डॉ. अशोक द्विवेदी
(एक)
जहवाँ हेरइलें आके
बड़-बड़ ज्ञानी…., उहे देसवा
झरे पथरो से पानी; उहे देसवा
हवे मोर देसवा !
जोगिया करेलें धन-संपति स्वाहा
दुलहा बनेलें जहाँ शिव बउराहा
दुलहिन गउरा के हवे रजधानी !
उहे देसवा….झरे पथरो से पानी !
हवे मोर देसवा !
तप करें जहाँ रिसि सत चित खातिर
देहियाँ तजेलें लोग परहित खातिर
झुकि-झुकि जालें बड़-बड़ अभिमानी !
उहे देसवा….झरे पथरो से पानी !
हवे मोर देसवा !
रतिया चढ़ावेले अँजोरिया के चानी
किरिन पखारे भोरे सोनवाँ के पानी
रूख-सूख खाइ हँसे सरग-पलानी !
उहे देसवा….झरे पथरो से पानी !
हवे मोर देसवा !
सहला के सीमा तूरे लोगवा इहाँ के
बाकि स्वाभिमान बदे लड़े छतिया के
नित उतसर्ग के गढ़ेला कहानी !
उहे देसवा…..झरे पथरो से पानी !
हवे मोर देसवा !
मिलि-जुलि पूरे जहँ जन गन सपना
प्रकृति रचेले नित नव-नव रचना
खोंइछा भरेलें जहाँ औढरदानी !
उहे देसवा……झरे पथरो से पानी !
हवे मोर देसवा !
(दू)
मोके देसवा क बाटे गुमान
तिरंग-रंग लहरल करे
जेकर कीरति बा जग में महान
तिरंगा लहरल करे !
परबत घाटी नदिया पोखर/सजे सबुज धरती बन-तरुवर
प्रेम शान्ति के छंद सुनावे/त्याग अउर बलिदान सिखावे
जहाँ चहकत-चिरइयन क गान
तिरंगा लहरल करे !
जेकर पगरी हिमगिरि धारे/चरन, समुन्दर रोज पखारे
विन्ध्य-हिमाचल जेकर गहना/गंडक सरजू गंगा जमुना
नित मलि मलि करावे असनान
तिरंगा लहरल करे !
प्रेम-भगति-रस छलकत गगरी / संत-गुनी, जोगियन के नगरी
चमके जेकर हरदम पानी/कन-कन लागे सोना-चानी
इ धरतिया हऽ रतनन क खान
तिरंगा लहरल करे !
विद्यापति जायसी कबीरा/तुलसी सूर समर्पित मीरा
परहित-धरम, ज्ञान के गरिमा/गुरुनानक अस गुरु के महिमा
करीं कतना ले केकर बखान
तिरंगा लहरल करे !
कतने बेरि देंहि रउनाइल/मन पर इचिको आँच न आइल
जगल बिबेकानन के स्वर से/गान्ही तिलक सुभाष अमर से
फिरू जागल सुतल अभिमान
तिरंगा लहरल करे !
ए धरती के सौ-सौ रँग बा/सँग-सँग जिये-मुवे के ढंग बा
गोबर लीपल राम-मड़इया/अँगना उचरेले गौरइया
जहाँ उतरेला पूनो क चान
तिरंगा लहरल करे !