अजय कुमार पाण्डेय
साल 1939 ,
बेतिया ( प. चंपारण ) बिहार ,
बेतिया के बड़ा रमना मैदान
मैदान में भारी जन सैलाब
जोश में भरल युवा ।
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के बेतिया आगमन आ उहां के भाषण सुने खातिर भारी भीड़ उमडल रहे ।
नेता जी के जिंदाबाद के नारा गुंजल आ उहां के मंच पर अइनी। भीड़ हर्ष आ जोश के अतिरेक में चीखे लागल आ ” नेता जी जिन्दाबाद , भारत माता के जय , वन्देमातरम ” के नारा लागे लागल ।
नेता जी हाथ हिला के सबकर अभिवादन कईनी आ शांत रहे के इशारा कईनी । लोग शांत हो के एक टक उहां के निहारे लागल ।
नेता जी के चेहरा हजार वाट के बल्ब लेखा चमकत रहे आ कपार त साफा बुझात रहे कि सीसा ह ।
नेता जी के नस – नस में गरम लावा दौउडावे वाला भाषण शुरू भइल । बीच – बीच में लोग के जोश ना माने आ जिंदाबाद , वन्देमातरम के नारा गूंजे लागे ।
जब भाषण ओराये पर आइल त नेता जी आपन चिरपरिचित नारा बुलंद कईनी ,
” तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हे आजादी दूंगा ।”
लोग फेर नारा लगावे लागल ।
अचानक नेता जी हाथ से सबका के शांत रहे के इशारा क के भीड़ से मुख़ातिब भइनी आ पूछनी ,
” तुममें से कौन देश की आजादी के लिये अभी इसी मंच पर मुझे खून देगा ?”
भीड़ में सन्नाटा छा गइल आ सभे एक – दूसरा के मुंह देखे लागल ।
ताले , पीछे से भीड़ के चीरत एगो हट्ठा – कट्ठा नौजवान आगे अइलन आ सीना तान के चिलइले ,
” हम खून देंगे नेता जी , हम खून देंगे ।”
सब लोग उ युवक के जोश आ हिम्मत देखे लागल ।
नेता जी उ युवक के मंच पर बोलावले आ पीठ थपथपा के नाम पुछलें । उ नौजवान आपन नाम ” धनराज पुरी ” बतवलें ।
बिहार के वर्तमान पश्चिमी चंपारण जिला के रामनगर प्रखंड स्थित सिकटा – बेलवा गांव के ” महंथ धनराज पुरी ” के नेता जी ओकरा बाद कबो ना छोड़नी ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार जब नेता जी अंगरेजन के आँखी में धूल झोंक के कलकत्ता से पलायन कईनी त महंथ जी के सिकटा – बेलवा स्थित घर पर आपन कुछ विश्वस्त सहयोगी लोग के साथ रात्रि में कुछ समय खातिर आइल रनी । नेता जी के साथे महंथ जी के ओ समय के बड़ी पुरान फोटो मिलल बा जेमें नेता जी के साथे महंथ जी खड़ा बानी ।
नेता जी जब आपन पार्टी ” फारवर्ड ब्लॉक ” बनवनी त महंथ धनराज पुरी जी के पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनवनी । नेता जी के देश से पलायन आ गुमनाम हो गइला तक महंथ जी सक्रिय रूप से ” फॉरवार्ड ब्लॉक ” पार्टी के क्रिया कलाप में रहनी आ गुप्त रूप से देश के आजादी खातिर काम कईनी ।
महंथ जी के घर देश के आजादी मिले तक विभिन्न राजनीतिक आ साहित्यिक गतिविधि के केंद्र भी रहल ।
महंथ जी हिंदी , संस्कृत , अंग्रेजी आ उर्दू के उद्भट विद्वान रहनी आ बेहतरीन कवि आ लेखक भी रनी ।
सन 1938 – 40 के दौरान जब साहित्यिक आ काव्यात्मक अभिव्यक्ति पर भी ब्रितानी हुकूमत के पहरा रहे , महंथ जी रामनगर में एगो विराट कवि सम्मेलन के आयोजन कईनी जेमे देश भर के क्रांतिकारी कवि लोग आइल रहे । महंथ जी उ कवि सम्मेलन में आपन ” ओस ” नामक काव्य – संकलन एगो कविता पढ़ले रनी , जेकर कुछ पंक्ति बा ,
” डमरू आज बजे , वीणा न बजाएं
गीत न गायें आज
आज तो गीता गायें
भभके ज्वाला
जाल व्योम तक
पहुँच जाए “.
