लेखक – मनोज भावुक
बिहार से सटल पूर्वी उत्तरप्रदेश के एगो जिला बा, बागी बलिया। आधिकारिक नाम त बलिया ही ह बाकिर लोग शान से बागी बलिया कहेला। एकर कई गो कारण बा, पहिला त इहें 1857 के संग्राम के क्रांतिकारी मंगल पांडे जनमलें आ दुसरका कि आजादी से 5 साल पहिले 1942 में ही 14 अगस्त के लगभग 300 आजादी के मतवाला मिलके बैरिया थाना पर तिरंगा फहरा दिहलें। बलिया के माटी में सनाइल देशभक्ति के खूने ह कि 1857 में ब्रिटिश सेना में सिपाही के पद पर तैनात एगो सामान्य आदमी के अंदर अंग्रेजन के क्रूरता अउरी गुलामी के खिलाफ बगावत के आग धधक गइल। मंगल पांडे के बग़ावत के बाद जवन चिनगारी चारू ओर भड़कल, उ सम्पूर्ण भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी आ ब्रिटिश राज के खिलाफ राजा, नवाब, जमींदार, सिपाही, युवा, किसान, रैयत, मजदूर सभके लामबंद कर देलस आ 1857 के भीषण क्रांति भइल। हालांकि अंग्रेज भारतीय लोगन के आपसी फूट आ अपना कूटनीति के चलते 1858 के मध्य आवत-आवत ई क्रांति के दमन कर देहलsसन बाकिर आजादी के बिआ त ओहि बेरा बोआ गइल रहे जवन 1947 में पूर्ण स्वतंत्रता के फल के रूप में मिलल।
1857 क्रांति के बम के सुतली में आगि लगावे वाला मंगल पांडे के जन्म 19 जुलाई 1827 में भइल रहे। उनके पिता जी के नाम दिवाकर पांडे रहे अउरी माई के नाम अभय रानी। युवा मंगल के 18 साल के उम्र में आजीविका चलावे खातिर ईस्ट इंडिया कंपनी के सेना में भर्ती होखे के पड़ल। ओह बेरा अंग्रेजन के कब्जा भारत के अधिकतर हिस्सा में हो गइल रहे आ ओकनी के अत्याचार दिन पर दिन बढ़ल चालू हो गइल रहे। पैदावार से ज्यादा लगान आ कठोर नियम कानून के चलते भारतीय लोग के मन में अंग्रेजन के प्रति गुस्सा बढ़े लागल रहे। मंगल पांडे के नियुक्ति बैरकपुर सेना छावनी में भइल रहे। उ 34वीं बंगाल नेटिव इंफॅन्टरी के पाँचवा कंपनी में सिपाही रहलन।
ओ बेरा देसी सैनिकन में अफवाह उड़ल रहे कि बहुते अंग्रेज सैनिक समुद्री मार्ग से आवत बाड़े सन आ इहाँ के भारतीय सैनिकन के मार दिहे सन। ओहि बेरा सैनिक के बीच बाइबल बँटला के अउरी ईसाई धर्म अपनवला पर विशेष सुविधा अउरी भत्ता देहला के भी खबर फइलल रहे। मंगल पांडे जइसन हजारों सिपाही ई सब के चलते ब्रिटिश राज से नाखुश रहलें। तबे सिपाहियन के नया राइफल एनफील्ड पी 53 के इस्तेमाल करे के फरमान आइल। एह राइफल में कागज के बनल कारतूस के फाड़ के ओकरा भीतर के बारूद राइफल में भर के चलावे के रहे। ई खबर फइलल कि ओह कारतूस में गाय अउरी सूअर के चर्बी से बनल ग्रीज लगावल बा। हालांकि ग्रीज ओह कागज के हर मौसम में नरम बनावे खातिर आ कारतूस के खराब होखे से बचावे खातिर लगावल गइल रहे। अब बात ई रहे कि एनफील्ड राइफल के एक हाथ पकड़े के पड़े, दूसरा हाथ से कारतूस धर के दांते से फार के नाली में भरे के पड़े। इहे बात सिपाहियन के खटक गइल। अधिकांश सिपाही हिन्दू-मुसलमान संप्रदाय के रहलें आ सबमें ई राय बन गइल कि अंग्रेज हमनी के धर्म भ्रष्ट करे खातिर ई खेल रचले बाड़ें सन। एने ईसाई में धर्मान्तरण के हल्ला सुनाते रहे।
