कारगिल आ अन्तरात्मा

October 12, 2021
कविता
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मनोज भावुक

 

( एक )

 ( कारगिल मोर्चा पर विदा करत नई नवेली दुलहिन के अन्तरात्मा )

लवटब त चौठारी होई

जाई प्रियतम कर्मक्षेत्र में

पौरुष के इजहार करी

दुश्मन आइल, सीमा भीतर

दुश्मन के संहार करीं।

 

घूंघट में मत झाँकी रउरा

झाँकी हमरा हियरा में

देखीं, कइसन-कइसन झांकी

देश-प्रेम के, जियरा में

हृदयेश्वर! हे प्राणेश्वर

हमरा मन के श्रृंगार करीं

पापी आइल सीमा भीतर

पापी के संहार करीं।

 

विजयपताका फहरावे में,

गौरव गरिमा के सुख बा

कायर-कर्मविमुखता में त,

समझी, बस दुखे-दुख बा।

सीमा पर हमनी के सेना

दुश्मन पर भारी होई

करगिल से लवटब, तबहीं

हमनी के चौठारी होई।

 

(दू )

 

 (शहीद बाप के अन्तरात्मा)

 

थूथून थूरल मजबूरी बा

 

बढ़ जा बेटा लाहौर तक

दुश्मन के ठप्पा-ठौर तक

‘काहे कि अइसे मानी ना,

ऊ दुष्ट जीव पहचानी ना।

 

ऊ रह-रह के खोदियावत बा

बेमतलब बात बढ़ावत बा

लतियावल बहुत जरूरी बा

घर का भीतर ले जाके

सुधियावल बहुत जरूरी बा

नक्शा से नाँव मिटा के।

 

ऊ थेंथर हऽ अभिमानी हऽ

ऊ दगाबाज खनदानी हऽ

ऊ पौरुष के ललकारत बा

ऊ झूठे शान बधारत बा

ऊ रहल सदा से हारत बा

तबहूँ त करत शरारत बा

जे खोल ओदि याराना के

पीछे से भोंकत छूरी बा

ओकरा ला इहे जरूरी बा

थूथुन थूरल मजबूरी बा।

 

 

( तीन )

 

( शहीद दादा के अन्तरात्मा )

 

खाक करऽ नापाक पाक के

 

खाये के त ठीके नइखे

तबो ऊ टेटियात बा।

कारगिल में बिल बनाके

सुननी हऽ..केकियात बा।

भाड़ा के टट्टू का बल पे

का-का-दो मिमियात बा

ओह पिल्ला पर…ओकरे पिल्ला

काहे दो खिसियात बा।

 

 

मादा बनिके पोंछ उठवले,

कई दुआरी छिछिआइल

चारा ना डालल केहू त

पता चलल अवकात बा।

भावुक हियरा भारत के

जीतल जमीन जे दान करे

ऊ का बोली…लंगटे नाचब

ओकरा इहे बुझात बा।

 

एह से ओकर भरम मिटावल

भारत के मजबूरी बा।

खाक कइल नापाक पाक के,

बेटा बहुत जरूरी बा।

 

 

        ( चार )

 

( कोख लुटाइल महतारी के अन्तरात्मा )

 

अन्तरराष्ट्रीय शान्ति

 

बबुआ रे …

ई देश-विदेश काहे बनल

काहे बन्हाइल बाँध सरहद के।

दुनिया के ऊपर,

एके गो छत ………आसमान

आ एके गो जमीन….धरती

के कइलस टुकड़ा-टुकड़ा…?

झगड़ा के गाछ के लगावल…..

के बनावल नफरत के किला ?

 

 

का दो ‘धरती’ माई हई

…………माईयो टुकी-टुकी ?

लड़े वाला भाईये नू …… दूनू देशभक्त।

देशभक्ति माने…भाई के खून…बहिन के शीलहरण ..

….माई के कोख लूटल… भउजी के मांग धोअल…।

हाय रे हाय….खून के धारा।

मानवता के राग ध के रोये के नामे देशभक्ति ह…का रे बबुओ ।

लोग कहता कि हमार कोख लुटाइल नइखे….

……..’अमर हो गइल बा।’

तू मुअल नइखऽ……..अमर हो गइलऽ।

सरहद पर लड़े वाला मरबे ना करे….मरिओ के अमर हो जाला

‘अमरे’ होखे खातिर….सरहद बनावल गइल बा….का ए हमार बाबू?

 

खैर, अबो देश-विदेश में शान्ति कायम हो जाव

त बुझेमब….जे ई जिनिगी सुकलान हो गइल।

…बाकी ए हमार बाबू ……

उन्नीस सौ सैतालिस में तहरा दादियो के मांग धोआ के अमर हो गइल रहे

आ एकहत्तर में तहार बाबूजी शहीद भइलन त हमरो मांग धोआ के अमर हो गइल

आ अब तहरा मेहारुओ के मांग धोआ के अमर हो गइल।

….बाकी एह नब्बे बरिस का बूढ़ के

कहीं शान्ति ना लउकल..’अन्तरराष्ट्रीय शान्ति’ ।

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