सोने क चिरई

October 12, 2021
कविता
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झगड़ू भइया

सोने क  चिरई  भारत हउऐ

चिरई भइल लचार देख ला।

लगत हौ झुण्ड बहेलियन क

कइले  हौ  खेलवार देख ला।।

मूड़े माथे   हौ  महँगी  गठरी

सबही भयल लचार देख ला।

तेल  लगावै  से  पहिले अब

तेल,  तेल  क धार  देख ला।।

 

अब सेर के खोल में गदहा बा

मखमल के भाव टाट देख ला।।

जेतना चोर जुआरी रहैं लफंगा

अँगूठाछाप  क  ठाट देख  ला।

गुङवा  भी  अब जान गयल हौ

सबके हर दाव क काट देख ला।

अब नाव घाट  पर जाई कइसे

हौ भँवर के लग्गे घाट देख ला।।

 

देखा सोनचिरई  क  पहरेदार

नीद चैन क सोअत सोअत हौ।

सुख क फूल तोर-तोर के माली

पैंड़े पर दुख क काँटा बोअत हौ।।

सबही  छाती पर पाथर रख के

अपने मूड़े पर पाथर ढोअत हौ।

कँड़िहर टूट गइल हर गरीब क,

अब अपने करम पर रोअत हौ।।

 

सबही  आन्हर  हो  के  बइठल

फाँकत  हउऐ  राख  देख  ला।

जरत  हौ  तोहरे  सोनचिरइया

वाली रोजवैं अब पाँख देखला।।

सेंकै वाला सेंकत हउअन रोटी

सबही क फोर के आँख देख ला।

एनकर  बनरघुरकिया  डर  से

बनल हौ बड़की साख देख ला।।

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