आकृति विज्ञा ‘अर्पण‘
जब भारत क सुराज क सपना अकुलाहट के संघरी जन जवार के बीचे एठो आंदोलन के रूप में आइल त अंग्रेजन के भी भीतर मने बुझाइये गइल रहे कि अब दाल ढेर दिन ना गली।
ओह बेरी पूरे भारत में अलग अलग नायक लोग उभरत रहो ताकि माटी के पूतन के एक जोड़े सुराज क नींव रखास आ गुलामी क दिन बीतस।
मेहरारु स चाकी जाता चरखा सब पे सुराजी गीत गावे जां, सुराजी गीत कहीं त ऊ गीत जवना में सुराज क सपना, सुराज क मरम और सुराज बदे लड़ाई क चरचा होखस।
सुनीले कि तर तीज मेहरारु स चूड़ी बिंदी कीनल,सजल संवरल छोड़-छोड़ के लइका मरद सब के खिआवे पीयावे में लगली ताकि जुद्ध करेके पड़ो त तइयारी कम न पड़ो।
अगर केहूं क नाम लेब आ केहूं छूटी त अपना के अंखरी एही से एह बतकही में ओह कथवन क चर्चा रख रहल बानी जवन सुराजी भाव जगावत मेहरारु स के तप जोग सामने रखी,मन भीजि जाला आ माथा सम्मान में झुकि जाला कि अस अस महतारी एह सुराजी धेय में लगल रहली स।
गोरखपुर में वनसप्ति जंगल लगे मेहरारू स बिटुरके दुपहर बाद सुराजी गीत गांवे आ जेल में बंद कैदी लोगन खातिर थईली सीअत रहें। मेहरारू स क ई गतिविधिन क भनक जब अंग्रेजन के लगल त ऊ लोग अपना मुलाजिम से सनेसा भेजवा क मेहरारुन क इकट्ठा होखला पर रोक लगा देहलस। ओकरे बाद भी ई लो चुप्पे से इकट्ठा होत रहें। अंग्रेजन क शक भइल त ऊ सब खुदे देखे पहुंचलन। ओ कुल क गोल गुजरत देखि के मेहरारू स गोल ही घेर लेहली आ लगली गीत गावे। अंग्रेज स बूझि न पावस त ऊ लोग अपना चतुरबुद्धि से बइठा क पहिले बगले में एठो ऊंचहा जगही के लगली पूजे आ बगली के (थोड़े दूर) पंडिजी के कोठरी से पिसान आ महीया मिला के गुलगुला बनावे लगली आ लगली पिंडी पे चढ़ावे। अंग्रेज स एके कौनो पूजा समझलें। मेहरारु सब ओहू सन के ख़ूब गुलगुला खिअवली। ओह गुलगुला बनावत बेरी में मुंशीआइन एक ठो जड़ी पिसि के मिला देहली। अंग्रेज सबके गुलगुला नीक त लागल बाकि ओही बाद ऊ लोग बेहोश हो गइलन आ ओकरे बाद मेहरारु स हाथ गोड़ बान्हि के कप्तान के घरे ले गइली। बादे में कप्तान ओ लोग क बटुर के गीत गवनई क मांग मान लेहलन।
उहां मेहरारु बाद में गांव गांव बटोरे लगली और ओह में कलकत्ता क एठो बैद जी क मेहरारु सबके भाला चलावल भी सीखावे लगली। बगलिये के एठो मुखबिरी के कारण मेहरारुन क गोल टूट गइल बाकि उहां से बहुत सूत कताईल, बहुत चानी के सिक्का मेहरारु स सुराजी बैठकी क खरचा बदे देहली, जहां सेनानी लोग आपन योजना गढ़े।
रहिह कुआंर ए ननदि रनिया
करिह बीआह जो त जनिह सपूतवा
सुराज के निछार ए ननदि रनिया
एक पूत भेजिके दूसरा तू पोसिह
ऊहो रही तईयार ए ननदि रनिया………
जब ई गीत हम बचपन में रहरी क दाल दरात बेरी सुनि के गाईं त मन भीजी जात रहे कि अस त्याग तप से ई आपन धरती नसीब बा त एहके खातिर हमें भी करतब निबाहे के बा जवना बदे हम तैयार बानी।
न जाने केतना केतना कहानी स घरे घरे से जुड़ल होईहें जे लोग भारत के स्वाधीनता बदे खानदान खानदान मिट गइलन। धन्य बानी हमनी जां कि ई धरती आपन धरती ह।
जय भारत माई,वंदे मातरम्……..