सांस्कृतिक मूल्यबोध के देश-गीत

October 12, 2021
कविता
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डॉ. अशोक द्विवेदी

 

(एक)

 

जहवाँ हेरइलें आके

बड़-बड़ ज्ञानी…., उहे देसवा

झरे पथरो से पानी; उहे देसवा

हवे मोर देसवा !

 

जोगिया करेलें धन-संपति स्वाहा

दुलहा बनेलें जहाँ शिव बउराहा

दुलहिन गउरा के हवे रजधानी !

उहे देसवा….झरे पथरो से पानी !

हवे मोर देसवा !

 

तप करें जहाँ रिसि सत चित खातिर

देहियाँ तजेलें लोग परहित खातिर

झुकि-झुकि जालें बड़-बड़ अभिमानी !

उहे देसवा….झरे पथरो से पानी !

हवे मोर देसवा !

 

रतिया चढ़ावेले अँजोरिया के चानी

किरिन पखारे भोरे सोनवाँ के पानी

रूख-सूख खाइ हँसे सरग-पलानी !

उहे देसवा….झरे पथरो से पानी !

हवे मोर देसवा !

 

सहला के सीमा तूरे लोगवा इहाँ के

बाकि स्वाभिमान बदे लड़े छतिया के

नित उतसर्ग के गढ़ेला कहानी !

उहे देसवा…..झरे पथरो से पानी !

हवे मोर देसवा !

 

मिलि-जुलि पूरे जहँ जन गन सपना

प्रकृति रचेले नित नव-नव रचना

खोंइछा भरेलें जहाँ औढरदानी !

उहे देसवा……झरे पथरो से पानी !

हवे मोर देसवा !

 

(दू)

 

मोके देसवा क बाटे गुमान

तिरंग-रंग लहरल करे

जेकर कीरति बा जग में महान

तिरंगा लहरल करे !

 

 

परबत घाटी नदिया पोखर/सजे सबुज धरती बन-तरुवर

प्रेम शान्ति के छंद सुनावे/त्याग अउर बलिदान सिखावे

जहाँ चहकत-चिरइयन क गान

तिरंगा लहरल करे !

 

 

जेकर पगरी हिमगिरि धारे/चरन, समुन्दर रोज पखारे

विन्ध्य-हिमाचल जेकर गहना/गंडक सरजू गंगा जमुना

नित मलि मलि करावे असनान

तिरंगा लहरल करे !

 

प्रेम-भगति-रस छलकत गगरी / संत-गुनी, जोगियन के नगरी

चमके जेकर हरदम पानी/कन-कन लागे सोना-चानी

इ धरतिया हऽ रतनन क खान

तिरंगा लहरल करे !

 

विद्यापति जायसी कबीरा/तुलसी सूर समर्पित मीरा

परहित-धरम, ज्ञान के गरिमा/गुरुनानक अस गुरु के महिमा

करीं कतना ले केकर बखान

तिरंगा लहरल करे !

 

 

कतने बेरि देंहि रउनाइल/मन पर इचिको आँच न आइल

जगल बिबेकानन के स्वर से/गान्ही तिलक सुभाष अमर से

फिरू जागल सुतल अभिमान

तिरंगा लहरल करे !

 

ए  धरती के सौ-सौ रँग बा/सँग-सँग जिये-मुवे के ढंग बा

गोबर लीपल राम-मड़इया/अँगना उचरेले गौरइया

जहाँ उतरेला पूनो क चान

तिरंगा लहरल करे !

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