हिन्दुस्तानी सिपाही लामबंद होखे लगलs सन। कुछ इतिहासकार के इहो मान्यता बा कि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के बढ़त दबदबा के खिलाफ बगावत करे खातिर देश के राजा, जमींदार, धार्मिक नेता एकजुट होके के तैयारी करत रहलें। सभे के योजना रहे कि 31 मई 1858 के महाक्रांति होई आ एक साथे सगरो देश में अंग्रेजन के ऊपर धावा बोलाई जेकरा चलते ओकनी के पाँव उखड़ जाई। सच कहल जाव त जदि अइसन भइल रहित त देश 90 साल पहिलही आजाद हो जाइत। केतन मेहता त अपना फिलिम मंगल पांडे – द राइज़ींग में इहो देखवले बाड़ें कि मंगल पांडे कुछ अइसन नेता से मिलबो कइलें जे महा-क्रांति के योजना में शामिल रहे।
अकेले बोल देहलें अंग्रेज अफसरन पर धावा
29 मार्च 1857 के दुपहरिया में बैरकपुर में नियुक्त लेफ्टिनेंट बाग के पता चलल कि उनके कंपनी के कुछ सिपाही जे के मंगल पांडे अगुवाई करत रहलें, क्वार्टर बिल्डिंग के ओर आ रहल बाड़ें। सगरी परेड ग्राउन्ड में जमा बाड़ें आ भांग के नशा में धुत्त बाड़ें। मंगल पांडे सबसे विद्रोह करे के कहत बाड़ें आ जवन भी अंग्रेज सिपाही लउकी ओकरा के मार देबे के कहत बाड़ें। अबे इहे होत रहे तले लेफ्टिनेंट बाग घोड़ा पर चढ़ के परेड ग्राउन्ड में आ गइल। मंगल पांडे अकेले ओकरा से भिड़ गइलें आ ओकरा पर गोली चला देहलें। बाग बाँच गइल बाकिर ओकरा घोड़ा के गोली लाग गइल एही से घोड़ा आ बाग नीचे गिर गइलें। बाग अपना पिस्तौल से मंगल पर गोली चलवलस। मंगल पांडे खुद के बचा लेहलें अउरी तलवार लेके बाग पर हमला कर देहलें। कई जगह ओकर के काट के खूनम खून कर देहलें। ओहिजा सर्जेन्ट मेजर ह्यूसन भी पहुँच गइल आ मंगल पांडे ओकरो पर तलवार से वार करे लगलें। ह्यूसन जमादार ईश्वरी प्रसाद से मंगल पांडे के गिरफ्तार करे के कहलस। ईश्वरी पहिले से मंगल के पार्टी में रहलें, उ माना कर देहलें।
एतने में एगो सिपाही शेख पलटू मंगल पाण्डेय के डाँड़ में बांह डाल के पीछे से पकड़ लेहलस। मंगल पांडे तभियो तलवार चलावते रहलें। उहाँ बहुते देसी सिपाही रहलें लेकिन सब मूक दर्शक बनल रहलें। तब तक जनरल हीअरसे के एकर खबर लाग गइल रहे आ उ अपना दू गो अफसर बेटा के साथे अइलस आ सब सिपाहियन के धमकवलस कि मंगल पांडे के तुरते पकड़sलोग। जे ऑर्डर ना मानी, ओकर जान जाई। मंगल पांडे के जब लागल कि अब हम पकड़ा जाएब त उ खीस में अपना साथी सिपाहियान के गरीअवलें आ आपन बंदूक के नली छाती पर लगा के गोड़ के अंगूठा से ट्रिगर दबा देहलें। गोली फायर हो गइल, मंगल पांडे घायल होके धरती पर गिर गइलें। हालांकि कुछ दिन बाद जब उ ठीक भइलें त उनका पर मुकदमा चलल आ 18 अप्रैल के फांसी के दिन तय भइल। बाकिर एह घटना के बाद से चारु ओर मंगल पांडे के बग़ावत के चर्चा आगि लेखां फइलल आ उनका बहादुरी के तारीफ होखे लागल। एह से घबरा के अंग्रेजी हुकूमत मंगल पांडे के 8 अप्रैल के ही सरेआम फांसी पर लटका देहलस कि एगो नजीर पेश होखो आ फेर से कवनो सिपाही भा क्रांतिकारी बगावत करे से डेराव।
बाकिर भइल एकरा उल्टे। इतिहास गवाह बा कि मंगल पांडे के फांसी भारतीय दिल-दिमाग़ में आजादी के आग धधका देहलस आ ओकरा बाद पूरा भारत में जवन धमाका भइल, ओह से लंदन ले हिल गइल।