जंगे-आजादी में 'लुटेरवा'

September 27, 2021
आवरण कथा
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भगवती प्रसाद द्विवेदी

जब 1857 में भोजपुरिया जवान मंगल पांडे के अगुवाई में सिपाही विद्रोह भइल, त सउंसे भोजपुरियन के लोहू उफान मारे लागल रहे आ जे जहवां रहे उहंवें से खिलाफत के सुर बुलंद कइल शुरू कऽ देले रहे। जन-जन में राष्ट्रीय चेतना के बोध करावे का गरज से देश के इतिहास, भूगोल, कुदरत, संस्कृति से लबरेज़ रघुवीर नारायण के ‘बटोहिया’ के सिरिजना भइल, जवन ‘भोजपुरी के वंदेमातरम्’ साबित भइल। बाकिर मुलुक के गौरवशाली इतिहास प पानी फेरेवाला अंगरेजन के करतूत प मनोरंजन बाबू के ‘फिरंगिया’ जब लिखाइल, त देश के-का छोट,का बड़-सभ केहुए के खून खौलि उठल आ घर-अंगना से खेत-खरिहान ले ओके गायन होखे लागल रहे। गांवागाईं भोजपुरी के कविताई गूंजि उठल रहे आ देश खातिर आपन जान तरहत्थी पर धऽके सभे मरि मिटे बदे तइयार हो गइल रहे। ‘बटोहिया’ आउर ‘फिरंगिया’ के तर्ज पर एगो अउरी गीत सिरिजाइल रहे ‘लुटेरवा’ आ ओकरा रचनिहार के नव महीना के कठोर जेहल के सजाइयो भुगुते के परल रहे।

‘लुटेरवा’ के अमर कवि रहलन गुंजेश्वरी मिश्र ‘सुजस’,जेकर जनम बिहार में ओह घरी के सारन जिला (अब सीवान) के बसंतपुर थानान्तर्गत गांव सैदपुर में भइल रहे। लरिकाइएं से कविताई में दिलचस्पी देखिके बाबूजी पंडित राजकुमार मिश्र उन्हुकर दाखिला छपरा के संस्कृत कॉलेज में करवा दिहलन। बाकिर गान्हीं बाबा के असहजोग आंदोलन में भागीदारी निभावत ‘सुजस’ जी पढ़ाई छोड़ि दिहलन। बाबूजी देशभक्ति से धियान भटकावे आ घर-परिवार से जोड़ेके दिआनत से शिवपुर सकरा थाना दरौली के केदारनाथ पाण्डेय के बेटी से उन्हुकर बियाह करवा दिहलन।

बाकिर गुंजेश्वरी मिश्र ‘सुजस’ त खुद के जंगे-आजादी खातिर समर्पित कऽ देले रहलन। सन् 1921 शुरू हो चुकल रहे।

‘सुजस’जी एगो नया गीत के सिरिजना कऽ दिहलन आ बेगर केहू से किछु बतवले छपरा के कमला प्रेस में जाके रातोरात आपन गीत ‘लुटेरवा’ के एक हजार कॉपी छपवा लिहलन। गीतकार का रूप में ऊ आपन नांव ना डललन आ छद्मनांव छापिके रेलगाड़ी में गा-गाके जनता के सुनावे लगलन। ऊ गांव-गांव में जासु आ ‘लुटेरवा’ गावत जनजागरन के अभियान चलावसु। उन्हुका गीत आ गायकी सुनि-पढ़िके सुननिहारन के करेजा फाटे लागत रहे। लोग मातृभूइं खातिर तन-मन-धन अर्पित करे आ सर्वस्व होम करे के किरिया खात रहे।

बाकिर ‘सुजस’ जी के गीत अंगरेजी शासन के नींन हराम कऽ दिहलस। भलहीं ओह पर उन्हुकर नांव ना रहे, बाकिर पुलिस के असलियत के भनक मिलि गइल। उन्हुका घरे जब पुलिस के छापा परल,त गीत के मूल पांडुलिपि आ छपल प्रति बरामद भइल। ‘सुजस’जी के गिरफ्तार कऽ लिहल गइल। गांव-जवार के तमाम नामी-गिरामी संभ्रांत लोग जमानत लिहल। छपरा के जिलाधीश के इजलास में मोकदिमा चलल।

आखिरकार ‘सुजस’ जी के सश्रम कारावास के सजाइ सुनावल गइल-उहो नौ महीना के कठोर सजाइ। बाकिर उहवों कवि जी ‘लुटेरवा’ गीते के गायन करत रहलन।

दरअसल ‘लुटेरवा’ में देश में कारोबार करे आइल गोरन के लुटेरा साबित कइल गइल रहे। सांच बात कहला प सोझे जेहल के हवा खिआवल जात रहे। ‘लुटेरवा’ के शुरुआती पांती प अखियान कइल जाउ-

मक्का ओ मदीना अइसन जहान रहे,

पुन्न भूंइ भीत में मिलवले, लुटेरवा!

हमनी गरीब जब कुछ मंगलीं त

झट से तें जेहल देखवले,लुटेरवा!

कवि के कहनाम रहे कि लूट-खसोट करे का संगहीं अबोध लरिकन के जान लीहल आ संतसुभाव लोगन पर बर्बर अतियाचार भला केकर दिल ना दहला दी?

सब कोई मिलके दुखवा रोवत रहे

ताहि बीचे गोलवा गिरवले लुटेरवा।

चूनवा के गड़हा में साधुन के खड़ा कके 

ऊपर से पनिया गिरवले लुटेरवा।

छोट-छोट बालकन के घमवा में खेदि-खेदि 

सभनी के जमपुर भेजवले,लुटेरवा।

सुजस जी गीत में ओह घरी के किछु वारदातो के दिल के घवाहिल करेवाला चित्र उकेरत लिखले रहलन-

उहवां जो बृधा अरु सुशील सुदेव रहें 

लंगटहीं खाड़ तें करवले,लुटेरवा।

रायबरेली में दुखिया प्रजा के ऊपर

नाहक में गोलिया चलवले, लुटेरवा।

भारत के भाई-भाई के लड़वाके राज करेवाला ई लुटेरवा कतने कलाकारन के हाथ काटिके, आंखि फोरिके चउपट बना दिहलस। आगा के पांती में कवि कहत बा-

भाई में झगड़ा लगाइ ओ रिझाइकर 

पराधीन नामवा धरवले,लुटेरवा।

जहवां के लोग रहे ब्रह्मॠषि,राजॠषि,

सभनी के गदहा बनवले,लुटेरवा।

इहवां के शिक्षित सुजन शिल्पकार रहे,

पकड़ के भांड़ में झोंकवले,लुटेरवा।

कतना के हाथ काटि,कतना के आंखि फोरि

बिलकुल तें चउपट बनवले,लुटेरवा।

कपड़ा में चमड़ा के पालिस लगाइकर

साथहीं पलेगवा भेजवले,लुटेरवा!

 

बाकिर एकरा के विडंबने कहल जाई कि ‘बटोहिया’ आ फिरंगिया के गीतकार के जवन प्रसिद्धि मिलल, ऊ ‘लुटेरवा’ के गीतकार के ना मिलि पावल। बाकिर ना त कविवर गुंजेश्वरी मिश्र ‘सुजस’ जी के देश का प्रति सच्चा समरपन के भुलाइल जा सकेला, ना एह ‘लुटेरवा ‘ के यादगार पांती के। ‘सुजस’जी के सुजस जंगे-आजादी के इतिहास में दर्ज रही।

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