ़ गइनी आ मन इहे सोच के गदगद होता कि आज के समय मे जहाँ अधिकांश लइका लोग बिरधासरम खोजता लोग, ओह माहौल में, ओह परिवेश में मनोज भावुक जी अतना लमहर काम के बीड़ा उठावे के हिम्मत कइनी आ सभका सोझा रखियो देहनी। आज खाली उहें के ना ,बलुक कतना माई-बाबूजी के आसिरवाद  उहाँ के मिलता, कहल कठिन बा। लमहर काम भइल बा। मनोज जी के साथे पूरा संयोजक लोगन के बधाई बा। एक से बढिके एक माई-बाबूजी के संस्मरण रउआ सँजोअले बानी। बधाई बा, क्रम बढ़त रहे, भोजपुरी के माथ चमकत रहे।

डॉ. मधुबाला सिन्हा, कवयित्री, चंपारण  

एह तरह के विशेषांक पढ़े के ना मिलेला

‘भोजपुरी जंक्शन के ‘माई-बाबूजी विशेषांक’ के समाज में बहुत सराहल जा रहल बा। साधारणतया एह तरह के विशेषांक जल्दी पढ़े के ना मिलेला।

माई-बाबूजी के, घर-परिवार आ लइका-लइकी के जीवन में, केतना महत्व बा, इ पत्रिका पढ़ला पर समझ में आ रहल बा। सब लेख में अमूमन एके बात सामने आ रहल बा कि माई-बाबू जी पर लिखल आसान नइखे। ये बात के पुष्टि संपादक मनोज भावुक जी के सम्पादकीय, ‘पानी प पानी लिखे के कोशिश’ से हो जाता जेमे सम्पादक महोदय विचार के ताकत में परवरिश आ परिवेश के भूमिका के वर्णन कइले बानी।

पत्रिका में प्रकाशित सब आलेख नवही पीढ़ी खातिर रोचक आ प्रेरणा के स्रोत बा। सभे रचनाकार माई-बाबूजी के साथे बितावल आपन स्नेहिल एक-एक पल  बड़ा बारीकी से प्रस्तुति कइले बा आ ई सब खट्टा-मीठा अनुभव नइकी पीढ़ी के जीवन में परिपक्वता के साथ अहम ऊँचाई प्रदान करी।

विष्णुदेव तिवारी जी के समीक्षा, ‘मनोज भावुक के कवितन में माई’ बड़ा ही मनभावन बा।
पत्रिका में माई-बाबूजी प लिखल एक-एक दृष्टांत आपन अमिट छाप बना चुकल बा। बेशक ई अंक संग्रहणीय आ जोगावे लायक बा। ये अनोखा अंक खातिर संपादक महोदय के बहुत-बहुत धन्यवाद, शुभकामना आ बधाई।

अखिलेश्वर मिश्र, कवि, प. चम्पारण, बिहार

 

पहिलका बेरा अइसन विषय पर केन्द्रित अंक

पहिलका बेरा अइसन विषय पर केन्द्रित भोजपुरी पत्रिका के कवनो अंक निकलल बा। वाकई प्रशंसनीय अंक-बधाई मनोज जी।

उदय नारायण सिंह, वरिष्ठ लोकगायक, छपरा 

 

कलेजा निकाल के परोसल दिहलs  

कलेजा निकाल के परोस दिहल ए बाबु !

रामेश्वर सिंह, अवकाश प्राप्त पुलिस अधिकारी, वाराणसी 

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