वीर कुंवर सिंह के प्रति

October 12, 2021
कविता
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डॉ० रामसेवक ‘विकल’

 

अंगरेजन के शोषन के बढ़ि गइल पाप के जब आगार

तब भारत के भी कण-कण में उमड़ल जोस के पारावार

सन् सन्तावन के बदला लेबे खातिर के वीर तैयार,

जूझलन ताल ठोकि रन भीतर हो सब घोड़न पर असवार

 

अस्सी बरिस के बबुआ कुवँर सिंह रहलन बलवान,

गरजि सिंह की नियर लड़ाई में जगलन ले जोस पुरान

जागि गइल जगदीसपुर औ गाँव जवार शहर जागल,

बच्चा, बूढ़ा, नर, नारी सब नवहन के किस्मत जागल

 

गंगा जागलि, जमुना जागलि, सरयू के आँचल जागल,

जन जन में अभिमान जागल,आ सबल वीर भारत जागल

बलिया जागल, आरा जागल, गाजीपुर छपरा जागल,

संतावन के वीरन के तब गर्म खून गौरव जागल

 

रणभेरी बाजे लागल तब, बाजल महत नगाड़ा ढोल,

गुँजि उठल जयगान विजय के पहुँचल गगन बीच जयबोल

एह राजपूती हाड़ माँस में दुर्गा जी के वास भइल,

रणचंडी काली करालिनी के भी आशीर्वाद भइल

 

थहराईल शासक दल तब औ अफसर सब भइलें हैरान,

गरमाइल देशी नवहन में आजादी के उमड़ल प्रान

काँपि गइल ब्रिटिश के शासन लार्ड गवर्नर माने हार,

ई राजपूती शान कबो ना मानें केहू के ललकार

 

शाहनशाह कुवँर महाराजा शिवपुर में पहुँचल रहलन,

हाथी ले गंगा मईया में कूदि पार होखत रहलन

बीच नदी में जबै पहुँचलन, बाँहि में एक गोली लागल,

अंगरेजन की गोली से तब हाथ में विष फैले लागल

 

काटि हाथ के बुढऊ दादा गंगा जी के दे दिहलन,

हँसत-हँसत गंगा मैया के आपन कर बलि दे दिहलन

गंगा की लहरिन में भैया, जय जय के मधुर गीत भरल,

तीन-तीन पर लगल लहर में कुवँर सिंह के प्रीत भरल

 

जाके पार नरेश कुवँर रण दलन से मिलि हँसि के कहलन,

चलऽ लड़े के बा हो बाबू! जोस भरल जय-जय कहलन

जब डगलस ले आपन सेना, पहुँचल आरा के मैदान,

तब मचि गइल महान युद्ध जगदीसपुर में भी घमसान

 

एने बिहारी वीर बाँकुड़ा रहलन कुवँर सिंह बलवान,

ओने लुगाई और डगलस के रहलन सब सैनिक सैतान

लड़ि भिड़ि के देसवा के खातिर कुँवर सिंह बलि हो गइलन,

मारि के अमर महत् जीवन पा भारत में धनि हो गइलन

आवs आज गीत गाईंजा अवर करीजा जय जय कार

वीर कुवँर सिंह बलिदानी के करीजा सब युग में सत्कार

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