बाकी कवि लोग भी आपन कविता आ गीतन के माध्यम से लोग के जगावे के प्रयास कइल लोग ।
महंथ जी चंपारण में पहिला बार कविता के माध्यम से क्रांति के बिगुल फुकले रनी जेकर आंच ब्रितानी हुकूमत तक पहुँच गइल । महंथ जी भूमिगत हो गइनी । अंगरेज उहां के पकड़ पवलsस कि ना , एकर कौनो पुष्ट प्रमाण नइखे उपलब्ध हो सकल लेकिन अंत – अंत तक उहां के अंग्रेजन के आंख के किरकिरी बनल रनी ।
महंथ जी नेता जी के लागातार सम्पर्क में रहनी आ अपुष्ट सूचना के अनुसार कुछ समय तक ” आजाद हिन्द फ़ौज ” के अति गोपनीय शाखा ख़ातिर बर्मा ( वर्तमान म्यांमार ) में भी रहनी ।
दुर्भाग्य से उहां के कौनो चिट्ठी – पत्री भा दस्तावेज उहां के वारिस लोग सहेज के ना रख सकल । जौन फोटो भी उपलब्ध भइल उ बहुत हीं खराब अवस्था में बा ।
महंथ जी के साहित्यिक पक्ष भी बहुत विराट रहे । ओम्हर के बहुत उच्च कोटि के कवि आ साहित्यकार रनी । विशेष रूप से उहां के शिकार कथा बहुत लोकप्रिय बाड़न स । उहां के देश भर के जंगल आ पहाड़न के बड़ी भ्रमण कइले रनी आ शिकार के शौकीन रनी ।
शिकार कथा लेखक स्व. वृंदावन लाल वर्मा आ स्व. श्री राम शर्मा जी के साथे शिकार कथा लेखक के रूप में ओम्हर के राष्ट्रीय पहचान रहे ।
महंथ जी के ” इला ” खण्ड काव्य उहां के मशहूर किताबन में बा ।
इला उहां के आपन बेटी के याद में लिखले रनी , जे युवावस्था में हीं विधवा हो गइली आ खुद भी कुछ दिन बाद चल बसली ।
महंथ जी के सामाजिक आ खोजपूर्ण कार्य भी बहुत उल्लेखनीय बा ।
उहां का आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के आश्रम के खोज कईनी आ उहें के शोध आ अथक प्रयास से वर्तमान पश्चिमी चंपारण के काश्मीर ” भैसालोटन ” के नाम ” वाल्मीकिनगर ” पड़ल । ये खातिर महंथ जी के बहुत भाग – दौड़ आ लिखा – पढ़ी करेके पड़ल ।
जंगल में भ्रमण के दौरान सीमावर्ती नेपाल के घनघोर जंगल में उहां के एगो आश्रम जइसन जगह पवनी , जहां यज्ञशाला , हवन कुंड , कुंआ , प्राचीन काला पत्थर के मूर्ति आ अनेक अइसन प्रमाण पवनी जे उ स्थान के महर्षि वाल्मीकि के आश्रम सिद्ध करत रहे जहां सीता माता रहल रनी । ये खातिर महंथ जी बहुत सा प्राचीन ग्रन्थ आ साहित्य के अध्ययन कईनी आ आपन शोध के सम्बंध में दु गो किताब लिखनी , ” महर्षि वाल्मीकि का आश्रम कहां था ?” आ ” वाल्मीकि आश्रम – वाल्मीकि नगर ” ।
उहां के प्रयास रंग लाइल आ 14 जनवरी ‘ 1964 के ” भैसालोटन ” के नाम सरकारी आ आधिकारिक स्तर पर ” वाल्मीकिनगर ” हो गइल । एकर घोषणा बिहार के तत्कालीन राज्यपाल स्व. अनंत स्थानम आयंगर , नेपाल नरेश आ दुनु देश के अधिकारियन के उपस्थिति में भइल । वाल्मीकि आश्रम के भी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम के रूप में मान्यता मिलल आ आज देश भर के लोग वाल्मीकिआश्रम के देखे आवेला ।
दुर्भाग्य के बात ई बा कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के अनन्य सहयोगी आ उहां के पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष स्व. महंथ धनराज पुरी जे राष्ट्रीय स्तर के कवि आ कथाकार के आज लोग भुला गइल बा ।
उहां के गृह जिला में भी उहां के जन्म या मृत्यतिथि पर कौनो आयोजन ना होला ।
हमरा त ई शेर अब एकदम अप्रासंगिक बुझाला ,
” शहीदों के चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ”
स्व. महंथ धनराज पुरी जी के उपलब्ध साहित्य इहे बा ।
1- अविरल आंसू ( आंचलिक उपन्यास )
2- आखेट ( शिकार कथा )
3- इला ( काव्य )
4- ओस ( काव्य
5- उच्छ्वास ( रचना – संग्रह )
6- आओ सुनो कहानी ( बाल साहित्य )
7- टुनमून ( बाल साहित्य )
8- लेफ्टिनेंट ( कहानी संग्रह )
9- मौत की मांद में ( शिकार कहानियां )
10-महर्षि वाल्मीकि का आश्रम कहाँ था ?
11-वाल्मीकिआश्रम ; वाल्मीकिनगर ( शोध प्रबंध )
12- मृत्यु से मुठभेड़ ( शिकार कहानियां )
13 -तमुरा ( बाल साहित्य )
14-जंगल में दंगल ( बाल साहित्य )
( परिचय- अजय कुमार पाण्डेय सिविल कोर्ट, बगहा, पश्चिमी चंपारण, बिहार में सहायक बानी.